अब विदा दीजिये

बहुत अच्छा लगता है मिलना मिलते रहना 
किन्तु
यह भी सत्य है कि 
अपनी ज़मीं तलाशते 
लोग
    जिनको भ्रम है कि वे नियंता हैं 
चीर देतें हैं 
लोगो के सीने 
 कलेजों निकालने
 फ़िर उसे खुद गिद्ध की तरह चीख-चीख के खाते हैं 
खिलाते हैं अपनों को 
शुक्रिया साथियो
तब अवकाश ज़रूरी 
जब तक कि गिद्दों का जमवाड़ा है ?

अब विदा दीजिये कुछ अच्छा लगा तो आउंगा वरना अब अवकाश ले रहा हूं अब विदा ब्लागिंग 
सबसे पहले श्रद्दा जैन पूर्णिमा बर्मन एवम समीर लाल जी से क्षमा याचना मैं आपके सिखाई ब्लागिंग में फ़ैली अराज़कता से क्षति ग्रस्त हुआ हूं किसी पर भी कभी भी आक्रमण करने वाले आताताईयों से बचने यही बेहतर रास्ता है 

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
ओ भाई..कहाँ चले..यूँ अकेला छोड़ कर जाना अलाऊड नहीं....रुकना तो होगा. आदेश मानो!!
Udan Tashtari ने कहा…
उपर हैडर में फोटो तो देखो..साथ हैं न!!
समीर भाई मन बेहत दु:खी है बैसाखियोंके साथ अंगद बनने की कोशिश में था मुझे लगा यहां कुछ समझ दार लोग होंगे पर यहां भी .......?
समीर जी
बैसाखियों के साथ अंगद बनने की बेवकूफ़ी कर रहा था
मन पर आघात पहुंचा अब जाना ही होगा
अब लाग आउट भी हो रहा हूं विदा दीजिये
honesty project democracy ने कहा…
गिरीश जी आपके दुःख में मैं आपके साथ हूँ ,लेकिन जब हमारा दुःख जानेंगे तो आप अपना दुःख भूल जायेंगे / हम रोज जान हथेली पर रखकर समाज के अच्छे,सच्चे और इमानदार लोगों के साथ चल रहें हैं ,कभी भी आपको यह सुनने को मिल सकता है की,जय कुमार झा ही हत्या हो गयी है ? जब इन परिस्थितियों में हम समाज को नहीं छोड़ रहें हैं तो ,आप हमलोगों को और इस ब्लॉग जगत को छोड़ने का मन क्यों बना रहें हैं / आपसे आग्रह है की ऐसा ना सोचें और ना हिं करें ,बल्कि पहले से ज्यादा सक्रियता से ब्लॉग जगत में अपना योगदान दें / बहुत जल्द मैं आपसे मिलने आपके शहर आ रहा हूँ /
Yashwant Mehta "Yash" ने कहा…
इन केस ऑफ़ ब्लॉगिंग ,बी स्ट्रोंग सरजी

भावुकता का त्याग कीजिये और ब्लॉगिंग करते रहिये



आपकी बैशाखी पर अंगद बन ने वाली बात से मैं बहुत नाखुश हूँ

ठेस लगती हैं ऐसी बातों से......

आलतू फालतू की बातों में अपना दिमाग मत लगाईये

विवाद बहस तो चलते ही रहेंगे......


आपसे उम्र में बहुत छोटा हूँ, अगर कुछ गलत कहा हो तो कमेन्ट मिटा दीजियेगा

ब्लॉगजगत में कुछ ही तो लोग हैं जो सबसे प्रेम करते हैं और सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं

आप गये तो गिनती में एक कम हो जायेगा........इसलिए गिनती कम मत होने दीजिये.......
Neeraj Rohilla ने कहा…
ये वन वे स्ट्रीट है, जो एक बार आया वापिस नहीं गया...
और जो आखिरी पोस्ट का दावा करके गया, वो तो अगले ही हफ़्ते तक की बोर्ड से दूर न रह सके, ;)

