28.12.07

ब्लोंग-दमदार है....और रहेंगे

ज्योतिष और भारत-अरब विद्वान ईसा मसीह किस भाषा में बात करते थे? <= इनको पढिये आगे बढ़िए तो ये शैलेश भारतवासी भाई साहब Raviratlami Ka Hindi Blog के अलावा कई पागलों की तरह लगें हैं ,कई-कई रात थका देने वाली राते ये दीवाने नेट के इतिहास में अपना नाम जोड़ रहें हैं...? कई और है जैसे ये=>महेंद्र मिश्रा.. भाई साहब हैं तो मेरे शहर के किन्तु इनकी उड़ान दुनिया भर की । यूनुस खान का हिंदी ब्‍लॉग : रेडियो वाणी ----yunus khan ka hindi blog RADIOVANI वाले यूनुस जी तो कमाल के कारनामें होते हैं बस और क्या कहूँ आप खुद समझदार हैं.....मोहल्ला भर के लोग हिंदी किताबों का कोना इस लिए खोजतें हैं ताकी उनको कोई सस्ता शेर मिल जाए । और न मिले तो न्योत रहें हैं अपने यशवंत भैया http://bhadas.blogspot.com/ भडासी तो बन ही सकतें है।
मैं आरकूटिंग से अंतर जाल पे आया आभास जोशी के लिए मेरा भतीजा वी० ओ० आई० में तब था उसने जिसने शान की जगह ले ही है । चिट्ठों की चीर फाड़ करते कराते ब्लॉगर बन ही गया । सभी नेट पर आने वालों को मेरा अभिवादन
ब्लॉगर और ब्लोंग आने वाले कल सूचना तंत्र का सबसे लोक-प्रिय और शक्ति शाली संचार औज़ार होगा प्रेस,मीडिया,किताबें, निर्भीक पत्रकारिता , पोल-खोल, और जाने क्या सब इसमें होगा । ये घबराहट एक हिंदुस्तानी की डायरी: हम ब्लॉगर साहित्य से बहिष्कृत हैं क्या? बेमानी है... । चलिए तब तक चक्रधर की चकल्लस का मज़ा लेतें है । आप चाहें तो गुनगुनाइये छू लेने दो नाज़ुक
हम इंतज़ार करेगें
बार बार तोहे का समझाऊं
अब क्या मिसाल दूं
या चाहें तो सो जाइए..... मुझे भी सोना ही है.... कल बात करतें है.... टेक केयर शुभरात्री तब तक मैं विकास परिहार... का कबाड़खाना खंगाल लेता हूँ ... आप भी हों आना यहाँ खूब मसाले दार है... भैया जी भी मेरे शहर में ग्वालिअर से आकर हंगामा करने आमादा हैं।


चिट्ठाजगत

26.12.07

दिनेश जी और विजय भैया "मौन साधक" ही तो हैं....!"










पंडित दिनेश पाठक हीरा गुप्त जी के मित्र एवं पत्रकारिता के आधार स्तंभ इसी बरगद ने म० प्र० की पत्रकारिता को परिभाषित करनें में सहज अवदान अपने कर्म से दिया है..........सम्मानित हुए दाँऐ सम्मान ग्रहण करते हुए पत्रकार श्री विजय तिवारी ये
दौनों महानुभाव सम्मान से बचाते रहे खुद को सदा एक ही बात संस्थाओं को कहते रहे भाई.... हमसे योग्य हस्ताक्षर हैं इस प्रदेश में । हम नहीं माने और न मानना ज़रूरी ही था . हम मानते भी क्यों .दौनों की स्वाध्यायनिष्ठ ही वृत्ती जो गुप्त जी के अनुरूप है आम लोगों से परिचित तो कराना ही था इस खबर से . की मौन साधकों की कमी नहीं है इस दुनियाँ में .सादा जीवन उच्च विचार के पर्याय बने इन व्यक्तित्वों को मेरा नमन हम सबका नमन ...... शतायु हों

