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मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!

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मैं तो मर कर ही जीतूंगा जीतो तुम तो जीते जीते ! ************** कितनी रातें और जगूंगा कितने दिन रातों से होंगे कितने शब्द चुभेंगें मुझको, मरहम बस बातों के होंगे बार बार चीरी है छाती, थकन हुई अब सीते सीते !! ************** अपना रथ सरपट दौड़ाने तुमने मेरा पथ छीना है.       अपना दामन ज़रा निहारो,कितना गंदला अरु झीना है   चिकने-चुपड़े षड़यंत्रों में- घिन आती अब जीते-जीते !! **************     अंतस में खोजो अरु रोको, अपनी अपनी दुश्चालों को चिंतन मंजूषाएं खोलो – फ़ैंको लगे हुए तालों को-       मेरा नीड़ गिराने वालो, कलश हो तुम चिंतन के रीते !! **************** सरितायें बांधी हैं किसने, किसने सागर को नापा है लक्ष्य भेदना आता मुझको,शायद तथ्य नहीं भांपा है     विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!      ****************

ज्योतिषाचार्य हैरान किरकिटिया दीवाली देख कर

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प्रसारण देखिये न सुनिये Bambuser पर  Add caption   आज़ यानी तीस मार्च दो हज़ार ग्यारह को   क्रिकेट खेल शुरु हुआ उसके पहले से खेल रहा था पूरा भारत   जी नहीं शायद पूरे एक हफ़्ते से खेल रहा था भारत. जी असली भारत जो मुनाफ़ के गांव का भारत है. असली भारत जो हैदराबाद,कानपुर,जबलपुर,इंदौर,जयपुर के गांवों का भारत है जी रहमान के साथ  जो "जय हो के नारे लगाता भारत है " शहरों की तंग गलियों-कुलियों  में बसता असली भारत आज़ झूम उठा आतिश बाज़ियां बम्ब-फ़टाखे, बधाईयां यानी पूरा देश जीत के जश्न में डूबता चला जा रहा था. आख़िरी के पांच ओवर्स में तो गोया "भारत" के हर चेहरे पर चमक दिख रही थी. मेरे ज्योतिषाचार्य मित्र माधव जी हैरान... हों भी क्यों न बड़ी दीवाली फ़िए छोटी दीवाली तक़ तो लिखी थी पंचांग में फ़िर मार्च महीने की   किरकिटिया दीवाली अब आगे इससे बड़ी दीवाली होगी ये सब तो लिख ही न पाये थे पंचांग वाले . हमारे पी०एम० साब बोले:- गिलानी साहब , मैडम चाहतीं हैं आप भी आयें मैच देखने..! गिलानी:-"जी इसी बहाने हमारे गिले शिक़वे दूर हो जाएंगे" जी मन मोहन बोले पर मन ही मन बोल

अपनाने में हर्ज क्या है ???

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एक पोस्ट केवल राम जी के ब्लॉग "चलते-चलते" से---     केवलराम की यह पोस्ट अर्चना जी ने उम्दा ब्लागपोस्ट की पाडकास्टिंग की गरज़ से पेश की है. केवलराम जी एक उम्दा और भीड़ में अलग दिखाई देने वाले व्यक्तित्व के धनी हैं. उनके दो ब्लाग हैं चलते -चलते ....!  और   "धर्म और दर्शन" .. वे हिंदी ब्लागिंग के लिये इतने समर्पित है कि उनने शोध के लिये हिंदी ब्लागिंग को चुना है.... हिंदी संस्कृत अंग्रेजी पर समान अधिकार रखने वाले केवल राम जी को दुलारिये एक मेल कीजिये उत्साह वर्धन कीजिये...ये रहा  उनका मेल-पता   kewalanjali84@gmail.com -गिरीश बिल्लोरे _______________________ जन्म दिन (आभार-पाबला जी का ) ________________ अपनी बात ... ,  जो लिखा नहीं गया ... ,  किस्सा कहानी  वालीं  वन्दना अवस्थी दुबे एकोऽहम्  वाल़े  विष्णु   बैरागी

मोहन "शशि" : जाबालिपुरम मेरी नज़र से"

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मोहन शशि जी जन्म तिथि ०१ अप्रेल १९३७ जबलपुर के युवा चेतना के संवर्धक , मोहन शशि के   75 वें जन्म - दिवस के पूर्व    के साथ एक शाम बिताई मैने डा०विजय तिवारी किसलय , भाई बसंत मिश्रा लाइव टाक-शो ustream पर एवम बैमबज़र पर Live Broadcast by Ustream.TV

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

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गतांक में आपने पढ़ा " आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है…. 1.   ................................................................ “हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही " अब आगे :- भानु चौधरी के ब्लाग से साभार                                       एक युद्ध जो अक्सर तुम को लड़ना होता है जानती हो वो क्या है...? खुद को साबित करने वाला युद्ध. कभी कभी तुम खुद को नहीं मालूम होता कि "फ़िट हो " शायद मालूम रहता है  गोया तुम कंफ़्यूज़ ज़ल्द हो जाती हो.मुझे एक घटना याद आ रही है. अभिलाषा और उसकी छोटी बहन बरेला के पास सलैया गांव में अपने परिवार के साथ रहती है. उसे आंगनवाड़ी-वर्कर इस कारण बना दिया कि वो ही उस गांव की पढ़ी-लिखी यानी हायर सेकण्ड्री पास लड़की है. उसकी एक छोटी बहन भी है. व्यक्तित्व के लिहाज़ से देखा तो सामान्य से हट के क

