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27.7.08

तुमको सोने का हार दिला दूँ










सुनो प्रिया मैं गाँव गया था
भईयाजी के साथ गया था
बनके मैं सौगात गया था
घर को हम दौनों ने मिलकर
दो भागों मैं बाँट लिया था
अपना हिस्सा छाँट लिया था
पटवारी को गाँव बुलाकर
सौ-सौ हथकंडे आजमाकर
खेत बराबर बांटे हमने
पुस्तैनी पीतल के बरतन
आपस मैं ही छांटे हमने
फ़िर खवास से ख़बर बताई
होगी खेत घर सबकी बिकवाई
अगले दिन सब बेच बांच के
हम लौटे इतिहास ताप के
हाथों में नोट हमारे
सपन भरे से नयन तुम्हारे
प्लाट कार सब आ जाएगी
मुनिया भी परिणी जाएगी
सिंटू की फीस की ख़ातिर
अब तंगी कैसे आएगी ?
अपने छोटे छोटे सपने
बाबूजी की मेहनत से पूरे
पतला खाके मोटा पहना
माँ ने कभी न पहना गहना
चलो घर में मैं खुशियाँ ला दूँ
तुमको सोने का हार दिला दूँ

=>गिरीश बिल्लोरे मुकुल

[निवेदन:इस कविता के साथ लगी फोटो पर जिस किसी को भी आपत्ति सत्व के कारण हो तो कृपया तत्काल बताइए ताकी वैकल्पिक व्यवस्था की जावे सादर:मुकुल ]

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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