30.10.21

जश्ने जमानत और ड्राइवर अनिल का चिंतन


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भारत का इतिहास और कारागारों का इतिहास महान घटनाओं का साक्षी है। आज एक और महान घटना घटित हुई मेरा ड्राइवर अनिल बर्मन इस घटना को लेकर बेहद चकित है। अनिल का कहना है कि आर्यन खान ने ऐसा कौन सा महान कार्य किया जिसके कारागार से रिलीज होने पर मन्नत में लोगों की भीड़ जमा हुई है।
यद्यपि उत्तर देने के लिए मैं बौद्धिक स्तर पर स्वयं को सक्षम नहीं पा रहा हूं परंतु उत्तर तो देना था। तो मैं आप सब के विचार समझने के लिए यह विषय रख देता हूं आपके सामने।
  जमानत पर रिहाई के बाट नशा खोर बच्चा जिसकी उम्र 23 साल है के स्वागत के लिए जनता का सड़कों पर आना अपराध के ग्लैमरस होने की प्रक्रिया है।
   एक झूठी खबर के आधार पर भारत से लेकर पूरे विश्व में यह खबर फैल जाना कि एक संप्रदाय विशेष खतरे में है जबकि इस देश का प्रधानमंत्री महामहिम पोप जॉन पौल से मिलने वेटिकन सिटी गया हो यह खबर मीडिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि एक नशा करने वाला आज कारागार से मुक्त हुआ है।
    राष्ट्र की प्रगति के समाचारों के बीच ड्रग एडिक्ट्स के अपराधों को इस तरह से पोट्रेट करना इस देश के कुछ एक मीडिया समूह के मानसिक स्तर का खुला प्रदर्शन है। वह तो इस घटना को नवजात कृष्ण के बंदी ग्रह से बाहर आने के बराबर साबित करने पर बदस्तूर कार्य कर रहे हैं। साथियों इस राष्ट्र की मजबूरी क्या है समझ से परे है। एक दसवीं पास वाहन चालक जब इस तरह के घटनाक्रम से व्यथित हो सकता है तो आम आदमी जो संभवत है उससे कुछ ज्यादा पढ़ा लिखा होगा संकुचित विचारधारा लेकर इतना उत्साहित क्यों है?
   इस देश में नशा करने वाली पीढ़ी को इतना श्रेष्ठ दर्जा देना उस पर दिनभर खबर चलाना हमारा दुर्भाग्य है। मैं आज अपने वाहन चालक के सवाल से आहत हूं सोचता हूं क्या जवाब दूं आप मेरी मदद कीजिए

27.10.21

क्यों नहीं खेलना चाहिए पाकिस्तान के साथ क्रिकेट


   पाकिस्तान एक संप्रदाय सापेक्ष राष्ट्र है। इस राष्ट्र की बुनियादी शैक्षणिक व्यवस्था केवल और केवल इस्लाम आधारित है। पाकिस्तान एक ऐसा राष्ट्र बन कर रह गया है जो विश्व की किसी भी संस्कृति से अब मेल नहीं खाता। इस देश से कोई भी राष्ट्र और मानवतावादी दृष्टिकोण के पक्षधर पाकिस्तान की सामाजिक परिस्थितियों से कभी भी समन्वय स्थापित कर सकने में सफल नहीं रहेगी। मुस्लिम एक एकात्मवाद जिसे मुस्लिम ब्रदरहुड या मुस्लिम उम्मा माना जा सकता है वैश्विक परिदृश्य में किसी भी स्तर पर विश्व के अन्य देशों के साथ सामान्य दृष्टि तब तक कायम नहीं कर सकता जब तक कि पाकिस्तान अपनी संप्रदायिक सोच को जबरन दूसरे आध्यात्मिक चिंतन पर स्थापित करने की कोशिश करता रहेगा। हाल ही में पाकिस्तान के गृह मंत्री ने भारत-पाकिस्तान के टी20 मैच में पाकिस्तान की विजय को इस्लाम की विजय कहा है।
इतना ही नहीं पाकिस्तान के अल्प बुद्धि प्रधानमंत्री ने भी कश्मीर को लेकर कटाक्ष किया है। जहां तक मोहम्मद शमी का सवाल है हिंदुस्तान का यह अनोखा खिलाड़ी भारत का ही वफादार खिलाड़ी तब तक कहा जाएगा जब तक कि वह हिंदुस्तान की अस्मिता और एकात्मता को जिंदाबाद करता रहेगा। शमी को ना तो किसी ने ट्रोल किया है और ना ही आज तक किसी भी मुस्लिम खिलाड़ी को धर्म के आधार पर भारत में किसी भी तरह की गैर बराबरी रखी है। परंतु  पाकिस्तान की 70 साल पुरानी क्रिमिनल सोच का है और वामपंथी मीडिया की बदतमीजी का एजेंडा सर्वव्यापी है जिसने भारत कि रियल सेक्यूलर इमेज को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है।
   कुल मिलाकर पाकिस्तान एक ऐसा चूर्ण बेच रहा है जो एक मानसिक दिवालियापन और घोर असामाजिक असहिष्णु वातावरण का जनक है। खेलकूद स्पर्धा जैसे मुद्दे ना तो इस्लामिक होते हैं ना ही अन्य किसी संप्रदाय से संबंधित। परंतु राजनीतिक स्तर पर इस तरह के वार्तालाप से यह सुनिश्चित हो चुका है कि पाकिस्तान की राजनैतिक परिस्थितियां पाकिस्तान के लिए आत्मघाती एवं दुर्भाग्यपूर्ण है।
    इन परिस्थितियों को देखते हुए न केवल भारत बल्कि मानवतावादी विश्व को चाहिए कि पाकिस्तान के साथ सांस्कृतिक संबंधों को भी समाप्त कर दिया जावे। परंतु यह संभव नहीं है.
   फ्रांस और अन्य गैर इस्लामिक राष्ट्रों ने जिस तरह पाकिस्तान के लोगों की मानसिक अतिचार के विरुद्ध आवाज बुलंद की है उस पर अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र भी मौन साध कर रखे हैं इसका आशय यह है कि अधिकांश मुस्लिम राष्ट्र भी मानवता वादी चिंतन को बढ़ावा देने में आगे आ रहे हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सहित उन सभी संस्थानों को पाकिस्तान के साथ संपर्क तुरंत समाप्त कर देना चाहिए।