हीरा लाल गुप्त स्मृति समारोह " फोटो ०१ "


सव्य-साची माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे

स्व० हीरा लाल गुप्त "मधुकर"













24.12.07

गुप्त जी की स्मृति में "पत्रकारिता-संस्थान" की स्थापना होनी ही चाहिऐ :प्रो० ए० डी० एन० बाजपेयी

"संस्कार धानी जबलपुर में पत्रकारिता के विकास के विभिन्न सोपानों का जिक्र हुआ , पत्रकारिता के मूल्यों , वर्तमान संदर्भों पर टिप्पणी की गयी अवसर था स्व० हीरा लाल गुप्त मधुकर जी के जन्म दिवस पर उनके समकालीन साथियों को सम्मानित करने का ।" इस अवसर पर मुख्य-अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो० ए० डी० एन० बाजपेयी ने कहा:-"गुप्त जी और ततसमकालिक पत्रकारिता के मूल्य बेहद उच्च स्तरीय रहें है। पत्रकारिता यानी प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के मूल्य भी शेष तीन स्तंभों की तरह चिंतन के योग्य हों गए हैं ।"पत्रकारिता और अधिक जनोन्मुखी हों इस विषय पर गंभीरता पूर्वक चिंतन करना ही होगा । संवेदित भाव से समाचार लेखन और भाव-संवेग से आलेखित समाचार में फर्क होता है। समाज को अब समझदार पत्रकारिता की ज़रूरत है मूल्यवान पत्रकारिता की ज़रूरत है...ताकि समाज को युग को सही दिशा मिल सके ।प्रो० बाजपेयी की अपेक्षा रही कि पत्रकारिता के विकास हेतु अकादमी स्थापित हों।अपने अध्यक्षीय उदबोधन में डाक्टर आलोक चंसौरिया ने संबंधों के निर्वहन में सिद्ध माने जाने वाले गुप्त जी एं सव्यसाची माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे को श्रद्धांजलि देते हुए कहा :- "बदलते समय में पत्रकारों को राजनीतिज्ञों का गुरु मार्ग दर्शक एवं हैं इस बात कि पुष्टी हम राजनीतिज्ञ कर सकतें हैं। कलम के सिपाही हमारे सदकार्यों को सराहते हैं । गलतियों पर लताड्तें-डपटतें भी हैं अपनी कलम से । कलम और उसकी ताक़त को कोई भी नहीं नकार सकता ।स्मृति समारोह की ज़रूरत और उसे लगातार वर्ष १९९७ से आयोजन समिति के प्रयास को अद्वितीय निरूपित करते हुए वरिष्ट पत्र-कार डाक्टर राज कुमार तिवारी सुमित्र नें कहा:-"यह समारोह मूल्य के संरक्षकों के प्रति कृतज्ञता का समारोह है।" गुप्त स्मृति सम्मान से सम्मानित पं ० दिनेश पाठक तथा सव्यसाची अलंकरण से अलंकृत विजय तिवारी ने सादगी और सहज जीवन तथा संकल्प को पत्रकारिता का मूल आधार निरूपित किया। मंचासीन अतिथियों में श्री भगवतीधर बाजपेई , काशीनाथ बिल्लोरे विशिष्ठ अतिथि के रूप मी उपस्थित थे।. कार्यक्रम शुभारम्भ अतिथियों द्वारा स्व० हीरा लाल गुप्त एवं स्व० माँ सव्यसाची प्रमिला देवी बिल्लोरे के चित्र पर की पूजन अर्चन से हुआ ।तदुपरांत आलोक वर्मा " मास्टर शक्ति" की संगीत संयोजना में मधुकर जी के गीतों का गायन बाल गायिका श्रद्धा बिल्लोरे ,एवं आदित्य सूद द्वारा किया गया संगीत सहभागिता रमण पिल्लई ने की ।अतिथियों,का स्वागत इन्द्रा पाठक तिवारी , अर्चना मलैया, शशिकला सेन , हरीश बिल्लोरे , सतीश बिल्लोरे , राजीव गुप्ता, अरविंद गुप्ता, डाक्टर विजय तिवारी "किसलय "कहानी मंच की और से रमाकांत ताम्रकार, बसंत मिश्रा आदि ने किया ।गुप्त स्मृति अलंकरण से सम्मानित वयो वृद्ध पत्रकार श्री दिनेश पाठक को शाल श्री फल सम्मान पत्र एवं सम्मानिधि देकर सम्मानित किया गया ।जबकि श्री विजय तिवारी को सव्य साची प्रमिला देवी बिल्लोरे स्मृति सम्मान से नवाजा गया । इस अवसर पर गुप्ता एवं बिल्लोरे परिवारों के सदस्यों के अलावा नगर के विशिष्ठ जन उपस्थित रहे।कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार पं.भगवतीधर बाजपेयी , मोहन शशि , श्री श्याम कटारे,राजू घोलप, कवि साहित्यकार श्री राम ठाकुर "दादा" मोइनुद्दीन अतहर , एडवोकेट प्रमोद पांडे , रमेश सैनी, नार्मदीय ब्राह्मण समाज से श्री काशी नाथ अमलाथे, स्व० संग्राम सेनानी मांगी लाल जी गुहा , गोविन्द गुहा , संतोष बिल्लोरे आदि ने पुष्पांजलि अर्पित की ।कार्यक्रम का संचालन राजेश पाठक तथा आभार प्रदर्शन गिरीश बिल्लोरे "मुकुल" ने किया।

