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जून, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सनातनी अस्थि-पंजरों पूजन न करें..?

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   बहुत दिनों से यह सवाल मेरे मित्र मुझसे पूछते थे। सनातन में अस्थि कलश विसर्जित किया जाता है। क्योंकि शरीर और प्राण दो अलग-अलग वस्तु है। कतिपय सनातनी उन स्थानों की पूजा करते हैं जहां शरीरों को प्रथा अनुसार मृत्यु के बाद भूमिगत कर दिया जाता हैं ।  सनातनी लोगों के लिए ऐसा करना वर्जित है।      सामान्यतः  सनातन धर्म में देह को प्राण के देह से निकल जाने के बाद अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है उसकी अस्थियों एवं भस्म को गंगा या अन्य पवित्र नदी को सौंपा जाता है।  मृतक के मरने के 11 दिन बाद शरीर से पृथक हुए प्राण को पूर्वजों के साथ मिलाकर ब्रह्म के अर्थात परम उर्जा में समाविष्ट करने का नियम है। तदुपरांत सवा महीने तक दिवंगत आत्मा की स्मृति में ऐसे कार्य जो विलासिता की श्रेणी में आते हैं को संपन्न करने कराने की अनुमति सनातन में नहीं है। सनातन ऐसे किसी विषय को रुकता नहीं है जिसमें कि किसी परिवार का हित छुपा हुआ हो। उदाहरण के तौर पर विवाह संस्कार रोजगार के लिए पर्यटन इत्यादि। क्योंकि सनातन व्यवस्था में विकल्पों का महत्व है तथा जीवन चर्या के लिए विकल्प भी मौजूद है ऐसी स्थिति में मृत्यु के

जब एक कलेक्टर ने कमिश्नर लोकव्यहवार का पाठ

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        सर जे बेनफील्ड  फुलर  *आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ पर स्मृति कथा  01* (15 अगस्त 2022 तक लगभग  ब्रिटिश हुकूमत पर कहानियों की सीरीज)    1897-1898 की बात है, भारत अंग्रेजों का गुलाम था उस समय जबलपुर कमिश्नर के रूप में सर जे बेनफील्ड  फुलर पदस्थ थे। डिप्टी कमिश्नर वर्तमान में जिन्हें कलेक्टर कहा जाता है कि पद पर श्री स्टेंडन पदस्थ थे । जी हां मैं उसी फुलर साहब की बात कर रहा हूं जिनके नाम पर वर्तमान शहपुरा विकासखंड के एक गांव का नाम फुलर रखा गया था । अधिकांश अंग्रेज अधिकारी भारतीयों को अपमानित करते और अपमानित करने का अवसर की तलाश में रहते । फुलर साहब उसी तरह के अंग्रेज अफ़सर थे ।     हाथी पर सवार होकर ग्रामीण क्षेत्रों की भ्रमण के लिए निकले। उनके साथ जबलपुर कलेक्टर अर्थात डिप्टी कमिश्नर स्टेंडन सरकारी कर्मचारी और माल गुजार भी चल रहे थे मालगुजार घोड़े पर सवार थे वे आसानी से घोड़े से चढ़ उतर नहीं सकते थे।      यात्रा के दौरान कमिश्नर साहब ने मालगुजार से हाथी पर बैठे-बैठे कोई सवाल पूछा । मालगुजार ने भी हाथी पर बैठे-बैठे जवाब दे दिया।   भारतीयों को अयोग्य और मूर्ख समझने वाले

“दाम्पत्य जीवन में यौन सम्बन्ध एवं संबंध सुखी दाम्पत्य जीवन के सूत्र...!”

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फोटो साभार : पत्रिका  मनुष्य के जीवन में बुद्धि एक ऐसा तत्व है जो कि विश्लेषण करने में सक्षम है। बुद्धि अक्सर मानवता और व्यवस्था के विरुद्ध ही सर्वाधिक सक्रिय होती है।        मनुष्य के जीवन में बुद्धि एक ऐसा तत्व है जो कि विश्लेषण करने में सक्षम है। बुद्धि अक्सर मानवता और व्यवस्था के विरुद्ध ही सर्वाधिक सक्रिय होती है।         बुद्धि निष्काम और सकाम प्रेम के साथ-साथ मानवीय आवश्यक भावों पर साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश करती है।      भारतीय दर्शन को मुख्यतः दो भागों में महसूस किया जाता है... 1.    भारतीय जीवन दर्शन 2.    भारतीय अध्यात्मिक दर्शन             जीवन दर्शन में आध्यात्मिकता का समावेशन तय किया जाना चाहिए . जो लोग ऐसा कर पाते हैं उनका जीवन अद्भुत एवं मणिकांचन योग का आभास देता है। इसी तरह अध्यात्मिक दर्शन में भी सर्वे जना सुखिनो भवंतु का जीवन दर्शन से उभरा तत्व महत्वपूर्ण एवं आवश्यक होता है।        परंतु बुद्धि ऐसा करने से रोकती है। बहुत से ऐसे अवसर होते हैं जब मनुष्य प्रजाति आध्यात्मिकता और अपनी वर्तमान कुंठित जीवन परिस्थितियों को समझ ही नहीं पाती। परिणाम परिवारिक विखंडन श्रे

भारत में शिक्षा प्रोडक्ट है ?

