ज्ञान दत्त जी का पोस्ट ... विषय चुकने का आभास दे गई

टिप्पणियाँ

कौन बेहतर है, और कौन बेहतर नहीं। इसका प्रमाण पत्र, एक बेहतर व्यक्ति दे सकता है, दूसरों का मूल्यांकन करना खुद को स्वयं जज घोषित करने की बात है।
Udan Tashtari ने कहा…
आपने जैसा महसूस किया, वैसा कहा और मुझे संबल प्रदान किया. आपके स्नेह से अभिभूत हूँ. स्नेह बनाये रखिये. बहुत आभार.

एक अपील:

विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’
कौन बेहतर है, और कौन बेहतर नहीं।
ढपो्रशंख ने कहा…
इस पोस्ट के लिये आपका आभार. इस जबलपुरिया हीरे को ज्ञानदत्त ने कोयला साबित करने की घिनौनी कोशीश की है. आप इस घिनौनी और ओछी हरकत का पुरजोर विरोध करें. हमारी पोस्ट "ज्ञानदत्त पांडे की घिनौनी और ओछी हरकत भाग - 2" पर आपके सहयोग की अपेक्षा है. कृपया आशीर्वाद प्रदान कर मातृभाषा हिंदी के दुश्मनों को बेनकाब करने में सहयोग करें.

-ढपोरशंख
आज साफ हो गया कि ज्ञानदत्त पांडे के कद और सोच में कितना बौनापन है.
मानसिक हलचल या फिर मानसिक विचलन?
समझ नहीं आया कि इस पोस्ट से वे क्या साबित करना चाहते थे?
क्या ऎसा सच मे कुछ है जिस पर इतना बखेडा .
बिल्कुल सही लिखा आपने। अरे ज्ञानदत्त जी है कहां कोई खोजो भाई उनको। मैंने सुना है कि वे कल शाम से गंगा किनारे किसी साधु से मिलने गए थे तब से लौटे नहीं है। वैसे उनकी शिकायत रेलवे के तमाम बड़े अफसरों को भी भेजी जा रही है। जो शख्स वैमनस्यता फैलाने का काम करता हो वह भला अपने आसपास का माहौल तो ठीक रहने ही नहीं देता होगा।
कौन कहे की राजा आपन ....(दूकान) ढांप लो... अब खुल गयी है तो सारी दुनिया देख रही है ... जब तक हलचल मानसिक होती है लोग भांप नहीं पाते ... लेकिन जब हलचल जुलाब का रूप ले लेती है तो कंट्रोलय नहीं होता और अंततः दुनिया नाक बंद कर लेती है ... ताज़ी हवा में सांस लेना ही मेरी मंशा है ... सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु निरामया ... गंगा मैया सद्बुद्धि दें
जी कहां राजा भोज कहां ........?
काहे की बराबरी
अब भैया जी अर्थ निकालिये
धीरू भैया
इस बात की समीक्षा पूरा ब्लाग जगत कर रहा है
दीपक भाई किसका पाण्डे जी का हा हा हा

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