31.3.11

विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!


मैं तो मर कर ही जीतूंगा जीतो तुम तो जीते जीते !
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कितनी रातें और जगूंगा कितने दिन रातों से होंगे
कितने शब्द चुभेंगें मुझको, मरहम बस बातों के होंगे
बार बार चीरी है छाती, थकन हुई अब सीते सीते !!
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अपना रथ सरपट दौड़ाने तुमने मेरा पथ छीना है.
      अपना दामन ज़रा निहारो,कितना गंदला अरु झीना है
  चिकने-चुपड़े षड़यंत्रों में- घिन आती अब जीते-जीते !!
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    अंतस में खोजो अरु रोको, अपनी अपनी दुश्चालों को
चिंतन मंजूषाएं खोलो – फ़ैंको लगे हुए तालों को-
      मेरा नीड़ गिराने वालो, कलश हो तुम चिंतन के रीते !!
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सरितायें बांधी हैं किसने, किसने सागर को नापा है
लक्ष्य भेदना आता मुझको,शायद तथ्य नहीं भांपा है
    विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!
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ज्योतिषाचार्य हैरान किरकिटिया दीवाली देख कर

प्रसारण देखिये न सुनिये Bambuser पर 
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  आज़ यानी तीस मार्च दो हज़ार ग्यारह को   क्रिकेट खेल शुरु हुआ उसके पहले से खेल रहा था पूरा भारत   जी नहीं शायद पूरे एक हफ़्ते से खेल रहा था भारत. जी असली भारत जो मुनाफ़ के गांव का भारत है. असली भारत जो हैदराबाद,कानपुर,जबलपुर,इंदौर,जयपुर के गांवों का भारत है जी रहमान के साथ  जो "जय हो के नारे लगाता भारत है " शहरों की तंग गलियों-कुलियों  में बसता असली भारत आज़ झूम उठा आतिश बाज़ियां बम्ब-फ़टाखे, बधाईयां यानी पूरा देश जीत के जश्न में डूबता चला जा रहा था. आख़िरी के पांच ओवर्स में तो गोया "भारत" के हर चेहरे पर चमक दिख रही थी. मेरे ज्योतिषाचार्य मित्र माधव जी हैरान... हों भी क्यों न बड़ी दीवाली फ़िए छोटी दीवाली तक़ तो लिखी थी पंचांग में फ़िर मार्च महीने की  किरकिटिया दीवाली अब आगे इससे बड़ी दीवाली होगी ये सब तो लिख ही न पाये थे पंचांग वाले .
हमारे पी०एम० साब बोले:- गिलानी साहब , मैडम चाहतीं हैं आप भी आयें मैच देखने..!
गिलानी:-"जी इसी बहाने हमारे गिले शिक़वे दूर हो जाएंगे"
जी मन मोहन बोले पर मन ही मन बोल रहे थे :-"ज़नाब, आप अपनी हार पे तालिया बजाओगे ये तय है"
       और हुआ भी यही . जब गिलानी साब ताली बज़ा रए थे तब मन मोहन सिंग जी मुस्कुरा रहे थे.
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हमारे-प्रदेश में सरकार ने छुट्टी कर दी दफ़्तर के बाबू-अफ़सर सब कानूनी तौर पर घर जा सके मैच देखने तो हम भी आ गये थे ,सोचा नेट खोल के गूगल बज़ खोल ही रहा था कि मनीष सेठ का फ़ोन आया :"बज़ छोड़ के किधर हो बाबा चलो बज पे" भाई समीर की बज़ पे लुटे थे सब भक्ति भाव से
खूब भजन हुये
सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम
साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम
हरे कृष्ण हरे कृष्ण हरे कृष्ण हरे हरे ...हरे राम हरे राम हरे राम हरे हरे



Sameer Lal - साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम
और कुछ नमूने ये रहे 