हम भी देखेंगे कि आप एक हफ़्ता बिना लिखे कैसे टिकेंगे, ;)
Mithilesh dubey ने कहा…
ऐसा हो नहीं सकता , आप हमें छोड़‌ कर जा ही नहीं सकते ये छोटे भाई का आग्रह , ध्यान रखियेगा कि आप अकेले नहीं जायेंगे ।
girish ji aisa kaise aap kar sakte hain??
asha hi nahi vishwaas hai aap apna nirnay badlenge...
गिरीश भाई,
मैं इसे ठीक नहीं मान सकता।
अपनी खतरनाक भाषा में कहूं तो आंडू-पांडू लोगों की पोस्टों से घबराकर यदि आप जैसा रचनाशील आदमी इस तरह का फैसला लेगा तो यह तो उन साजिशकर्ताओं की जीत ही होगी न। यही तो वे चाहते कि जितने रचनात्मक लोग हैं वे कटते चले जाएं। पलायन इस समस्या का समाधान नहीं है। मुक्तिबोध जी ने भी कहा है न-
यदि पूरी दुनिया बेहतर चाहिए तो मेहतर चाहिए।
हमें मेहतर बनकर सफाई करनी होगी। अब मेहतर बनने का मतलब यह नहीं कि मैं कलम को झाडूं बनाकर ज्ञानदत्त या कनपुरिया को साफ करके कचरापेटी में डाल दूं। मेहतर भाला लेकर भी बना जा सकता है। आप हरिशंकर परसाई के क्षेत्र से हैं। भला आप भाला पकड़ना नहीं जानते होंगे ऐसा तो मुझे नहीं लगता।
आप अपना फैसला बदले यही मेरा आग्रह है। मैं आपके साथ खड़ा हूं और हमेशा रहूंगा।
गिरीश दादा जी,
जब मन व्यथित होता है तो यही ख्याल आता है कि अब रुखसती ले ली जाए, मैने भी यही सोचा था। विश्राम के समय चिंतन करने का अवसर मिला। जब दुबारा आया तो ब्लागिंग क्या है? यह समझ में आ गया।
सुरेश चिपलुनकर जी की एक टिप्पणी
ने रास्ता दिखाय,और सभी मित्रों ने साहस बढाया। कुछ लोगों ने कुत्सित भावना से मेरा मनोबल तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उपरवाले की बेआवाज लाठी ने उन्हे भी सुधारा।

आप विश्राम लिजिए और चिंतन करके मजबूत होकर पुन: रणक्षेत्र में उतरिए एक योद्धा की तरह और विजय प्राप्त कीजिए
हम आपके साथ हैं-आपके बिना ब्लागिंग में मन हमारा भी नही लगेगा।
नरेश सोनी ने कहा…
पलायन न करें गिरीश जी, हम भी आपके साथ हैं।
ये देखिए आपके लिए सुरेश भाई की टिप्पणी ढुंढ कर लाया हुं।
इनकी टिप्पणी ब्लागिंग का मंत्र है जो मुझे एक साल में प्राप्त हुआ।


Suresh Chiplunkar // April 12, 2010 11:35 AM

अवधिया जी,
व्यस्तता की वजह से जाने वाले ब्लॉगरों की बात अलग है, लेकिन यदि दिल टूटने की वजह से, अथवा "आहत"(?) होने की वजह से ब्लॉगिंग जगत से जाते हैं तो निश्चित ही वे ब्लॉगिंग का सही मकसद नहीं समझ पाये हैं और "कोमल चमड़ी" के हैं। ब्लॉगिंग में टिके रहने की सबसे पहली दो शर्ते हैं -

1) जो मेरे मन में आयेगा मैं लिखूंगा, जिसे जो उखाड़ना हो उखाड़ ले…
2) किसी के कुछ कहने, टिप्पणी करने, गाली बकने की वजह से मैं इधर से जाने वाला नहीं, और यदि गया भी तो तमाम गालियाँ, लानतें, उलाहने… मय ब्याज के वापस करके ही जाऊंगा…

जो व्यक्ति ब्लॉग जगत में इन दो नियमों का पालन करने की क्षमता रखेगा, वही टिकेगा। वरना भारतीय मेंढक तो टाँग खींचने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे… (आशा है कि ललित भाई अपनी गलतफ़हमियाँ दूर करेंगे, तथा मेरी यह सलाह नवोदित ब्लॉगर गाँठ बाँध लेंगे)… :)
=======