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

आज दिनांक 25 मार्च 2011 को जबलपुर के माता गुजरी महाविद्यालय             जबलपुर में मेरा वक्तव्य था. वक्तव्य का एक अंश सुधि पाठकों के विचार हेतु  सादर प्रस्तुत है                  आज मैं अपनी बेटियों के साथ कल के भारत में उनकी भूमिका पर विमर्श करने आया हूं तो तय है कि यहां न तो मुझसे अतिश्योक्ति युक्त कुछ कहा जाएगा और न ही मैं कोई कहानी युक्त प्रवचन दे सकूंगा. मै यह भी साफ़ कर देना चाहता हूं कि :-“आप मुझे उतना ही स्वीकारें जितना युक्ति संगत हो न कि आप पूरी तरह मेरे वक्तव्य सहमत हो जाएं ऐसी मेरी मंशा भी नहीं है बल्कि आपको “चिंतन का पथ” किधर से है समझाने का प्रयास करूंगा” बेटियो अक्सर आप को अपनी विचार धारा और सोच का विरोध होते देख दु:ख होता है , है न …? ऐसा सभी के साथ होता है पर बालिकाओं के साथ कुछ ज़्यादा ही होता है क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था एवम पारिवारिक व्यवस्था इतनी उलझी हुई होती है कि कि बहुधा हम सोच कर भी अपने सपने पूरे नहीं कर पाते . बमुश्किल दस प्रतिशत बेटियां ही अपने सपनों को आकार दे पातीं हैं…! पर क्या बेटियां सपने देखतीं हैं..? हां, मुझे विश्वास है की वे सपने देखतीं ह

रंग पंचमी तक होली होली ही होती है

आज़ क्रिकेट के रंग में  विश्व यहां तक की गूगल बज़ तक सराबोर था. आस्ट्रेलिया को हराना विश्व कप का रास्ता साफ़ करने के बराबर है. इसी हंगामा खेज मौके पर  ब्लागवुड के समाचार  सुनिये                              मिडियम वेब चार दो शुन्य मेगाहार्टज पर ये ब्लॉगवुड का रेडियो केन्द्र है , सभी श्रोताओं को रंग पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।अब आप ललित शर्मन: से ब्लॉग वुड के बचे-खुचे मुख्य समाचार सुनिए। टेक्स्ट में बांचिये इधर 

भगतसिंह का अन्तिम खत ......

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शहीद भगतसिंह का अन्तिम खत .. .दीपक "मशाल" की आवाज में और ये रहा तीनों वीरों का लिखा संयुक्त पत्र  महोदय, उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बाते .आपकी सेवा में रख रहे हैं - भारत की ब्रीटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड़यंत्र अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायधिकर्ण (ट्रिबुनल ) स्थापित किया था ,जिसने 7 अक्टुबर ,1930 को हमें फांसी का दंड सुनाया | ह मारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया हैं कि हमने सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया हैं | न्यायालय के इस निर्णय से दो बाते स्पष्ट हो ज़ाती हैं -पहली यह कि अंग्रेजी जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा हैं |दूसरी यह हैं कि हमने निशचित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है |अत: हम युद्ध बंदी हैं | यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं , तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया हैं |पहली बात के सम्बन्ध में हमें तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं | हम नही समझते कि प्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई हैं | हम

जबलपुरिया होली : ढोलक-मंजीरे की थाप तो गोया थम ही गईं

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टिमकी वाली फ़ाग न सुन पाने का रंज गोलू भैया यानी जितेंद्र चौबे को भी तो है                   होली की हुल्लड़ का पहला सिरा दूसरे यानी आखिरी सिरे से बिलकुल करीब हो गया है यानी बस दो-चार घण्टे की होली. वो मेरा ड्रायवर इसे अब हादसा मानने लगा है. कह रहा था :-"बताईये, त्यौहार ही मिट गये शहरों का ये हाल है तो गांव का न जाने क्या होगा. " उसका कथन सही है. पर उसके मन में तनाव इस बात को लेकर था कि शुक्रवार  को मैने उसे समय पर नहीं छोड़ा. होलिका दहन के दिन वो चाह रहा था कि उसे मैं इतना समय दूं कि वो दारू-शारू खरीद सके समय रहते. मुन्नी की बदनामी पे नाचना या शीला की ज़वानी पर मटकना होगा... उसे.               यूं तो मुझे भी याद है रंग पंचमी तक किसी पर विश्वास करना मुहाल था दसेक बरस पहले. अगले दिन के अखबार बताते थे कि फ़ंला मुहल्ले में तेज़ाब डाला ढिकां मुहल्ले में चाकू चला.अपराधों का बंद होना जहां शुभ शगुन है जबलपुरिया होली के लिये तो दूसरी तरफ़ ढोलक-मंजीरे की थाप तो गोया थम ही गईं जिसके लिये पहचाना जाता था मेरा शहर अब बरसों से फ़ाग नहीं सुनी....इन कानों ने. अब केवल शीला मुन्नी का शोर स