Vivek Rastogi - वाह कार्टून सही कह रहा है, युवी ने बिल्कुल ध्यान दिया, अब कुछ अवार्ड तो दो17:25
Sameer Lal - कैश अवार्ड मिल चुका है...अब श्री फल और सर्टीफिकेट देना बाकी है17:26
Manish Seth - bhajan break mai bhi chalo rakhe17:26
Sameer Lal - सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता17:27
Manish Seth - shall bhi odani padegi17:27
Manish Seth - captain bacha17:28
Sameer Lal - शॉल तो पिछले समारोह वाली बची है...उसमें से दे देंगे. बस, गेंदा फूल की माला लेते आना ताजी17:28
Vivek Rastogi - ओह्ह कैश... फ़ोटू तो दिखाओ17:28
Chankya Sharma - @@@@arvind shesh - Buzz - Public
उन्माद का यह उत्सव दरअसल सरकार और सत्ताधारी मीडिया की गहरी साजिश है…

कहां गया विकीलीक्स से पैदा हुआ तूफान…

2-जी, इसरो, राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले… सब इस क्रिकेट नाम की साजिश में घुसा दिए गए। जितने लोग इस तरह के खेल में दीवाने हुए जा रहे हैं, वे सब इस साजिश में जाने-अनजाने भागीदार हैं, उसके जिम्मेदार हैं, इस अपराध में शामिल हैं।
खेल को प्यार का सौदा होना चाहिए, लेकिन इस जहर का क्या करें हम... 
और देखिये कुछ नमूने 

Sameer Lal - सो तो खैर कप भी नहीं है इनके बाबा का...खेलने के लिए दे रहे हैं19:59
Sameer Lal - दिल दिया है, जान भी देंगे..ए सनम तेरे लिए....19:59
Sameer Lal - साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम20:00
Manish Seth - ladke jaan laga rahe hai20:00
Girish Billore - हम भी उन पर जान छिड़कते हैंEdit20:02
Manish Seth - jale par namak na chhidko baba20:03 (edited 20:03)
Sameer Lal - एक एक प्लेयर को कितना जोड़ी शर्ट और पैजामा मिलता है खेलने के लिए?? किसी को पता है क्या?20:04
Manish Seth - ek jodi har match mai wahi pahan kar aa jate hai20:07


देखिये बज पे ये थे बी एस पाबला BS Pabl ये भी थे   Chankya SharmaDiwakar Mani दिवाकर मणिVivek Rastogi and अविनाश वाचस्पति and 2 others Manish Seth हम भी तो थे Girish Billore,
टीम भारत के लिए हार्दिक मंगलकामनाएँ!!!!
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आज मुझे भी कुछ कहना है..ब्लाग की स्वामिनी श्रीमति रचना जी का जन्म-दिन है...
अशेष-बधाईयां

  • रंग…….

    ……. मोहन ने अपने पडोसी हामिद पर केशरिया रंग डाला और हामिद ने मोहन पर हरा रंग डाला …
    ये देखकर मोहन की अम्मा ने कहा – अच्छा है इन्होने एक दूसरे के रंग को स्वीकार कर लिया…….
    हामिद की अम्मी बोली – हां! वरना ये दोनो लाल होते और हम काले! …..


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30.3.11

अपनाने में हर्ज क्या है ???











एक पोस्ट केवल राम जी के ब्लॉग "चलते-चलते" से---
 

 केवलराम की यह पोस्ट अर्चना जी ने उम्दा ब्लागपोस्ट की पाडकास्टिंग की गरज़ से पेश की है. केवलराम जी एक उम्दा और भीड़ में अलग दिखाई देने वाले व्यक्तित्व के धनी हैं. उनके दो ब्लाग हैं
चलते -चलते ....! और  "धर्म और दर्शन".. वे हिंदी ब्लागिंग के लिये इतने समर्पित है कि उनने शोध के लिये हिंदी ब्लागिंग को चुना है.... हिंदी संस्कृत अंग्रेजी पर समान अधिकार रखने वाले केवल राम जी को दुलारिये एक मेल कीजिये उत्साह वर्धन कीजिये...ये रहा  उनका मेल-पता  
kewalanjali84@gmail.com
-गिरीश बिल्लोरे
_______________________जन्म दिन (आभार-पाबला जी का )________________

26.3.11

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

गतांक में आपने पढ़ा "आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है….

