5.11.19

क्यों लिखते हैं दीवारों पर - "आस्तिक मुनि की दुहाई है"

सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....!
आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौराणिक सर्प पात्र की पुत्री के पुत्र थे । एक बार तक्षक से नाराज जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया और इस यज्ञ में मंत्रों के कारण विभिन्न प्रजाति के सांप यज्ञ वेदी संविदा की तरह आ गिरे । तक्षक ने स्वयं को बचाने के लिए इंद्र का सहारा लिया तो वासुकी ने ऋषि जगतकारू की पत्नी यानी अपनी बहन से अनुरोध किया कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी सांपों की रक्षा कीजिए और यह रक्षा का कार्य आपके पुत्र मुनि आस्तिक ही कर सकते हैं । अपने मामा के वंश को बचाने के लिए आस्तिक मुनि जो अतिशय विद्वान वेद मंत्रों के ज्ञाता थे जन्मेजय की यज्ञशाला की ओर जाते हैं । किंतु उन्हें सामान्य रूप से यज्ञशाला में प्रवेश का अवसर पहरेदार द्वारा नहीं दिया जाता । किंतु आस्तिक निराश नहीं होते और वे रिचाओं मंत्रों के द्वारा यज्ञ के सभी का सम्मान करते हैं । जिसे सुनकर जन्मेजय स्वयं यज्ञशाला में उन्हें बुलवा लेते हैं । जहां आस्तिक मुनि पूरे मनोयोग से यज्ञ एवं सभी की स्तुति की जैसे जन्मेजय ने उनसे वरदान मांगने की उम्मीद की । जन्मेजय की मांग तक्षक को आहूत करने के लिए मंत्र पढ़ने का अनुरोध यज्ञ करने वाले लोगों से किया । इंद्र के साथ तक्षक स्वयमेव खींचे हुए यज्ञ वेदी के पास आते चले गए । इंद्र तो अपनी ताकत से वापस निकलने में कामयाब हो जाते हैं लेकिन तक्षक यज्ञ वेदी पर गिरने लगते हैं। जिन्हें मंत्र बल से आस्तिक मुनि रोक देते हैं । तभी यज्ञ करने वाले विप्र को वरदान देने का आग्रह करते हैं . यज्ञ के यजमान जन्मेजय ने वरदान मांगने की अपेक्षा करते हुए आस्तिक मुनि की वाणी की मंत्रों की स्तुति की सराहना की । तब आस्तिक मुनि ने सर्प यज्ञ रोकने क्या वरदान मांगा । इससे एक पूरी की पूरी प्रजाति बच गई और सरीसृप वंश जीवित रह गया । 
कथा पौराणिक है लेकिन इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए इस विद्वान मुनि की सराहना करनी चाहिए सांपों को आस्तिक मुनि की दुहाई देकर मनुष्य के बनाए घरों में घुसने से रोकने का प्रयास करते हैं हम इस तरह लिख कर आस्तिक मुनि की दुहाई है । 
*जैव- विविधता को बनाए रखने के लिए यह कहानी बेहद महत्वपूर्ण है . भारतीय संस्कृति की कथाएं विश्व समाज के लिए यह एक प्रेरक कहानियाँ होतीं हैं... भारतीय एतिहासिक माइथ कहने वालों के मुंह पर तालाबंदी कर सकती है परंतु समझने की जरूरत है पर समझाया कुछ और जाता है...!*

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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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