29.7.22

पप्पू भाई चल दिए : विनम्र श्रद्धांजलि

मैं तो अपनी यात्रा पर निकल पड़ा हूं। तुम मेरे जीवन का विश्लेषण करते रहना क्या फर्क पड़ता है? मेरा नाम संजीव है घर में लोग मुझे पप्पू कहते हैं। बहुत बड़ा कुटुंब है हमारा। सब से बात होती रहती है। मुझ में कितने गुण और कितने अवगुण रहे हैं इसका जोड़ घटाना तुम सब करते रहना, मेरी तो सांसे पूर्ण हो चुकी है और मुझे जाना होगा। कुछ जिम्मेदारी और बहुत सारी यादें कुटुंब पर छोड़कर जा रहा हूं। अब मुझे शरीर बदलना है।
पप्पू जी  अपने प्रस्थान का एहसास उन्होंने कई बार करा दिया था। एक बार संभवत: दीपावली के बाद की भाई दूज पर संजीव यानी पप्पू भाई ने कहा था-"अगले साल हम मिलते हैं कि नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं' सच ही कहा था और आज हम उन्हें विदा कर आए। कल यानी 28 जुलाई 2022 को उन्होंने मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय जबलपुर में अपनी आखिरी सांस ली। उनका एक बेटा है राहुल। शांत सहज सरल और सब पर प्यार बरसाने वाला। राहुल की मां राहुल को बहुत उम्र में ही छोड़कर चल बसी थी।  राहुल पर प्यार बरसाने वालों की हमारे कुटुंब में कमी नहीं है । शरद जी भी चार-पांच साल पहले हम सबक
स्मृतियां देकर निकल  गए उनका भी एक बेटा है पिछले माह तक मां का सहारा था पर अब मां भी नहीं है। ये दोनों बच्चे अतिशय प्रिय हैं पूरे कुटुंब को। जब इनकी चिंता और इनके बारे में सकारात्मक चिंतन करते हैं। दोनों पेशे से इंजीनियर हैं पर मां बाप की अनुपस्थिति सबसे बड़ा खालीपन होता है। 
   यूं तो कुटुम्ब के हम 17 चचेरे भाई बहन हैं । परंतु आज़ यहां मैं चर्चा केवल तीन भाइयों की कर रहा हूं।
   हम तीन चचेरे भाइयों में शरद मुझसे कुछ महीने बड़े थे पप्पू मुझे कुछ महीने छोटे थे। हम तीनों के बारे नें सब एक राय हैं- कि परिवार और कुटुंब में हम उस स्तर के बच्चे नहीं हैं,  जितनी ऊंचाइयां और अन्य कई भाइयों ने स्पर्श कीं हैं। हम से असहमति बहुत से लोगों की हो सकती हैं। उन असहमतियों का मुझे लगता है-" मेरे दोनों स्वर्गीय भाइयों ने असहमतियों का सम्मान अवश्य किया होगा।
   हम तीनों के फ्लैशबैक में कोई ना कोई स्टोरी अवश्य चलती है। उन सबको हम गलत समझ में अवश्य आते होंगे जो एक सहज जीवन जीते हैं परंतु यह अच्छा वह बुरा इस ने यह कहा उसने वह कहा जैसे क्षेत्र अन्वेषण में संलग्न है। कोई फर्क नहीं पड़ता इससे किसी के भी जीवन पर। लोगों को मालूम ही नहीं कि जीवन जीने का नाम ही नहीं है, बल्कि मृत्यु पथ है। मृत्यु पथ अर्थात जीवन बहुत सरल और सफल नहीं होता किसी का भी। पर अधिकतर लोग अपने अंधेरों को छुपाने के लिए आर्टिफिशियल लाइटनिंग का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि अपना ब्लैक एंड वाइट सामने रखते हैं। ऐसा करने में कोई हर्ज भी नहीं है। हमारे अंधेरे पक्ष को कौन कितना एक्सप्लेन करता है और हमें तदनुसार पोट्रेट करता है इससे हमें कोई लेना देना इसलिए नहीं क्योंकि हम जानते हैं कि वह लोग जो न में नेगेटिवली पोट्रेट कर रहे हैं उनका मानसिक स्तर घुप अंधेरे वाली सोच है।
 मेरा साफ कहना है कि-"किसी के जीवन का विश्लेषण करने का केवल ब्रह्म का है ये अधिकार हमको कभी हासिल नहीं है।"
   हर व्यक्ति के लिए हमें केवल प्रेम स्नेह आदर सम्मान सनातन परंपरा ने दिए हैं। बाक़ी आप समझदार है।



27.7.22

Politicians and Leftists don't have the right to define Hindutva...?