1.  ................................................................“हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही"
अब आगे :-
भानु चौधरी के ब्लाग से साभार 
                                   एक युद्ध जो अक्सर तुम को लड़ना होता है जानती हो वो क्या है...? खुद को साबित करने वाला युद्ध. कभी कभी तुम खुद को नहीं मालूम होता कि "फ़िट हो " शायद मालूम रहता है  गोया तुम कंफ़्यूज़ ज़ल्द हो जाती हो.मुझे एक घटना याद आ रही है. अभिलाषा और उसकी छोटी बहन बरेला के पास सलैया गांव में अपने परिवार के साथ रहती है. उसे आंगनवाड़ी-वर्कर इस कारण बना दिया कि वो ही उस गांव की पढ़ी-लिखी यानी हायर सेकण्ड्री पास लड़की है. उसकी एक छोटी बहन भी है. व्यक्तित्व के लिहाज़ से देखा तो सामान्य से हट के किंतु सौम्य शांत, मुझे लगता था कि ये बेटियां अपेक्षाकृत सामान्य ग्रामीण बालिकाऒं से जुदा हैं. उसके पिता अक्सर मुझसे मिलने आते  थे . एक पार उनका लम्बे समय तक न मिलना मेरे लिये चिंता का कारण बना सो मैने फ़ोन लगा के पूछा:-"भाई, क्या हुआ पटेल जी कई दिनों से दिखे नहीं "
पटेल जी बोले:-"बस, थोड़ा बीमार था आता हूं किसी दिन "
      पटेल  जब आये तो उनने बताया:-"साहब, एक रात मुझे हैजा हो गया था.."
      मैने पूछा :-"फ़िर पटेल साहब, ?"
      फ़िर क्या दौनों मौड़ियों (बेटियों) ने मुझे बचा लिया... एक ने मोटर सायकल चलाई दूसरी ने मुझे बीच मैं बिठाया और खुद पीछे बैठी... जबलपुर लें आईं. मेडीकल में भर्ती किया. 
        रात बारह बजे के बात गांव की सुनसान सड़कों पर बाईक पर बीमार बाप को लेकर जबलपुर तक लेकर आईं बेटियां "डरीं तो होंगी पर क्या खूब एड है कि डर के आगे जीत है...जीत गईं बेटियां."
 बचा लिया बीमार बाप को . बस अपने आप की ताक़त को पहचानने की ज़रूरत है न 
बताओ बेटियो ऊंट देखा हा है न सबने 
हां की आवाज़ सुनते ही मैने अपनी बात आरंभ की... उसकी गरदन लम्बी क्यों है..?
                              अगर मैं ग़लत नहीं हूं तो.... ऊंची-ऊंची झाड़ियों से पत्ती खाने के लिये उनमे आये आए जनेटिक-बदलाव की वज़ह से...ऊंट की गरदन ऊंची हो गई... ( हो सकता है मै गलत हूं पर यह एक उदाहरण है) तो क्या तुम में कोई परिस्थिति जन्य बदलाव नहीं आ सकता. आ सकता है बदलाव आप ला सकतीं हैं विकास की यात्रा में सक्रिय-भागीदारी के लिये ज़रूरी है "दृढ़ता" जो हासिल होती है.... स्वस्थय-शरीर से जिसमें स्वस्थ्य एवम सुदृढ़ता मन रहता है जो "आत्म-शक्ति" को बल एवम पाज़ीटिव ऊर्जा देता है अब बताओ बेटियो क्या आप सुबह से नाश्ता करके आईं हो ?
हाथ उठाओ कितनों ने आज सुबह ...? मेरे सवाल पर पचास फ़ीसदी ने हाथ उठाया तो मैने कहा "यानी पचास फ़ीसदी ने आज़ नाश्ता नही किया ?
सशक्तिकरण का नारा साकार कैसे होगा...? कमज़ोर रेतीली ज़मीन पर मज़बूत मक़ान की कल्पना बेमानी है. 
                        बेटियो तुम्हारा हक़ है सुन्दर दिखना इस हक ने तुमको श्रृंगार करना सिखाया उसी का लाभ उठा सुन्दरता बढ़ाने वाले प्रसाधनों की बिक्री करने वाले तुम उसी पर आसक्त हो किंतु मेरी एक बात सुनो बेटियो ! जो तेजस्विता और सुंदरता प्राकृतिक साधनों से मिलती है वो इन सौंदर्य-प्रसाधनो से कदापि नहीं. उसके लिये तुम्हारा समय पर आहार लेना, शरीर में आयरन की मात्रा को बनाए रखना ज़रूरी है जो हासिल होता है प्राकृतिक साधनों से .गुड़ जिसे तुम नकार देती हो रोज़ खाके तो देखो . शम जिस विकास पथ पर जा रहे हैं उस पर केवल ऊर्ज़ा-वान ओजस्वी चेहरे वाले व्यक्तित्व  ही आगे जाएंगे और मैं थके उदास बीमार चिंतित चेहरे पसंद नहीं करता न ही डरे हुए चेहरों से मुझे लगाव है. मुझे मेरी चहकती बेटियां चाहिये रस्सी कूदती झूले झूलतीं बेटियों से मिला मेरी बेटियो 
हां एक बात और मुझे उन बेटियों से भी तो मिलना है जो सुंदर राजकुमार को जीवन साथी बनाने के सपने देख रहीं हैं हां वो तो तुम सब देख रही हो न ? तो एक सपना और दिखाना चाहता हूं मेरी बेटियां   हृष्टपुष्ट संतानों का सपना देखें पर क्या इस आठ-नौ ग्राम हीमोब्लोबिन वाली काया सफ़ल मां बन सकती है न क्या ज्ञानविहीन बेटी मेरे कुल का नाम रोशन करेगी ?    नहीं उसके लिए मेरी सलाह है जैसा मैं शिवानी श्रद्धा से कहता हूँ अक्सर :"सोचो फिर चलो आगे बड़ो आगे बढ़ने के बाद वापस मत लौटो लक्ष्य को पाने विकल्पों का उपयोग करो विकल्प दिमाग के कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क में होते हैं यदी तुमने सही तरीके से  नालेज गेन किया है तो मै तुम्हारे  प्रथम स्थान पर आने के लिये लालायित नहीं हूं बल्कि गहराई से किये  गये अध्ययन का लालची हूं  "