13.10.21

पंडों के खिलाफ भड़काना प्रगतिशील लेखकों का प्रमुख एजेंडा

 
      सनातन संस्कृति में प्रयागराज के पंडों का अपना अलग महत्व है। हिंदू धर्म से अन्य संप्रदाय में जाने वाले लोगों के रिकॉर्ड रखने के लिए तथा उन्हें यह अवगत कराने के लिए कि वे लोग किस वंश से संबंध रखते हैं जैसे महत्वपूर्ण कार्य पंडे ही किया करते थे। यह कार्य एक सुनियोजित व्यवस्थित ढंग से निष्पादित होता है। पंडे गांव गांव जाकर वंश का रिकॉर्ड रखे हैं । सनातन व्यवस्था के तहत पूर्वजों के संबंध में विस्तृत जानकारी का मेंटेनेंस या संधारण सामान्य दिनों में अथवा श्राद्ध पक्ष में भी होता है। पंडों का कार्य देशभर के गांव में घर घर जाकर डाटा कलेक्शन का कार्य होता था। इस कार्य में किसी भी तरह की सरकारी इमदाद या प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती थी। आप जब अपने पंडे के पास जाइएगा
आपको आपके परिवार का इतिहास उपलब्ध हो जाएगा।
    और यह जानकारी बड़ी सटीक तथा प्रभावी होती थी। वर्तमान में भी बहुत सारे पंडे इस व्यवस्था को निरंतरता दे रहे। परंतु वामपंथी सहित इस संदर्भ में बेहद नकारात्मक और गंदे तरीके से सनातन को अपमानित करने के लिए लगातार लिख पढ़ रहा है और अभी भी यह सिलसिला रुका नहीं है। काफी हाउस में सिगरेट का धुआं उड़ाते हुए साहित्य का सृजन कर रहे हैं और उनका मूल विषय सनातन धर्म के विरोध अलावा और कुछ नहीं। इस आर्टिकल के माध्यम से सभी सनातनीयों को साफ संदेश दे रहा हूं ऐसे किसी भी बुरे प्रयास के खिलाफ जागृत हो और सनातन के प्रति अपना इसने बरकरार रखें
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

