30.8.22

चिंतन: ब्रह्मतत्व का रहस्य


What is Brahma Tattva? Or who is called the God particle?
   वास्तव में यही जटिल प्रश्न है। इस प्रश्न में जटिलता इसलिए भी है क्योंकि इसके अस्तित्व स्वीकार लेने के लिए कई परिभाषाएं हमने दीं हैं। ब्रह्म तत्व का परीक्षण करने वालों ने बहुत सारी बातें छोड़ दी  हैं
[  ] वैज्ञानिक नजरिए से ब्रह्म तत्व को सर्वप्रथम मान्यता की नहीं थी। फिर धीरे-धीरे जब प्रोफेसर हॉकिंग्स ने समझा कि यदि सृष्टि का कोई ऑपरेटिंग सिस्टम है तो उससे कोई ऑपरेट करने वाला भी होगा यदि ऐसा है तो ब्रह्म तत्व है। विज्ञान आज भी सामान्य रूप से ईश्वर के अस्तित्व को नकारता है। पर जब क्वांटम कांटेक्ट में जाता है तो फिर ब्रह्म तत्त्व के रास्ते पर चढ़ता हुआ नजर आता है।
[  ] गति के नियम, गुरुत्वाकर्षण का नियम, अंतरिक्ष की व्यवस्थाओं के साथ पृथ्वी का अंतर्संबंध पृथ्वी पर उपस्थित तथा एलियंस के आवागमन के संदर्भ में जब विचार होता है तो कहीं ना कहीं गॉड पार्टिकल अर्थात ब्रह्म तत्व की समीक्षा वैज्ञानिक करता है।
[  ] सामाजिक नजरिए से देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने से महान किसी शक्ति के समक्ष नतमस्तक होता है। दुनिया दो खेमे में विभक्त है - आस्तिक और नास्तिक । सीधी सी बात है ब्रह्म तत्व को स्वीकारने वाला आस्तिक है और न करने वाला नास्तिक है। समाज की मूल इकाई अर्थात व्यक्ति ईश्वर के रहस्य को समझने की कोशिश करता है। वह किसी संप्रदाय के साथ जोड़ता है किसी गुरु के संरक्षण में ब्रह्म तत्व को जानने की कोशिश करता है। उसे मिल भी जाता होगा उसके सवालों का उत्तर।
[  ] तर्कशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखने वाले ईश्वर के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए गुणदोष , पक्ष-विपक्ष, का अवलोकन करते हैं, फिर अपने ज्ञान एवं बौद्धिक योग्यता के आधार पर इसका स्वरूप निर्धारित कर देते हैं। फिर भी उसे पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं कर पाते। आचार्य  रजनीश को इसी खंड में रखना चाहता हूं।
[  ] आदि गुरु शंकराचार्य ने ईश्वर को अद्वैत दर्शन के माध्यम से समझा दिया। अनहलक, द्वैत, द्वैताद्वैत, एकेश्वरवाद, बहुलदेव वाद, ईश्वर-तत्व को समझने में सर्वश्रेष्ठ सूत्र हैं।
[  ] परन्तु कुछ लोग ब्रह्म को गपोड़ियों की तरह एक्सप्लेन करते हैं। वे ब्रह्म को स्वर्गलोक जैसे स्थान का स्थाई निवासी घोषित कर रहे हैं। जबकि ब्रह्म तत्व के सर्वव्यापी होता है।
[  ] ब्रह्म तत्व के कण-कण में व्याप्त होने की कुतर्क से विश्लेषण किया जाता है।
        कुल मिलाकर जिसने जैसा महसूस किया , अपने कंफर्ट के अनुसार ब्रह्म बना दिया। ब्रह्म स्वर्ग में रहता है वह जन्नत में रहता है हम कहते हैं अलख निरंजन हैं वह दिखता नहीं है। वास्तविकता यह है कि जो सार्वभौमिक है सर्वव्यापी है है उसे आप देख भी तो नहीं सकते.. उसे देखने की आपने हमने क्षमता कहां? त्रैलोक्य के दर्शन करोगे? आसान नहीं है ऐसा करना अभी तो कुछ वर्ष पहले अर्थात 1977 में ब्रह्मांड के रहस्य को जानने भेजा गया वायजर यान वर्ष 2017 में 40 वर्षों में केवल 20 अरब किलोमीटर जा पाया है। अब दो तीन अरब किलोमीटर और पहुंच सका होगा ! है न अभी तो नक्षत्रों तक पहुंचना है निहारिका ओं से मुलाकात करना है हो सकता है और कई 100  साल लग जाए तुम ब्रह्मांड को नहीं  जान सकते तो उसके नियंता ब्रह्म को कैसे जान सकते हो?
ब्रह्म को पहचानने की रिस्क मत उठाओ जानते हो ब्रह्म को पहचानने के लिए और उसे परिभाषित करने के लिए आत्मज्ञान की जरूरत है। महसूस करो समाधि स्थिति में जाओ योग शक्ति से अहम् ब्रह्मास्मि के सूत्र वाक्य को स्वीकारते  हुए ब्रह्म को पहचान लो। और क्या बताऊं बहुत बुद्धिमान हो समझदार हो ब्रह्म को तलवार से स्थापित कर रहे हो एक ब्रह्म है दूसरा नहीं है यह तो हम बरसों से कह रहे हैं नहीं युगो से कर रहे है और तुम हो कि सर तन से जुदा करते हुए अपनी काल्पनिक दुनिया के मंतव्य की स्थापना कर रहे हो।
      *ॐ राम कृष्ण हरि:*