नोट - किसी को यह सलाह पसन्द नहीं आई हो तो उसे जो उखाड़ना हो उखाड़ ले… :) :) :) (आगे 20 स्माईली और जोड़ें)…
Unknown ने कहा…
बिल्कुल गलत फैसला है आपका। पलायन को कभी भी सही नहीं कहा जा सकता।
M VERMA ने कहा…
तब अवकाश ज़रूरी
जब तक कि गिद्दों का जमवाड़ा है ?
आपके होते हुए जब गिद्धों का जमावड़ा है तो आपके अवकाश पर जाते ही गिद्धों और सियारों का ताण्डव जो होगा उसके बारे में सोचा है कभी. गिद्धों के बीच रहेंगे तो गिद्ध भाग जायेंगे वर्ना ...
अदना सा निवेदक
अजय कुमार झा ने कहा…
गिरीश भाई ,
देर सवेर हर संवेदनशील ब्लोग्गर के साथ ये सब होगा ही , आखिर हिंदी ब्लोग्गिंग है न मगर सुरेश भाई की टिप्पणी को भी अब एक मूल मंत्र मानकर सबको पल्ले से बांध लेना चाहिए ॥और वही तेवर रखना चाहिए ..आप कहीं नहीं जा रहे हैं , आप आएंगे फ़िर जरूर आएंगे
दीपक 'मशाल' ने कहा…
ये दादागीरी नहीं चलेगी भाईसाब.. अपने मन से नहीं जा सकते. वापस आ जाइए महफ़िल में..
समयचक्र ने कहा…
गिरीश जी पढ़कर बहुत ही दुखित हो गया हूँ .... किसी ने कहा है "जो युद्ध के मैदान में युद्ध सी तत्परता नहीं दिखाता है वह युद्ध हार जाता है """ ब्लागिंग भी लेखन/विचार अभिव्यक्ति का मैदान है . ...अल्लू लाल्लोऊ से डरकर ब्लागिंग छोड़ना उचित नहीं है ... लेखक / कलमकार यदि आलोचना प्रत्यालोचना से घबरा गया तो वह लेखन कार्य नहीं कर सकता हैं ....आपके द्वारा जो निर्णय लिया जा रहा है मेरी द्रष्टि से सम सामायिक नहीं है आप कृपया अपना फैसला वापिस लें यही हम सभी जबलपुरिया ब्लागरो के पक्ष में होगा .....
Unknown ने कहा…
कोई बैसाखियों के दम पे, अंगद हो नहीं सकता---(चर्चा मंच 152)इस शीर्षक से गिरीश बिल्लौरे जी आहत हुए हैं,

जिसमे उनको सोचा समझा नि्शाना बना कर उपरोक्त हेडिंग लगाई गयी।
जबकि जबरन ठुंसे गए शीर्षक से इस पोस्ट का कोई संबंध नही हैं।
अन्तर सोहिल ने कहा…
एकदम अनुचित निर्णय है जी
एक दो दिन नेट से दूर रहकर विचार करें।

प्रणाम
shikha varshney ने कहा…
Not fair ..पलायन किसी भी हालत में सही नहीं होता
Neeraj Rohilla said...
जो आखिरी पोस्ट का दावा करके गया,वो तो अगले ही हफ़्ते तक की-बोर्ड से दूर न रह सके) हम भी देखेंगे कि आप एक हफ़्ता बिना लिखे कैसे टिकेंगे)

