भ्रष्टाचार कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं वो सच में एक सामाजिक विषय है.


इस कुत्ते से ज़्यादा समझदार कौन होगा जो अपने मालिक के दक्षणावर्त्य को खींच रहा है ताकि आदमी सलीब पे लटकने का इरादा छोड़ दे. वरना आज़कल इंसान तो "हे भगवान किसी का वफ़ादार नहीं !"
इस चित्र में जो भी कुछ छिपा है उसे कई एंगल से देखा जा सकता है आप चित्र देख कर कह सकते हैं:-

  1. कुत्ते से बचने के लिये एक आदमी सूली पे लटकना पसंद करेगा..!
  2. दूसरी थ्योरी ये है कि कुत्ता नही चाहता कि यह आदमी सूली पे लटक के जान दे दे  
  3. तीसरा कुत्ता आदमी के गुनाहों की माफ़ी नहीं देना चाहता
  4. चौथी बात कुत्ता चाहता है कि इंसान को सलीब पर लटक के जान देने की ज़रूरत क्या है... जब ज़िंदगी खुद मौत का पिटारा है
                   तस्वीर को ध्यान से देखते ही आपको सबसे पहले हंसी आएगी फ़िर ज़रा सा गम्भीर होते ही आपका दिमाग  इन चार तथ्यों के इर्द गिर्द चक्कर लगाएगा मुझे मालूम है.
                     हो सकता है कि आप रिएक्ट न करें यदी आप रिएक्ट नहीं करते हैं तो यक़ीनन आप ऐसे दृश्यों के आदी हैं या आप को दिखाई नहीं देता. दौनों ही स्थितियों में आप अंधे हैं. यही दशा समूचे समाज की होती नज़र आ रही है. रोज़ सड़कों पर आपकी कार के शीशे पर ठक ठक करता बाल-भिक्षुक आपको नज़र नहीं आता. न ही आपकी नज़र पहुंच पाती है होटलों ढाबों में काम करते बाल-श्रमिकों पर. रामदेव,  चिंता यही है कि यथा संभव ज़ल्द ही देश का धन देश में वापस आ जाये ताक़ि भारतीय अर्थतंत्र में वो रौनक लौटे जो कभी हुआ करती थी. कितने बच्चे बिना पढ़े जवान हो जाते हैं, कितनी लड़कियां कच्ची उमर में ब्याह दी जातीं हैं. कितनी बहुएं दहेज़ की बलि चढ जातीं हैं... कितने कुंए, तालाब पटरियां नवजात बच्चों के खून से सिंचतीं हैं... कितनी बार कीमतें अचानक आग सी बढ़ जातीं हैं...? ये है मुद्दे क्रांति के जिनको हम अनदेखा करते जा रहे हैं . इन पर हो प्रभावी जनक्रांति पर होगी नहीं .
    भ्रष्टाचार कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं वो सच में एक सामाजिक विषय है... क्योंकि कुछ बरसों पूर्व तक बेटी ब्याहने निकला पिता यही देखता था कि प्रत्याशी की ऊपरी कमाई भी हो. यानी भ्रष्टाचार हमारी घुट्टी में पिलाया गया है. यह एक सामाजिक मुद्दा है इसे हम आप ही हल कर सकतें हैं.तो आओ न हाथ बढ़ाओ न नई क्रांति के लिये एक हो जाओ न ... देर किस बात की है उठो भाई ज़ल्द उठो !                     

टिप्पणियाँ

असली गड़बड़ तभी हो जाती है जब सरकारों को करने वाले काम वे न करके उसके लिये जनता को जिम्मेदार बता देते हैं और कामों को न करने का ठीकरा उनके सर फोड़ देते हैं.
भ्रष्‍टाचार राजनीतिज्ञों के विरोध में एक सामाजिक मुद्दा है।
जी सही कहा
मिसफ़िट लोग कई जगह फ़िट है
जी अजित जी सही कहा आपने
शत-प्रतिशत सहमत हूँ आपसे ......
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए पहले हमें स्वयं अपने अंतस में हांकना होगा कि कहीं किसी भी रूप में हम इससे जुड़े तो नहीं हैं ?
पहले स्वयं को सुधारें फिर भ्रष्टाचार का समूल नाश करने के अभियान में जी जान से जुटें|
आपकी पोस्ट से सहमत हूँ।
--
पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
मुझे लगता है की कुत्ते(राजनेताओं) ने मालिक(आम जनता) को दबोच कर कट खाने का प्राण किया है..
मेरा एंगेल यही है
Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…
सही कहा, पर इसपर अभी जनता को बहुत मंथन करना बाकी है।

---------
टेक्निकल एडवाइस चाहिए...
क्‍यों लग रही है यह रहस्‍यम आग...
स्वस्फूर्त भाव से पहले हम ईमानदारी की ओर बढ़ें और लोगों को प्रेरित करें.
बाबा राम देव या फिर अन्ना हजारे जैसे लोग अच्छे उत्प्रेरक कहे जा सकते हैं परन्तु
सबका हाल क्या हुआ?
चेतना के साथ- साथ खुल कर भी सामने आना होगा.
हमारे ही बीच हमारे रिश्तेदार या परिचित हमसे से ही भ्रष्टाचार की उम्मीद ही नहीं, लिप्त रखते हैं.
बात तो तब है जब हम भ्रष्टाचार की जगह थोड़ी परेशानी उठा कर नियम कायदे से चलें , निश्चित रूप से पहले पहल परेशानी तो होगी फिर एक नई परंपरा जरूर बनेगी ऐसी मुझे आशा है.
- विजय तिवारी 'किसलय'

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्यों लिखते हैं दीवारों पर - "आस्तिक मुनि की दुहाई है"

विमर्श

सावन के तीज त्यौहारों में छिपे सन्देश भाग 01