19.8.11

ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!


साभार : आई बी एन ख़बर

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआं,पण्डित भया न कोय
ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!

वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये
तू कितने सर अब क़लम करेगा, ये जो कटा तो वो इक उठा है
***********************
तेरी हक़ीक़त  तेरी तिज़ारत  तेरी सियासत, तुझे मुबारक़--
नज़र में तेरी हैं हम जो तिनके,तो देख ले अब हमारी ताक़त !!
कि पत्ता-पत्ता हवा चली है.. तू जा निकल जा बदन छिपा के !!
                          वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये
***********************
थी तेरी साज़िश कि टुकड़े-टुकड़े हुआ था भारत, वही जुड़ा है
तेरे तिलिस्मी भरम से बचके, हक़ीक़तों की तरफ़ मुड़ा है....!!
                         अब आगे आके तू सर झुक़ा ले..या आख़िरी तू रज़ा बता दे ..?
***********************
ये जो हक़ीक़त का कारवां हैं,तेरी मुसीबत का आसमां है
कि अपनी सूरत संवार आके, हमारे हाथों में आईना है..!
                        अग़रचे तुझमें नहीं है हिम्मत,तो घर चला जा..या मुंह छिपा ले !
***********************






4 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

गजब की रचना है सार्थक संदेश देती हुई।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

बहुत बढिया रचना, बधाई।

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत खूब !!

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआं,पण्डित भया न कोय
ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!

आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना......

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...