30.9.13

घरेलू हिंसा से बचाव के लिये चयन में पोस्टर होर्डिंग कार्टून सहयोग

(एक) कार्टूनिष्ट राजेश दुबे  
(दो) कार्टूनिष्ट राजेश दुबे  

मध्य-प्रदेश में घरेलू हिंसा से बचाव के लिये क्या करें.. ! इस सवाल को सवाल न रहने दें.. बस आप 1090 पर डायल कर अपने खिलाफ़ हो रही हिंसा की सूचना दर्ज़ कराएं..
किसी भी स्थिति में मदद आप तक पहुंचना तय है.. ....
यदि आप किसी घरेलू हिंसा की शिकार किसी अन्य को हिंसा से बचाना चाहते हैं तो भी आप 1090 पर डायल कर  हो रही हिंसा की सूचना दर्ज़ कराएं..  सूचना दाता का नाम गोपनीय रखा जाता है.. तो फ़िर क्यों न चुप्पी तोड़ी जाए... कार्टूनिष्ट राजेश दुबे   द्वारा बनाए गये इन कार्टूनस में अंतर बताएं तथा रेटिंग करें .. सर्वाधिक रेटिंग वाले कार्टून का प्रयोग होर्डिंग / पोस्टर के रूप में किया जावेगा..
इस हेतु प्रचार सामग्री तैयार की जानी है.  पोस्टर होर्डिंग कार्टून चयन में सहयोग हेतु अपनी पसंद बताएं..

27.9.13

ताल लय सुर की देवी लता जी कुछ तथ्य

शहीद-स्मारक जबलपुर में प्रतिभा-पर्व के रूप में
लता जी का जन्मोत्सव  मनाया गया जन्म दिवस
के पूर्व  २३ सितम्बर को
आज़ का दौर गीत-संगीत के लिये बेशक उकताहट का दौर है. यह दौर न तो संगीत के लिये न  गीत के लिये और न ही सुरों के लिये माकूल है. कोलावरी डी और चिकनी चमेलियों वाले दौर में कोई भी गला जो शारदा से वर प्राप्त हो जोखिम उठाना नहीं चाहेगा.  वास्तव में लोगों की रुचि में अज़ीबो ग़रीब स्थिति दिखाई दे रही है. लोगों के ज़ेहन में कोई ऐसा कैनवास ही नहीं बचा जिस पर वे संगीत के रथ पर आरुढ़ भावों की अनुकृति अपने एहसासों के ज़रिये उकेर सकें. संगीत क्या हल्ला-गुल्ला.. बस और क्या...? अब तो कोई भी ऐसा गीत नहीं बनता जिसे कोई गुनगुनाए.. बस शोर ही शोर . लता जी भी आहत हुईं हैं, इस तरह के वातावरण से.  आइये जानें लता जी के बारे में कुछ तथ्य -
       28 सितम्बर 1929 को इंदौर में जन्मी लता जी ने अब तक 3000 से अधिक गीत गाए हैं.  
फिल्म फेयर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 and 1994) , राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 and 1990),महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 and 1967)1969 - पद्म भूषण,1974 - दुनिया मे सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड,1989 - दादा साहब फाल्के पुरस्कार, 1993 - फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 1996 - स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 1997 - राजीव गान्धी पुरस्कार,1999 - एन.टी.आर. पुरस्कार,1999 - पद्म विभूषण,1999 - ज़ी सिने का का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 2000 - आई. आई. ए. एफ. का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 2001 - स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार , 2001 - भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न", 2001 - नूरजहाँ पुरस्कार , 2001 - महाराष्ट्र भुषण
राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान
1.
श्री नौशाद
1984-85
2.
श्री किशोर कुमार
1985-86
3.
श्री जयदेव
1986-87
4.
श्री मन्ना डे
1987-88
5.
श्री खय्याम
1988-89
6.
सुश्री आशा भोसले
1989-90
7.
श्री लक्ष्मीकांत - श्री प्यारेलाल
1990-91
8.
श्री येसुदास
1991-92
9.
श्री राहुलदेव बर्मन
1992-93
10.
श्रीमती संध्या मुखर्जी
1993-94
11.
श्री अनिल विश्वास
1994-95
12.
श्री तलत महमूद
1995-96
13.
श्री कल्याण जी - श्री आनन्द जी
1996-97
14.
श्री जगजीत सिंह
1997-98
15.
श्री इलिया राजा
1998-99
16.
श्री एस.पी. बालसुब्रमण्यम्
1999-00
17.
श्री भूपेन हजारिका
2000-01
18.
श्री महेन्द्र कपूर
2001-02
19.
श्री रवीन्द्र जैन
2002-03
20.
श्री सुरेश वाडकर
2003-04
21.
श्री ए.आर. रहमान
2004-05
22.
सुश्री कविता कृष्णमूर्ति
2005-06
23.
श्री हृदयनाथ मंगेशकर
2006-07
24.
श्री नितिन मुकेश
2007-08
25.
श्री रवि
2008-09
26.
श्री अनुराधा पौडवाल
2009-10