Hindutva may be alone but it is safe , Beautiful, 
and protective  
  Recently, I was having a discussion with a professor. Professor Saheb said that we have objection to Hindutva. You must have understood that they are influenced by imported ideology.
One who does not understand Hindutva is far from spirituality, I believe.I can say to the best of my knowledge that Hindutva is a philosophy.And more broadly speaking, Hindutva is the philosophy of life, and the way of integrating life.
Apart from Artha Dharma, Kama Moksha, Vishwa fraternity and Sarve Jana Sukhino Bhavantu's principle is the identity of Hindutva.
  The vision of Hindutva is universal and Hindutva has the quality of stability.
Don't know that there is enough Coffee houses that the bases of intellectual corruption, narratives are set about Hindutva. 
All of us have envisioned one #Brahm.The Shaiv, Vaishnava, Shakta, and Smartha sects were never seen fighting with each other.There is unity among these four sects of Hinduism. Every sect leads to a form of #Brahm.I have been successful in explaining this to my respected professor friend, whether he was successful in understanding it or not, it is a different matter.
No politician and Leftist need to define Hindutva

14 साल से लड़ रहे दंपत्ति को माननीय जस्टिस श्री रोहित आर्या जी का सबक

 


        14 साल से लड़ रहे दंपत्ति को माननीय जस्टिस श्री रोहित आर्या जी का सबक  समाज के लिए भी महान सन्देश .
      मुझे अच्छी तरह याद है है आर्या सर जबलपुर में प्रेक्टिस कर रहे थे . वर्ष 2010  दिल्ली यात्रा के दौरान  माननीय आर्या सर से आख़िरी भेंट  मात्र 5 मिनिट से भी कम समय के लिए हुई थी .  एयर-क्राफ्ट से एग्जिट ( इंदिरा गांधी एयर पोर्ट पर ) पहुँचने के दौरान हुई थी . अब जब सुनवाई लाइव हो चुकीं हैं, यह सुनवाई  दाम्पत्य विच्छेद के प्रकरण की  सुनवाई ग्वालियर पीठ की है. यहाँ जज साहब की टिप्पणी समाज के लिए आँख खोलने वाली सिद्ध होती है. .   

25.7.22

सिन्धु घाटी सभ्यता का काल निर्धारण होते ही बदल जाएगी विश्व की सभी सभ्यताओं की टाइम लाइन ?

 



श्री आर सी मजूमदार खुले तौर पर स्वीकारते हैं कि-“भारत के आदिम निवासियों कि संस्कृति के सम्बन्ध में पीछे जो भी कुछ कहा गया है वह भाषाशास्त्र के आधार- वर्तमान भाषाओं में जीवित प्राचीनतम शब्दों के अध्ययन के निष्कर्ष –पर ही आश्रित है . यह परोक्ष एवं अत्यंत संदिग्ध साधन है और किसी प्रकार भी तत्कालीन संस्कृति का विस्तृत चित्र उपस्थित नहीं करता. किन्तु जब तक ऐसे स्मारक नहीं मिल जाते इससे अधिक कुछ कह सकना संभव भी नहीं है. (सन्दर्भ-डा रमेशचंद्र मजूमदार कृत ग्रन्थ “प्राचीन भारत” प्रथम संस्करण 1962 के 8वाँ संस्करण पृष्ठ 7) शेष पन्नों पर  श्री मजूमदार नदी घाटी सभ्यता की विशेषताओं पर आलेखन करते हुए तत्समकालीन नगर-निवेश,मकान,स्नानागार,खाद्य,वस्त्र,आभूषण,फर्नीचर एवं बर्तन,हथियार,कला,मुहरें, मातृका-मूर्तियाँ, शिव, शिव लिंग-पूजन, पशु-वृक्ष की पूजा आदि का उल्लेख करतें हैं. श्री मजूमदार ने 1922-23 तक प्राप्त अवशेषों के आधार पर उपरोक्त कथन किया, जो स्वाभाविक है. इसके उपरांत बहुतेरे वामधर्म के पूजक विद्वानों ने अवेश्ता एवं वेदों की भाषा को लगभग समतुल्य मानते हुए वेदों को आर्यों नामक नस्ल के स्टेफी चरोखर से आकर रचने की पुष्टि कर दी .यह कैसा सच है कि असभ्य लड़ाके माने जाने वाले आक्रमण कर्ता आर्य भारत में आते ही एकदम पवित्र हो गए उनने संस्कृत भाषा का निर्माण भी कर लिया तथा उस भाषा में वेद भी लिख दिए. विचार करें तो इतिहासकार चरवाहों को आक्रान्ता,  बना देते हैं फिर उनको विद्वान्  बना कर भाषा निर्माता (संस्कृत भाषा) भी कह देते हैं. इतना ही नहीं इतिहास विद इन आर्यों को वेदों का सर्जक भी कह देते हैं. यह सब कुछ ईसा के 2000 से 1500 वर्ष पूर्व घटित हो जाना कितना उचित एवं वैज्ञानिक सत्य है इसे ईश्वर ही जानता है.