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         चित्र : गूगल से साभार    महानगरों एवं मध्यम दर्जे के शहरों में शिक्षा व्यवस्था में एक अजीबोगरीब दृश्य देखने को मिल रहा है। स्कूलों में बच्चे नियमित विद्यार्थी के तौर पर केवल एडमिशन करा लेते हैं परंतु शिक्षा के लिए पूर्ण रूप से कोचिंग संस्थानों पर निर्भर करते हैं। कोचिंग संस्थानों की औसतन मासिक थी शिक्षण संस्थानों से दुगनी अथवा तीन गुनी भी होती है।    शिक्षण संस्थानों ने भी परिस्थितियों से समझौता का कर लिया है। अभिभावक इस बात को लेकर कंफ्यूज रहते हैं कि - बच्चे को विद्यार्थी के रूप में शिक्षण संस्थानों पर निर्भर करना चाहिए अथवा कोचिंग क्लासेस पर...?    यह एक अघोषित सा समझौता है इसमें कुछ विद्यालयों को डमी विद्यालय के रूप में चिन्हित किया जाता है। ऐसे विद्यालयों में बच्चे केवल एडमिशन लेते हैं परंतु नियमित शैक्षणिक गतिविधियों में भाग नहीं लेते।    एक अभिभावक से पूछा गया कि भाई आप बच्चों की कोचिंग के लिए इतना अधीर क्यों है और किन कारणों से आप आवश्यकता से अधिक पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं?    *एक ओर आप* स्कूल की फीस भी दे रहे हैं दूसरी ओर आप नियमित शैक्षिक गतिविधि के

टारगेट किलिंग, सांप्रदायिक एकात्मता एवं भारत..!

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      भारत की अर्थव्यवस्था 5 से 10 ट्रिलियन तक होने के लिए जरूरी है कि भारत अब Center of Peace के रूप में स्थापित हो जाए। टारगेट किलिंग सबसे भयावह है। इसके लिए 3 जून 2022 को जो राष्ट्रीय स्तर पर बैठक हुई है उसके निर्णय अगले कुछ दिनों में क्रियान्वित हो जाएंगे। टारगेट किलिंग के संबंध में एक सटीक सलाह है यह भी है कि कश्मीर में डेमोग्राफिक बैलेंस तुरंत प्रभाव से किया जाना चाहिए। अगर हम डेमोग्राफिक संतुलन स्थापित नहीं कर पाएंगे तो टारगेट किलिंग जैसी समस्या सदैव बनी रहेगी ऐसा मेरा व्यक्तिगत मत है। क्योंकि कश्मीर में टारगेट किलिंग का मुद्दा कुल मिलाकर ऐसी  मानसिकता का परिचय देता है जिसे आई एस आई या भारत विरोधी ताकतों का एजेंडा मानना गलत नहीं है।    कश्मीरी पंडितों डोगरा और गैर मुस्लिम लोगों के विरुद्ध जिस मानसिकता को हवा दी जा रही है वह हवा, भारत विरोधी आंतरिक स्लीपर सेल्स एवं आयातित विचारधारा तथा आई एस आई का संयुक्त प्रयास है। एक राजनीतिक दल के  प्रवक्ता  जीशान जावेद राणा ने एक टीवी चैनल पर केवल पॉलिटिकल स्टेटमेंट देते हुए नजर आए। टारगेट किलिंग को देखकर पूरी दुनिया समझ सकती है कि कश्मीरी पं

मध्यमवर्गीय अभिभावक अब मुझे रेसकोर्स के जुआरी लगने लगे हैं..!

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आभार-सहित "विक्की" “मध्यमवर्गीय अभिभावक अब मुझे रेसकोर्स के जुआरी लगने लगे हैं..!” गिरीश बिल्लोरे”मुकुल” girishbillore@gmail.com   "भारत का मध्य वर्ग मध्यवर्ग के बच्चे बच्चों से मध्यवर्गीय माता पिता जी अंत ही उम्मीदें..!"- अब तक ना समझ में आने वाला प्रमेय यानी साध्य है। इस प्रमेय को हल करने के लिए बस बच्चों को पढ़ाने के पहले बच्चों को पढ़ लीजिए। कोविड-19 के 2 साल पहले की बात है यानी 2017 की। एक मां इस समस्या से तनावग्रस्त स्थिति उनके बच्चे उनके अन्य रक्त संबंधियों के बच्चों के बराबर योग्यता नहीं रखते। और उन्हें यह भी तनाव था कि वे बच्चों पर जो इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं उस इन्वेस्टमेंट के अनुपात में उन्हें उपलब्धि कुछ हासिल नहीं हो रही। वह अपने दोनों बच्चों को मेरे द्वारा प्रबंधित संस्थान ने दाखिला कराने की गरज से आई। महिला ने बताया कि-" मेरे बच्चे अपने चचेरे भाई बहनों से कमजोर हैं , वे हर फील्ड में अव्वल हैं... पर हमारे बच्चे कभी एक भी मैडल या पुरस्कार तक नहीं जीत पाते. उस मां की अवसाद भरी अभिव्यक्ति के बाद मुझे स्वयं आश्चर्य हुआ कि इतने नन्हे मुन्न