22.9.13

नेताजी ने सिद्धांत .. बाबा ने वेदांत तज़ा.

कुत्तों का बास अधीनस्त कुत्तों को एक तस्वीर दिखाते हुए बोला  - मित्रो इसे देखा हैं.. ?
कुत्ते - (समवेत स्वरों में) अरे टामी सर फ़ोटू लेकर तलाशने की बीमारी कब से लग गई.. बास..?
बास - बास इज़ आल वेज़ राईट समझे जित्ता पूछा उत्ता बताओ.. इस तस्वीर की  मैंने कापीयां कराई है.. सब ले जाओ इसकी पता साज़ी करके लेकर आओ .
    सारे कुत्ते भुनभुनाते हुए निकले .. कोई उनकी भुनभुनाहट का सारांश था "बताओ भई, क्या ज़माना आ गया है.. हमारे बास को हमारी घ्राण-शक्ति पर से भरोसा जाता रहा. अरे हम एक बार सूंघ लेते तो आदमी की राख तक को सूंघ के बता देते कि किसकी भस्मी है... उफ़्फ़... बड़ा आया बास कहलाने के क़ाबिल नहीं है.. स्साला.. आदमियों के साथ रह के कुत्तव विहीन हो गया है. कुत्तों को इस क्रास बीट की बात वैसे भी न पसंद थी .बास था सो मज़बूरी थी सुनने की ... बास की सुनना संस्थागत मज़बूरी थी वरना देसी कुत्ते  किसकी सुनते हैं. बहरहाल तस्वीर वाले आदमी की तलाश में निकले कि हमारा निकलना हुआ. हम निकले निकलते ही कुछ एक जो मुहल्ले के थे अनदेखा करके निकल गये . पराए मोहल्ले वाला घूर-घूर हमें तक रहा था.हम डरे डरे से कन्नी  निकास लिए।  खैर बच तो गए कुत्ते से पर सोच रहें है कि -
" कुत्तों को फोटो की का ज़रुरत आन पडी उनकी घ्राण शक्ति को का हुआ. ?"

                            सब अपने मूलगुण धर्म को छोड़ क्यों रहे हैं...?  
शरद जोशी जी का वो सटायर याद ही होगा जिसका सारांश था - "हैं तो पर नहीं हैं..!" नल है पानी नहीं साहब हां हैं पर दौरे पर हैं आदि आदि. ठीक उसी तरह सबमें  अपना गुणधर्म बदल लेने की होड़ लग गई है.. कुत्तों ने सूंघ के पहचानना छोड़ दिया. नेताजी ने सिद्धांत छोड़ दिये.. बाबा ने वेदांत तज़ा..  जैसे सरकारी दफ़्तर में बाबू सहित सब के सब काम छोड़ के वो सब करते हैं जो एक अभिनेता-अभिनेत्री करता या करती  है. तो सरकारी गैर सरकारी स्कूल का मास्टर स्कूल में कम कोचिंग क्लास में खैर जो जैसा चाहें करें वैसा पर ये याद रखा जावे कि अगर प्रकृति में ऐसा बदलाव  हो जाए तो ......?  
          

13.9.13

" दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो !"

