29.10.20
निकिता तुम एक सवाल हो.!
27.10.20
क्या सोचते हैं विस्तारवादी
बख्तावर खिलजी से लेकर तालिबान तक सभी सभी के मस्तिष्क में एक ही बात चलती है अगर किसी राष्ट्र का अंत करना है तो उसके पहले उसकी संस्कृति अंत कर दो। पोल पॉट की जिंदगी का लक्ष्य भी यही था । 1975 से लेकर 1979 तक कंबोडिया के सांस्कृतिक वैभव को समाप्त करने के लिए पोलपॉट अपना एक लक्ष्य सुनिश्चित किया । उसने जैसे ही खमेररूज की की मदद से कंबोडिया पर कम्युनिस्ट शासन की स्थापना की सब से पहले कंबोडिया के 50 मुस्लिम आराधना स्थलों का सर्वनाश किया। क्योंकि नास्तिकों के मस्तिष्क में आस्था के लिए कोई जगह नहीं है अतः पोल पॉट की सेना ने उसके स्थान पर कुछ दूसरा धार्मिक स्थल नहीं बनाया। किंतु बाबर इससे कुछ अलग ही था । भारत में आक्रमणकारी विदेशी ने सांस्कृतिक हमला भी बाकायदा सामाजिक परिस्थितियों को बदलने के लिए किया। तालिबान इससे पीछे नहीं रहे । स्वात से बुद्ध के वैभवशाली इतिहास को खत्म करना हो या कश्मीर के सनातनी सांस्कृतिक वैभव को नेस्तनाबूद करना हो ... विदेशी आक्रांता इस कार्य को सबसे प्राथमिकता के आधार पर किया करते थे।
ऐसा अक्सर हुआ है इसमें कोई दो मत नहीं। अब कुछ इससे ज्यादा हटकर हो रहा है। अब वैचारिक स्तर पर हमले होना स्वाभाविक सी बात बन गई है ।
सामाजिक परंपराओं को बदलने की प्रक्रिया अब तेजी से हो रही है। सामाजिक सहमति हो या ना हो बलपूर्वक सांस्कृतिक परिवर्तन करना एक सामान्य सा लक्ष्य था जो अब मीडिया के जरिए विस्तारित हो रहा है।
बहुत वर्ष पहले की बात है, हाँ लगभग 40 से 45 वर्ष पूर्व कन्वर्टटेड मुस्लिम के घर के मुखिया का नाम भगवानदास था उसकी पत्नी का नाम पार्वती बच्चे का नाम गुलाब । हमने जब उस परिवार से पूछा- आप जब मुस्लिम धर्म अपना चुके हैं तो आपके नाम हिंदुओं जैसे क्यों हैं ?
भगवान दास का कहना था कि हमने धर्म बदला है ना कि हमने अपनी संस्कृति । यह घटना गोसलपुर की है जहां पर भगवानदास रेल विभाग में केबिन मैन के पद पर नौकरी किया करते थे । उनके घर में बाकायदा हिंदू त्यौहार होली दिवाली रक्षाबंधन आदि बनाए जाते थे । सांस्कृतिक बदलाव कभी भी आसानी से नहीं हो पाता था उस दौर तक। फिर अचानक क्या हुआ कि धर्म परिवर्तन के साथ साथ सांस्कृतिक बदलाव बहुत तेजी से हुए । उसके पीछे का कारण है - कट्टरपंथी सोच पूरे विश्व में एक साथ तेजी से उभरना है ।
यह परिवर्तन उन्मादी होने का पर्याप्त कारण है । अगर आप धार्मिक बदलाव के साथ मूल संस्कृति में कोई बदलाव नहीं करते तो सामाजिक सामंजस्य में भी किसी भी तरह का नेगेटिव चेंज नहीं आता है और शांति कायम रहती है ।
26.10.20
TANYA SHARMA ON VIJAYADASHAMI PRAV
25.10.20
24.10.20
वीरांगना रानी चेन्नम्मा आलेख :- आनंद राणा जबलपुर
19.10.20
कोविड के बाद का भारत
रोजगार के लिए प्रवास स्वाभाविक प्रक्रिया है। इतिहास में भी यह सब कुछ दर्ज है...और यहां रोजगार के लिए प्रवास के बाद कोविड19 के बाद घर और गांव के महत्व को महसूस किया होगा आपने भी
गांघी जी भी याद आए होंगे न ? जो कुटीर उद्योगों के प्रबल समर्थक थे । बापू के उसी मार्ग को आत्मनिर्भरता कही जा सकती है । जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने अंगीकार किया है । परन्तु कोविड संकट जूझ रहे भारत को सम्हलना अभी एकाएक ज़रा कठिन है । परन्तु वैक्सीन आने के बाद अर्थात लगभग 6 माह बाद केंद्र सरकार एवम राज्य सरकारों को तेज़ी से काम करना होगा । उसे यहाँ एक ट्रष्टी एवम प्रमुख प्रबंधक के रूप सक्रिय होने की ज़रूरत होगी ।
सरकार छोटे से छोटे उत्पादन के लिए स्थानीय पृष्ठभूमि को देखते हुए उत्पादन को प्रमोट करें और बाजार उपलब्ध कराएं तो निश्चित तौर पर रोजगार की संभावना सुदूर क्षेत्रों में बढ़ेगी !
