स्वर्गीय केशव पाठक
मुक्तिबोध की ब्रह्मराक्षस का शिष्य, कथा को आज के सन्दर्भों में समझाने की कोशिश करना ज़रूरी सा होगया है । मुक्तिबोध ने अपनी कहानी में साफ़ तौर पर लिखा था की यदि कोई ज्ञान को पाने के बाद उस ज्ञान का संचयन,विस्तारण,और सद-शिष्य को नहीं सौंपता उसे मुक्ति का अधिकार नहीं मिलता । मुक्ति का अधिकारक्या है ज्ञान से इसका क्या सम्बन्ध है,मुक्ति का भय क्या ज्ञान के विकास और प्रवाह के लिए ज़रूरीहै । जी , सत्य है यदि ज्ञान को प्रवाहित न किया जाए , तो कालचिंतन के लिए और कोई आधार ही न होगा कोई काल विमर्श भी क्यों करेगा। रहा सवाल मुक्ति का तो इसे "जन्म-मृत्यु" के बीच के समय की अवधि से हट के देखें तो प्रेत वो होता है जिसने अपने जीवन के पीछे कई सवाल छोड़ दिये और वे सवाल उस व्यक्ति के नाम का पीछा कर रहेंहो । मुक्तिबोध ने यहाँ संकेत दिया कि भूत-प्रेत को मानें न मानें इस बात को ज़रूर मानें कि "आपके बाद भी आपके पीछे " ऐसे सवाल न दौडें जो आपको निर्मुक्त न होने दें !जबलपुर की माटी में केशव पाठक,और भवानी प्रसाद मिश्र में मिश्र जी को अंतर्जाल पर डालने वालों की कमीं नहीं है किंतु केशवपाठक को उल्लेखित किया गया हो मुझे सर्च में वे नहीं मिले । अंतरजाल पे ब्लॉगर्स चाहें तो थोडा वक्त निकाल कर अपने क्षेत्र के इन नामों को उनके कार्य के साथ डाल सकतें है । मैं ने तो कमोबेश ये कराने की कोशिश की है । छायावादी कविता के ध्वजवाहकों में अप्रेल २००६ को जबलपुर के ज्योतिषाचार्य लक्ष्मीप्रसाद पाठक के घर जन्में केशव पाठक ने एम ए [हिन्दी] तक की शिक्षा ग्रहण की किंतु अद्यावासायी वृत्ति ने उर्दू,फारसी,अंग्रेजी,के ज्ञाता हुए केशव पाठक सुभद्रा जी के मानस-भाई थे । केशव पाठक का उमर खैयाम की रुबाइयों के अनुवाद..">उमर खैयाम की रुबाइयों के अनुवाद..[०१] करना उनकी एक मात्र उपलब्धि नहीं थी कि उनको सिर्फ़ इस कारण याद किया जाए । उनको याद करने का एक कारण ये भी है-"केशव विश्व साहित्य और खासकर कविता के विशेष पाठक थे " विश्व के समकालीन कवियों की रचनाओं को पड़ना याद रखना,और फ़िर अपनी रचनाओं को उस सन्दर्भ में गोष्टीयों में पड़ना वो भी उस संदर्भों के साथ जो उनकी कविता की भाव भूमि के इर्द गिर्द की होतीं थीं ।समूचा जबलपुर साहित्य जगत केशव पाठक जी को याद तो करता है किंतु केशव की रचना धर्मिता पर कोई चर्चा गोष्ठी ..........नहीं होती गोया "ब्रह्मराक्षस के शिष्य " कथा का सामूहिक पठन करना ज़रूरी है। यूँ तो संस्कारधानी में साहित्यिक घटनाओं का घटना ख़त्म सा हो गया है । यदि होता भी है तो उसे मैं क्या नाम दूँ सोच नहीं पा रहा हूँ । इस बात को विराम देना ज़रूरी है क्योंकि आप चाह रहे होंगे [शायद..?] केशव जी की कविताई से परिचित होना सो कल रविवार के हिसाबं से इस पोस्ट को उनकी कविता और रुबाइयों के अनुवाद से सजा देता हूँ
सहज स्वर-संगम,ह्रदय के बोल मानो घुल रहे हैं
शब्द, जिनके अर्थ पहली बार जैसे खुल रहे हैं .