                  भारतीय न्याय व्यवस्था ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि -भारतीय न्याय व्यवस्था बेशक बेहद विश्वसनीय एवम विश्वास जनक है. दामिनी के साथ हुआ बर्ताव अमानवीय एवम क्रूरतम जघन्य था. सच कितने निर्मम थे अपराधी उनके खिलाफ़ ये सज़ा माकूल है. जुविलाइन एक्ट की वज़ह से मात्र तीन बरस की सज़ा पाने वाला अपराधी भी इसी तरह की सज़ा का पात्र होना था . किंतु मौज़ूदा कानून के तहत लिए गए निर्णय पर  टीका टिप्पणी न करते हुये एक बात सबके संग्यान में लाना आवश्यक है कि - "यौन अपराधों के विरुद्ध सज़ा एक सी हो तो समाज का कानून  के प्रति नज़रिया अलग ही होगा."
 
    सुधि पाठको ! यहां यह कहना भी ज़रूरी हो गया है कि- यौन अपराध,  राष्ट्र के खिलाफ़ षड़यंत्रों, राष्ट्र की अस्मिता पर आघात करने वाले विद्रोहियों, आतंकवादियों के द्वारा की गई राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से कम नहीं हैं  . अतएव इस अपराध को रोकने कठोरतम दण्ड के प्रावधान की ज़रूरत है. इतना ही नहीं ऐसे आपराधिक कार्य में अवयष्क  को उसकी अवयष्कता के आधार पर कम दण्ड देना  सर्वथा प्रासंगिक नहीं है. राज्य के विरुद्ध अपराध के संदर्भ में देखा जाये तो  यदि कोई कम उम्र का (अवयष्क) व्यक्ति विधि विवादित है तो उसे क्या इस अल्प दण्ड से दण्डित कर सपोले को पनपने का मौका देना उचित होगा..?   मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि दण्ड का प्रावधान उम के अनुसार न होकर अपराध की क्रूरता पर अवलम्बित होना चाहिये. राज्य द्वारा इस प्रकार के सुझाव पर अमल करते हुए नये क़ानून के निर्माण की शुरुआत कर ही देनी चाहिये. बी बी सी में प्रकाशित साक्षात्कार अनुसार लीडिया गुथ्रे जो एक समाज सेविका है ने कहा-"जब पहली बार मैं एक यौन अपराधी से मिलने गई तो मेरी टांगें कांप रही थीं. जैसै- तैसे मैं सीढियां उतर रही थी. 

दिमाग में यही चल रहा था कि एक दड़बे जैसे कमरे में बैठकर मैं उस आदमी से कैसे बात कर 

पाऊंगीं जिसने इतना भयानक काम किया था." - लीडिया के सुधारात्मक कार्यक्रम से व्यक्तिगत रूप मैं सहमत नहीं क्योंकि जब वे स्वयम यौन आक्रमणकारी अपराधी को सदाचार का पाठ पढ़ाने गईं तब वे भयातुर थीं. यानी यौन अपराधी में सुधार सहजता से  हो पाने पर वे स्वयम सशंकित हैं.. तो समाज ऐसे व्यक्ति को किस तरस स्वीकार करेगा.
          यहां घोर आदर्शवादिता का शिकार होना लाज़िमी नहीं है. यौन अपराध अन्य सभी क्रूरतम अपराधों के समकक्ष ही है. अतएव यौन अपराध को क्रूरतम अपराध की श्रेणी में रखा जाकर कठोर दण्ड के प्रावधान का समावेश मौज़ूदा क़ानूनों में किया जा सकता है. साथ ही दण्ड " दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो ऐसा  !" सोचिये अगर क़साब की उम्र अपराध करते वक्त १७ बरस ११ माह के आस पास होती तो क्या दशा होती ? 

12.9.13

धार्मिक उन्माद से शोक ग्रस्त हूं.. क्या लिखूं दोस्तो ?