27.8.22

बापू के बंदरों के वंशज

    *बापू के बंदरों के वंशज*
         ( व्यंग्य-गिरीश बिल्लोरे मुकुल)
   महात्मा गांधी ने हमें जिन तीन बंदरों से परिचय कराया था उन्हीं के वंशजों से हमारा अचानक मिलना हो गया। तीनों की पर्सनालिटी अलग अलग नजर आ रही थी यहां तक कि वे बंदरों से ही अलग थे।
   व्यक्तित्व में बदलाव तो होना चाहिए स्वाभाविक है कि विकास अनुक्रम में सांस्कृतिक विकास सबसे तेजी से होता है इसमें नए नए शब्द मिलते हैं। शारीरिक शब्दावली आप बदली हुई देख सकते हैं। बापू के तीनों बंदर वाकई में बदल चुके थे। बंदर क्या वह इंसानों से बड़े इंसान बंदर नजर आ रहे थे।
  आपको याद होगा जिस बंदर ने अपनी कान में अंगुलियां डाल रखी थी , उसकी  वंशज ने मुझसे गर्मजोशी से हाथ मिलाया। और कुछ नहीं लगा क्या कर रहे हो आजकल हमने अपना बायोडाटा रख दिया और कहा अब आप तीनों ने मेरा परिचय तो जान लिया होगा आप लोग क्या कर रहे हैं मुझे बताने का कष्ट कीजिए...!
  हां मेरे दादाजी कान में उंगली डाल कर गांधी जी के पास रहा करते थे। हम भी वही कुछ सबको सिखा रहे हैं।
अच्छा....यह तो बहुत अच्छी बात है।
नहीं नहीं आप समझ नहीं पा रहे हैं..! बंदर ने कहा, हम लोगों को बता रहे हैं कहां से कैसी आवाज आ रही है, कौन कह  रहा है, इस पर तुम्हें ध्यान देने की बिल्कुल जरूरत नहीं। क्योंकि तुम्हारी औकात तो है नहीं अगर सुनोगे तो फिर उत्तेजित होकर एक्शन मोड में आ जाओगे.. ! हो सकता है कि आ बैल मुझे मार वाली स्थिति का निर्माण भी कर लो। तो ऐसे मसलों को सुनने की जरूरत क्या है। भाई युक्ति से मुक्ति मिलती है युक्ति लगाओ और मुक्त रहो क्या बुराई है?
    मित्रों उस महान बंदर की संतान का जितना आभार माना जाए कम है। मध्यम वर्ग के लिए तो यह एकदम फिट बैठता है। मध्यवर्ग को इस प्रथम बंदर की औलाद का उपदेश आत्मसात कर लेना चाहिए भाई।
  तभी दूसरे बंदर ने सिगरेट जलाई और मेरी तरफ मुखातिब होकर पूछा - तुम कवि लेखक निबंधकार ब्लॉग लेखक हो?
मेरा उत्तर हां में था। मैंने भी उससे प्रति प्रश्न किया तो तुम्हें मेरा लिखा हुआ पसंद आता है?
    तभी कॉफी हाउस में चलने का अनुरोध सुनकर मैं उनके पीछे पीछे हो लिया।
    अनुकूल टेबल चुनकर हम बैठ गए। दूसरे बंदर ने कहा-" तुम्हें मैं बिल्कुल नहीं पढ़ता ! हां तुम्हारी फोटो शोटो पेपर में देख कर लगता है कि तुम लिखते हो किसी ने बताया भी था कि तुमने एक किताब लिख मारी है सॉरी भाई बुरा मत मानना अब हम ठहरे बंदर इधर से उधर उधर से इधर टाइम कहां मिलता है?
मैंने पूछा - चलो ठीक है बताओ तुम्हारा धंधा क्या है ?
