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मई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रियलिटी शो के मकड़जाल और संगीत का भविष्य

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    इन दिनों रियलिटी शो का माहौल इस कदर दिमाग पर हावी है कि कला साधक बच्चों का लक्ष्य केवल रियलिटी शो तक सीमित रह गया है। अभिभावक जी रियलिटी शो के लिए अपने बच्चों को चुने जाने के सपने में दिन-रात डूबे रहते हैं।    नृत्य संगीत तक समाज को सीमित रखने वाली इन ग्लैमरस कार्यक्रमों में संवेदना उनका भरपूर दोहन किया जाता है। दर्शकों के मन में बच्चे की गरीबी अथवा उसकी अन्य कोई विवशता को प्रदर्शित करके टीआरपी में आसानी से ऊंचाई हासिल करने का हुनर उन्हें करोड़ों रुपए के विज्ञापनों से लाभ दिलवाता है।    मेरा दावा है कि अगर मौलिक कंपोजीशन पर केंद्रित गैर फिल्मी गीतों पर आधारित कोई रियलिटी शो आयोजित किया जाए तो ना तो बच्चे खुद को सक्षम पाएंगे और ना ही अभिभावक ऐसे कार्यक्रमों मैं बच्चों को शामिल करने की कोशिश करेंगे। टेलीविजन चैनल भी ऐसा करने के लिए ना तो मानसिक रूप से तैयार है और ना ही उनमें ऐसे काम करने की कोई विशेष योग्यता है।   जबलपुर नगर का ही उदाहरण ले लीजिए। नगर से अब तक कई बच्चे ऐसे संगीत शो में शामिल हुए हैं परंतु स्थायित्व कितनों को मिला है यह एक विचारणीय प्रश्न है ?     ऐसे रियलिटी शो के का

मूर्ति भंजक आक्रांताओं को दुशासन कहने का समय

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*मूर्ति भंजक आक्रांताओं को दुशासन कहने का समय* मूर्ति भंजक संस्कृति के ध्वजवाहक आक्रांताओं ने भारत में जो आज से पांच छह सौ साल पहले करना शुरू किया था उसका अर्थ था कि वे किसी भी तरह से भारतीय संस्कृति चित्र को समाज से दूर करने में सफल होंगे। यह सत्य ही है किसी भी शासक के आगे उस दौर में पराधीन भारतीय समाज की एक न चली। 15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता भी अधूरी थी। भारत अब 5 अगस्त 2019 को आंशिक रूप से पूर्ण स्वतंत्रता की ओर जाता हुआ प्रतीत होता है।     औरंगजेब और अन्य आताताई मुगलों की प्रदक्षिणा करते हुए मनुष्य वास्तव में भारतीय दर्शन के विरुद्ध 1947 के बाद से ही संगठित हो चुके हैं। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि एक आयातित विचारधारा वर्ग संघर्ष की सृजन की परिस्थितियों को सर्वोपरि रखती है।  स्वतंत्रता के बाद लगातार ऐसे चिंतन को समाज में निरंतर वैचारिक समर्थन मिलता रहा है। अगर हम संस्कृत भाषा की बात करते हैं तो वह उसे धर्म से जोड़ देते हैं। अब बताइए भला भाषा कभी किसी धर्म से जुड़ सकती है। रिचुअल्स को धर्म के एंगल से देखना भी गलत है। एथेनिकता को भी धर्म के अंदर से देखा जाता है? इसके अ

यूक्रेन में भारतीय डायस्पोरा को सम्मान मिलता है - अलीशा नैयर

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  ट्विटर के एक स्पेस पर मेरी मुलाकात यूक्रेन से दिनांक 24 मई 2022 को वापस आई पत्रकार अलीशा नैयर से  हुई। अलीशा ने बताया कि यूक्रेन एवं रूस के बीच हो रहे इस युद्ध में भारत के प्रति यूक्रेन के नागरिकों का दृष्टिकोण बेहद सकारात्मक है। अलीशा का मानना है कि भारत द्वारा यूक्रेन को की गई मानवीय सहायता के परिपेक्ष में वहां की जनता जो प्रतिपल मृत्यु को अपने नजदीक आता देख रही है कृतज्ञता व्यक्त करने से नहीं चूकती। अलीशा ने यह भी बताया कि-" यूक्रेन के मेट्रो स्टेशन की स्थिति खचाखच भीड़ से भरी हुई है। यूक्रेन में लोग इतने कष्ट के बावजूद स्वयं को खुश रखने का कोई अवसर नहीं छोड़ते।"    उन्होंने यह भी बताया कि-" अगले पल में क्या होगा कौन जाने? परंतु वह वर्तमान की परिस्थितियों का हम एकजुटता के साथ सामना कर रहे हैं और करते रहेंगे!     अलीशा बताती हैं कि -" सुरक्षित स्थान पर निवास कर रहे लोगों ने आराम करने का समय भी सुनिश्चित कर दिया है। जिसकी नींद पूरी हो जाती है वह अन्य किसी को विश्राम के लिए जगह दे देता है। एक भारतीय रेस्टोरेंट संचालक का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा

जोगी जी वाह जोगी जी

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जोगी जी वाह जोगी जी जोगी जी की कैबिनेट ने दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं [  ] नए मदरसों को अनुदान नहीं मिलेगा - परंतु पुरानी अनुदानित मदरसों को अनुदान निरंतर दिया जाता रहेगा। यह एक अच्छी पहल है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में 7000 से अधिक ऐसे मदरसे हैं जिन्हें भारत सरकार से बाकायदा उन्नयन का कार्य करने के लिए सहायता प्राप्त होती रही है और 500 से अधिक मदरसों को वर्तमान में करोड़ों रुपए की राशि अनुदान स्वरूप दी जाती है। [  ] दूसरा निर्णय बीपीएल और अंत्योदय कार्ड का खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत पुनरीक्षण प्रस्ताव। अकेले गाजियाबाद में ऐसे दो हजार से अधिक कार्ड सरेंडर करने में लोग स्वयं आगे आए। गोंडा में भी 5000 का सरेंडर किए गए। सब कुछ खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत किया जा रहा है। अब आप सोचेंगे कि लोग इतनी बड़ी संख्या में बीपीएल कार्ड क्यों सरेंडर कर रहे हैं। इसकी वास्तविकता का परीक्षण करने पर पाया कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत रुपए दो लाख वार्षिक आय यदि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले की है अथवा रुपए तीन लाख वार्षिक आमदनी वाले को बीपीएल की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। द

उपासना अधिनियम विशेष उपबंध 1991 बनाम स्मारक एवं पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958

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{ फोटो साभार टाइम्स नाउ डिज़िटल }     उपासना अधिनियम 1991 जो 18 सितंबर 1991 को लागू हो गया है , किस अधिनियम में केवल उपासना स्थल की 15 अगस्त 1947 के पूर्व पश्चात की स्थिति संबंध में विचार विमर्श किया गया है । इस अधिनियम के औचित्य पर अब तक विमर्श नहीं किया गया। यह अधिनियम गंभीर चिंतन एवं पुनरीक्षण के लिए आज भी तत्पर है।     यह अधिनियम केवल उपासना स्थलों पर प्रभावी है न कि उन स्थलों के लिए जो ऐतिहासिक महत्व के हैं। इसे समझने के लिए हमें प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 को पढ़ना चाहिए। पुरावशेषों के संरक्षण के लिए पूरा उसे  अवशेषों को  नियंत्रित करना या हटाया जाना केंद्रीय सरकार की शक्ति में सन्निहित है केंद्र सरकार चाहे तो पूरा अवशेष और को संरक्षित  है। इतना ही नहीं इस अधिनियम की धारा यह भी कहती है कि ऐसे पुरावशेषों के नुकसान और हानि के लिए प्रतिकार का निर्धारण भी किया जा सकता है।      मोटे तौर पर देखा जाए तो उपासना अधिनियम 1991 ना तो ऊपर वर्णित अधिनियम को अधिक्रमित करता है और ना ही उसे रोकने का कोई प्रावधान इस अधिनियम में किया गया  है। पुरावशेष क्या हो सकते हैं प

पूजा स्थल ( विशेष उपबंध ) अधिनियम 1991 पुनरीक्षण योग्य क्यों..?

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    पूजा स्थल ( विशेष उपबंध ) अधिनियम 1991       इस  अधिनियम को पुनरीक्षित करने की जरूरत है क्योंकि इसमें सेक्युलरिज्म का कोई घटक नजर नहीं आता . इसके हमें हमारे ऐतिहासिक  महत्व के स्मृति-चिन्हों का भी संरक्षण करना चाहिए.  प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष, अधिनियम, 1958  का महत्व कम न हो इस वास्ते हम सदा प्रयास करें . आज़ादी के पूर्व या बाद की स्थिति का आधार देकर हमें तुष्टि के प्रयासों से बचना चाहिए. यदि समस्या का निदान जड़ से न किया तो भविष्य में हम दोषी साबित होंगे. पूजा स्थल अधिनियम भयातुर होकर बनवाया या बनाया अधिनियम है. इसे गंभीरता से विचार कर पुनरीक्षित करना संसद का दायित्व है .         विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग सनातन शास्त्रों /साहित्य में वर्णित है. सनातन साहित्य कल्प नहीं उनमें घनीभूत तथ्यों को  नकारना मूर्खता है. ग्रंथों में  लिखे हुए तथ्य वास्तविकता से मेल खाएं तो प्राचीन इतिहास की सत्यता को जानने के लिए अन्य किसी  प्रमाण की ज़रूरत नहीं होती. .                                    

ब्राह्मणों ...?

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भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से दोनों कुरुक्षेत्र वासनी सरस्वती नदी के तट पर गये और कण् व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें वरदान दिया । वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका क्रमानुसार नाम था - उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, शुक्ला, मिश्रा, अग्निहोत्री, दुबे, तिवारी, पाण्डेय, और चतुर्वेदी । इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने अपनी कन्याए प्रदान की। वे क्रमशः उपाध्यायी, दीक्षिता, पाठकी, शुक्लिका, मिश्राणी, अग्निहोत्रिधी, द्विवेदिनी, तिवेदिनी पाण्ड्यायनी, और चतुर्वेदिनी कहलायीं। फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम - कष्यप, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्रि, वसिष्ठ, वत