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6.6.11

बाबा रामदेव प्रकरण : रोको उसे वो सच बोल रहा है कुछ पुख़्ता मक़ानों की छतें खोल रहा है


 वैचारिक ग़रीबी से जूझते भारत को देख  भारतीय-प्रजातंत्र की स्थिति का आंकलन सारे विश्व ने कर ही लिया है.अब शेष कुछ भी नहीं है कहने को. फ़िर भी कुछ विचारों को लिखा जाना ज़रूरी है जो बाबा रामदेव के अभियान को नेस्तना बूद करने बाद देश भर की सड़कों नुक्कड़ों घरों, कहवा घरों में  दिन भर चली बातों से ज़रा सा हट के हैं. मुझे याद आ रही है  मित्र शेषाद्री अय्यर अक्सर अपनी महफ़िल में गाया करतें हैं:- 
नीरज़ दीवान के ब्लाग पर लगी तस्वीर
"रोको उसे वो सच बोल रहा है कुछ पुख़्ता मक़ानों की छतें खोल रहा है !!" 
साभार : कीर्तीश भट्ट के ब्लाग
बामुलाहिज़ा से 
    दिल्ली ने बाबा को पुख़्ता मक़ानों की छतें खोलने से चार मई की रात रोक दिया . आंदोलन को रोकने की वज़ह भी पुलिस वाले आला हुज़ूर ने मीडिया के ज़रिये सबको बताईं .  जनता को सफ़ाई देने के लिये प्रशासन के ओहदेदार आए सरकार का पक्ष रखा गया . साहब जी ने बताया कि पंडाल में तनिक भी लाठी चार्ज नहीं हुआ. साहब सही बोले बताओ हमारे एक ब्लागर भाई नीरज़ दीवान   ने अपने ब्लाग की बोर्ड "की बोर्ड का सिपाही " पर लगाई इस तस्वीर को ध्यान से देखिये और फ़िर से याद कीजिये  सा’ब जी के उस बयान पर जिसमें उनने कहा था कि लाठी चार्ज नही हुआ.अब आप ही इस चित्र को देखिये और तय कीजिये क्या पुलिस वाले भैया जी क्या रामदेव बाबा के इस भक्त के दक्षिणावर्त्य को   सम्मानित कर रहें हैं..?
        सरकार को शायद इस बात का इल्म नहीं है आज़ दिन भर आम आदमी सुलगता रहा जो बाबा से सहमत है . अगर कोई इनको अंध भक्त कहे तो कहे आम भारतीय के मन में बाबा का ज़ादू बहुत गहरे समाया है.उसमें बाबा जी को अपमानित किये जाने से जो तिलमिलाहट हुई है उससे आने वाले दिनों जो दृश्य उपस्थित होने वाला है उसका एहसास दमन कारियों को कदापि नहीं है. आज़ तो कुछ लोग ये भी कहते सुने गये :- मतलब ये निकला कि रसूखदार मान ही गए कि बाबा जो कह रहे हैं वो सत्य है. और इस सच का सामना होते ही पुख्ता मक़ानों की छतें खुलना अवश्यम्भावी है.चलो मान लिया कि बाबा ठग है तो भी उनके योग और दवाओं ने कितनों को लाभ दिया इसका अनुमापन कैसे करिये गा.? जितने पण्डाल में थे वो तो बाबा जी के कुल अनुयाईयों का दसवां हिस्सा भी न थे. 
    कटिंग सैलून में चल रहे  एक चैनल पर लालू जी ने उवाचा :- बाबा जी को सियासत नहीं करनी चाहिये.
             यह सुन कर नाई की दुक़ान पर दाढी़ बनवाने गया आम आदमी बोल पड़ा :-"ये सियासत करते करते चारा बेच खरीद सकते हैं तो बाबा अगर सियासत करें तो बुराई क्या है. "
अब तो आप समझ ही गये होंगे कि कुत्ते क्यों भौंकते हैं..?
 जीभूल गये हों तो पढ़िये जी भाग एक भाग दो   

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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