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क्वांटम फिज़िक्स और वेदांत फिलॉसफी : सलिल समाधिया का शोध आलेख

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आम तो कतई नहीं ख़ास हैं सलिल समाधिया  फेसबुक पर इन दिनों मेरे मित्र सलिल समाधिया के चर्चे हैं. लोग उनकी पोस्ट का इंतज़ार करते हैं.. जबलपुरिया भाषा में कहूं तो तके रहत हैं. एक पोस्ट का मुझे भी इंतज़ार था आज आ भी गई. फेसबुक पर  इन शब्दों से शुरू पोस्ट    ये रही वो पोस्ट , जिसका सबको इंतजार था.. क्वांटम फिज़िक्स और वेदांत फिलॉसफी पर हमारा Research Article... आत्मा क्या है , चेतना क्या है , अहम क्या है , द्वैत क्या है , मृत्यु क्या है , बुद्धत्त्व क्या है ?? बुद्ध , ओशो , जे. कृष्णमूर्ति , ऑरोबिंदो , विवेकानंद क्या कहना चाहते हैं , वे किस और इंगित कर रहे हैं ?? इन गूढ़ आध्यात्मिक बातों पर 2018 तक की front-line scientific findings क्या कहती हैं ? क्या विश्व में अंतिम क्रांति "आध्यात्मिक क्रांति" सम्भव है ? मैं पूरे ऐतबार के साथ ये बात कह सकता हूं कि आने वाले युग में सिर्फ ..वही धर्म चलेगा जिसके पास पदार्थ और चेतना ( matter & consciousness के unified होने का समग्र विज्ञान हो.. 21 वीं सदी में पूरा विश्व सिर्फ उसी धर्म को accept करेगा..... जिसकी epistemology. On

पशेमाँ हूँ तुझसे तुझको बचाना चाहता हूँ मैं ।

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पशेमाँ हूँ तुझी से, तुझको बचाना चाहता हूँ   । बिखर के टूट के तुझको सजाना चाहता हूँ  ।। ज़िंदगी मुझसे छीनने को बज़िद हैं बहुत से लोग ऐसी नज़रों से तुझको, छिपाना चाहता हूँ  ।। बला की खूबसूरत हो ,  नज़र में सबकी हो जानम चीखकर लोगों की नजरें हटाना चाहता हूँ  ।। गिन के मुझको भी मिलीं हैं, औरों की तरह - वादे साँसों से किये सब निभाना चाहता हूँ ।। ख़ुशी बेची खरीदी जाए मोहब्बत की तिजारत हो अमन की बस्तियाँ ज़मी पर    बसाना चाहता हूँ  ।। कोई मासूम हँस के भर दे    झोली मेरी ख़ज़ानो से बस ऐसे ही ख़ज़ानों    को    पाना चाहता हूँ ।। * ज़िन्दगी* मुश्किलों से बना   ताबूत है माना    - मौत के द्वारे तलक मुस्कुराना चाहता हूँ  ।।

और कितना आज़माना है ग्वारीघाट तो सबको जाना है ..!!

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एक बेमिसाल व्यक्तित्व होने का भ्रम पाले कुछ लोग आजकल स्वयम को जब वाज़े-तौर पर मुक़म्मल साबित करने की कोशिश करते हैं तो कहीं न कहीं ऐसा कुछ कह देते हैं कि बस दिगम्बर होते देर नहीं लगती. खुद को बेमिसाल पोट्रेट करने के पीछे पहचान खोने की आक्रान्ताओं के बीच लद्द से टपकती गंदगी की मानिंद लगभग बदबूदार कर देते हैं वातावरण को .   कई दिनों से देख रहा हूँ कि मेरी निजता पर हमले होते ही जा रहे हैं. लोगों में मेरी फटी कमीज़ के भीतर छेद वाली सैंडो बनियान तक देखने की ललक ठीक   वैसी ही है जैसे ससुरा हम हम न हुए उनके लिए पर्यटन स्थल हो गए. निजता हमारा अधिकार है क्यों न हो 15 अगस्त 1947 के बाद लिखित रूप में यही तो कहा गया था. पर भाई लोग पता नहीं क्यों मेरे दिगम्बर स्वरूप के दर्शनाभिलाषी हो रहे हैं. जो लिखता हूँ कह के लिखता हूँ.   कुछ ख़ास लोगों ने अगर मुझे नंगा देखने की अभिलाषा पर नियंत्रण न किया तो तय है कि पोट्रेट नाटक की तरह उनके लिए भी खुल्लमखुल्ला लिखना मेरी मजबूरी ही समझिये . नंगों से खुदा के डरने की कहावत मेरी भाषा शिल्प में शामिल नहीं ............. मैं तो खुदा को मदद करके नंगों को कपड़े पह