जब भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार की पड़ताल की तो ज्ञात हुआ कि वामधर्मी विद्वान् नक्षत्र विज्ञान के एंगल से अब भी कुछ नहीं देख रहे हैं. मध्य-प्रदेश के भुवाणा-मालवा निमाड़ में एक लोकोक्ति मशहूर है जिसमे कहा गया है कि “ कानी गाय कोsss एक गोयो...!” अर्थात कानी गाय चरोखर से लौटे हुए एक ही रास्ते पर चलती है. अस्तु वेदवीर आर्य ने वेद एवं वेदोत्तर साहित्य में वर्णित नक्षत्रों की युति/संगती/स्थितियों का वर्तमान में प्रयुक्त एस्ट्रोनामिकल गणना के आधार पर पैमाइश की तो वेदों का निर्माण श्रुति रूप में 14500 ईसा पूर्व से प्रारम्भ किया जाकर 11200 ईसापूर्व तक नियत किया है.

नदी-घाटी सभ्यता के उपरांत श्रुति में संचित वेदों की लिखित रूप से रचना की गई. अर्थात नदी घाटी सभ्यता का काल उसके पूर्व लगभग 16000 ईसा पूर्व कहीं रहा होगा ऐसा मेरा मानना है जो निष्कर्ष के रूप में  कृति “भारतीय मानव-सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा-पूर्व” में उल्लेखित है.अपनी रिसर्च के आधार पर नदी घाटी सभ्यता को मैं पूरे विश्वास के साथ निम्नानुसार कालानुक्रम देने में असहमति व्यक्त करता हूँ.....      

1.  पूर्व हड़प्पा काल : 3300-2500 ईसा पूर्व,

2.  परिपक्व काल: 2600-1900 ई॰पू॰;

3.  उत्तरार्ध हड़प्पा काल: 1900-1300 ईसा पूर्व

उपरोक्त वर्गीकरण के अस्वीकृत करने का आधार श्रीयुत वाकणकर की खोज को स्वीकारना आवश्यक है जो नर्मदा घाटी सभ्यता के अवशेषों को पुष्टिकृत करते हैं. साथ ही लगभग 10 हज़ार साल पूर्व विलुप हुई सरस्वती नदी जिसका उल्लेख बारम्बार वेदों में है को भी आधार मानकर इतिहास का पुनरीक्षण आवश्यक है. भारतीय प्राचीन इतिहास में रूचि रखने वाले युवा साथियों को खुला आमंत्रण है कि वे भी भारत के प्राचीन इतिहास का आलोचनात्मक अध्ययन करते हुए रिसर्च भी करें ताकि वाम-धर्मियों द्वारा स्थापित मिथकों से आने वाली पीढी को बचाएं. तथा छोटा सा किन्तु महान कार्य करके विश्व की सभ्यताओं की टाइम लाइन को भी सुनिश्चित करके महान कार्य करें . 

