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दिसंबर, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ब्लोंग-दमदार है....और रहेंगे

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ज्योतिष और भारत-अरब विद्वान ईसा मसीह किस भाषा में बात करते थे? <= इनको पढिये आगे बढ़िए तो ये शैलेश भारतवासी भाई साहब Raviratlami Ka Hindi Blog के अलावा कई पागलों की तरह लगें हैं ,कई-कई रात थका देने वाली राते ये दीवाने नेट के इतिहास में अपना नाम जोड़ रहें हैं...? कई और है जैसे ये=> महेंद्र मिश्रा.. भाई साहब हैं तो मेरे शहर के किन्तु इनकी उड़ान दुनिया भर की । यूनुस खान का हिंदी ब्‍लॉग : रेडियो वाणी ----yunus khan ka hindi blog RADIOVANI वाले यूनुस जी तो कमाल के कारनामें होते हैं बस और क्या कहूँ आप खुद समझदार हैं..... मोहल्ला भर के लोग हिंदी किताबों का कोना इस लिए खोजतें हैं ताकी उनको कोई सस्ता शेर मिल जाए । और न मिले तो न्योत रहें हैं अपने यशवंत भैया http://bhadas.blogspot.com/ भडासी तो बन ही सकतें है। मैं आरकूटिंग से अंतर जाल पे आया आभास जोशी के लिए मेरा भतीजा वी० ओ० आई० में तब था उसने जिसने शान की जगह ले ही है । चिट्ठों की चीर फाड़ करते कराते ब्लॉगर बन ही गया । सभी नेट पर आने वालों को मेरा अभिवादन ब्लॉगर और ब्लोंग आने वाले कल सूचना तंत्र का सबसे लोक-प्रिय और शक्ति शाली

दिनेश जी और विजय भैया "मौन साधक" ही तो हैं....!"

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पंडित दिनेश पाठक हीरा गुप्त जी के मित्र एवं पत्रकारिता के आधार स्तंभ इसी बरगद ने म० प्र० की पत्रकारिता को परिभाषित करनें में सहज अवदान अपने कर्म से दिया है..........सम्मानित हुए दाँऐ सम्मान ग्रहण करते हुए पत्रकार श्री विजय तिवारी ये दौनों महानुभाव सम्मान से बचाते रहे खुद को सदा एक ही बात संस्थाओं को कहते रहे भाई.... हमसे योग्य हस्ताक्षर हैं इस प्रदेश में । हम नहीं माने और न मानना ज़रूरी ही था . हम मानते भी क्यों .दौनों की स्वाध्यायनिष्ठ ही वृत्ती जो गुप्त जी के अनुरूप है आम लोगों से परिचित तो कराना ही था इस खबर से . की मौन साधकों की कमी नहीं है इस दुनियाँ में .सादा जीवन उच्च विचार के पर्याय बने इन व्यक्तित्वों को मेरा नमन हम सबका नमन ...... शतायु हों

हीरा लाल गुप्त स्मृति समारोह " फोटो ०१ "

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सव्य-साची माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे स्व० हीरा लाल गुप्त "मधुकर"

गुप्त जी की स्मृति में "पत्रकारिता-संस्थान" की स्थापना होनी ही चाहिऐ :प्रो० ए० डी० एन० बाजपेयी

"संस्कार धानी जबलपुर में पत्रकारिता के विकास के विभिन्न सोपानों का जिक्र हुआ , पत्रकारिता के मूल्यों , वर्तमान संदर्भों पर टिप्पणी की गयी अवसर था स्व० हीरा लाल गुप्त मधुकर जी के जन्म दिवस पर उनके समकालीन साथियों को सम्मानित करने का ।" इस अवसर पर मुख्य-अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो० ए० डी० एन० बाजपेयी ने कहा:-"गुप्त जी और ततसमकालिक पत्रकारिता के मूल्य बेहद उच्च स्तरीय रहें है। पत्रकारिता यानी प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के मूल्य भी शेष तीन स्तंभों की तरह चिंतन के योग्य हों गए हैं ।"पत्रकारिता और अधिक जनोन्मुखी हों इस विषय पर गंभीरता पूर्वक चिंतन करना ही होगा । संवेदित भाव से समाचार लेखन और भाव-संवेग से आलेखित समाचार में फर्क होता है। समाज को अब समझदार पत्रकारिता की ज़रूरत है मूल्यवान पत्रकारिता की ज़रूरत है...ताकि समाज को युग को सही दिशा मिल सके ।प्रो० बाजपेयी की अपेक्षा रही कि पत्रकारिता के विकास हेतु अकादमी स्थापित हों।अपने अध्यक्षीय उदबोधन में डाक्टर आलोक चंसौरिया ने संबंधों के निर्वहन में सिद्ध माने जाने वाले गुप्त जी एं सव्यसाची माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे को श्रद्

आखिर कौन हैं ये हीरालाल जी जिनको याद कर रहा है जबलपुर...?

आखिर कौन हैं ये हीरालाल जी जिनको याद कर रहा है जबलपुर...? पत्रकारिता के क्षितिज पर एक गीत सा , जिसकी गति रुकी नहीं जब वो थे ..तब .. जब वो नहीं है यानी कि अब । हर साल दसंबर की 24 वीं तारीख़ को उनको चाहने वाले उनके मित्रों को आमंत्रित कर सम्मानित करतें हैं । यह सिलसिला निर्बाध जारी है 1998 से शुरू किया था मध्य-प्रदेश लेखक संघ जबलपुर एकांश के सदस्यों ने । संस्था तो एक प्रतीक है वास्तव में उनको चाहने वालों की की लंबी सूची है । जिसे इस आलेख में लिख पाना कितना संभव है मुझे नहीं मालूम सब चाहतें हैं कि मधुकर जी याद किये जाते रहें ।मधुकर जी जाति से वणिक , पेशे से पत्रकार , विचारों से विप्र , कर्म से योगी , मानस में एक कवि को साथ लिए उन दिनों पत्रकार हुआ करते थे जब रांगे के फॉण्ट जमा करता था कम्पोजीटर फिर उसके साथ ज़रूरत के मुताबिक ब्लाक फिट कर मशीनिष्ट को देता जो समाचार पत्र छपता था । प्रेस में चाय के गिलास भोथरी टेबिलें खादी के कुरते पहने दो चार चश्मिश टाइप के लोग जो सीमित साधनों में असीमित कोशिशें करते नज़र आते थे । हाँ उन दिनों अखबार का दफ्तर किसी मंदिर से कमतर नहीं लगता था . मुझे नहीं मालूम