23.12.07

आखिर कौन हैं ये हीरालाल जी जिनको याद कर रहा है जबलपुर...?


आखिर कौन हैं ये हीरालाल जी जिनको याद कर रहा है जबलपुर...?
पत्रकारिता के क्षितिज पर एक गीत सा , जिसकी गति रुकी नहीं जब वो थे ..तब .. जब वो नहीं है यानी कि अब । हर साल दसंबर की 24 वीं तारीख़ को उनको चाहने वाले उनके मित्रों को आमंत्रित कर सम्मानित करतें हैं । यह सिलसिला निर्बाध जारी है 1998 से शुरू किया था मध्य-प्रदेश लेखक संघ जबलपुर एकांश के सदस्यों ने । संस्था तो एक प्रतीक है वास्तव में उनको चाहने वालों की की लंबी सूची है । जिसे इस आलेख में लिख पाना कितना संभव है मुझे नहीं मालूम सब चाहतें हैं कि मधुकर जी याद किये जाते रहें ।मधुकर जी जाति से वणिक , पेशे से पत्रकार , विचारों से विप्र , कर्म से योगी , मानस में एक कवि को साथ लिए उन दिनों पत्रकार हुआ करते थे जब रांगे के फॉण्ट जमा करता था कम्पोजीटर फिर उसके साथ ज़रूरत के मुताबिक ब्लाक फिट कर मशीनिष्ट को देता जो समाचार पत्र छपता था । प्रेस में चाय के गिलास भोथरी टेबिलें खादी के कुरते पहने दो चार चश्मिश टाइप के लोग जो सीमित साधनों में असीमित कोशिशें करते नज़र आते थे । हाँ उन दिनों अखबार का दफ्तर किसी मंदिर से कमतर नहीं लगता था . मुझे नहीं मालूम आप को क्या लगता होगा ये जान कर ......?क्योंकि, उस दौर के प्रेसों के प्रवेश-द्वार से ही स्याही की गंध नाक में भर जाती थी... को मेरा मंदिर मानना । अगर अब के छापाखाने हायटेक हों गए हैं तो मुझे इसमें क्यों एतराज़ होने चला ..... भाई मंदिर भी तो हाईटेक हैं । चलिए छोडें इस बात को "बेवज़ह बात बढाने की ज़रूरत क्या है...?"हम तो इस बात कि पतासाज़ी करनी है "आखिर कौन हैं ये -हीरालाल जी जिनको याद करता है जबलपुर सुधि पाठक ये जान लें कि मधुकर जी जबलपुर की पत्रकारिता की नींव के वो पत्थर हैं जिनको पूरा मध्य-प्रदेश संदर्भों का भण्डार मानता था । सादा लिबास मितभाषी , मानव मूल्यों का पोषक , रिश्तों का रखवाला, व्यक्तित्व सबका अपना था , तभी तो सभी उनको याद कर रहें है.