22.2.19

एक खत इमरान खान के नाम


श्री इमरान खान साहब
      सादर अभिवादन
आप आतंकवाद का शिकार है इस बात का पूरे विश्व को गुमान है किंतु आपने आतंकवाद का बायफरकेशन किया है.. इसलिए आप आतंकवाद से पीड़ित हैं ।
 इतना ही नहीं आप ने आतंकवाद को गुड टेररिज्म के नाम पर जो पाल रखा है उससे आपको निजात चाहिए तो भारत से क्षमा सहित  प्रार्थना कीजिए समूचा भारत आपकी एक  कदम आगे बढ़ने पर स्वयं दो कदम आगे बढ़कर आपकी मदद के लिए आगे आएगा । किंतु आप ऐसा नहीं कर पाएंगे क्योंकि आप एक ऐसी सिविल गवर्नमेंट के प्रमुख हैं जिसकी बागडोर आई एस आई और आप की फौज जिसके हाथ में आपकी सिविल गवर्नमेंट की डोर है ।
    इमरान साहब सोचिए आप के लोगों का शिक्षा का स्तर बेरोजगारी निर्धनता आप की सरकार को चलाने के लिए जरूरी पैसा आपके  औद्योगिक विकास की दर क्या है ?
    हर बार आप की ओर से युद्ध का शंखनाद होता है कई बार तो आप पीओके के रास्ते अपने किराए के सैनिक टेररिज्म फैलाने के लिए भारत में भेजते हैं । किंतु भारत को यकीन मानिए युद्ध सर्वदा अस्वीकार्य रहा है । अगर आपने  अब तक  किताबें ना पड़ी हो  तो पढ़ लीजिए  जिनमें स्पष्ट तौर पर  लिखा है - युद्ध के बाद  की परिस्थिति क्या होती है  । जिन देशों ने युद्ध की तस्वीर देखी है उनके नागरिकों से जानिए अगर नहीं जान सकते तो जानिए आर्काइव में जाकर युद्ध कितने खतरनाक और मानवता के विरुद्ध का षड्यंत्र है । लेकिन कुछ देश युद्ध को अपना अंतिम लक्ष्य मानते हैं । ना वे स्वयं शांति से रह सकते और ना ही अपने पड़ोसी देशों को शांति से रहने देते हैं । दक्षिण एशिया में ऐसे  दो उदाहरण हैं  एक पाकिस्तान और  दूसरा  चीन किंतु परिस्थितियों में पूरी तरह व्यवसाई है जबकि पाकिस्तान पूरी तरह 1947 के बाद से आज तक वही कटोरा लिए पूरे विश्व से मांगता फिरता है परंतु युद्ध की अभिलाषा  सदैव  बनी रहती  है ।
 वास्तव में पाकिस्तान एक कुंठित राष्ट्र है कुंठा से बनाया गया देश ठीक उसी तरह होता है जैसे गुस्सैल और चिड़चिड़ी दंपत्ति की संताने भी अपने माता पिता के पद चिन्हों पर चलती हैं ।
   कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान की बुनियाद सिर्फ इसीलिए दुनिया सिर्फ इसी लिए रखवाई  ताकि वे राष्ट्र प्रमुख बन जावे . और उनकी यही अति महत्वाकांक्षा ने ऐसे राष्ट्र का निर्माण कर दिया जो आतंक का घर बन गया है ।
 भारत का यह वह हिस्सा है  जहां भारत की रियासतों की कुंठित लोग जा बसे । सिंध गिलगित और बलूचिस्तान प्रांत के लोग जो वहां के मूल निवासी हैं को भी डिस्क्रिमिनेट किया जाने की कोशिश इन्हीं रियासतों की नवाबों ने 48 के आसपास ही शुरू कर दी थी । जहां तक कश्मीर मसले का सवाल है पाकिस्तान की देन है पाकिस्तान ने अगर 47 के बाद कश्मीर के भीतर घुसपैठिए ना भेजे होते तो आज बेशक बटवारा पाकिस्तान की हित में भी होता किंतु पाकिस्तान की अवाम को बेवकूफ समझने वाली पाकिस्तान की आर्मी के लोग पाकिस्तान के विकास को अवल दर्जा नहीं देते ।  और विश्व में उनका यश और सम्मान बना रहता किंतु आए दिन सुनने को मिलता है कि पाकिस्तान के पासपोर्ट पर नजर पड़ते ही विश्व के अधिकांश देश के लोग यहां तक कि प्रशासन भी व्यक्ति को संदिग्ध ही समझता है । यह बात मैं नहीं कह रहा हूं यह बात पाकिस्तान के लोग स्वयं स्वीकारते हैं ।
   पाकिस्तान ने इन 70 वर्षों में अपनी विश्वसनीयता खुद को ही है भारत ने कबायली घुसपैठियों को जो वास्तव में पाकिस्तान की  पहले आउट सोर्स आर्मी  के सिपाही थे उस समय सह लिया था । इमरान खान साहेब को पूरे सम्मान के साथ बता दिया जाना चाहिए कि  भारत की लोक आज भी हंडी पर चढ़ा हुआ चावल पक्का है अथवा नहीं केवल एक दाने से परख लेते हैं । भारत चाणक्य का देश है । भारत तक्षशिला नालंदा का देश है इन संदर्भों को पड़ोसी मुल्कों को हमेशा ध्यान रखना होगा खासतौर पर पाकिस्तान  को ।
    यहां हर एक व्यक्ति सामान्य रूप से शांति का अनुयाई है । जबकि जिन्ना साहब का पाकिस्तान 70 साल बाद भी कुछ खास हासिल न कर पाने वाला  आतंक का घर बना  है ।
     अगर यही स्थिति बनी रही तो आने वाले 10 सालों में पाकिस्तान गृह कलह गंभीर शिकार हो जाएगा । अगर पाकिस्तान को अच्छे और बुरे आतंकवाद का वर्गीकरण करना आता है तो उसे विकास का महत्व भी समझ में आना चाहिए था ।  पिछले 70 सालों में मोटा कपड़ा पहन कर पतला राशन खा कर भारत ने विकास की तरफ ध्यान दिया है भारत का हर परिवार का कोई ना कोई बच्चा भारत से बाहर जाकर नौकरी कर रहा है बावजूद इसके कि भारत में आज भी रोजगार के अवसर उतनी कम नहीं है जितने की पाकिस्तान में हैं । भारत की औद्योगिक विकास की रफ्तार को समझने की जरूरत है ।  अगर भारत से पाकिस्तान सद्भावना के साथ अच्छे और बुरे आतंकवाद को परिभाषित किए बिना आतंक के खिलाफ मदद मांगता तो निश्चित तौर पर भारत की सरकार मदद अवश्य  करती । किंतु जो राष्ट्र कुंठा का महासागर हो उस राष्ट्र के विद्वान भी महत्त्व हीन हो जाते हैं ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के लोग भारत के आम शहरीयों की तरह विकास नहीं चाहते ।  किंतु पाकिस्तान की सदा से कठपुतली साबित होती रही सिविल गवर्नमेंट में  आत्मशक्ति की कमी सदा से बनी रही .
    पिछले 1 सप्ताह में जब से भारत ने मोस्ट फेवरेट नेशन का दर्जा छीना है तब से पाकिस्तान के सप्लायर बेहद तनावग्रस्त है और यह मामला  पाकिस्तानी  गृहयुद्ध की स्थिति को बढ़ा बढ़ावा  देगा । अभी तो हमने अखरोट ही बंद किए हैं अभी टमाटर और शक्कर की ट्रक वापस तो जाने दीजिए देखिए किस तरह आप की चरमराती है अर्थव्यवस्था ध्वस्त ना हो जाए तो समझिए की साक्षात कुबेर आप पर मेहरबान हैं । पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री इमरान खान को समझ लेना चाहिए कि अगर वे बाहरी देश यानी भारत से युद्ध छेड़ देते हैं अथवा हमारी आतंक विरोधी नीतियों का समर्थन नहीं करते हैं तो इतना तय है की आप गृह युद्ध से आने वाली 10 सालों तक जुड़ते रहेंगे ।
    आपकी आवाम के प्रति भारत के किसी भी व्यक्ति में कोई दुराव नहीं है किंतु क्या आप जिस तरह इस्लाम के नाम  पर आतंक को पाल रहे हैं वह इस्लाम यह नहीं सिखाता की युद्ध करते रहो ।
   भारत में अगले डेढ़ साल तक चुनाव के अवसर आते रहेंगे लोकसभा के बाद स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे हमारे ऐसे डेमोक्रेटिक पर्व मनाए जाते रहेंगे ।  भारत का प्रजातंत्र युद्ध  जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देता सबको अपनी अपनी सहिष्णुता पर विश्वास है भारत नहीं चाहता कि आपके बच्चे भूखे नंगे रहें । बल्कि भारतीय चाहता है कि आप भी वैसे ही तरक्की करें जैसी भारत ने की है ।
 आप युद्ध के इतने शौकीन हैं तो इमरान साहब ध्यान रखिए की युद्ध क्रिकेट का खेल नहीं है और अगर आपने अपने अध कचरे राजनीतिक ज्ञान के आधार पर युद्ध करने की कोशिश की तो आप की स्थिति क्या होगी इसका मीजान आपको शीघ्र लगाना होगा ।  शीघ्र यानी एक-दो साल नहीं बल्कि अगले 15 दिवस में ।
शेष अगले पत्र में ।
    ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे
 

