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10.2.12

संस्थानों के दीमक : सरकारी कर्मचारी ज़रूर पढ़ें..

साभार: इंडिया रीयल टाइम
                                 हो सकता है कि किसी के दिल में चोट लगे शायद कोई नाराज़ भी हो जाए इसे पढ़कर ये भी सम्भव है कि एकाध समझेगा मेरी बात को.वैसे मुझे मालूम है अधिसंख्यक लोग मुझसे असमत हैं रहें आएं मुझे अब इस बात की परवाह कदाचित नहीं है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का सही वक्त पर सटीक स्तेमाल  कर रहा हूं. 
                      मुझे अच्छी तरह याद है बड़े उत्साह और उमंग से एक महकमें या संस्थान में तैनात हुआ युवा जब ऊलज़लूल वातावरण देखता है तो सन्न रह जाता है सहकर्मियों के कांईंयापन को देख कर . इसमें उस नेतृत्व करने वाले का भी उल्लेख करूंगा जो चापलूसी और चमचागिरी करने वालों से घिरा रहने वाला "बास" भी शामिल होता है. मुझे मालूम है कि नया नया कर्मी बेशक एक साफ़ पन्ने की तरह होता है जब वो संगठन में आता है लेकिन मौज़ूदा हालात उसे व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बना देते हैं. 
एक स्थिति जो अक्सर देखी जा सकती है नव प्रवेशी पर कुछ सहकर्मी अनाधिकृत रूप उस पर डोरे डालते हैं अपनापा की नकली शहद चटाते हुए उसे अपनी गिरफ़्त में लेने की कोशिश भी करते हैं. वहीं "बास-द्रोही" तत्व उसे अपने घेरे में शामिल करने की भरसक कोशिश में लगा होता है. मै ऐसे लोगों को संस्थान/आफ़िस/संगठन दीमक कहना पसंद करूंगा.. जो ऐसा कर सबसे पहले "संगठन" के विरुद्ध कार्यावरोध पैदा करते हैं. 
            कुछ तत्वों का और परिचय देता हूं जो निरे "पप्पू" नज़र आएंगे पर भीतर से वे शातिर होते हैं अक्सर ऐसे तत्व केवल अपने आप के बारे में ही चिंतन करते रहते हैं. पर कहते हैं न पास तो केवल पप्पू ही होता है.. पास होते रहते हैं. वे किसी के हरे में शामिल होते और न ही सूखे में. पर शातिर तो इतने कि अपने स्वार्थ के पीछे किस षड़यंत्र में शामिल हो जाएं आप जान भी न पाओगे. 
           संगठन में कार्यरत कर्मियों में कुछ ऐसे होते हैं जो बेचारे बड़ी तन्मयता से काम करते रहते हैं वे ही सदा  अत्यधिक दायित्वों  से लादे गये होते हैं. इनका प्रतिशत कमोबेश पांच-दस से ज़्यादा कभी नहीं होता. पर नब्बे फ़ीसदी मक्कारों का बोझा इन जैसों ने ही उठाया है. सच मानिये  अगर संगठनात्मक दायित्व निर्वहन पर शोध हो तो  आप इसकी पुष्टि करता हुआ रिज़ल्ट ही पाएंगे. 
           सहकर्मियों  की एक महत्वपूर्ण नस्ल को  अनदेखा करना बेहद नुकसान देह होगा जो बड़ी ही सादगी से आपकी किसी भी बात को "चुगली के रूप में कहीं भी पेश कर सकतें हैं  लोगों को यहां खुले तौर पर गाली देने से उम्दा परिभाषित करना उचित समझता हूं.ये जीव मैं उन नरों-मादाओं की औलाद होते हैं  जो एक सहवास के समय अपने अपने  अलग अलग विपरीत लिंगी आईकान्स के खयालों में खोये होते हैं और दैहिक परिस्थिवश ऐसा भ्रूण कंसीव हो जाता है जो आगे चलकर चुगलखोर-व्यक्तित्व के रूप में निखार पाता है. 
            आप सोच रहें होंगे बड़ा दिलाज़ला आदमी हूँ जो गालियां भी बड़े ही धूर्त चुगलखोरों के जनकों  को दे रहा है.. हकीकत में ऐसा करना इस वज़ह से भी ज़रूरी है ताकि आइना देख लें वे  जो  मक्कारियों  से बाज़ नहीं आते . की उनके बारे में लेखकों के विचार क्या हैं. 
     अब लोगों में एक विचार तेज़ी से पनपता दिखाई देता है जो उत्पादन संस्थानों /संगठनों के लिए घातक है वो प्रांतीय जातीय,क्षेत्रीय एवं अब शैक्षणिक तथा काडर गत समीकरण . प्रांतीय,जातीय,क्षेत्रीय समीकरण तो सामाजिक एवं  राजनैतिक कारणों से उपजाते हैं किन्तु शैक्षणिक एवं काडर के बिन्दु नए दौर का संकट है. आप  इसे समझने के,लिए किसी आफिस में जाएं तो  आप सहज ही समझ जाएगें. मेरे एक मित्र (?) ने सरे आम एक मीटिंग में बयान जारी कर दिया की वो सर्वाधिक शिक्षित है किन्तु संगठन में उसे वांछित स्थान नहीं मिला . अपने कार्य-दायित्व  और स्वयं घोषित प्रतिभा के बीच गहन अंतर के   नैराश्य भरे लोग समाज को क्या दे रहे हैं उत्तर होगा केवल "नैगेटीविटी"

क्रमश: अगले अंक तक ज़ारी " जो लोग बास है वे तैयार रहें "

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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