दूर रहकर पास का यह जोड़ता है कौन नाता
कौन गाता ? कौन गाता ?
दूर,हाँ,उस पार तम के गा रहा है गीत कोई ,
चेतना,सोई जगाना चाहता है मीत कोई ,
उतर कर अवरोह में विद्रोह सा उर में मचाता !
कौन गाता ? कौन गाता ?
है वही चिर सत्य जिसकी छांह सपनों में समाए
गीत की परिणिति वही,आरोह पर अवरोह आए
राम स्वयं घट घट इसी से ,मैं तुझे युग-युग चलाता ,
कौन गाता ? कौन गाता ?
जानता हूँ तू बढा था ,ज्वार का उदगार छूने
रह गया जीवन कहीं रीता,निमिष कुछ रहे सूने.
भर न क्यों पद-चाप की पद्ध्वनि उन्हें मुखरित बनाता
कौन गाता ? कौन गाता ?
हे चिरंतन,ठहर कुछ क्षण,शिथिल कर ये मर्म-बंधन ,
देख लूँ भर-भर नयन,जन,वन,सुमन,उडु मन किरन,घन,
जानता अभिसार का चिर मिलन-पथ,मुझको बुलाता .
कौन गाता ? कौन गाता ?
सन्दर्भ ०१:काकेश की कतरनें
रूबाइयों का अनुवाद अगली पोस्ट में
टिप्पणियाँ
सादर अभिवादन
सच केशव पाठक के बहाने मैंने जबलपुर जैसे शहरों की
वर्त्तमान स्थिति को भी उजागर कराने की कोशिश की है
हमारे बीच कई वो लोग भी हैं जो केशव पाठक,उनके मित्र भवानी दादा
और समकालीन साहित्यिक गतिविधियों के साक्षी रहे हैं
जबलपुर इतना अकिंचन नहीं रहा है जितना की अब साहित्यिक
शून्यता के मामले में अब जबलपुर अन्य नगरों सा रह गया है
आपका आभार तुरंत टिप्पणी के लिए
kabhi kabhi lagta hai kii hindustan me chote chote shehron me kai bade rachnakaar waqt kii dhool ke niche samaa gaye hain ......asal me unke upar dhool chaane se unko nahii humko nukshaan ho raha hai .......hume jarurat hai kii milkar ....unkii rachnaao ko bahar laana chahiye ......
is sandarbh me kiya gaya aapka prayas atyaadhik sarahniya hai ....
umeed hai kii aap bhavisya me aisi hii jaagriti failaane waale articles ke saath aate rahenge ........
aise kai log hain jo gumnaam hain
main aapako inakee pustak bhej rahaa hoon
shukriya
जो बावरे -फकीरा 'http://jabalpursamachar.blogspot.com/
'पर प्रकाशित है पर प्राप्त टिप्पणियाँ
Blogger युग-विमर्श said...
प्रिय गिरीश जी, मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि मैंने केशव पाठक की कोई रचना पहली बार आपके माध्यम से पढ़ी है. उपेक्षित साहित्य को प्रकाश में लाकर आप अच्छा कार्य कर रहे हैं. वैसे जो रचना आपने प्रस्तुत की है, इतनी सशक्त नहीं है कि उसपर विशेष ध्यान दिया जा सके. किंतु केवल एक रचना पढ़कर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता.
November 1, 2008 7:52 PM
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Blogger Mrs. Asha Joglekar said...
मैने भी केसव पाठक जी को पहली बार पढा है ।
मुझे तो रचना बहुत उत्तम लगी । पहली ही कडी इतनी जबरदस्त है । आपका बहुत धन्यवाद ।
November 1, 2008 9:12 PM
JABALPUR MEN AB VO BAAT KAHAAN
ye ardh saty hai
jabalpur men abhee bhee baat to vaahee hai bas dookandari ka rona hai