18.2.19

“पहले अंदर की सफ़ाई करो फ़िर पाकिस्तान की ठुकाई करो ! !”

पहले अंदर की सफ़ाई करो
फ़िर पाकिस्तान की ठुकाई करो ! !

बहुत से मित्र लगातार मेसेन्जर पर आग्रह कर रहे थे , कि मैं पुलवामा की घटना पर कुछ लिखूं ! !
(कुछ दिनों से मैं fb पर नहीं था , इसी बीच पुलवामा की घटना घट गई ! )
चलिए , लिख रहा हूं !
आज अभी ही फ़ेस बुक अकाउंट खोला है !
सबसे पहले तॊ कामरान गाज़ी औऱ बिलाल जैसे दुर्दांत टेरेरिस्टस के ढ़ेर किए जाने की बधाई !! !
आज fb खोलते ही Time line पर 50-60 पोस्ट scroll कर- कर के देखीं !
जो मैं नहीं पढ़ना चाहता था , औऱ पढ़ने मिला , ...वो ये था -

- ये Security failure है !
- ये शहादत नही है, क्योंकि वे 40 martyrs, लड़ते हुए नही मरे !
- ये हमला , चुनाव से एन पहले सरकार की साज़िश तॊ नही ? ?
- कश्मीर पाकिस्तान को दे दो, झंझट ख़त्म करो !
- भारतीय फ़ौज कश्मीर में मानवाधिकाओं का हनन करती है !
- हुर्रियत नेताओं से बातचीत ज़रूरी है , वे कश्मीर की आवाज़ हैं !
- राष्ट्रवाद , फासीवादी सोच है !
- इसके अलावा मोदी को ढ़ेर सारी गालियां भी ! !

ऐसा लिखने वालों को कुछ भी कहने से पहले ये जान लें कि इनकी संख्या कोई छोटी- मोटी नही है ! आबादी का 10% हैं !
इंटेलेक्चुअलस में इनकी संख्या 30% है !
औऱ इन सो कॉल्ड बुद्धिजीवियों से भाई- बंदी रखने वालों की संख्या भी कुछ कम नही है !

पहले सोशल मीडिया में छिपे गद्दारों की ही बात कर लें !
आपको अपनी ही फ्रेंड-लिस्ट में ऐसे सैकड़ों लोग मिल जाएंगे जो इन राष्ट्रविरोधी औऱ So called मानवाधिकार वादी सोच रखने वाले बुद्धिजीवीओं की पोस्टों पर likes भी देते हैं !

पहले तॊ मैं आप ही से कहता हूं कि अपना दोगलापन बंद करें !
बिन पेंदी के लोटे न बनें !

अपनी प्रामाणिकता बना कर रखें !

जब तक 'एक विश्व' की अवधारणा पूरे विश्व में नही आती है, तब तक राष्ट्रवाद आवश्यकता है ! जी हां , प्रखर राष्ट्रवाद ! !

अंडमान निकोबार में अभी भी ऐसे कबीले मौज़ूद हैं , जो बाहरी लोगों को देखते ही एकजुट हो जाते हैं ! वे अपनी बनाई संस्कृति औऱ जीवन पद्धति खोना नही चाहते ! !
अमरीका के ख़िलाफ़ वियतनाम युद्ध इसकी मिसाल है !
( राष्ट्रवाद औऱ मानवाधिकार , इस विषय पर कभी अलग से पोस्ट लगाऊंगा ! )

भारत में राष्ट्रवादी चिंतन कभी भी पूर्णतः विकसित नही हो पाया ! इसके इतिहासगत कारण हैं !
अलग - अलग क्षेत्रों के राजाओं के अपने - अपने स्वार्थ थे ! !

