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शिक्षा परीक्षा, रुजल्ट पर पत्रकार श्री शम्भूनाथ शुक्ला जी

एक बार अपन ११वीं में लुढ़के और एक बार १२वीं में। क्योंकि साइंस और मैथ्स अपने पल्ले नहीं पड़ती थी। अगर आर्ट्स में होते तो अपन पक्का फर्स्ट क्लास निकल जाते। फिर साइंस से मन उचट गया। लेकिन घर में एक ही रट कि “साइंस नहीं पढ़ी तो क्या घंटा पढ़ा!”  कुछ दिन पंक्चर जोड़ने की दूकान खोली। नाम रखा, पप्पू पंक्चर। हम गोविंद नगर में CTI के पास बैठते। वहाँ ढाल थी। लोग आते और पंप से हवा ख़ुद भर कर चले जाते। तीन दिन में एक चवन्नी कमाई वह भी खोटी निकली। फिर क़ुल्फ़ी बेची। कुछ में हम टका भरते और पाँच पैसे की बेचते लोगों से कहते कि क़ुल्फ़ी ख़ुद निकालो। दुर्भाग्य कि सारी टका वाली क़ुल्फ़ी ही निकल गईं। पास धेला नहीं आया। फिर बकरमंडी में कार की बैटरी रिचार्ज करने का काम सीखा पर एक दिन छुट्टन मियाँ, जो अपने उस्ताद थे, ने गरम-गरम तारकोल हाथ पर डाल दिया। चमड़ी जल गई। वह भी छोड़ दिया। वहाँ जितना वेतन मिला, उससे बाटा की एक सैंडल ख़रीदी, जो 1973 में 26.99 रुपए की आई थी। इसके बाद दैनिक जागरण में एक बाबू टाइप जॉब निकली, इंटरव्यू के बाद पाया कि किसी अग्र-बाल का चयन हो गया। वेतन 200 रुपए था। तीन साल बाद उसी दैनिक जाग

एक सच्चा इंसान : तारेक फतेह

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एक सच्चा इंसान : तारेक फतेह जन्म 20 नवम्बर 1949 कराची, सिंध, पाकिस्तान मृत्यु 24 अप्रैल 2023 (उम्र 73) राष्ट्रीयता: कनाडाई जातीयता: पंजाबी व्यवसाय- राजनैतिक कार्यकर्ता, लेखक, प्रसारक तारिक फतेह जी से मेरी ट्विटर पर ही संक्षिप्त बातचीत कुछ ही दिनों पहले शुरू हुई थी अक्सर ट्विटर स्पेस पर उनका मिलना अच्छा लगता था। इतना तो स्पष्ट व्यक्ति कभी भी पाकिस्तान जैसे मुल्क में रह ही नहीं सकता। वे धर्म के प्रति बेहद तत्व ज्ञानी की तरह थे। और विशेष रुप से पाकिस्तान की जनता के जीवन स्तर उठाने के लिए सतत कोशिशें करते रहे किंतु पाकिस्तान की प्रोआर्मी राज्य प्रबंधन ने उनको ही उठाने के लिए बंदोबस्त कर दिए। मैं उन पर इसलिए आकर्षित नहीं था कि वे किसी धर्म विशेष के संदर्भ में बात करते हैं बल्कि इस कारण आकर्षित था, क्योंकि  कि वे चाहते थे सांस्कृतिक निरंतरता जब एक सी है तो हमें साथ साथ चलने में क्या आपत्ति है ?       सनातनी व्यवस्था के प्रति बेहद सकारात्मक रूप से संवेदनशील थे । 13 अप्रैल से 29 अप्रैल 2023 तक मैं स्वयं परेल मुंबई स्थित ग्लोबल  अस्पताल में आईसीयू में भर्ती था दुनिया में क्य

केदारनाथ मंदिर : अलौकिक स्थापत्य का नमूना लेखिका पूर्णिमा सनातनी

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केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है। केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं। यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर एक कलाकृति है I कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नही जा सकते I फिर इस मन्दिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया? ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकत

"महाराणा के स्व के लिए भीषण संग्राम और पूर्णाहुति : महाबली हाथी रामप्रसाद"

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 इतिहास में प्रचलित पंचांग के अनुसार महा महारथी महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई को है परंतु तिथि के अनुसार इस वर्ष 22 मई को मनाई जाएगी।मुगलों के लिए यमराज और हिंदुत्व के सूर्य महाराणा की जयंती के पूर्व आज हल्दीघाटी के युद्ध के एक महायोद्धा - विश्व के सर्वश्रेष्ठ हाथी - महारथी "रामप्रसाद" की याद आ गई। भारतवर्ष सदा से वीरों और वीरांगनाओं की पवित्र भूमि रही है जिसमें विभिन्न प्राणियों ने भी अपनी वीरता के जौहर दिखाए हैं। चतुष्पादों में राणा कर्ण सिंह का घोड़ा शुभ्रक,रानी दुर्गावती का हाथी सरमन, महाराणा प्रताप का हाथी रामप्रसाद और घोड़ा चेतक प्रसिद्ध हैं। यूं तो रामप्रसाद ने महाराणा प्रताप के साथ अनेक युद्ध लड़े थे परंतु हल्दीघाटी का युद्ध रामप्रसाद वीरता का चरमोत्कर्ष था, जो चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा।  18 जून को प्रातः हल्दीघाटी में भयंकर मोर्चा खुल गया महाराणा प्रताप के अग्रिम दस्ते ने मुगलों को खमनौर तक खदेड़ा मुगलों में अफरा-तफरी मच गई। पुन:शहजादा सलीम, मान सिंह, सैय्यद बारहा और आसफ खान ने मोर्चा संभाला। शहजादा सलीम और मान सिंह की रक्षार्थ 20 हाथियों ने घेराबंदी कर र

स्मृतियों के गलियारों दैनिक पुलका महोत्सव

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हमें नहीं मालूम था कि डाइनिंग टेबल क्या होता है। परमिशन से ही मिलती थी बिस्तर पर बैठकर खाने की जो बुखार से पीड़ित होता था। और वह भी एक गहन देखरेख में। केवल दो तरह की दवाई चलती थी कम्युनिटी मेडिसिन के नाम पर एपीसी एवं सल्फर बेस्ड ड्रग #सल्फा_डायजिन फिर बीमार हुए जाता तो पहुंच गए अस्पताल। फल वालों के यहां वही जाते थे जिनके घर में कोई मरीज होता था। दीवान साहब के यहां शाम कुछ लोग चले आए और पूछने लगे:- सुबह जब मैं अदालत जा रहा था तब आपको मैंने साइकिल पर फल वाले से फल लेते हुए देखा कोई बीमार है क्या दादा जी तो ठीक है न?    हां भाई सब ठीक है पर दादाजी को डॉक्टर ने बताया है की जरा एप्पल वगैरह खिलाओ।  एप्पल कैसे खिलाते हो छिलके निकाल के? जी हां बिल्कुल, ठीक है जैसा डॉक्टर कहीं वैसा चलेगा। दादा जी से मिल लिया जाए बहुत समय तक दादा जी के साथ वकील साहब ने वार्तालाप की और फिर इसके बाद शाम के रात में परिवर्तित होने का अनुभव हुआ।   स्मृतियों के गलियारों में आपको याद होगा स्कूल के लिए निकलने से पहले मां सब बच्चों को एक लाइन से बिठाकर भोजन कराती। एक घर में कम से कम चार से पांच बच्चे हुआ करते