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16.12.12

गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे हैं- सियासी-परिंदे गावों पे मंडराने लगे हैं.

साभार : http://yugaahwan.blogspot.in/


रजाई ओढ़ तो ली मैनें मगर वो नींद न पाई ,
जो पल्लेदारों को  बारदानों में आती है.!
वो रोटी कलरात जो मैने छोडी थी थाली में
मजूरे को वही रोटी सपनों में लुभाती है.
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फ़रिश्ते   आज कल घर मेरे आने लगे हैं
मुझे बेवज़ह कुछ रास्ते बतलाने लगे हैं
मुझे मालूम है काम अबके फ़रिश्तों का
फ़रिश्ते घूस लेकर काम करवाने  लगे हैं.
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तरक़्क़ी की लिस्टें महक़में से हो गईं जारी
तभी तो लल्लू-पंजू इतराने लगे हैं....!!
खुदा जाने नौटंकी बाज़ इतने क्यों हुए हैं वो
जिनको लूटा उसी को भीख दिलवाने चले हैं.
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जिन गमछों से आंसू पौंछते हमारे बड़े-बूढ़े-
वो गमछे अब गरीबों को डरवाने लगे हैं.
गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे अब
सियासी-परिंदे गांवों पे मंडराने लगे हैं.









26.4.11

तुमने किसका गीत ये गाया ,अपने सुर में आज़ पिरोकर किसका ओढ़ लबादा आये- कहो कहां से आये होकर !













सागर पाखी अपने पर को फ़ैला कर मापें जब सागर,
तब जानो सागर नन्हा है- आतुर वे भरने को गागर !
लघु विशाल का भेद निरर्थक देखो तो साहिल पे  जाकर.
इनसे भी ज़्यादा है मापा- जलचर ने अंतस तक सागर !!
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तुमने किसका गीत ये गाया ,अपने सुर में आज़ पिरोकर
किसका ओढ़ लबादा आये-    कहो कहां से आये    होकर !
बंद करो खोने का रोना- मिथ्या गीत नहीं सुनना है-
नित नूतन कुछ कुछ पाया है, हमने जग में खुद को खोकर !!

अपना उदर भरा करते हो इस उस के मुख छीन निवाला
अपनी ठिठुरन मिटा रहे क्यों- मेरे तन से  छीन दुशाला .
चिंगारी से डरने वालो क्या मशाल लोगे हाथों में-
हमको देखो जल जल हमने रोज़ राह में किया उज़ाला !!
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20.2.09

गर इश्क है तो इश्क की तरहा ही कीजिये

माना कि मयकशी के तरीके बदल गए
साकी कि अदा में कोई बदलाव नहीं है..!
गर इश्क है तो इश्क की तरहा ही कीजिये
ये पाँच साल का कोई चुनाव नहीं है ..?
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गिद्धों से कहो तालीम लें हमसे ज़रा आके
नौंचा है हमने जिसको वो ज़िंदा अभी भी है
सूली चढाया था मुंसिफ ने कल जिसे -
हर दिल के कोने में वो जीना अभी भी है !
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यूँ आईने के सामने बैठते वो कब तलक
मीजान-ए-खूबसूरती, बतातीं जो फब्तियां !
!!बवाल इसे पूरा कीजिए -----------
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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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