यहां जयचंद , मीर ज़ाफर औऱ सिंधिया जैसे गद्दारों की परम्परा बहुत पुरानी है !
326 ई .पू . महान पोरस के ख़िलाफ़ आम्भीक की गद्दारी से लेकर अब तक ये देश गद्दारों से जूझ रहा है !

वर्तमान में इस गद्दारवादी सोच ने राष्ट्रवाद विरोधी , मानवाधिकार समर्थित , वामपंथी जामा ओढ़ लिया है ! !

इन Shortsightedness वाले, पत्थर बाजों के समर्थक कमअक्लों को यह तक नही पता कि दूसरे देशों में मानवाधिकार के क्या क़ानून हैं !

कम्युनिस्ट चीन में 10 लाख वीगर मुसलमान (Uighur Muslims ) जेल में डाल दिए गए हैं !
उनकी मस्जि़द बंद , दाढ़ी नही रख सकते , बुर्का नही पहन सकते !
शिन जियांग में उनकी नसबंदी तक कराई जा रही है !
ज़रा इस पर भी तॊ बोलें भारत के कम्युनिस्ट ? ?
वहां जाकर बोलिए -
" चीन तेरे टुकड़े होंगे , इंशाअल्लाह इंशा अल्ला !"
टैंकों से रौंद डालेगी , वहां की कम्युनिस्ट सरकार !

सऊदी अरब , मलेशिया , कुवैत आदि के क़ानून आपको वैसा जीने की इजाज़त नही देते , जैसा आप भारत में जीते हैं ! !

अगर 'बम' में दम है , तॊ वहां जाकर मानवाधिकार की बातें कीजिए ! !

कोड़े मारकर आपकी 'बम ' सुजा देंगे वे लोग ! !

जब तक विश्ववाद साकार नही हॊता है , तब तक
राष्ट्रवाद एक अनिवार्य आवश्यकता है, ये बात अच्छी तरह से समझ लें ! !
मेरे देखे तॊ भारत की समस्या ही यह है कि यहां प्रखर राष्ट्रवाद कभी आकार ही नही ले पाया !

हर युद्ध में आधा संघर्ष अपने ही लोगों से हुआ है !
आधी लड़ाई भीतरघातियों , आस्तीन के साँपो से लड़ना पड़ी है ! !
सिकंदर से लेकर हूणों तक , औऱ तुर्क, अफगानों, मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ! !
हर लड़ाई में 10 फ़ीसदी गद्दार अपने ही बीच मौज़ूद थे ! !
आज गद्दारी का स्वरूप बदल गया है !
अब गद्दारों का हथियार सोशल मीडिया , न्यूज़ चैनल , कांफ्रेंस , सेमिनार हैं ! !

पहले गद्दारों का काम , सैन्य सहायता देना , ख़ुफ़िया जानकारी leak करना हॊता था !
अब इनका काम , राष्ट्रवाद की जड़ों पर मठ्ठा डालना है ! !
इनसे जूझने के लिए पोरस , राणा प्रताप , शिवा जी औऱ लक्ष्मीबाई जैसे उन्नत भाल योद्धाओं की पुनः दरकार है ! !

औऱ जो लोग राष्ट्रवाद को फ़ासीवाद कहते हैं , वे जान लें कि अगर सचमुच ही फासीवाद आ गया न , तॊ यहां गद्दारों की वही दुर्गत होगी जो हिटलर नें यहूदियों की की थी !
लाल झंडे के नीचे स्टालिन नें जो कत्लेआम किया था वो किससे छिपा है !
अब वह विचारधारा (Left ) विश्व में अस्वीकार हो चुकी है !

जिसका झंडा ही नही बचा , उसका डंडा कब तक पकड़े रहेंगे आप ? ?
जो लोग अपने आरामदायक कमरों में बैठकर कॉफ़ी पीते हुए , यह कह रहे हैं कि -
'राष्ट्रवाद एक ज़हरीली मनोवृति है , ' वे जान लें कि ..जब आतंकवाद (पाकिस्तान ) औऱ विस्तारवाद (चीन ) रूपी दुश्मन आपका टेंटुआ दबाने सिर पर खड़ा होगा ना ,
उस वक़्त राष्ट्रवाद ही आपकी रक्षा करने वाला है !
जांबाज फ़ौजी ही काम आएंगे तब ! !

ये बड़ी बिंदी औऱ उजड़े बालों वाली पलटन नही !

घरों में अवार्ड सजाने वाली गैंग नही , बल्कि कंधे पे मेडल सजाए फ़ौजी ही काम आएंगे तब ! !

उस वक़्त आपकी क़लम औऱ ब्रश काम नही आएंगे !

उस वक़्त तॊ ,
बंदूक उठाकर दुश्मन के माथे पे टिकली बना देना ही बड़ी से बड़ी चित्रकारी है ! ! !
उस वक़्त तॊ ,
गोली की आवाज़ ही महानतम कविता है ! !

अब एक- एक करके उन बातों का ज़वाब जो पोस्ट के शुरू में मेन्शन की थीं ! !

- ये सिक्योरिटी फेल्यर है !
उत्तर - सेना जनरल का बयान पढ़ें , जिसमें उन्होनें कहा कि मेहबूबा सरकार नें हर जगह चेकिंग के नियम को रद्द करवा दिया था ! मानवाधिकार उल्लंघन के नाम पर ! !
दुसरी बात , आत्मघाती दस्तों से सुरक्षा की समस्या , पूरे विश्व की समस्या है !
अमरीका के Twin Tower उड़ा दिए गए थे !
श्रीलंका में दशकों तक इनका आतंक चला है !
इंग्लैंड , फ्रांस जैसे देश भी फिदायीन दस्ते का ईलाज नही खोज पाए हैं , अब तक ! !
तॊ कृपया इसे Security failure कहना बंद करें !
हां , जो Loopholes हैं , वे अवश्य दूर किए जाने चाहिऐ ! !

