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10.12.12

ये तन्हाई मुझे उस भीड़ तक लाती है.. !!

 ये नज़्म कुछ खास दोस्तों को समर्पित है 










ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ तक लाती है.. !!
जिसे मैं छोड़ आया हूं ...
कोसों दूर अय.. लोगो
कि जिसमें तुम हो, तुम हो
और तुम भी तो हो प्यारे..
वो जिसने मेरे चेहरे पे सियाही
पोतना चाहा...
ये भी हैं जो मिरे पांवों पे
बांधा करते थे बेढ़ियां
इक दिन अचानक
जागते ही तोड़ आया हूं..!!
ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ के पास लाती है.. !!
जिसे मैं छोड़ आया हूं ...!!
**********
अचानक एक दिन तुम सबसे टूटा
दूर जा छिटका...
तुम हैरत में हो ? क्या वज़ह थी
मेरे जाने की..?
तुम जो रास्ता बतला रहे हो
लौट आने की...!!
अरे पागल हो तुम .. ज़रा सोचो
कभी बहता हुआ दरिया
सुनेगा लौट आने की ?
मेरे साहिल पे आके अब सुनों
अनुगूंज तुम मेरी
तुम्हारा शुक्रिया कि
टूटके तुम से
यकीं मानो
बहुत कुछ मीत अपने जोड़ पाया हूं !!
**********
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
**********

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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