     मैं भी सोशल एजुकेशन फील्ड में काम कर रहा हूं। मैं ऐसे नेगेटिव स्थापित करने में अपनी क्लाइंट की मदद करता हूं जिससे क्लाइंट के पक्ष में वातावरण निर्मित हो। मैं पब्लिक को सिखाता हूं यह मत देखो वह मत देखो जो मैं दिखा रहा हूं वही देखो। और फिर मैं वह चीज दिखा देता हूं जिसे मुझे बेचना होता है। छोटी सी बात है कि घर में कपूर जलाने से इंसेक्ट भाग जाते हैं। मैंने सिखाया है-" प्रिय भारतवंशियों , प्रगतिशील हो इंसेक्ट किलर स्प्रे रखो। सर में दर्द हो तो तेल पानी की मालिश मत करो अरे भाई फला कंपनी ने दवा बनाई है ना बहुत रिसर्च किया है एक बार फिर पुरानी रूढ़ीवादी बातों से छुटकारा भी तो चाहिए तुम्हें। मेरी बातें सुनकर लोग जरूर प्रभावित होते हैं मेरा क्लाइंट मुझे धन देता है मेरे बच्चों का लालन-पालन होता है। सब का मस्तिष्क ठंडा ठंडा कूल कूल रखता हूं मैं। सच बताऊं मैं सब कुछ बेच सकता हूं। कभी आजमाना मेरी सेवा में लेकर देखना..!
  मैंने उस बंदर से कहा-"भाई.., मैं ठहरा ऑफिस का बाबू मैं क्या कर सकता हूं मेरे पास कोई प्रोडक्ट नहीं है।
   बंदर बोला-" मौका तो दो मैं तुम्हें भी बेच सकता हूं"
  अब तक  वेटर चार कॉफी लेकर आ चुका था। सब जानते हैं कि मैं नाकारा नामुराद व्यक्ति हूं मुझसे किसी को कोई फायदा कभी हो सकता है भला? परंतु मेरे भी भाव लग सकते हैं मैं बेचा जा सकता हूं सुनकर मुझे विस्मित होना स्वभाविक था। एक बार तो मैं महसूस करने लगा कि वह बंदर  मुझे नीलाम कर रहा है सामने बहुत सारे गधे खड़े हैं और मुझे खरीदने का मन भी कई लोग बना चुके हैं। तभी मुंह पर हाथ रखने वाले बंदर की औलाद ने मुझे हिलाया और पूछा- श्रीमान कहां खो गए?
  स्वप्नलोक से वापस आते मैंने देखा कि बंदरों ने लगभग आधी कॉफी समाप्त कर दी थी। तीसरे बंदर ने अपने आप अपनी कहानी बिना पूछे बतानी शुरू कर दी। उसे मालूम था कि मैं उससे भी कुछ पूछने वाला हूं।
    भाई मैं तो दुनिया की हर चीज देखता हूं हर चीज सुनता हूं और अपने पूर्वज की तरह मुंह बंद रखता हूं। जानते हो क्यों..?
मैं नहीं जानता तुम ही बता दो..!
तीसरा बंदर कहने लगा-" भाई सब देखने सुनने के बाद मैं उन लोगों के पास जाता हूं जिनसे बुरा हुआ है जिनमें बुरा किया है और फिर बताता हूं कि भाई इस सब को पब्लिक फोरम पर मैं नहीं लाने वाला अगर आप मेरे लिए पत्रं पुष्पं की व्यवस्था कर दें। मैं अपने मुंह पर उंगली रख लूंगा बिलकुल वैसे ही जैसे मेरे पूर्वज जो गांधी जी के साथ थे ने अपने मुंह पर उंगली रखी थी।
   इतना कहकर बंदर अचानक गायब होने लगे, कॉफी हाउस का वेटर मेरी ओर बिल लेकर आ रहा था, कि... मेरी पत्नी ने मुझे हिलाया, और चीखते हुए बोली-" तुम लेखकों का यही दुर्भाग्य है रात भर जागना और 9:00 बजे तक बिस्तर पर पड़े रहना.. बच्चों का ख्याल नहीं होता तो कब की तुम्हें छोड़कर मैके चली जाती..!"
    हम जैसे बेवकूफ लेखकों का भूतकाल वर्तमान और भविष्य इसी तरह की लताड़ का आदि हो गया है। यह अलग बात है कि स्वप्न में जिन बंदरों से मुलाकात हुई वह बंदर कितने विकसित हो चुके हैं कितने परिपक्व हैं यह हम अब तक ना समझ सके।
*डिस्क्लेमर : इस व्यंग्य का किसी से कोई लेना देना नहीं जिसे पढ़ना है पढ़ें समझना है समझो अपने दिल पर ना लें अगर आप गांधीजी के बंदर हैं तो भी और नहीं है तब भी*