                               आलेख गिरीश बिल्लोरे मुकुल  

23.7.22

भारत से प्रतिभा पलायन : कारण और निदान [ गिरीश बिल्लोरे मुकुल]

          


   संसद के मानसून सत्र में तारांकित लोकसभा प्रश्न के जवाब में जानकारी स्पष्ट हुई है जिसके अनुसार भारत से 392000 लोग विदेशों में स्थाई रूप से बसने के इरादे से लगभग 120 देशों के नागरिक बन चुके हैं। 


मीडिया सूत्रों से तथा संसद में दिए जवाब के अनुसार टॉप 10 देशों की सिटीजनशिप लेने वालों में अमेरिका में सिटीजनशिप प्राप्त करने वालों की संख्या 1,70,795  है। जबकि कैनेडा की नागरिकता प्राप्त करने वाली आबादी 64,071  है। ऑस्ट्रेलिया को भी लोगों ने तीसरी प्राथमिकता पर रखते हुए अब तक. 58,391 वहां की नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं। यूनाइटेड किंगडम की नागरिकता लेने वालों की संख्या 35,435 , तथा 12131 लोग इटली और 8,882 लोग न्यूजीलैंड के नागरिक बन चुके हैं. भारत के लोग सिंगापुर और जर्मनी की नागरिकता क्रमश:  7,046 , 6,690 जर्मनी, 3,754, स्वीडन के नागरिक हो गए हैं।भारत और भारतीयों की नजर में सबसे अशांत हमारे पड़ोसी  पाकिस्तान में  48 भारतीयों ने नागरिकता प्राप्त की है।


उपरोक्त नागरिकता संबंधी  आंकड़ों के सापेक्ष  हम अनिवासी प्रवासी भारतीयों अर्थात एन आर आई के आंकड़ों पर गौर करें तो विगत 20 वर्षों में 1.80 करोड़ है. अर्थात एक करोड़ अस्सी लाख भारतीय पहले से ही विदेशों में विभिन्न कारणों से प्रवास पर हैं . अर्थात कुल प्रवासियों के 2.8% लोगों ने ही विदेशी नागरिकता हासिल की है.    


विगत दो दिनों में नागरिकता के मुद्दे पर सबकी अपनी अपनी अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता, एक महत्वपूर्ण वजह है। ऐसे लोगों की राय से कोई भी सहमत नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए। जो राष्ट्र की नागरिकता त्याग कर अन्यत्र राष्ट्रों में नागरिकता ग्रहण करते हैं यह उन व्यक्तियों के लिए सर्वथा व्यक्तिगत मुद्दा है ना कि राजनीति अथवा सामाजिक परिस्थितियों से इसका कोई लेना देना नहीं। विश्लेषक अपनी तरह से इस बात का विश्लेषण करने के लिए स्वतंत्र हैं और उनका अधिकार भी है परंतु मेरा मानना है कि केवल भारत में ऐसी कोई राजनीतिक परिस्थिति नहीं है जिसके कारण भारत को छोड़कर भारतवासी जाएं।भारतीय नागरिक विशेष तौर पर युवा अंग्रेज़ी भाषा के ज्ञान तथा अपने कर्मशील व्यक्तित्व के कारण यूरोप में अपना अस्तित्व सुनिश्चित करने के कारण सरलता से वीजा पा लेते हैं. एक और बात ध्यान देने योग्य है कि –“यूरोपीय एवं खाड़ी देख बिना लाभ के भारतीयों को वीजा नहीं देते..!”


यह महत्वपूर्ण है कि -" भारत से ब्रेन ड्रेनेज को अब रोकने की आवश्यकता है." भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को ऐसी नीतियों का निर्माण करना आवश्यक है ताकि ब्रेन ड्रेन इसकी स्थिति उत्पन्न ना हो और प्रतिभावान युवाओं को यूरोप को मज़बूत बनाने से रोका जावे. ।


भारतीय 135 करोड़ की आबादी में से 1.80 करोड़ लोगों का प्रवासी होना ब्रेन ड्रेन है अत: सरकार के लिए माथे शिकन आनी जरूरी है।