मजदूरों का गांव से पलायन अधिकतम 500 वर्ग किलोमीटर के आसपास होना चाहिए ताकि एक या 2 दिन के अंदर पूरा का पूरा परिवार वापस घर पहुंच सके। अब आप सवाल करेंगे कि क्या भारत सरकार की औद्योगिक नीति में बदलाव की जरूरत है । जी हां भारत सरकार की ही नहीं बल्कि राज्य सरकारें भी व्यवसायिक एवम औद्योगिक नीति का गंभीरता से पुनरीक्षण करें इसमें परिवर्तन अवश्यंभावी है ।
आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए समस्या का कारण होगा पर कैपिटा इनकम और इकोनामी में गिरावट की संभावना है । कोविड19 के बाद उत्पादन और उनका विपणन करने के लिए सरकार को बहुत तेजी से समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। कुछ बाजार विज्ञानी मानते हैं कि- क्रय शक्ति कमजोर होने से स्थानीय उत्पादों के लिए बाजार दूरस्थ क्षेत्र में ही तलाशने होंगे। ऐसा नहीं है आवश्यकतानुसार उत्पादों का आकलन कर आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है । और यह केवल प्रदर्शनात्मक ना होकर वास्तविक रूप से क्रिया रूप में परिणित करना होगा।
*यहां समाज और सरकार दोनों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है.. आप जानते हैं कि पूरी अर्थव्यवस्था का 60 से 70 प्रतिशत भाग में मध्यमवर्ग की सहभागिता होती है* मानव संसाधन भी मध्यवर्ग से ही निकल कर आता है। ऐसी स्थिति में मध्यमवर्ग से निकल रही प्रतिभाओं को जिले संभाग और राज्य स्तर तक उत्पादन और सेवा इकाइयों रूप से प्रारंभ कराना ज़रूरी है ।
सकल बचत के लिये सरकारी क्षेत्र के बैंक पोस्ट ऑफिस की जमा व्यवस्था को सिक्योरिटी के साथ साथ टैक्स में छूट की लिमिट को बढ़ावा देकर प्रतिव्यक्ति बचत जो 36% से घटकर 30% से भी कम हो चुकी है को बढ़ावा देना ही होगा । जीडीपी में शुद्ध बचत की वृद्धि से व्यक्तिगत क्षेत्र में पूंजी का निर्माण तेजी से होना तय है ।
वर्तमान में मध्यवर्ग का 70% हिस्सा कार, एसी, टीवी तथा अन्य अनुत्पादक लक्ज़री की #ईएमआई के दुष्चक्र में फंसा है । जो बचत पूंजी निर्माण (वेयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण ) की बड़ी बाधा है । पर्सनल लोन सबसे अधिक ब्याज वसूली का माध्यम है । जिसका मिलना बहुत सरल है । डेली यूज़ की सामग्री के मूल्य नियंत्रित न होने से भी बचत बेहद प्रभावित होती है । अगर #ईएमआई का दायित्व एवम अनियंत्रित कीमत वृद्धि को नियंत्रित करते ही वैयक्तिक सेक्टर में पूंजी निर्माण की दर तेज़ी बढ़ेगी । कोविड19 के संकट से उभरने से पहले ही हम लक्ज़री और हमारी सरकार मूल्यों को नियंत्रित करें तो हम एक विशाल पूँजी का निर्माण करेंगे । यह पूँजी हमारे लिये बचत होगी जो बड़े औद्योगिक घरानों के लिये भी ज़्यादा होगी ।
17.10.20
सनातन धर्म के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
14.10.20
आने वाले 10 से 15 सालों में पाकिस्तान से भारत में आएंगे शरणार्थी.. (भाग 02 )
गिलगित बालटिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है इसके संबंध में हालिया दिनों में सेंगे सेरिंग जो वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे हैं साफ तौर पर बताया है ।
भारतीय उपमहाद्वीप के साथ 1947 के बाद हुआ है वह भारत के लिए एक बहुत दुखद स्थिति है।
