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2.2.10
तवायफ की मौत
राज कुमार सोनी के बिगुल पर प्रकाशित ''घुंगरू टूट गए'' को पढ़ते ही मुझे अपनी पंद्रह बरस पुरानी एक सम्पादक द्वारा सखेद वापस रचना याद आ गई सोनी जी के प्रति आभार एवं उस आत्मा की शान्ति के लिए रचना सादर प्रेषित है
चीथड़े में लिपटी बूढ़ी माँ
मर गई
कोई न रोया न सिसका
उन सेठों के बच्चों ने भी नहीं
जिन सेठों नें बदन नौचा था इसका
वे बच्चे इसे माँ कह सकते थे
एक एक दिन अपने साथ रख सकते थे
ओरतें भी
इस बूढ़ी सौत की सेवा कर सकतीं थीं
किन्तु कोई हाथ कोई साथ न था इस को सम्हालने
सारे हाथ बंधे थे
सामाजिक-सम्मान की रेशमी जंजीर से
ये अलग बात है
ये परिवार गिर चुके थे ज़मीर से
बूढ़ी शबनम के पास
मूर्ती पूजक
पैगम्बर के आराधक
सब जाते थे
जिस्मानी सुख के सुरूर में गोते खाते थे
आज आख़िरी सांस ली इस बूढ़ी माँ ने
तब कोई भी न था साथ
घमापुर पोलिस ने
रोजनामाचे में
मर्ग कायम कर
लाश पोस्ट मार्टम को भेज दी है
पोलिस वाले उसे जलाते
अगर उसका नाम शबनम न होता
उसे दफना दिया गया है
अल्लाह उस पुलिस वाले को
ज़न्नत दे जिसने
दफनाते वक्त
आँखें भिगोई थीं....!
_________________________________
चित्र साभार :-गूगल बाबा
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मेरे बारे में
- बाल भवन जबलपुर
- जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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