- ये शहादत नही है !
उत्तर - शहादत सिर्फ़ लड़ते हुए मरना नही हॊता !
छिपी हुई माईन्स पे पैर पड़ जाना , बम डिफ्यूज़ करते समय बम का फट जाना , रिमोट बलास्ट , पीछे से गोली , डायरेक्ट फाईट , one to one fight ..ऐसे अनेक रूपों में शहादत देते हैं हमारे फ़ौजी ! !
तॊ कृपया ऐसी जहालत भरी , गलीज बातें ना करें , कि ये शहादत नही थी ! !

- कश्मीर पाकिस्तान को दे दें ! !
उत्तर - कश्मीर का सामरिक , रणनीतिक महत्त्व जिन्हेँ नही मालूम , वे ही ऐसी बातें कह सकते हैं !
सामरिक महत्त्व के सारे ठिकाने भारत के नियंत्रण में होने चाहिएं ! !

इसी तरह अनेकों प्रश्नों के ज़वाब देने को मैं तैयार बैठा हूं ! !
आख़िरी बात ,
हमने सफ़ाई शुरू कर दी है !
बहुत सारे मानवतावादी , राष्ट्रविरोधी लोग Unfriend कर दिए गए हैं ! !
ऐसा कोई भी नज़र आया , जिसने स्वंय या किसी अन्य की राष्ट्रविरोधी पोस्ट share की , या like की , तॊ वह तत्काल प्रभाव से Unfriend कर दिया जाएगा ! !

क्योंकि अंदर की सफ़ाई तॊ हमें ही करनी है !
बाक़ी , पाकिस्तान की ठुकाई तॊ सेना कर ही लेगी !
Salute to Indian Army ! !
जय हिंद ! !

##सलिल ##

16.2.19

आंतकवाद की गर्भनाल पर प्रहार करो ज्वलंत : जयराम शुक्ल


"कल सपने में इन्दिराजी दिखी थीं। रक्षा मंत्रालय के वाँर रूम में  इस्पात से दमकते चेहरे के साथ युद्ध का संचालन करते हुए।
दृश्य 1971 के युद्ध के दिख रहे थे। ढाका में पाकिस्तान का जनरल नियाजी अपने 93 हजार पाकी फौजियों के साथ ले.जनरल जेएस अरोरा के सामने घुटने टेके हुए गिड़गिड़ाता हुआ।
इधर गड़गड़ाती तोपों के साथ लाहौर और रावलपिन्डी तक धड़धड़ाकर घुसते टैंक। आसमान से बमवर्षक जेटों की चीख और धूल-गदरे-गुबार से ढंका हुआ पाकिस्तान का वजूद।
मेरे जैसे करोड़ों लोगों को आज निश्चित ही इन्दिराजी याद आती होंगी जिन्होंने देश के स्वाभिमान के साथ कभी समझौता नहीं किया।".........
-तब से अब तक की जमीनी हकीकत में यह बदलाव हुआ कि पाकिस्तान  दुनिया भर के शैतानों की धुरी बन चुका है। हर कोई उसे इजराइल शैली में जवाब देने की बात करता है
-हकीकत के फलक पर खड़े होकर एक बात गौर करना होगी। इजराइल जिन मुल्कों से घिरा है उनके पास आणविक हथियार नहीं हैं तथा उसकी पीठ पर अमेरिका, इंग्लैण्ड और फ्रांस जैसे नाटो देशों का हाथ है।
-यहां पाकिस्तान एटम बमों से लैश है, उसकी शैतानियत की गर्भनाल इन्हीं एटमी हथियारों के नीचे गड़ी है। सही मायने में पूछा जाए तो दुनियाभर के इस्लामिक आतंकवाद को यहीं से ऊर्जा मिलती है।
-अब तक दुनिया में जहां कहीं जितनी भी बड़ी आतंकी वारदातें हुयी हैं उसका प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान से सम्बन्ध रहा है।
- पाकिस्तान को सेवा-चिकित्सा व शिक्षा के क्षेत्र में अमेरिका जितना भी अनुदान देता है उसका हिस्सा हाफिज के जमात-उद-दावा, जैश-ए-मोहम्मद के खाते में चला जाता हैं और उसी रकम से कश्मीर में जब-तब दबिश देने वाले आतंकी तैय्यार होते हैं।
-पाकिस्तान को लेकर अमेरिका की नीति अभी भी भारत के लिए एक अबूझ पहेली की भांति है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि अमेरिका सबकुछ जानते हुए भी आँखे मूदे हुए है,और उसी की खैरात में दी गई रकम से अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी संगठन पल रहे हैं।
- जनमत के दवाबवश जब अमेरिका पाकिस्तान की मदद से थोड़ा पीछे हुआ तो चीन ने उसकी भरपाई कर दी। अजहर मसूद उसका घोषित लाड़ला बना हुआ है।
-याद करिए संयुक्तराष्ट्र संघ की सहमति से अमेरिका ने इराक पर इस संदेह के आधार पर हमला कर उसे बर्बाद किया था कि वहां उसने जैविक व रासायनिक हथियार जुटा लिए हैं।
-अमेरिका को वो नरसंहार के हथियार मिले या नहीं लेकिन इराक मिट्टी में मिल गया और सद्दाम हुसैन को चूहे की मौत
मिली।
-यह निष्कर्ष भी अमेरिकी का ही है कि पाकिस्तान की मिलिट्री और उसकी खुफिया एजेन्सी आईएसआई आतंकवादी संगठनों से मिले हुए हैं और वे इनका इस्तेमाल पड़ोसी देशों के
खिलाफ रणनीतिक तौर पर करते हैं।
- पाकिस्तान की जम्हूरियत  वहां की मिलिट्री की बूटों के नीचे दबी है।  लोकतंत्र महज मुखौटा हैं। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के एटमी हथियार
सर्वदा असुरक्षित हैं और जो मिलिट्री एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को पाल सकती है वह किसी भी हद तक जा
सकती है।
-आतंकवाद का दायरा जिस तरह बढ़ता जा रहा है आज नहीं तो कल एक निर्णायक जंग छिडऩी ही है ऐसी स्थिति में यदि पाकिस्तान के एटमी हथियारों का जखीरा आतंकवादियों के हाथ लग गया तो दुनिया का क्या हश्र होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

-जेहाद के नाम पर आतंक का कारोबार करनेवाले जैश ए मोहम्मद, आईएसएस, अलकायदा और तालीबान जैसे संगठनों के शुभचिन्तक पाकिस्तान की मस्जिदों के बाहर मिलिट्री में भी हैं व वहां के राजनीतिक संगठनों में भी।