25.8.22

चिंतन : सुख और आनंद


   आनंद यूं ही नहीं मिलता, आनंद खरीदा नहीं जा सकता , आनंद के बाज़ार भी नहीं लगते, आनंद की दुकानें भी नहीं है, आनंद के विज्ञापन नहीं कहीं देखे हैं कभी आपने?
   आनंद अनुभूति का विषय है। आनंद कठोर साधना से प्राप्त होता है। आनंद मस्तिष्क का विषय है। आनंद प्राप्ति के लिए हिंसा नहीं होती । आनंद चैतन्य की पूर्णिमा है। भिक्षु आनंदित हो सकता है, जितनी उम्मीदैं आकांक्षाएं और अपेक्षाएं कम होंगी अथवा शून्य होंगी, उससे कहीं अधिक आनंद का अनुभव होगा। लोग समझते हैं कि आनंद सुख का समानार्थी शब्द है। ऐसा नहीं है ऐसा कभी ना था मैं तो कहता हूं ऐसा हो ही नहीं सकता।
सुख अपेक्षाओं का पूरा होते ही प्राप्त हो जाता है। सुख बाजार में खरीदा जा सकता है सुख की खुलेआम बिक्री होती है, सुख के बाजार की हैं, सुख भौतिकवाद का चरम हो सकता है। 
      चाहत वर्चस्व सत्ता सुख के महत्वपूर्ण संसाधन है। सुख का अतिरेक प्रमाद और अहंकार का जन्मदाता है। जबकि आनंद का अतिरेक शांति एवं ब्रह्म के साथ साक्षात्कार का अवसर देने वाला विषय है।
  मैं जब भी अपने कंफर्ट जोन से बाहर आता हूं तब मुझे सुख में कमी महसूस होती है। यह कमी मुझे दुखी कर देती है। दुख आरोप-प्रत्यारोप शिकायत का आधार बन जाता है। ऐसी स्थिति में आनंद के रास्ते तक बंद हो जाते हैं।
       मीरा तो महारानी थी महल में रहती थी..और उसने अपना कंफर्ट जोन छोड़ दिया। सुख की सीमा से बाहर निकल आई । जब मीरा कंफर्ट जोन से बाहर निकली और कहने लगी *पायोजी मैंने राम रतन धन पायो।*
   हमने अत्यधिक सुखी लोगों को बिलखते देखा है , और अकिंचन को तल्लीनता से ब्रह्म के नजदीक जाते देखा है। कुल मिला के सुख फिजिकल डिजायर  का परिणाम है जबकि आनंद आत्मिक एवं आध्यात्मिक अनुभूतियों का प्रामाणिक परिणाम है।
     सुख के सापेक्ष आनंद योग साधना चिंतन धारणा ध्यान और समाधि का अंतिम परिणाम है।
हाथ में धन मस्तिष्क में सुख का अनुभव अक्सर हम महसूस करते हैं। जैसे ही धन कम होता है हमारा मन व्यग्रता से लबालब हो जाता है, और हम दुखी हो जाते हैं। 
        हाथ से सत्ता जाते ही आपने लोगों को उसके कैंचुए की तरह बिलबिलाते देखा होगा ? जो नमक की जलन से शरीर स्वयं को बचाने में असफल हो जाता है। वर्चस्व  की भी यही स्थिति है। ध्यान से देखो जो मनुष्य अकिंचन होकर न्यूनतम जरूरतों की पूर्ति कर ब्रह्म चिंतन में लग जाता है, उसके चेहरे की तेजस्विता देखिए हो सकता है कि घर के बाहर "माम भिक्षाम देही...!" की आवाज आपको सुनाई दे रही है न....!
       देखिए उसके चेहरे पर तृप्ति के भाव को यदि वह योगी है तो उसके चेहरे पर आपको महात्मा बुद्ध नजर आएंगे। 
 ॐ राम कृष्ण हरि:

23.8.22

राजा दाहिर का भारत की रक्षा में योगदान

  यूनानीयों ने ईसा के पूर्व भारत पर सांस्कृतिक सामरिक हमला किया किंतु उनकी विफलता सर्व व्यापी है।वामधर्मी  इतिहासकार जिस मंतव्य को स्थापित करने के लिए ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं जो भारतीय सांस्कृतिक पहचान को विलुप्त कर दें। यूनानीयों के अलावा कुषाण हूण इत्यादि कबीलों ने भारत पर आक्रमण किया। अरब के लोग भी भारत पर अपनी प्रभु सत्ता स्थापित करने के लिए लगभग इस्लाम के आने के पूर्व लगभग कई बार आक्रमण कर चुके थे।
भारत पर आक्रमण के क्या कारण रहे होंगे?
    भारत की खाद्य पदार्थों के उत्पादन क्षमता शेष विश्व के सापेक्ष बहुत श्रेष्ठ एवं स्तरीय रही है। दूसरा कारण था भारत में अद्वितीय स्वर्ण भंडार। इसके अलावा भारत की सांस्कृतिक परंपराएं सामाजिक व्यवस्था किसी भी अन्य सभ्यता से उत्कृष्ट रही हैं।
   उपरोक्त कारणों से भारत कबीलो के आकर्षण का केंद्र बना रहा।
   आप जानते हैं कि सिकंदर और पोरस की लड़ाई में सिकंदर भारत पर साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया उसे वापस जाना पड़ा और वापसी के दौरान रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई।
  भारत का व्यापार व्यवसाय हड़प्पा काल से ही अरब यूनान ओमान तक विस्तृत था।
   भारत में विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के संबंध में पृथक से कभी बात की जाएगी । इस आर्टिकल के जरिए आपको यह अवगत कराना चाहता हूं कि भारत में सबसे पहला आक्रमण मुंबई के ठाणे शहर में अरब आक्रामणकारीयों द्वारा किया गया था। इसके उपरांत मकरान के रास्ते से 644, 659 , 662, 664 ईस्वी में लगातार आक्रमण होते रहे।
   उस अवधि में कश्मीर भारत का सांस्कृतिक सामरिक केंद्र था। इसका विवरण आप भली प्रकार राज तरंगिणीयों में देख सकते हैं। सन 632 में मोहम्मद साहब के देहांत के बाद खलीफ़ाई व्यवस्था कायम हो चुकी थी। सातवीं शताब्दी के उपरोक्त समस्त आक्रमणों में अरबों की पराजय हुई। परंतु आठवीं शताब्दी के आने तक अरबों की सामरिक क्षमता में वृद्धि हो चुकी थी। सन 712 इसी में सिंध पर कश्मीर मूल के राजा जो जाति से ब्राह्मण थे की राजवंश का साम्राज्य था। सिंध जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है का राजा दाहिर, इराक के शाह हज्जाज के निशाने पर थे। इराक के शाह द्वारा भारत पर आक्रमण की दो वजहें सुनिश्चित की थीं
[  ] एक वजह थी ओमान के शासक माबिया बिन हलाफी, तथा उसके भाई मोहम्मद द्वारा सिंध में शरण लेना। इन दोनों भाइयों ने खलीफा से असहमति जाहिर की थी।
[  ] दूसरा कारण इस्लाम को विस्तार करने का था।
     हज्जाज की सेना ने राजा दाहिर शासित सिंध पर आक्रमण किया, परंतु उसे असफल होकर वापस लौटना पड़ा। इसके बाद भी राजा दाहिर पर आक्रमण के प्रयास लगातार होते रहे। सन 712 ईसवी में हज्जाज ने अपने दामाद 17 वर्षीय मोहम्मद बिन कासिम को नई रणनीति के साथ राजा दाहिर के साम्राज्य सिंध पर आक्रमण करने का निर्देश दिया। मोहम्मद बिन कासिम क्रूर धर्म भीरु धर्म विस्तारक गजवा ए हिंद की भावनात्मक उत्तेजना के साथ भारत में आया और उसने स्थानीय लोगों को घूस देकर तथा कुछ बुद्धिस्ट लोगों को हिंदुत्व के विरुद्ध भड़का कर तथा बुद्धिज्म के विस्तार का लालच देकर अपनी ओर आकर्षित कर लिया तथा उनका सामरिक उपयोग भी किया। मोहम्मद बिन कासिम के पास बालिष्ठ नाम का एक ऐसा यंत्र था जिससे बड़े-बड़े पत्थर दूरी तक फेंके जा सकते थे। यह युद्ध देवल में लड़ा गया। हिंदू वासियों की मान्यता थी कि देवल का ध्वज गिरना पराजय का कारण होगा यह बात मोहम्मद बिन कासिम को भारतीय बिके हुए लोगों ने बता दी। मोहम्मद बिन कासिम ने देवल के मंदिर पर लगी ध्वजा पर सबसे पहले आक्रमण किया इस आक्रमण में ध्वजा क्षतिग्रस्त हो गई। इससे सिंध की सेना का मनोबल कमजोर हुआ। मोहम्मद बिन कासिम की सेना के साथ राजा दाहिर की सेना नें वीरता पूर्वक मुकाबला जारी रखा। तभी अचानक राजा दाहिर का हाथी अनियंत्रित हो गया और उसे नियंत्रित करने महावत ने रणभूमि से अलग ले जाकर हाथी को काबू में लाने का प्रयास किया। इस बीच सिंध की सेना में यह अफवाह भी फैल गई कि राजा दाहिर ने पलायन कर दिया है। कुछ समय पश्चात राजा दाहिर वापस युद्ध भूमि पर लौटे तब तक बहुत सारे सैनिक पलायन कर चुके थे।
    उधर लगातार तीन दिन मोहम्मद बिन कासिम के लड़ाके बस्तियों में लूटपाट करते रहे। 17 वर्ष से अधिक के महिला पुरुषों को इस्लाम कुबूल करने की हिदायत दी गई और ना मानने पर कत्लेआम किया गया। यह कत्लेआम लगभग 3 दिन तक लगातार चला।
  राजा दहिर के महल की स्त्रियों ने स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया किंतु उनकी दूसरी पत्नी तथा दो  पुत्रियां शेष रह गई। जिन्हें मोहम्मद बिन कासिम बंदी बनाकर रानी को अपने हरम में रख लिया तथा पुत्रियों को खलीफा के समक्ष पेश किया। दोनों राजकुमारियों में सूर्य देवी तथा परमार देवी वैसे खलीफा ने सूर्य देवी को अपने पास रख लिया और परमार देवी को अपने हरम में भेज दिया। सूर्य देवी को मोहम्मद बिन कासिम से बदला लेने का अवसर प्राप्त हो गया। उसने खलीफा को बताया कि-" हमारा शील हरण तो पहले ही मोहम्मद बिन कासिम ने कर दिया है"
   इस बात से क्रुद्ध होकर मोहम्मद बिन कासिम को मारने की आज्ञा खलीफा ने जारी कर दी। और मोहम्मद बिन कासिम का अंत हो गया।
   मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के उपरांत भारत के वे सभी क्षेत्र अरबों से मुक्त करा दिए गए जो मोहम्मद बिन कासिम के आधिपत्य में आ चुके थे। परंतु मोहम्मद बिन कासिम नहीं लाखों लोगों का कत्लेआम तथा मंदिरों एवं जनता को लूट कर अकूत धन सोना तथा अन्य कीमती धातु रत्न इत्यादि पहले ही अरब पहुंचा दिए थे। राजा दाहिर की बेटियों का बलिदान अखंड भारत बेटियों का सर्वोच्च बलिदान कहा जा सकता है।
(स्रोत: चचनामा, पर डॉ राजीव रंजन प्रसाद की व्याख्या)

