आज़ देर तक खूब गीत सुने जो सुने वो शायद आपको भी पसंद आएं.. तलाशिये इन लिंक्स में
आप की आंखों में महके हुये राज़ देख हमने इस मोड़ से जाने का मन बना लिया. जहां से जातें हैं सुस्त क़दम रस्ते तेज़ कदम राहें वहीं उस मोड़ पर तुमसे मिलना और भिगो देना पूरे बदन को रिमझिम सावनी फ़ुहारों का. और फ़िर न जाने क्यों ... न क्यों होता है ज़िंदगी के साथ अचानक तुम्हारे जाने के बाद तुमको तलाशता है उसी मोड़ पर. और फ़िर मन को धीरज देता रजनीगंधा के फ़ूलों का वो गुच्छा जो रात तुमने महकाने लाए थे मेरे सपनों में.जहां मुझसे तुम कह रहे होते हो मैं अनजानी आस हूं जिसके पीछे तुम गोया पागल हो ? और फ़िर अचानक तुम्हारी सुर में सुर मिलने की चाहत का सरे आम होना...और तुमसे मिली नज़र की याद के असर को न भुला पाना फ़िर खुद से मेरा शर्मशार होके सिमट जाना खुद में... फ़िर तन्हाई में दिल से बातें करना..खामोशी में भी संगीत एहसास करना.शायद तुमको इस बात का एहसास तो होगा ही कि बातों ही बातों में प्यार ... तुमने ही तो कहा था न ..और एक दिन हां एक दिन हम तुमने कहा था न बड़े अच्छे लगते हैं..? मैने पूछा था- क्या..? तब से मैं बस उस प्रीतदीप की पहली किरन से सवाल करती हूं अक्सर ..!
सुहासी धामी साभार : न्यू आब्ज़र्वर पोस्ट |
3 टिप्पणियां:
kya kahne girish ji , aap ne to mausam bana diya aur aaj ka mera din bhi ,..
dil khush ho gaya sir ji
vijay
गिरीश"मुकुल" जी,
गीतों की बारिश ही कर दी आपने तो....लाजवाब.
बहुत ही अच्छे लिंक्स मिले ...आभार...
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