- अब वक्त की मांग यह है कि पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठान को संयुक्त राष्ट्र संघ अपने कब्जे में लेकर इस बात का परिक्षण करे कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम कितना शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और कितना उसके शैतानी मंसूबों के लिए।

- भारत की अब यही रणनीति होनी चाहिए कि वह पाकिस्तान पर कार्रवाई के लिए वैसा ही विश्वमत बनाए जैसा कि अमेरिका ने कभी ईराक के खिलाफ तैय्यार किया था। यूरोपीय देशों की हर आतंकी घटनाओं के सूत्र पाकिस्तान से संचालित होते हैं। आज पुलवामा में धमाका हुआ है तो कल ऐसे ही पेरिस परसों लंदन और नरसों वाशिंगटन में भी हो सकते हैं।

- अब जरूरी है कि पाकिस्तान के एटमी जखीरे पर संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना का कब्जा हो। या विश्व जनमत भारत की ऐसी कार्रवाई का समर्थन करने आगे आए।

-परमाणु शक्तिविहीन पाकिस्तान में कोई आतंकी शिविर भी नहीं चल पाएंगे क्योंकि ऐसी स्थिति में इन शिविरों को निपटाने में भारत कोई ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

-और अंत में
सांप को वश में करना है तो उसके विषदंत को तोड़ दीजिए, इसके बाद भी फुफकारे तो कुचल दीजिए, समूचा देश यही चाहता है । आम हिन्दुस्तानी को उसके एटम बम का डर नहीं क्योंकि जब राष्ट्र रहेगा उसका स्वाभिमान बना रहेगा तभी जीने का मतलब है।

संपर्कः 8225812813

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28.1.19

बैंडिट क्वीन वाली सीमा याद है न ?


                                         

                  हाँ वही सीमाबिस्वास जो साधारण से चेहरा लिए जन्मी , एन एस डी से खुद को मांजा और बन गई विश्व प्रसिद्ध फ़िल्म बैंडिट क्वीन की सबसे चर्चित नायिका । सीमा विश्वास जो काम किया है वह उनका कला के प्रति समर्पण का सर्वोच्च उदाहरण है । अगर आप उनके जीवन जाने तो पता चलता है कि कला साधना असाधारण लोग ही कर पाते हैं । असाधारण लोग लक्ष्य पर सीधा देखते हैं । 
सीमा की कहानी देख कर लगा कि - "जीवन संघर्ष कुछ न कुछ देकर जाता है ।" 
मुझे हमेशा महसूस होता है कि कलाकार की ज़िंदगी एक अभिशप्त गंधर्व की ज़िंदगी होती है । उसे औरों के सापेक्ष बेहद मेहनत करनी होती है । 
सीमा विश्वास नवाजुद्दीन सिद्दीकी ओम पुरी यह कोई खास चेहरे वाले नहीं है यह ग्लैमरस चेहरा नहीं लेकर आए हैं पर अपनी अभिनय क्षमता के दम पर आपने देखा होगा यह उत्कृष्टता के उन मानकों पर खरे उतरते हैं जो एक अभिनेता के लिए जरूरी है . अपने दौर में यह शापित गंधर्व कितना कष्ट सह रहे होंगे इसका अंदाज उनकी बायोग्राफी से लगाया जा सकता है . आईएएस बनना डॉक्टर इंजीनियर बनना औसत ख्वाहिश है ! मध्यमवर्ग खासकर भारत का एक लीक पर चलने का आदी होता है उसे रिस्क उठाने का अभ्यास नहीं है कारण है पारिवारिक आर्थिक परिस्थितियां जो निश्चय के घनघोर पर्यावरण में आकार लेती हैं. और हजारों हजार कलाकार मर जाते हैं उन सब में क्रिएशन और क्रिएटिविटी समाप्त हो जाती है कारण सिर्फ इतना होता है कि उन्हें कोई सपोर्ट आसानी से नहीं मिलता समझ गए ना आप क्यों कह रहा हूं कि कलाकार अभिशप्त गंधर्व होते हैं .
लेखक कवि साहित्यकार नाटक संगीत साधक और चित्रकार ईश्वर के बहुत करीब होते हैं इसीलिए कई तो ऐसे भी देखे गए जिनके पास जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते ।
समाज उन्हें नसीहत देता है पान की दुकान क्यों नहीं खोल लेते ?
कुछ लोग पूछते हैं क्या सोच के तुमने यह लाइन चुनिए कोई गवईये नचइये बन जाने से पेट नहीं भरता ..... छोड़ो यह सब बकवास है कुछ हुनर सीखो जो पेट के लिए काम आए यह पेंटिंग वेंटिंग बनाना यह सब क्या है ?
कला से कभी भी आपका कैरियर सुनिश्चित नहीं रहता यह अलग बात है कि कभी किसी को प्रतिष्ठा मिल जाती है । शापित गंधर्व को बहुत कुछ सोचना पड़ता है बहुत कुछ समझना पड़ता है यह दुनिया को असल राह भी बताएं तो भी लोग उस पर कोई विश्वास नहीं करते । तब तो और मदद नहीं होती जब भी अभाव के साथ सीखते रहते हैं ।
लेकिन यश पाते ही कलाकारों के आगे पीछे दुनिया घूमती है । मेरी एक शिष्या शालिनी अहिरवार ने कल ही मुझसे पूछा था :- कि आज जो हाथ प्रतिष्ठित कलाकार के गले में मालाएं कांधे पर दुशाला डालकर सम्मान देते हैं.... तब कहां होते हैं सर जब एक साधन हीन कलाकार क अपनी साधना में व्यस्त होता है उसे उस वक्त बड़े सपोर्ट की जरूरत होती है किंतु ना तो परिवार ना ही समाज कोई भी मदद करने आगे नहीं आता ?
सवाल स्वाभाविक है और सवाल विचारणीय है शालिनी सही पूछ रही है शुरुआत घर से होनी चाहिए लेकिन घर भी एक सीमा के बाद कलाकार के प्रति अपनी संवेदनाएं तिरोहित कर देता है परिवार के लोग उस कला साधक की उपेक्षा करने से बाज नहीं आते तो समाज के लोग निश्चित तौर पर उपेक्षित कर ही देंगे । 
जबलपुर के रघुवीर यादव को अक्सर लोग हंसी में उड़ाते थे रघुवीर यादव हमारे शहर के ही महान कलाकार हैं लेकिन जब वे जबलपुर में अपनी कला साधना कर रहे थे तो लोग कितने पॉजिटिव थे उनके इस काम के लिए पूरा शहर जानता है और जैसे ही एकेडमी का वर्ड उन्हें हासिल हुआ मैसी साहब फिल्म के लिए तो प्रथम ग्रह आगमन पर घर में जगह नहीं थी वेलकम करने वालों की संख्या और घर की लंबाई चौड़ाई यानी क्षेत्रफल मैं कोई संतुलन नहीं था कुल मिलाकर अभावग्रस्त जीवन उपेक्षा और अमर्यादित नसीहत है कलाकार को छलनी करती है लेकिन यही से निकलता है आत्मविश्वास का रास्ता ।
शालिनी ड्रामा आर्टिस्ट है ड्रामा डायरेक्शन में भी रुचि है और तो और लिखती भी है सोच से बहुत मजबूत है लेकिन अभाव औसत मध्यमवर्ग की तरह उसे भी घेरे रहते हैं पर शालिनी के साथ एक अच्छी बात है कि उसके परिवार से उसे पूरा सपोर्ट मिलता है ।
मुझे बेहतर तरीके से याद है कि मेरी आने के पहले इन्हें डूबे हुए सूरजों को मंच दिलाने के नाम पर कुछ लोगों ने बहुत शोषित किया है । एक खास विचारधारा से जोड़ने की कोशिश की और बाल एवं किशोर कलाकारों की अपनी उड़ानों पर रोक लगाने की अनजाने में कोशिश की । 
2014 के वर्षान्त में बाल भवन आते ही मुझे यह बात खटकने लगी थी कि एक खास सख्शियत ने बच्चों को गुमराह कर रखा है । बच्चों की प्रतिभा संवारने की बजाय एक खास विचारधारा से जोड़ा जा रहा है । 
प्रतिभाओं के साथ इस तरह का बर्ताव किसी भी साधक से करना ईश्वर की आराधना नहीं बल्कि ईश्वर के काम में बाधा डालना है ।
पूरे 3 बरस लगे उस सख्शियत को बच्चों के दिमाग़ से हटाने में । अदभुत प्रतिभा के धनी बच्चों को उसके मोहजाल से निकाला और फिर शुरू की साधना .... लगातार बच्चों के अभिभावकों में आकर्षण और विश्वास भी बढ़ने लगा । काश सब समझें सब मेरे दर्द को
*मैं इन डूबे हुए सूरज को उठाने की कोशिश में लगा हूं आप भी साथ दीजिए ना !*

