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6.4.21

ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है ।

            यह कविता राष्ट्र द्रोहियों की दुरभि संधि को उजागर कर रही है 26 जनवरी से लेकर 3-4 अप्रैल 2021 तक की घटनाओं की निकटता को प्रस्तुत कर रही है। देखना है शाहीन बाग पर अश्रुपात करने वाली कलमों की #पहल क्या होगी ..?
व्योम पे देखो ज़रा क्या तम घना है ?
रुको देखूँ शायद ये मन की वेदना है ।।
रक्त वीरों का सड़क को रंग रहा है -
ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है ।
आज ग़र कौटिल्य मिल जाये कदाचित
कहूँगा जन्म लो चाणक्य मेरी याचना है ।
बंदूक से सत्ता के पथ खोजे जा रहें हैं-
जनतंत्र मेरे वतन का अब अनमना है ।।
आयातित बकरियों, का चरोखर देश ये
कर्मयोगी बोलिये, अब क्या बोलना है ?
आज़ाद मुक्ति मांगते बेशर्म होकर -
मुक्ति की ये मांग कैसी, और कैसी चेतना है ?
आज़ फिर सुकमा की ज़मीं को रंगा उनने
दुष्टों का संहार कर दो भला अब क्या सोचना है ।।
       

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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