यहाँ एक अपवाद पाकिस्तान की नागरिकता लेने वाले 48 लोग हैं. इसके कारणों पर इनका पाकिस्तान जाना सर्वथा व्यक्तिगत निर्णय है। इसे ब्रेन ड्रेनेज की श्रेणी से एकदम हटा देना चाहिए।


  विगत 3 वर्षों में जिस गति से भारतीय जन इतनी बड़ी संख्या में विदेशों में बस रहे हैं वह चिंताजनक अवश्य है। विदेशी नागरिकता ग्रहण करने के कारणों पर ध्यान दिया जाए तो आप पाएंगे

1.भारतवंशी युवा यूरोप में इस वजह से जाता है क्योंकि उसे जॉब सिक्योरिटी बेहतर जीवन प्रणाली उपलब्ध हो जाती है। परंतु यह सिद्धांत सब जगह लागू नहीं होता उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार आम बात है।

यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका  जर्मनी सिंगापुर में नागरिकता पाने वाले भारतीय मुख्य रूप से उच्च स्तरीय नौकरी अथवा व्यापार संस्थान स्थापित करने के कारण निजी सुविधा के चलते सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। इस समाचार के आने के बाद जब युवाओं से बात की गई तो उन्होंने अमेरिका जर्मनी यूनाइटेड किंगडम सिंगापुर और उसके बाद केनेडा को प्राथमिकता क्रम में रखा।

2. भारत से अमेरिका जाकर सॉफ्टवेयर और आईटी के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने बताया कि भारत की तुलना में अमेरिका का जीवन कठिन है। बावजूद इसके डॉलर की मोहनी छवि उनके मस्तिष्क से निकल नहीं पाती है।

3.  केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को इस बात का ध्यान रखना ही होगा की ब्रेन ड्रेनेज की स्थिति निर्मित ना हो।

    कनाडा की नागरिकता लेने या कैनेडा में बसने के सपने पंजाब में सर्वाधिक देखे जाते हैं। कनाडा की सिटीजनशिप मिलने का प्रमुख कारण वहां की आबादी कम होना है। कनाडा में निजी कारोबार करने वाले सिखों एवं पंजाब के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। 


2050 से 2060 तक विदेशों की नागरिकता ग्रहण करने वालों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि की संभावना है।अगर विदेशों की नागरिकता ग्रहण करने वाले भारतीयों की संख्या 10% से 15% का इजाफा होता है तो प्रतिभाओं के पलायन के दुष्परिणाम साफ़तौर नज़र आएँगे . 


 अत: भारत में प्रतिभावान युवाओं के लिए सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए केंद्र एवं राज्यों की सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।


स्पष्ट है कि व्यक्तिगत कारणों से नागरिकता लेना चिंता का विषय नहीं है। चिंता का विषय तो यह है कि-" भारत में प्रतिभाओं के सही तरीके से प्रोत्साहन एवं उपयोग की आवश्यकता पर हम सतर्क क्यों नहीं हैं...?"

  प्रवासियों की उपलब्धि पर एक नजर -  

   अब हम चर्चा करते हैं उन राष्ट्रों की जहां पर भारतीयों का खासा दबदबा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 16 देशों में 200 से अधिक भारतवंशी  सक्रिय राजनीति में सांसद अथवा अन्य जनप्रतिनिधि के रूप में कार्यरत हैं। उदाहरणार्थ  अमेरिका में उपराष्ट्रपति की हैसियत हासिल करने में कमला हैरिस को ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। वर्तमान में भारतीय मूल के ऋषि सुनक के बारे में पूरा विश्व जानता है। मेरे एक परिचित योगाचार्य स्वामी अनंत बोध हरियाणा के निवासी हैं। तथा वे इन दिनों यूक्रेन से लगे लिथुआनिया देश में निवास कर रहे हैं। उनका उद्देश्य भारतीय सनातन का विस्तार तथा योग का प्रचार प्रसार करना है। स्वामी अनंत बोध विधिवत लिथुआनिया में योग का प्रशिक्षण भी देते हैं तथा आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार भी करते हैं।


   अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि-" भारत से अन्य देशों में जाकर बसने वालों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि भारत में प्रतिभाओं का सम्मान नहीं है अथवा उन्हें वांछित अवसर नहीं मिल रहे हैं।"

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