17.1.19

जीवन के प्रमेय : गिरीश बिल्लोरे




*जीवन के प्रमेय*
हैं ये साध्य असाध्य से
तुम इनको साध्य नाम मत दो
ज़िन्दगी की त्रिकोणमिति में
एक मैं हूँ जिसे सारे प्रमेय
सिद्ध करने हैं
वह भी तब जब कि
आधार भी मैं ही हूँ ?
जब आधार में हम न होते तब
आसान था न
सब मान लेते इस सिद्धि को !
है न
पर तुम हो कि आधार से
सम्पूर्ण साध्य की सिद्धी पर आमादा
ओह ! ये मुझसे न होगा
करूंगा भी तो
सिर्फ अपने लिए
सबको यही करना होगा !
********
*एक अकेला कँवल*
एक अकेला कँवल ताल में,
संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने,
तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ सा,
तिनका तिनका छीन कँवल से
दौड़ लगा देता है दरिया
कभी कभी तो त्राण मसल के !
सब को भाता, प्रिय सरोज है ,
उसे दर्द क्या कौन सोचता ?
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*



7.1.19

स्वामी विवेकानंद 156 वीं जयंती पर आत्मचिंतन



*ये सब क्या आसान नहीं !*
विवेकानंद की आत्मकथा की दूसरी बार अध्ययन करते समय मेरी निगाह उस पन्ने पर जाकर रुक जाती है , जहां कि स्वामी विवेकानंद ने आदि गुरु शंकराचार्य के हवाले से लिखा है की दुनिया में तीन चीजें आसानी से उपलब्ध नहीं होती एक मनुष्यत्व दूसरी मुमुक्षत्व अर्थात  मुक्ति की कामना और तीसरी महापुरुषों का साथ !
तीनों का मिलना आज के युग में बेशक कठिन है । इसे कैसे प्राप्त करना है आगे बताऊंगा अभी तो जानिए कि स्वामी विवेकानंद के 39 वर्षीय जीवन का मूल्यांकन करना मेरे जैसे जड़ बुद्धि के लिए वैसा ही है जैसे काले वाले कम्बलों को रंगना ।
           पर उनके जीवन क्रम से इतना अवश्य सीख चुका हूं कि किसी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार लेना कदापि ठीक नहीं ।
                      विवेकानंद के जीवन का प्रारम्भ इसी बात की ओर इशारा करता है । मैं यह लेख किसी भी प्रकार की धार्मिक दृष्टांत के तौर पर नहीं लिख रहा हूं मैं उतना ही नास्तिक हूं जितना विवेकानंद ने मुझे बताया उनकी सलाह है कि मैं नास्तिक रहूं... पर  किसके लिए पर किसके प्रति आस्थावान न रहूं   अपने कथन के आगे वाले हिस्सों में स्पष्ट कर दूंगा ।
        सबसे पहले यह जान लीजिए कि स्वामी विवेकानंद गुरु देव को अंगीकृत करने में 6 साल का समय लगाया स्वामी रामकृष्ण परमहंस बहुत धैर्यवान थे उन्होंने भी जो लक्ष्य किया था की विवेकानंद को वह अपना सब कुछ सौप कर जाएंगे उन्होंने वैसा ही किया वैसा ही हुआ ।
स्वामी विवेकानंद ने अपनी पारिवारिक परिस्थितियों का जिक्र करते हुए परमहंस से कहा कि मेरी तकलीफों दुखों का अंत करा दो स्वामी, रामकृष्ण ने उनकी तकलीफों के अंत के लिए सीधे मां काली के समक्ष निवेदन करने को कहा।
रात्रि के दूसरे तीसरे पहर में चमत्कार सा हुआ स्वामी विवेकानंद पहली बार मां के दर्शन के लिए कमरे में गए मां के समक्ष उन्हें माने साक्षात दर्शन दिए साकार मां के दर्शन पाकर स्वामी विवेकानंद ने मां से कहा मां मुझे विवेक दो वैराग्य दो ज्ञान दो भक्ति दो ताकि मुझे तुम्हारे निरंकर दर्शन का लाभ मिलता रहे ।
परमहंस जानते थे कि ऐसा कुछ ही चल रहा है विवेकानंद जाएंगे और अपने भाइयों और परिवार के बारे में कुछ ना बोलेंगे उन्होंने दूसरी बार भी जा फिर तीसरी बार भी हर बार विवेकानंद केवल यही सब मांगते रहे ।
बस यह अध्याय मेरे जीवन का अंतिम और प्रथम उद्देश्य है ऐसी स्थिति तब आती है जब की मन में ना किसी के अपयश का प्रभाव नाही यश की अपेक्षा हो ऐसा ही विवेक के साथ हुआ मैं विवेकानंद नहीं हूं अभी मुझे शत-शत जन्म देने होंगे आत्मा के शुद्धिकरण के लिए एक जन्म पर्याप्त नहीं है ।