   

25.3.11

नारीवादी विमर्श :कुछ तथ्य

आज दिनांक 25 मार्च 2011 को जबलपुर के माता गुजरी महाविद्यालय      
      जबलपुर में मेरा वक्तव्य था. वक्तव्य का एक अंश सुधि पाठकों के विचार हेतु 
सादर प्रस्तुत है   
              आज मैं अपनी बेटियों के साथ कल के भारत में उनकी भूमिका पर विमर्श करने आया हूं तो तय है कि यहां न तो मुझसे अतिश्योक्ति युक्त कुछ कहा जाएगा और न ही मैं कोई कहानी युक्त प्रवचन दे सकूंगा. मै यह भी साफ़ कर देना चाहता हूं कि :-“आप मुझे उतना ही स्वीकारें जितना युक्ति संगत हो न कि आप पूरी तरह मेरे वक्तव्य सहमत हो जाएं ऐसी मेरी मंशा भी नहीं है बल्कि आपको “चिंतन का पथ” किधर से है समझाने का प्रयास करूंगा”
बेटियो

अक्सर आप को अपनी विचार धारा और सोच का विरोध होते देख दु:ख होता है , है न …? ऐसा सभी के साथ होता है पर बालिकाओं के साथ कुछ ज़्यादा ही होता है क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था एवम पारिवारिक व्यवस्था इतनी उलझी हुई होती है कि कि बहुधा हम सोच कर भी अपने सपने पूरे नहीं कर पाते . बमुश्किल दस प्रतिशत बेटियां ही अपने सपनों को आकार दे पातीं हैं…!
पर क्या बेटियां सपने देखतीं हैं..?
हां, मुझे विश्वास है की वे सपने देखतीं हैं… परंतु कैसे ….क्या गहरी नींद वाले …क्योंकि कहा गया है कि जागते हुए सपने देखना वर्जित है…है न यही कारण न यह बात बिलकुल गलत है जागते हुए ही सपने देखो सोते वक्त मानस को बेफ़िक्री के हवाले कर दो  !
चलो एक बात पूछता हूं :- “विकास क्या है ?”
हां सही कहा विकास “डेवलपमेंट” ही है. जो किसी देश की स्थिति को दर्शाता है कि उसकी सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक दशा कैसी है.अब मैं पूछना चाहता हूं कि  “विकास में आपका कितना योगदान होना चाहिये पुरुष के सापेक्ष्य  ?
उत्तर तय है- “बराबरी का..”
पर क्या मिलता है..?
क्यों ..?
क्योंकि आप कमज़ोर हैं और कमजोर हिस्सा सबसे पहले धराशायी होता है जलजलों में. भारत की नारीयां कमज़ोर नहीं नब्बे प्रतिशत काम करतीं और फ़िर भी स्वयं आपको मज़बूत बनना है कैसे बनना है इसके सूत्र देता हूं आगे   
   पहले भ्रूण में आपकी उपस्थिति को रोकने वाली घटनाऒं पर विचार करो बेटियो घर में भ्रूण के लिंग-परीक्षण का विरोध करना नारी सशक्तिकरण की दिशा का पहला क़दम होगा