मुझे अच्छी तरह याद है तब जब भारत के जीवन समंकों खास तौर पर जन्म दर मृत्यु दर और होती रही है तब दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अन्य देशों के सापेक्ष भारत को सबसे ज्यादा नेगेटिव प्रोजेक्ट किया जाता था । उस दौर का एनजीओ कल्चर जो आमतौर पर विदेशी फंडों से संचालित था के जरिए भारतीय कल्चर को समाप्त कर देने की भयंकर कोशिशें हुई है।
पता नहीं कौन सी बात है जो कि हमारी कल्चर को क्षतिग्रस्त होने से बचाती रही है।
धारा 370 और 35 बी के समापन के उपरांत गिलगित बालटिस्तान जी के लोग भारतीय डेमोक्रेसी का सुख लेना चाहते हैं । गिलगित बालटिस्तान पिछले लेख में वर्णित 7 जिले और दो डिवीजन की 15 लाख लोगों की आबादी भारत की ओर देख रही है ।
वहां के एक लीडर बाबा जान और उनके 4 साथी पाकिस्तान की जेलों में उम्र कैद की सजा भोग रहे हैं।
जहां तक गिलगित बालटिस्तान की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थिति का संबंध है तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लद्दाख और भारत के सांस्कृतिक संदर्भों में यह क्षेत्र भारत के बेहद करीब है। तो आइए जानते हैं कि - "गिलगित बालटिस्तान लोग आंदोलित क्यों है ..?"
1 - स्वायत्तशासी क्षेत्र के निवासी हैं परंतु उनके सारे फैसले पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी डिसाइड करती है । पाकिस्तान यह तय करता है कि वहां की जनता को लिक्विड गैस और जीवन जीने के न्यूनतम संसाधन किस हद तक मुहैया कराने चाहिए !
2- शिक्षा के क्षेत्र में की 15 लाख की आबादी को पाकिस्तान ने किसी भी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई है । निजी क्षेत्र के बलबूते पर वहां शैक्षणिक व्यवस्थाएं कठोर पाकिस्तानी कानून के अधीन काम कर रही है ।
3- कानूनी तौर पर गिलगित बालटिस्तान भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इस बात को वहां की आवाम समझ चुकी है । यूनाइटेड नेशन द्वारा पाकिस्तान को उन्हें जल्द से जल्द पूर्ण स्वायत्तता देकर गिलगित बालटिस्तान की जनता की इच्छा के अनुसार निर्णय लेने की बात कही है ।
4- जबकि चीन के दबाव में आकर अनाधिकृत रूप से उस क्षेत्र के नजदीक चीन के सैन्य अड्डे स्थापित हो चुके हैं। जिसका मूल उद्देश्य भारत की बढ़ती हुई सामरिक शक्ति को प्रभावित करना है।
5- इस क्षेत्र में मौजूद अकूत प्राकृतिक खनिज संसाधन का फायदा निवासियों के लिए भविष्य में भी मिलना मुश्किल है जिस तरह है बलूचिस्तान के लोगों के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की दुरभि:संधि से वहां के लोगों का जीवन स्तर वर्तमान में बेहद प्रभावित है ।
6- अपने टीवी इंटरव्यू में है सिंगे शेरीन ने स्पष्ट किया कि- "हम भारत में मिलना चाहते हैं..!" भारत में पीओके का बहुत सारा हिस्सा शामिल होने के लिए खुलकर सामने आने लगा है । इसी कारण से अगर पाकिस्तान आम जनता की राय लेने से घबरा रहा है ।
7- राजनैतिक परिस्थितियां जो भी हो गिलगित बालटिस्तान की आवाम बलूचिस्तान और सिंध की तरह ही भीषण अभाव और संकट की स्थिति में जीवन यापन कर रही है