11.10.21

अवतरण दिवस और जन्म दिवस : आनंद राणा

कल एक वरेण्य संपादक श्रीयुत काशीनाथ शर्मा  जी ने अवतरण दिवस और जन्म दिवस को लेकर मेरी वाॅल पर प्रकारांतर से द्वंद्वात्मक टिप्पणी के साथ जिज्ञासा व्यक्त की। मैंने उत्तर देने का प्रयत्न किया-:
महात्मन्, आप नाहक विरोधाभास में हैं और अंर्तद्वंद्व की अवस्था में है।, जबकि दोनों के प्रसंग और संदर्भ पृथक - पृथक होते हुए भी अद्वैत हो जाते हैं। आचार्य शंकर ने दो सत्य कहे हैं एक पारमार्थिक दूसरा व्यावहारिक। मैं पारमार्थिक दृष्टि की बात कर रहा हूँ जो परम सत्य है। आपकी दृष्टि व्यावहारिक हो सकती है जो आभास मात्र है।
"मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पय:, जातौ जातौ नवाचारा: नवा वाणी मुखे मुखे.".. परम आदरणीय महोदय जी, उपर्युक्त दो पंक्तियाँ सार्वभौमिक और सार्वजनीन हैं और क्या सही माने? इस बात का पटाक्षेप कर देतीं हैं तथापि आपने जिज्ञासा व्यक्त की है,तो ध्यातव्य हो कि अद्वैत का द्वैत भाव आत्मा और शरीर के रुप में अभिव्यक्त होता है तो आत्मा अजर, अमर है उसी के आलोक में अवतरण है जबकि शरीर का जन्म है तो मृत्यु भी है आत्मा का शरीर के साथ आगमन अवतरण हो वहीं शरीर का जन्म यद्यपि इस पर एक संगोष्ठी हो सकती है पर समय ही व्यर्थ होगा और अनावश्यक छिद्रान्वेषण?चूंकि आपने मुझे पोस्ट किया है इसलिए आदि शंकराचार्य जी कि यह टीका प्रेषित है "जायते  न उत्पद्यते जनिलक्षणा वस्तुविक्रिया न आत्मनो विद्यते इत्यर्थः। तथा  न म्रियते वा । वाशब्दः चार्थे। न म्रियते च इति अन्त्या विनाशलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते।  कदाचिच्छ ब्दः सर्वविक्रियाप्रतिषेधैः संबध्यते न कदाचित् जायते न कदाचित् म्रियते इत्येवम्। यस्मात्  अयम्  आत्मा  भूत्वा  भवनक्रियामनुभूय पश्चात्  अभविता  अभावं गन्ता  न भूयः  पुनः तस्मात् न म्रियते। यो हि भूत्वा न भविता स म्रियत इत्युच्यते लोके। वाशब्दात् न शब्दाच्च अयमात्मा अभूत्वा वा भविता देहवत् न भूयः। तस्मात् न जायते। यो हि अभूत्वा भविता स जायत इत्युच्यते। नैवमात्मा। अतो न जायते। यस्मादेवं तस्मात्  अजः  यस्मात् न म्रियते तस्मात्  नित्य श्च। यद्यपि आद्यन्तयोर्विक्रिययोः प्रतिषेधे सर्वा विक्रियाः प्रतिषिद्धा भवन्ति तथापि मध्यभाविनीनां विक्रियाणां स्वशब्दैरेव प्रतिषेधः कर्तव्यः अनुक्तानामपि यौवनादिसमस्तविक्रियाणां प्रतिषेधो यथा स्यात् इत्याह  शाश्वत  इत्यादिना। शाश्वत इति अपक्षयलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते। शश्वद्भवः शाश्वतः। न अपक्षीयते स्वरूपेण निरवयवत्वात्। नापि गुणक्षयेण अपक्षयः निर्गुणत्वात्। अपक्षयविपरीतापि वृद्धिलक्षणा विक्रिया प्रतिषिध्यते पुराण इति। यो हि अवयवागमेन उपचीयते स वर्धते अभिनव इति च उच्यते।  अयं  तु आत्मा निरवयवत्वात् पुरापि नव एवेति  पुराणः  न वर्धते इत्यर्थः। तथा  न हन्यते । हन्तिः अत्र विपरिणामार्थे द्रष्टव्यः अपुनरुक्ततायै। न विपरिणम्यते इत्यर्थः।
हन्यमाने  विपरिणम्यमानेऽपि  शरीरे । अस्मिन् मन्त्रे षड् भावविकारा लौकिकवस्तुविक्रिया आत्मनि प्रतिषिध्यन्ते। सर्वप्रकारविक्रियारहित आत्मा इति वाक्यार्थः। यस्मादेवं तस्मात् उभौ तौ न विजानीतः इति पूर्वेण मन्त्रेण अस्य संबन्धः।।
य एनं वेत्ति हन्तारम् इत्यनेन मन्त्रेण हननक्रियायाः कर्ता कर्म च न भवति इति प्रतिज्ञाय न जायते इत्यनेन अविक्रियत्वं हेतुमुक्त्वा प्रतिज्ञातार्थमुपसंहरति" "वासांसि वस्त्राणि जीर्णानि दुर्बलतां गतानि यथा लोके विहाय परित्यज्य नवानि अभिनवानि गृह्णाति उपादत्ते नरः पुरुषः अपराणि अन्यानि तथा तद्वदेव शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति संगच्छति नवानि देही आत्मा पुरुषवत् अविक्रिय एवेत्यर्थः।।
कस्मात् अविक्रिय एवेति आह".... अवतरण का तादात्म्य आत्मा से है इसलिए आपकी शंकाएं और आशंकाएँ निर्मूल हैं। फिर जाकी रही भावना जैंसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैंसी।
इसलिए दोनों अभिव्यक्तियाँ अपने - अपने स्थान पर सही हैं।
🙏🙏🙏
डॉ. आनंद सिंह राणा 
🙏🙏🙏

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...