26th teep meri ye hai....
ham bhee dekhte hain.....
कडुवासच ने कहा…
....तनिक धैर्य रखें ...कुछ प्रयास करते हैं माहौल शांत करने का !!!
कडुवासच ने कहा…
...किसी बेनामी के भौंकने वाली टिप्पणी को डिलीट करने का कष्ट करें !!!
Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…
मुकुल जी, आप चाहें तो दिशा बदल सकते हैं... परन्तु ट्रैक पर से उतरना उचित नहीं होगा... मैं टिप्पणी कम करता हूँ... लोगों को समझने की कोशिश ज्यादा करता हूँ. आप यहाँ प्रियजनों में से हैं.
-सुलभ
जिस किसी ने भी ऊपर गिरीश जी के लिए गालियां लिखी है क्या उसे भाषा वैज्ञानिक अब सही ठहरा सकते हैं। एक सीधे-सरल आदमी के ब्लाग पर आकर नंगाई कर रहे हो। यदि तुम्हारी मां ने वाकई तुमको दूध पिलाया है तो बुर्का पहनकर क्यों आते हो। बहुत ज्यादा नानवेज खाने का शौक है भइए तो हमको बताओ। हम चहुंओर से नानवेज देने का प्रबंध रखते हैं। यदि मर्द के बच्चे हो तो... तुम्हारी... की अपना सही नाम पता लेकर मेरे ब्लाग पर आ जाओ। अन्यथा अपने ब्लाग का पता दो वही घुसकर तुम्हारी वाट लगाता हूं।
गिरीश भाई,
गाली-गलौच.. एक साजिश का हिस्सा है। यही तो सामने वाला चाहता है कि एक रचनात्मक आदमी कट जाए.. मेरी बात पर गौर करना।
कविता रावत ने कहा…
Main to yahi kahungi ki Muskil samay mein aur adhik adig bankar saamna karne ko taiyar hona chahiya.... Muskil kshano mein hi to sachi pariksha hoti hai....
...Koi Duniya se to bhag sakta hai lekin apne aap se kahan tak bhagega..... esliye dradta se maidan mein date rahiye ... vqkt badalete der kahan lagti hai.....
Shubhkamnaon sahit...
राज भाटिय़ा ने कहा…
बिल्लौरे जी इतनी लू चल रही है ओर आप टंकी पर चढने की सोच रहे है.... अरे आज कल तो बिजली भी नही आती.... लोट आओ भाई कही लू बू लग गै तो हमे भागदोड करनी पडेगी, ओर फ़िर हमे लू लग गई तो ... इस लिये भाई लोट आओ सर्दियो मै चढेगे इस टंकी पर दोनो मिल कर
Sanjeet Tripathi ने कहा…
भाई साहब आप जाएंगे कहां, हम खींच कर वापस ले आएंगे आपको, फिर क्या करेंगे आप, क्या न कह सकेंगे तब भी?
शरद कोकास ने कहा…
काय बड्डे .. का हो गओ .. ?
हमे जबलपुर आने का समय नहीं मिल पा रहा है इसका यह मतलब नहीं है कि आप ऐसी वैसी घोषणा कर दे ।
नही यह सब नही चलेगा ।
अपने शब्द वापस लीजिये ।
शरद कोकास ने कहा…
और भैया माना कि समय खराब है लेकिन अपनी घड़ी तो ठीक कर लो इसमे सेटिंग मे भारतीय मानक समय कर लो ..
आपने कहा है :
कहो जो कहना है आज खुलके
तुम्हारी कीमत करूंगा दुगनी

और मैं कहता हूँ..
पुनर्विचार कीजिये,
घायल हो कर जाना ठीक नहीं !
उन्मुक्त ने कहा…
आपका यह कदम तो ठीक नहीं लगता। इस विवाद से दूर रहें और चिट्ठाकारी में बने रहें।
Kumar Jaljala ने कहा…
एक तरफ तो आप लिखते हैं कि जो कहना है खुलकर कहो और दूसरी तरफ मेरी टिप्पणी हटा देते हो
मैं कह रहा था कि ब्लाग जगत को 10 साल पीछे धकेलने में केवल दो लोगों का ही हाथ है। पहला है अनुप शुक्ला और दूसरे का नाम है ज्ञानदद.जब तक ये गंदगी साफ नहीं होगी तब तक कुछ नहीं हो सकता. इस गंदगी को साफ करने का एक ही तरीका है, इनका बायकाट. वैसे अनुप शुक्ला से जब मैंने कल फोन पर बात की थी तो उन्होंने बताया था कि वे ब्लागिंग की दुनिया को छोड़कर जा रहे हैं.
हर्षिता ने कहा…
अब आ भी जाइए जनाब मंत्रियों जैसी धमकी तो मते दीजिए।
बेनामी ने कहा…
आपके स्थान पर मैं होता तो शायद यही करता
किन्तु

केवल एक आग्रह -वापस आ जाएँ

बी एस पाबला
बवाल ने कहा…
दुखद है गिरीशजी यूँ टंकी पे जाना। मगर आपने सच कहा के गिद्धों के जमावड़े में किसका मन लगेगा। हम इंतज़ार में हैं लौटिएगा ज़रूर, तब तक हम कोशिश करते हैं गिद्धों को उड़ाने की।
आपने सब ने ठीक कहा, किन्तु ये आदमखोर अपनी कुचाल छोड़ने वाले कहाँ ? जो नेट का दुरुपयोग कर गन्दगी फैला रहे हैं इनका आतंक कव तक चलेगा ?
आतंक का सफ़ाया जब पंजाब से हो गया तो यहां से भी हो जाएगा।
बस आप आ जाइए और एक धारदार पोस्ट लगाईए सफ़ाई अभियान शुरु किजिए,

वैसे भी बकौल राजकुमार सोनी गंदगी की सफ़ाई मेहतर बनके करना पड़ेगा, झाड़ु के साथ नही भाले के साथ।

जय हो
बेनामी ने कहा…
ललित जी से सहमत

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