22.8.22

धारणा, ध्यान और समाधि


*धारणा, ध्यान और समाधि*
        महर्षि कणाद ने वैज्ञानिक चिंतन को दिशा दी है जिसका आधार धारणा ध्यान और समाधि है। यहां पूर्व आलेख की तरह मैं सतर्क कर देना चाहता हूं कि ईश्वर को समझने के लिए रिचुअल्स अथवा सांप्रदायिक प्रक्रियाओं ( रिलीजियस प्रैक्टिस) प्रथम चरण के रूप में ही स्वीकारना चाहिए।
पूज्य कला मौसी ने बताया कि कभी स्वर्गीय माताजी ने पूज्य कला मौसी से कहा था -"अभी तुम पहली क्लास में हो!" वास्तव में रिचुअल्स अथवा प्रैक्टिसेज आत्म नियंत्रण का प्रथम पाठ है। उदाहरण के तौर पर उपवास रखना या पूजा प्रक्रिया करना अपनी चित्त अर्थात मन को व्यवस्थित करने का एक तरीका है। क्योंकि अगर मन गतिमान होगा तो स्थिरता की कल्पना करना ही मुश्किल है। इस कठिनाई से निवृत्त होने के लिए धारणा का सहारा लेना चाहिए। धारणा पूजा प्रणाली तथा रिचुअल्स यानी रीति-रिवाजों के अनुपालन के आगे का विषय है। 
[  ] धारणा का अर्थ है विषय वस्तु के प्रति चिंतनशीलता । धारणा का विस्तार ध्यान की ओर ले जाता है और इसका अंतिम चरण समाधि कहलाता है।
[  ]  धारणा से समाधि तक जाना सहज प्रक्रिया नहीं है। इसे हम अर्जुन की आंख वाली कहानी से समझ सकते हैं। अर्जुन ने अपनी धारणा में केवल मछली की आंख को चुना। स्वभाविक है कि अर्जुन का चित्त आत्मनियंत्रित था। और उसने मछली की आंख को अपनी धारणा के रूप में अवस्थित किया। फिर  को विस्तारित कर ध्यान की स्थिति में ले गया। और जब वह समाधिष्ट हुआ, तो हाथ से निकला सटीक निशाने पर जा बैठा।
[  ] अर्जुन की यह कहानी स्पष्ट रूप से हमारी आत्मशक्ति के उपयोग की कहानी है यही है समाधि का सर्वोच्च उदाहरण वह भी कथा के रूप में।
अब इस चित्त के नियंत्रण से धारणा ध्यान और समाधि की प्रक्रिया को समझते हैं।
आप देखते हैं कि आपका बच्चा दिन भर ढेरों सवाल करता है। सवालों का जवाब देते देते आप कई बार थक जाते हैं कई बार मुस्कुराने लगते हैं और तो और कई बार उसे झूठे जवाब भी देकर संतुष्ट करते हैं। वास्तव में यह वह स्थिति है जब बच्चा अपने मन में उठते हुए सवालों को समझने की कोशिश करता है यह एक बायोलॉजिकल इवेंट है। इस इवेंट का ना होना खतरनाक मुद्दा होगा अतः बच्चों को उनके सवालों की जवाब देना और जवाब देने के लिए स्वयं को गहन अध्ययन चिंतन करना जरूरी है। अक्सर बच्चे किसी भी खिलौने को तोड़कर उसके भीतर के रहस्य को भी जानना चाहते हैं। तब अभिभावक के रूप में हमें अपने आर्थिक नुकसान के संदर्भ को ऊपर रखकर बच्चे को डांटना या प्रताड़ित करना अपराध ही है। बच्चे के सामने उसके सवालों का जवाब देना ईश्वर की आराधना करने के बराबर है ऐसा मेरा मानना है। चलिए हम वापस लौटते हैं धारणा की ओर जिसका विस्तार ध्यान और समाधि तक जाता है। यह प्रक्रिया एक जन्म में पूर्ण हो ऐसा नहीं है वास्तव में जन्म जन्मांतर तक हमें इन प्रैक्टिस को तब तक करना होता है जब तक की हम लक्ष्य तक अर्थात धारणा तक न पहुंच पाएं।
  मैं आपको कोई धार्मिक उपदेश नहीं दे रहा हूं बल्कि यह एक वैज्ञानिक प्रमाणित सत्य है। आप ऐसे तथ्य पर चकित अवश्य होंगे परंतु अगर आप प्रजापिता ब्रह्मा की कल्पना करें तो आप जानेंगे कि हमारे रेस लीडर अर्थात प्रजापिता ब्रह्मा की अंतरिक्ष ज्ञान का विस्तार समझ पाएंगे। प्रजापिता ब्रह्मा ने ग्रहों की स्थिति नक्षत्रों की गति का सटीक विश्लेषण किया है। ग्रहों नक्षत्रों का अध्ययन कालांतर में बहुत से महर्षि यों यहां तक कि मयासुर नामक असुर ने भी किया। यहां एक शब्द संयम का उल्लेख करना आवश्यक है। संयम शब्द का अर्थ संकेंद्रीकरण है। उदाहरण के तौर पर मयासुर ने सूर्य पर समाधि के उपरांत संयम किया। और उसने इस संपूर्ण रहस्य को जाना। सूर्य के रहस्य का विवरण मयासुर ने सूर्य सिद्धांत के रूप में लिखा जो प्राचीन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान का दस्तावेज है। इसके अतिरिक्त वशिष्ठ विश्वामित्र जैसे विद्वानों के अलावा कई अन्य विद्वानों ने अंतरिक्ष विज्ञान का अध्ययन किया और अपने अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। वशिष्ठ और विश्वामित्र की आपसी संघर्ष की कहानी भी आपने सुनी होगी। यह संघर्ष नक्षत्र विज्ञान को लेकर ही हुआ था। वास्तव में यह संघर्ष नहीं बल्कि वैचारिक असहमतियां रही है।
  जब धारणा,ध्यान,समाधि से आगे बढ़कर हम किसी विषय पर संयमित हो जाते हैं तो हमें उसके समस्त रहस्य से सहज परिचय हो जाता है।हिमालय की कंदरा में अथवा समुदाय से दूर होकर योग साधना करने  योगी क्या करते होंगे कभी सोचा आपने?
नहीं सोचा होगा तो बताता हूं- सबसे पहले हम धारणा,ध्यान,समाधि, और उसकी परिणीति अर्थात संयम के सहारे हम अपनी आत्मशक्ति को उभार  सकते हैं ।
    उदाहरण के तौर पर मुझे अपनी आत्मा को समझना है तो मुझे इन्हीं तीनों प्रक्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए। जो चित्र बनाते हैं जो कविता लिखते हैं जो संगीत रचना करते हैं जो सामाजिक चिंतन करते हैं वह अगर इन तीनों साधनों का उपयोग ना करें तो वे अपने कार्य को कर ही नहीं सकते।
  संस्कृत की कठिन श्लोक मात्र का रट कर प्रस्तुतीकरण कर देना सनातन धर्म की उद्देश्य नहीं है। अगर हम समाधि तो होकर ब्रह्म पर अपना ध्यान संयमित करते हैं तो हमें ब्रह्म के रहस्य सहज ही जान सकते हैं। परंतु ब्रह्म तक जाने से पहले हमें बुल्ले शाह की तरह पूरे प्राणपन से गाना चाहिए-"बुल्ले की जाणा मैं कौन. ?"
   अर्थात हमें अपने आप को समझना चाहिए और यह समझ हम समाधि अवस्था को प्राप्त कर विकसित कर सकते हैं। यही है अगली कक्षाएं। जो मौसी जी को स्वर्गीय माताजी  ने पढ़ने के लिए कहीं थी। सच मानिए मैं पूजा नहीं करता। मुझे उतने श्लोक भी याद नहीं है। परंतु अभी अपनी आत्मा को पहचानने की प्रक्रिया में भाग ले रहा हूं।
  अध्यात्म की इस व्याख्या पर ध्यान देकर हम सब अपनी पिछली तीन जिंदगी हो का अनुमान लगा सकते हैं। इतनी सहज क्रिया है कि आप किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देखकर उसे स्कैन कर सकते हैं।