                आप का जन्म एक महत्व पूर्ण घटना है इस दुनियां के लिये आपका जन्म लेते ही रोना बायोलाजिकल क्रिया है किंतु माता-पिता का सुबकना, दादी का झिड़कना, ताने मिलना कितना हताश कर देता है. और आयु के साथ  तुम लड़की हो तुमको ये करना है ये नहीं करना है जैसी लक्ष्मण रेखाएं आपके इर्द गिर्द खींच दी जातीं हैं  ” 
मुझे तुम सबसे उम्मीद है कि तुम “सीता-रेखा” खींच सकोगी  और बता दोगी   सभ्य समाज की असभ्य अराजक व्यवस्था को अपनी ताक़त का नमूना.
नारीमुक्ति का शब्द  पाश्चात्य देशों का है  . तभी तो  सीमा हीन, उच्छंखताऒं भरा है यह आंदोलन. पर भारत में इसे जस का तस स्वीकारा नहीं गया. हमारा संकल्प है “नारी-सशक्तिकरण”  भारत में नारी के लिये चिंतन के लिये हमको पश्चिम की ओर मुंह ताक़ने की ज़रूरत नहीं. हमारे देश के संदर्भ में “नारी-सशक्तिकरण” के लिये रानी झांसी एक बेहतरीन उदाहरण है. सुभद्रा जी जो संस्कारधानी से ही थीं ने अपनी कविता में “मनु की सखियों का ज़िक्र किया किया-“बरछी,बाण,कृपाण कटारी उसकी यही सहेली थी. है न ?
आप को जीवन का युद्ध लड़ना है किसे अपनी सखी बनाएंगी ? मनु की तरह आपकी बरछी,बाण,कृपाण कटारी जैसी  सहेलियां कौन हैं ? कभी सोचा इस बारे में ! नहीं तो बता दूं कि वो है….
1.  आपका ग्यान
2.  आपकी सेहत
3.  आपका सकारात्मक चिंतन
4.  आपकी दृढ़ता
5.  आपके संकल्प
6.  आपकी जुझारू वृत्ति
      यही आपकी आंतरिक सखियां हैं जो आपके काम आयेंगी. क्या आप सुदृढ़ता चाहतीं हैं..? यानि आप में “स्वयम-सशक्तिकरण” की ज़िद है तो एक सूत्र देता हूं :-“हर दिन उन आईकान्स को देखो जो कभी कल्पना चावला है, तो कभी बछेंद्री पाल है, सायना-नेहवाल है जो आपके समकालीन आयकान हैं ” इनकी कम से कम छै: सहेलियां तो होंगी ही…
 (क्रमश:जारी)

रंग पंचमी तक होली होली ही होती है

आज़ क्रिकेट के रंग में  विश्व यहां तक की गूगल बज़ तक सराबोर था.
आस्ट्रेलिया को हराना विश्व कप का रास्ता साफ़ करने के बराबर है.
इसी हंगामा खेज मौके पर ब्लागवुड के समाचार सुनिये

                             मिडियम वेब चार दो शुन्य मेगाहार्टज पर ये ब्लॉगवुड का रेडियो केन्द्र है , सभी श्रोताओं को रंग पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।अब आप ललित शर्मन: से ब्लॉग वुड के बचे-खुचे मुख्य समाचार सुनिए।
टेक्स्ट में बांचिये इधर 




23.3.11

भगतसिंह का अन्तिम खत ......