कल ही मैंने अपने ब्लॉग मिसफिट पर स्पष्ट रूप से लिखा था कि आने वाली 10 से 15 सालों में भारत को पाकिस्तान से आने वाली शरणार्थी जनता की देखभाल की जिम्मेदारी लेनी पड़ सकती है। परंतु तेजी से बढ़ रहे घटनाक्रम से यह कहा जा सकता है कि- पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी ने वहां के लोगों को यह आश्वासन दिया है कि 30 नवंबर 2020 तक वे गिलगित बालटिस्तान के लिए कोई खुशखबरी सुनाने जा रहे हैं ।
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर स्पष्ट है कि पाकिस्तानी स्थित को प्रॉविंस का हिस्सा बना देगा। और हो सकता है कि बाबा जान को रिहा भी कर दिया जाए ।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि पाकिस्तान ऐसा कुछ कर सकेगा कि वहां की जनता अपने 73 साल पुराने कालखंड को याद ना रखेगी ।
वहां के लोग स्पष्ट तौर पर भारत के साथ अंतर संबंध स्थापित करना चाहते हैं क्योंकि भारत की परिस्थिति उनके लिए पाकिस्तान से अधिक अनुकूलित है और वह एक कंफर्ट लाइफस्टाइल को जी सकते हैं । अगर छल बल के जरिए गिलगित बालटिस्तान की स्वायत्तता चीन के सहयोग से समाप्त भी हो गई तो तय मानिए कि वहां की जनता इसे स्वीकार नहीं कर सकती ।
उसका आधार चीन की शोषण की प्रणाली को वह अच्छी तरह जान चुके हैं। वहां की जनता यह भी जानती है कि चीन के साथ सी-पैक के मद्देनजर किए गए कोई भी समझौते में उनकी ना तो भागीदारी है और ना ही भविष्य में भागीदारी अथवा आर्थिक विकास संभव होगा । कमोबेश यही हालात बलूचिस्तान के भी हैं ।
विश्व समुदाय बेहतर तरीके से यह समझने लगा है कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी व्यवस्था जनित इस जटिल प्रमेय को केवल भारत ही हल कर सकता है ।
अगर भारत ने कोई कठोर कदम उठा लिया और गिलगित बालटिस्तान की पक्ष में सफल हो गया तो चीन और पाकिस्तान स्थाई रूप से भारत की सामरिक शक्ति को समाप्त करने की कोशिश येन केन प्रकारेण अवश्य करेगा । परंतु हमारा अनुमान है कि- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर भारत अपनी सहिष्णुता की नीति के तहत तब तक कोई सामरिक कदम नहीं उठाएगा जब तक कि तत्कालीन पश्चिम पाकिस्तान वाली स्थिति पैदा ना हो जाए । अपनी पहचान एवं जीवन को बचाने के लिए तथा गिलगित बालटिस्तान की 15 लाख की आबादी का बहुत बड़ा प्रतिशत शरणार्थियों के तौर पर भारत में आना भारत के लिए एक अतिरिक्त भार होगा ।
वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के चलते भारत सही वक्त पर सही कदम अवश्य उठाएगा हमें भी तैयार रहना होगा ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
आने वाले 10-15 सालों में पाकिस्तान से भारत में शरणार्थी आना तय है..? (भाग 01)
डिवीजन | जिला | क्षेत्रफल (किमी²) | जनसंख्या (1998) | मुख्यालय |
---|---|---|---|---|
बल्तिस्तान | गान्चे | 9,400 | 88,366 | खपलू |
स्कर्दू | 18,000 | 214,848 | स्कर्दू | |
गिलगित | गिलगित | 39,300 | 383,324 | गिलगित |
दिआमेर | 10,936 | 131,925 | चिलास | |
ग़िज़र | 9,635 | 120,218 | गाहकुच | |
अस्तोर | 8,657 | 71,666 | गौरीकोट | |
हुन्ज़ा-नगर | सिकन्दराबाद | |||
गिलगित |
13.10.20
कोविड19 टोटल लॉक डाउन संस्मरण भाग 01
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