7.8.22

Ukrainian-origin teenager Carolina Proterisco

 


Ukrainian-origin teenager Carolina Proterisco has been in the hearts and minds of music lovers around the world these days. Carolina Proterisko was born on October 3, 2008 in Ukraine to a music-loving family.. Parents are also well versed in guitar and piano.

     This Melodius family moved to the United States in 2015 when Karolina was 6 years old. She started violin lessons in the same year and started taking classical music training.

In the summer of 2017, Karolina publicly debuted as a street-artist for the public in Santa Monica, (CA). The music-loving audience also gets mesmerized at each of his performances. Children are also compelled to dance after watching the musical performances.

Carolina Proterisco has 3 YouTube channels and is also on Facebook and Instagram. In less than 4 years his fan base has grown to over 11 million in more than 50 countries. If we talk about YouTube and other media sites, their videos have been viewed more than 1 billion times. She has shown her skills in the Ellen Show.

  Another feature of Carolina you need to be introduced to is that Carolina presents the tunes of every language of the world. Carolina also presents the tunes of Hindi film songs.

You will see her achievements small when you come to know that, this teenager does charity program to raise funds for cancer patients in USA.

She is the American brand-ambassador of this cancer cure campaign. It is my belief that Carolina, which has captivated the hearts of millions of viewers, will leave Michael-Jackson and Justin Weaver far behind in the coming era.

Carolina learns the nuances of the violin from the Suzuki Violin book series and Karolina learns pop songs with her mother while practicing classical music with violin teacher Mr. Fisher.

     Carolina admits that- "Initially she found it very easy to play the violin, but eventually she found it difficult to play ensembles, but because of her love for the violin, she considers herself successful."

Carolina says that- “She does not forget to practice pop singing on her violin for three hours every day, practicing other linguistic songs as well as practicing classical music. Carolina is greatly influenced and inspired by Lindsay Stirling.

Girish Billore "Mukul"

writer and art promoter

 

2.8.22

Some Important Issues in Parenting Rabbits


Today let me introduce you to some important issues related to parenting of rabbits. You must have always wondered how to raise rabbit babies? I have 5 rabbit babies who are being looked after by my wife these days. Dear friend asked that till what age children should be given mother's milk.We have decided that it will be necessary for the children to be fed mother's milk till the milk from the mother's breasts, that is, the female rabbit, does not stop. Like the human species, the production of milk in mammals does not stop as long as the mother wants. The female rabbit demands a lot of food to feed. She has to maintain the status of lactating mother till she feels herself now that the children have grown up.Currently I have a pet rabbit that is 23 days old. And I think my female rabbit will maintain the status of lactating mother for at least 45 days. Lactating mother rabbits face a problem during breastfeeding. You must be thinking that what can be the problem to maintain the status of lactating mother for a long time? The reality is that the growth of rabbits is very speedy. Their teeth also grow very fast.Lactating mother rabbits are often bitten by children, this is the biggest problem for the female rabbit.