पर अच्छा गुरु मिल जाए तो मुक्ति मार्ग की कल्पना की जा सकती है । मनुष्य मात्र को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि वह सब कुछ करता है सड़कों पर घूमता हुआ भिखारी जब यह गाता है करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है तो वह भीख नहीं मांग रहा होता वास्तव में इस तत्व का दर्शन करा रहा होता है की मनुष्य होने की पहली शर्त है कि अस्थावान बनो ! तभी मनुष्यत्व पाओगे जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने भाषित किया है ।
        स्वामी विवेकानंद ने शंकराचार्य के हवाले से मुमुक्षत्वं की ओर संकेत किया है अर्थात मुक्ति की कामना मुक्ति की कामना दैहिक भौतिक कदापि नहीं है मुक्ति की कामना सर्वदा आध्यात्मिक और आत्मिक चिंतन पर अवलंबित है सबसे पहले अच्छा मनुष्य बनना जरूरी है फिर मुक्ति की कामना काम मार्ग सरलता से प्रशस्त हो ही जाता है ।
           स्वामी विवेकानंद जी के जन्म को 156 वर्ष से अधिक होने को आए हैं फिर भी महापुरुषों के होने का एहसास अब तक मुझे नहीं हो रहा है उनका तमाम साहित्य मौज़ूद है फिर भी यह सोच कर कि मैं महापुरुषों की संगत में कैसे जाऊं दुखी हूँ वास्तव में दुःखी होने की जरूरत ही नहीं है । रोज़ रात अब उनको सिरहाने रख लेता हूँ । याद आते ही पढ़ लेता हूँ  लो हो गई न महापुरुष की संगति यही तो आदि गुरु शंकराचार्य ने महापुरुषों की संगत के बारे में जो कहा था ।  यही तो  मेरे जीवन का भी तीसरा उद्देश्य है ।
     फिर भी सोचता हूँ महापुरुषों को कैसे पहचान पाऊंगा ? अभी तो गुरु ही नहीं कर पाया हूं उम्र की आधी सदी पार कर चुका हूं पिछले नवंबर में 55 का हो गया हूं और अभी तक मैंने गुरु दीक्षा ही नहीं ली है ? और फिर मानस में मुक्ति की कामना भी को भी तो सृजित करना है ...?
        पर जब चिंतन करता हूं तो पाता हूं की प्रभु दत्तात्रेय कितने गुरु बनाए थे आप सब जानते हैं । यह मिथक नहीं है दत्तात्रेय पहचानने में कोई गलती नहीं की वह जिससे गुण हासिल कर लेते उसे गुरु का पद दे देते । अगर आपको भौतिक रूप में गुरु की प्राप्ति नहीं है न आप गुरु की तलाश न कर सके हो आज से ही आत्म चिंतन प्रारंभ कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में आत्मा से बड़ा गुरु कोई नहीं हो सकता ।
पर रोटी कपड़ा मकान और उसके बाद आज के दौर में यश सम्मान बैंक बैलेंस बेहतरीन स्टेटस जैसी जरूरतें भी तो आन पड़ी हैं ! जाने दीजिए बहुत बड़े विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है अच्छा मनुष्य बनने के लिए मात्र सरल रास्ता और बता दूं वह है मानवता का किसी की आंखों में आंसुओं का गिरना देखना जिस दिन तुम्हें भारी पड़ने लगेगा उस दिन तुम अच्छे मनुष्य बन जाओगे और उसी दिन मुमुक्षत्व का आभास तुम्हें हो जायेगा जैसी नवम अवतार बुद्ध को हुआ था समझ गए न सुधिजन बुद्ध राजकुमार से अचानक मनुष्य हुए और फिर उनमें मुमुक्षत्व भाव का प्रवाह हुआ महापुरुषों का संग फिर सहज हो जाता है ।
ध्यान रहे हम बुद्ध के काल भी नहीं है हमारा काल है फर्जी धन संग्रहण करने वाले व्यापारी महापुरुषों का दौर है ।
सुधिजन कृपया प्रभु की शरण में जाने के पूर्व हमारी आध्यात्मिक आईकॉन के जीवन को पढ़ ले आप को संत की संगत अर्थात महापुरुषों से मिलना सहज जावेगा ।
        पूर्व में आस्था और अनास्था का ज़िक्र किया था तो जानिए मैं निरा नास्तिक हूँ - रिचुअल्स को लेकर । उन रिचुअल्स पर मेरी तनिक भी आस्था नहीं है जो डराते हैं कि ऐसा न किया तो ईश्वरीय कोप का भाजन होना होगा । ईश्वर प्रेम का व्यापारी है गुस्सैल दैत्य नहीं है जिसे नाराज़गी हो ।  ब्रह्म के प्रति आस्तिक हूँ जो निरंकार है निर्विकार है सृजक है संवादी है उसके मेरे बीच न पंडित न मुल्ला न पादरी न और कोई भी भाषण कर्ता प्रवचनकार ।
      रास्ते उसके ( ईश्वर के ) हैं वही बताएगा कि कैसे चलना है किस रास्ते चलना है । बस एक बार मिल तो लूँ उससे पर बहुत मायावी है मानस में छिपा हुआ है नज़र नहीं आता ।
ॐ श्री रामकृष्ण हरि