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11.9.13

आपदाग्रस्त उत्तराखंड में टी.एच.डी.सी. की मनमानी


जून की आपदा में पूरे उत्तराखंड में जगह-जगह गांव-घर-जमीनें धसकी है। किन्तु फिर भी अलकनंदा पर प्रस्तावित विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना (400 मेवाकी कार्यदायी संस्था टी.एच.डी.सी.विस्फोटो का प्रयोग कर रही है। विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के विद्युतगृह को जाने वाली सुरंग निर्माण के कारण हरसारी गांव के मकानों में दरारें पड़ी हैपानी के स्त्रोत सूखे हैफसल खराब हुई है। लोगो ने बांध का विरोध किया है। नतीजा यह है कि लगभग दस वर्षो बाद भी प्रभावितों की समस्याओं का निराकरण नही हुआ है। बांध का विरोध इसलिये बांध कंपनी द्वारा झूठे मुकद्दमों में फंसाने की कोशिशे जारी। हरसारी के प्रभावित समाज-सरकार के सामने एक दिन के उपवास पर बैठे है। ताकि बांध कंपनी की मनमानी और लोगो की पीड़ा सामने आये। एक आपदाग्रस्त राज्य में टी.एच.डी.सीद्वारा नई आपदा लाने को स्वीकार नही किया जायेगा।
गोपेश्वर में जिलाधीश कार्यालय के बाहर धरने पर शहरी विकास मंत्री एंव चमोली जिला आपदा प्रभारी श्री पीतम सिंह पंवार और श्री अनुसूया प्रसाद मैखुरी उपाध्यक्ष विधानसभा ने लोगो से मुलाकात की और जिलाधीश व पुलिस अधीक्षक को केस वापिस लेने के निर्देश दिये। उन्होने कहा की प्रभावितों के हितो की उपेक्षा नही की जायेगी।
ज्ञातव्य है कि अभी टी.एच.डी.सीको 13 अगस्त 2013 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये आदेश के कारण  विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के लिये राज्य सरकार से पर्यावरण स्वीकृति नही मिली है। 
सुप्रीम कोर्ट की डबल-बैंच के निर्देश थे कि  पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ साथ उत्तराखंड राज्य उत्तराखंड में किसी भी जल विद्युत परियोजना के लिए पर्यावरणीय या वन स्वीकृति न दें।‘‘

सूत्र बताते हैं कि  मकान पहले ही जीर्ण-शीर्ण हालत में हैभयानक विस्फोटों के कंपन से हमारे मकानों में कंपन होता हैजिसकी सूचना लगातार जिला अधिकारी/उपजिलाधिकारी को वे  देते आये हैंतथा उपजिलाधिकारी ने आश्वस्त भी किया कि वे  अपने कर्मचारियों को हम आपके गांव में भेजेंगे। किंतु आवेदक  इंतजार ही करते रहेफिर उनको फोन से अवगत कराया कि लगातार रात 11 बजे से बजे तक विस्फोट हो रहे हैंलोग डर के मारे घर में सोते वक्त बाहर आते हैंआज तक हम लगातार विस्फोटों को बंद करने की मांग करते आये हैंलेकिन उनकी कोई सुनवायी नहीं हुई। इस क्षेत्र में  वर्षा से जगह-जगह पर भू-स्खलन हो रहे हैं हरसारी में श्री तारेन्द्र प्रसाद जोशी का मकान भी गिरा है। जिसका सर्वेक्षण राजस्व विभाग/बांध कंपनी टी.एच.डी.सीने आकर किया है तथा राजस्व विभाग से प्रभावित को मुआवजे के तौर पर अस्सी हजार रूपये भी दिये गये हैं 
ऐसे समय पर जब आपदा आयी हुयी है प्रदेश में बांधों से भारी तबाही हुयी हैटी.एच.डी.सीने दोबारा से सुरंग निर्माण का कार्य शुरू किया है तो हमारे अंदर दहशत बैठी हुई है और हम बुरी तरह से डरे हुए हैं हमारी समस्याओं का निराकरण किये बिना विस्फोट जारी है
 इस परिपेक्ष्य में आवेदको जब सितंबर 2013 को जब हम कार्य बंद करने गये तो टनल के अंदर से ठेकेदार के कर्मचारी कार्यदायी संस्था टी.एच.डी.सीके कर्मचारी श्री टिकेन्द्र कोटियाल जी जहां पर सड़क में हम ग्रामीण विरोध कर रहे थे तो उपर आयेहम सभी ने कहा कि निर्माण कार्य बंद करो और हमारी मकानें तो आप ने स्वंय आकर देखी है जो कि ज़मीन पर विस्फोटों की वजह से गिरी पड़ी हैइतने में उत्तेजना में आकर उन्होंने नरेन्द्र पोखरियाल के साथ बद सलूकी की .
समाचार स्रोत : Bhishma Kukreti 


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