शहीद भगतसिंह का अन्तिम खत ...दीपक "मशाल" की आवाज में





और ये रहा तीनों वीरों का लिखा संयुक्त पत्र 
महोदय,
उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बाते .आपकी सेवा में रख रहे हैं -
भारत की ब्रीटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड़यंत्र अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायधिकर्ण (ट्रिबुनल ) स्थापित किया था ,जिसने 7 अक्टुबर ,1930 को हमें फांसी का दंड सुनाया | ह
मारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया हैं कि हमने सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया हैं |
न्यायालय के इस निर्णय से दो बाते स्पष्ट हो ज़ाती हैं -पहली यह कि अंग्रेजी जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा हैं |दूसरी यह हैं कि हमने निशचित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है |अत: हम युद्ध बंदी हैं | यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं , तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया हैं |पहली बात के सम्बन्ध में हमें तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं |
हम नही समझते कि प्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई हैं | हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या हैं ? परन्तु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक सन्दर्भ को समझाना चाहते हैं | ………………….
पूरा पत्र "दखल की दुनियां" पर देखिये  

22.3.11

जबलपुरिया होली : ढोलक-मंजीरे की थाप तो गोया थम ही गईं

टिमकी वाली फ़ाग न सुन पाने का रंज गोलू भैया यानी
जितेंद्र चौबे को भी तो है  
                होली की हुल्लड़ का पहला सिरा दूसरे यानी आखिरी सिरे से बिलकुल करीब हो गया है यानी बस दो-चार घण्टे की होली. वो मेरा ड्रायवर इसे अब हादसा मानने लगा है. कह रहा था :-"बताईये, त्यौहार ही मिट गये शहरों का ये हाल है तो गांव का न जाने क्या होगा. " उसका कथन सही है. पर उसके मन में तनाव इस बात को लेकर था कि शुक्रवार  को मैने उसे समय पर नहीं छोड़ा. होलिका दहन के दिन वो चाह रहा था कि उसे मैं इतना समय दूं कि वो दारू-शारू खरीद सके समय रहते. मुन्नी की बदनामी पे नाचना या शीला की ज़वानी पर मटकना होगा... उसे. 
             यूं तो मुझे भी याद है रंग पंचमी तक किसी पर विश्वास करना मुहाल था दसेक बरस पहले. अगले दिन के अखबार बताते थे कि फ़ंला मुहल्ले में तेज़ाब डाला ढिकां मुहल्ले में चाकू चला.अपराधों का बंद होना जहां शुभ शगुन है जबलपुरिया होली के लिये तो दूसरी तरफ़ ढोलक-मंजीरे की थाप तो गोया थम ही गईं जिसके लिये पहचाना जाता था मेरा शहर अब बरसों से फ़ाग नहीं सुनी....इन कानों ने. अब केवल शीला मुन्नी का शोर सुनाई दिया. कुछेक पुराने मुहल्लों में फ़ागों का जंगी मुक़ाबला हुआ भी हो तो उनकी कवरेज किसी अखबार के लिये कोई खबर कैसे हो सकती है अब जब की बड़ी-बड़ी बेशकीमतीं खबरें होतीं हैं उनके लिये.  
             खैर जब भी मौका मिलेगा फ़ाग सुन लेंगे किसी गांव में जाकर पर ये सच है कि उधर भी पहले से बताना होगा. तब कहीं जुड़ाव होगा फगुआरों का अगरचे उनके बीच  हालिया चुनावों की कोई रंजिश शेष न रही हो तो. वरना गांवों में न तो अलगू चौधरी रह गये न जुम्मन शेख, जिनके मुंह से परमेश्वर बोलता था. अब तो बस एलाटमेंट और निर्माण कार्य बोलते हैं गांव ... मनरेगा भी चीख पुकार करने लगा है. मुझे क्या लेना देना इन बातों से खोज ही लूंगा टिमकी बजाने वाले, फ़ाग गाने वाले झल्ले बर्मन, खेलावन दाहिया के गांव को जो  पूरी तल्लीनता से फ़ाग गाते हैं.
          हां पंद्रह  बरस पुरानी बात याद आ रही  आर आई   रामलाल चढ़ार से सुनी थी फ़ागें .. है किसान मेले में  ...तब से आज़ तक हज़ूर एक भी आवाज़ नहीं पड़ी इन कानों में फ़ाग की. इसुरी तुम्हारी सौं झूठ नहीं बोल रा हूं....अब तो भूल ही गया फ़ाग की धुनें .  
      चित्र-परिचय :- ऊदय शर्मा टिमकी वादक S/O मूंछ वाले ललित शर्मा, उदास चेहरा:-गोलू भैया          

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...