5.1.19

नववर्ष चिंतन बनाम चिंता

नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं बीता 2018 कुछ दे गया कुछ ले गया और यह आदान-प्रदान स्वभाविक है यह साल भी आया है कुछ दे जाएगा कुछ ले जाएगा ।
               2018 में अगर हनुमान जी के कास्ट सर्टिफिकेट के जारी करने का मामला प्रकाश में आया है तो कहीं ऐसा ना हो कि सर्टिफिकेट की फोटो कॉपी विभिन्न मंदिरों में चस्पा 2019 में अगर आप देखे हैं तो कोई बड़ी बात नहीं ।
               सच कहूं अब तो किसी भी विषय पर लिखने में डर लगता है  किस विषय पर कौन क्या सोच है रहा  है । सामान्यतः देश को चलाने के लिए विचारधाराएं ला दी जाती हैं लेकिन देश क्या चाहता है जनता क्या चाहती है जन गण की सोच का मनोवैज्ञानिक यानी साइक्लोजिकल विश्लेषण करना जरूरी है । सियासत को चाहिए कि वे जिस भाषा में आपस में संवाद करते हैं उसका स्तर और बेहतर कर सकने में अगर सफल हुए तो जन गण उन्हें सम्मान के नजरिए से देखेंगे । ऐसा नहीं है कि  सियासी लोग काम नहीं करते उनका अपना काम करने का तरीका है मैं अपने तरीके से सोचते हैं उनका भी लक्ष्य की तिरंगे की आन बान शान बनी रहे लेकिन अचानक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सत्ता की ओर जब कदम बढ़ते हैं तो कुछ ना कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिससे कि सामाजिक समरूपता में कहीं ना कहीं कोई समस्या पैदा हो जाती है 2018 ऐसी घटनाओं से सराबोर रहा है बहुत कुछ देखने सुनने को मिला है लेकिन कुछ ना कह सका पर लेखककीय दायित्व बोध है मुझे और अपने दायित्वों का निर्वाहन संविधान में प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में करना चाहूंगा ।
जाति धर्म संप्रदाय रंग वर्ण वर्ग से ऊपर हटकर सोचिए अगर किसी एक वर्ग ने  कुछ उल्टा-सीधा सोच लिया  सोच लिया कि देश हम अपने तरीके से चलाएंगे और वे एकजुट हो गए तो यकीन मानिए कि   एकजुट होकर कुछ  उलट-पलट कर देगा ।  इसलिए इसीलिए सभी चिंतक जागृत हो जाए और सत्य का दर्शन खुले तौर पर कराएं विद्वत जन चाहे तो सियासत को सत्यान्वेषण करना सिखा दें कविता चित्र कथा अभिव्यक्ति अभिनय हमारे तरीके हैं हम इन से इन्हें सीख दे सकते हैं । मुझे नहीं लगता कि हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के सिपहसालार सिपाही समझदार नहीं है  वे समझेंगे और जो भी करेंगे मिलजुल कर तिरंगे की शान को बढ़ाने के लिए ही काम करेंगे ।
 मीडिया का एक अपना खास मुकाम है मीडिया से 2019 में यह मुराद होगी कि वे सभी प्रजातांत्रिक मूल्यों को  सुरक्षित रखने के लिए अपने दायित्व को समझे और सामाजिक समरसता को बनाए रखें जिससे socio-economic डेवलपमेंट के सारे मापदंडों को पूरा करते हुए भारत अपने आप में एक नया कीर्तिमान 2019 में स्थापित कर सके ।
शासकीय शासकीय कर्मचारियों अधिकारियों जिससे इस वर्ष उम्मीद यह होगी कि वे विकास की गतिविधियों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए निष्पक्ष निरपेक्ष भाव से लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों को सर्वोच्च स्थान देने की कोशिश पूर्ववत जारी रखें ।
 फिल्म स्टार इस वर्ष ऐसी कोई कंट्रोवर्सी पैदा ना करें जो राष्ट्रीय एकात्मता को क्षति पहुंचाए ।
विचारधारा कोई भी हो चाहे वह राष्ट्रवादी हो या मेरे शब्दों में आयातित हो अगर मैं भारत में है भारत के भलाई के लिए ही सोचें और ऐसा कोई भी स्टेटमेंट जारी ना करें जो कि इस देश की छवि को नकारात्मक रूप से विश्व के सामने लाके रखें और महान प्रजातांत्रिक व्यवस्था  के माथे पर कलंक का टीका साबित हो ।
यहां विश्वास करना होगा कि मैं जो संकल्प यहां आपसे चाहता हूं वह है राष्ट्रीय एकात्मता का भाव न हिंदू न मुस्लिम न सिक्ख  न ईसाई न बौद्ध अपनी अपनी सहिष्णुता को क्या गए बल्कि इन धर्मों की मूल भावना जो मानव कल्याण को रेखांकित करती है के लिए ईश्वर की सौगंध ने तभी यह देश विश्व में गुरु की श्रेणी में आ सकता है किसी विचारधारा के आह्वान पर अगर वह मानवतावादी है सब का समर्थन मिले ऐसा मेरा स्वप्न है और सोच भी यही है ।
साहित्य को चाहिए कि वह सियासी प्रतिबद्धताओं से पृथक मौलिक सृजन  को सम्मानित करें और सम पोषण करे ना की किसी खास विचारधारा का साहित्यकार को हमेशा सजग होना चाहिए निरपेक्ष होना चाहिए जब मानवता के कल्याण  के मुद्दों को  रेखांकित कर विशेष रुप से विस्तार देने की कोशिश करना चाहिए ।
   हनुमान किस जाति के थे राम कौन थे कृष्ण की क्या जाति रैदास कौन थे रहीम क्या थे उनके डीएनए का परीक्षण करना मेरे हिसाब से सबसे बड़ी मूर्खता थी 2018 की हम चाहते हैं कि 2019 में यह सब बीते दिनों का मुद्दा हो जाए इसे दिमाग से हटा दिया जाए और इस मूर्खता की पुनरावृत्ति अब कभी ना हो वरना यह देश बहुत समझदार है उसके हाथ में कुछ क्षण का पावर होता है इसे सभी सियासी ताकत है बेहतर समझ पाई है और समझना भी जरूरी है ।
इस संदेश में अगर किसी को कोई तकलीफ पहुंची हो क्षमा तो नहीं मांगूंगा क्योंकि राष्ट्रहित में यह संदेश जारी किया है और पूरी शिद्दत के साथ इसे समझने की की उम्मीद करता हूं भारत के एक छोटे से लेखक के रूप में नव वर्ष की शुभकामनाएं एवं बधाई स्वीकार कीजिए ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...