1.8.22

यूक्रेनियन मूल की नन्हीं विश्व-प्रसिद्ध वायलिन वादिका: केरोलिना प्रोटेरिस्को



यूक्रेन-मूल  की किशोरी  कैरोलिना प्रोटेरिस्को इन दिनों दुनिया भर के संगीत प्रेमियों के दिलो-दिमाग में छाई हुई है। कैरोलिना प्रोटेरिस्को का जन्म 3 अक्टूबर 2008 को यूक्रेन में एक संगीत-प्रेमी  परिवार में हुआ था।। माता-पिता भी  गिटार और पियानो में पारंगत है।

     यह  मेलोडीयस  परिवार 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका चला गया जब करोलिना 6 साल की थी। उसने उसी वर्ष वायलिन पाठ शुरू किया और शास्त्रीय संगीत का  प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया।  

2017 की गर्मियों के दिनों में करोलिना ने सेंटा मोनिका, ( सी.ए.)  में आम लोगों  के लिए  स्ट्रीट-आर्टिस्ट के रूप में सार्वजनिक रूप से यलिन वादन प्रारम्भ किया था । उसकी हरेक प्रस्तुति पर संगीत- प्रेमी दर्शक मन्त्रमुग्ध भी हो जाते हैं. संगीत प्रस्तुतियों के देख बच्चे भी थिरकने को मज़बूर हो जाते हैं.

केरोलिना प्रोटेरिस्को 3 यूट्यूब  चैनल हैं और वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी  है। 4 साल से भी कम समय में 50 से अधिक देशों में उनके प्रशंसकों की संख्या 11 मिलियन से अधिक हो गई है। यूट्यूब  और अन्य मीडिया साइटों की चर्चा की जावे तो  उनके वीडियोस  को 1 बिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है. वे  एलेन शो में अपना हुनर दिखा चुकीं है.

  कैरोलिना की एक अन्य  विशेषता से आपका परिचय ज़रूरी हैकि कैरोलिना विश्व के हर भाषाई गीतों की धुन प्रस्तुत करतीं हैं. हिन्दी फ़िल्मी गीतों की धुनें  भी  प्रस्तुत करतीं हैं कैरोलिना .

आपको उनकी  उपलब्धियाँ छोटी  तब नजर आएंगी जब आपको पता चलेगा कि, यह किशोरी  यूएसए में कैंसर रोगियों के लिए धन-राशि एकत्र करने के लिए चैरिटी कार्यक्रम करतीं हैं. 

वे इस कैंसर से मुक्ति देने वाले अभियान कि अभियान की अमेरिकी ब्रांड-एम्बेसडर हैं. करोड़ों दर्शकों के मन को मोह लेने वाली कैरोलिना आने वाले दौर में माइकल-जैक्सन एवं जस्टिन वीवर को बहुत  पीछे छोड़ देंगीं यह मेरा मानना है.

  कैरोलिना,   सुजुकी वायलिन पुस्तक सीरीज़  से वायलिन की बारीकियाँ सीखतीं हैं  तथा  करोलिना अपनी मां के साथ पॉप गाने सीखतीं है जबकि  वायलिन शिक्षक मिस्टर फिशर के साथ शास्त्रीय संगीत का अभ्यास करती हैं।

    कैरोलिना मानतीं है कि- शुरू में उनको वायलिन बजाना बहुत आसान लगा, लेकिन अंततः उसे टुकड़ियाँ बजाना मुश्किल लगा, लेकिन वायलिन के प्रति अपने प्रेम के कारण, वे खुद को  सफल मानतीं हैं.

कैरोलिना कहतीं हैं कि- वह हर दिन तीन घंटे तक अपने वायलिन पर पॉप गाने अन्य भाषाई गीतों का अभ्यास के साथ- साथ शास्त्रीय संगीत बजाने का अभ्यास करना बिलकुल नहीं भूलतीं ।करोलिना को लिंडसे स्टर्लिंग का से खासी प्रभावित एवं प्रेरित हैं.    

  

ये उपलब्धियाँ बौनी तब नजर आएंगी जब आपको पता चलेगा कि- यूएसए में कैंसर रोगियों के लिए धन-राशि एकत्र करने के लिए चैरिटी कार्यक्रम किये. वे इस अभियान की अमेरिकी ब्रांड-एम्बेसडर हैं. करोड़ों दर्शकों के मन को मोह लेने वाली कैरोलिना आने वाले दौर में माइकल-जैक्सन एवं जस्टिन वीवर को बहुत  पीछे छोड़ देंगीं यह मेरा मानना है.     

  सुजुकी वायलिन पुस्तक से वायलिन की बारीकीयाँ सीखने वाली करोलिना अपनी मां के साथ पॉप गाने और अपने वायलिन शिक्षक मिस्टर फिशर के साथ शास्त्रीय संगीत का अभ्यास करती हैं।कैरोलिना मानतीं है कि- “ शुरू में उनको वायलिन बजाना बहुत आसान लगा, लेकिन अंततः उसे टुकड़ियाँ बजाना मुश्किल लगा, लेकिन वायलिन के प्रति अपने प्रेम के कारण, वह सफल है.” कैरोलिना कहतीं हैं कि वह हर दिन तीन घंटे तक अपने वायलिन पर पॉप गाने अन्य भाषाई गीतों का अभ्यास  और शास्त्रीय संगीत बजाने का अभ्यास करना कतई नहीं भूलतीं ।करोलिना को लिंडसे स्टर्लिंग का से खासी प्रभावित एवं प्रेरित हैं.  

 


 

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...