जन्म:- गुप्त जी का जन्म २४/१२/१९२७ को हुआ था उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर जिले के बिन्दकी ग्राम में हुआ । जन्म के साल भर बाद पिता लाला राम जी को जबलपुर ने बुलाया रोज़गार के लिए । साथ में कई और भी परिवार आए जो वाशिंदे हों गए पत्थरों के शहर जबलपुर के । जबलपुर जो संतुलित चट्टानों का शहर है.... जबलपुर जो नर्म शिलाओं का नगर है । फूताताल हनुमान ताल सूपाताल मदताल देवताल , खम्बताल क इर्द गिर्द लोग बसते थे तब के जबलपुर में लालाराम जी भी बस गए खम्बताल के नजदीक जो शहर जबलपुर का सदर बाज़ार है।
मायाराम सुरजन जी ने गुप्त जी को १९९२ के स्मृति समारोह के समय याद करते हुए बताया की "१९५० में नव-भारत के दफ्तर में कविता छपवाने आए सौम्य से , युवक जिसने तत्समय छपने योग्य छायावादी रचना उन्हें सौंपी , रचना से ज़्यादा मधुकर उपनाम धारी गुप्ता जी ही पसंद आ गए. बातों -बातों मायाराम जी जान गए की गुप्ता जी बी॰ए॰ पास हैं . पत्रकारिता में रूचि देखते हुए उन्हें नवभारत में ही अवसर दिया. अपनी अथक साधना के बल पर वे जबलपुर के सामाजिक साहित्यिक,सांस्कृतिक , ज़रूरत बन गए । उनके अवसान २३/०५/१९८८ ने जबलपुर ही नहीं प्रदेश की पत्रकारिता को शोका कुल और सूना सा कर दिया ।
उनको चाहने वालों में मायाराम जी सुरजन ,दुर्गाशंकर शुक्ल ,कुञ्ज बिहारी पाठक , जीवन चंद गोलछा, पं.भगवतीधर बाजपेई,डॉ. अमोलक चंद जैन,मेरे गुरुदेव हनुमान वर्मा,विजय दत्त श्रीधर,अजित भैया[अजित वर्मा] श्याम कटारे , गोकुल शर्मा , फ़तेहचंद,गोयल,विश्व नाथ राव , फूल चंद महावर, निर्मल नारद , शरद अग्रवाल,पुरंजय चतुर्वेदी, माता प्रसाद शुक्ल आदि ने मिलकर उनकी पुण्य तिथि २३ मई १९९२ को स्मृति दिवस मनाया उन्हें याद किया .
फ़िर चाहने वालों ने मध्य प्रदेश लेखक संघ के साथ मिलकर मधुकर जी का जन्म दिवस स्मृति दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया . २४ दिसम्बर को हर साल शहर के लोग याद गुप्त जी के बहाने जुड़्तें ही हैं . परिजन उनकी याद में किसी वयोवृद्ध पत्रकार को बुलाकर सम्मानित करता है ।

तो मैं बता
रहा"फ़िर चाहने वालों ने मध्य प्रदेश लेखक संघ के साथ मिलकर मधुकर जी का जन्म दिवस मनाने का निर्णय लिया . २४ दिसम्बर को हर साल शहर के लोग याद गुप्त जी के बहाने जुड़्तें ही हैं . परिजन उनकी याद में किसी वयोवृद्ध पत्रकार को बुलाकर सम्मानित करता है .....सिलसिला १९९८ से जारी है।"

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...