16.7.18

पशेमाँ हूँ तुझसे तुझको बचाना चाहता हूँ मैं ।




पशेमाँ हूँ तुझी से, तुझको बचाना चाहता हूँ   ।
बिखर के टूट के तुझको सजाना चाहता हूँ  ।।
ज़िंदगी मुझसे छीनने को बज़िद हैं बहुत से लोग
ऐसी नज़रों से तुझको, छिपाना चाहता हूँ  ।।
बला की खूबसूरत होनज़र में सबकी हो जानम
चीखकर लोगों की नजरें हटाना चाहता हूँ  ।।
गिन के मुझको भी मिलीं हैं, औरों की तरह -
वादे साँसों से किये सब निभाना चाहता हूँ ।।
ख़ुशी बेची खरीदी जाए मोहब्बत की तिजारत हो
अमन की बस्तियाँ ज़मी पर  बसाना चाहता हूँ  ।।
कोई मासूम हँस के भर दे  झोली मेरी ख़ज़ानो से
बस ऐसे ही ख़ज़ानों  को  पाना चाहता हूँ ।।
*ज़िन्दगी* मुश्किलों से बना ताबूत है माना  -
मौत के द्वारे तलक मुस्कुराना चाहता हूँ  ।।

15.7.18

और कितना आज़माना है ग्वारीघाट तो सबको जाना है ..!!



एक बेमिसाल व्यक्तित्व होने का भ्रम पाले कुछ लोग आजकल स्वयम को जब वाज़े-तौर पर मुक़म्मल साबित करने की कोशिश करते हैं तो कहीं न कहीं ऐसा कुछ कह देते हैं कि बस दिगम्बर होते देर नहीं लगती. खुद को बेमिसाल पोट्रेट करने के पीछे पहचान खोने की आक्रान्ताओं के बीच लद्द से टपकती गंदगी की मानिंद लगभग बदबूदार कर देते हैं वातावरण को . 
कई दिनों से देख रहा हूँ कि मेरी निजता पर हमले होते ही जा रहे हैं. लोगों में मेरी फटी कमीज़ के भीतर छेद वाली सैंडो बनियान तक देखने की ललक ठीक वैसी ही है जैसे ससुरा हम हम न हुए उनके लिए पर्यटन स्थल हो गए. निजता हमारा अधिकार है क्यों न हो 15 अगस्त 1947 के बाद लिखित रूप में यही तो कहा गया था. पर भाई लोग पता नहीं क्यों मेरे दिगम्बर स्वरूप के दर्शनाभिलाषी हो रहे हैं. जो लिखता हूँ कह के लिखता हूँ. 
कुछ ख़ास लोगों ने अगर मुझे नंगा देखने की अभिलाषा पर नियंत्रण न किया तो तय है कि पोट्रेट नाटक की तरह उनके लिए भी खुल्लमखुल्ला लिखना मेरी मजबूरी ही समझिये . नंगों से खुदा के डरने की कहावत मेरी भाषा शिल्प में शामिल नहीं ............. मैं तो खुदा को मदद करके नंगों को कपड़े पहनाने के लिए तक तैयार हूँ... 
अस्तु उन सबसे सादर अनुरोध है { जो मेरे जैसों की निजता पर आँखें गडाए बैठे हैं } कि किसी से डरें न डरें पर लेखकों से अवश्य निरापद डिस्टेंस मेंटेन कर चला जावे.
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बारबार भारत के डेमोक्रेटिक सिस्टम को शब्दों से निशाना न बनाए 
भारतीय प्रजातंत्र की ताकत उसकी जनशक्ति में व्याप्त *न दैन्यम न पलायनम* अवधारणा है । जब कोई इस देश की तुलना अन्य देशों से करे तो समझ में आता है उस व्यक्ति को देश का गूढ़ार्थ नहीं मालूम है। भारत की तुलना करने वालों को भारत के वास्तविक इतिहास को समझना चाहिए फिर वक्तव्य देना चाहिए । हमारी संस्कृति और समाज ने विश्व में दृढ़ता को परिभाषित किया है । न हम रक्ष संस्कृति से हारे न यवन से न किसी अन्य आताताई विस्तारवादी सोच के आगे झुके वरना भारत एकात्मकता की मिसाल न होता । शशि थरूर जी की टिप्पणी गैरवाजिब है हम कभी हिन्दू पाकिस्तान नहीं हो सकते हमारा देश आपके वक्तव्य को स्वीकार्य करता न ही भ्रमित हो सकता कभी ।
अस्तु ऐसे वक्तव्यों पर चिंतन और चिंता की ज़रूरत नहीं । न हम हीं हैं न हारे हुए हैं हम विजेता हैं जीतेंगे सुदृढ़ है अब न टूटेंगे
हलकट सोच एवम विद्वता का अभिनय
आज के दौर की  सच्चाई है भाई जी को समझाए कौन जी


23.6.18

संभागीय बाल भवन में नाद योग से ताल योग प्रदर्शन के साथ सम्पन्न हुआ योग संगीत दिवस


संभागीय बाल भवन जबलपुर में नेहरू युवा केन्द्र जबलपुर  एवं  बाल भवन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित  योग एवं संगीत  दिवस विविध गतिविधियों  के साथ  सम्पन्न  हुआ  
जिसमेंओमकार नाद योग” सूर्य नमस्कार चित्रकला तालबाद्य जुगलबंदी के साथ योग चित्रों का रेखांकन किया गया  
साथ ही योग क्विज एवं संपूर्ण योगाभ्यास  प्रदर्शन की प्रस्तुति भी कार्यक्रम काविशेष आकर्षण रहा 
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती मनीषा लुम्बा संभाउप संचालक  महिला बाल विकास ने की तथा 
मुख्य अतिथि के रूप में सुशील शुक्ला अध्यक्ष  बालभवन  सलाहकार एवं सहयोगी समिति रहे  माननीय सांसद श्री राकेश सिंह  की ओर से संदीप जैनश्रीमती श्रृद्धा शर्मा, सत्येन्द्र शर्मा, नरेन्द्र गुप्ताराजेश ठाकुरश्रीमती भारती  रूसिया  सहित 150 से  अधिक बच्चे उपस्थित थे    कार्यक्रम को संबोधित करते हुए  अध्यक्ष श्रीमती मनीषा लुम्बा ने  बच्चों एवं युवकों  को योग  के  प्रादुर्भाव से लेकर अब तक की  विकास यात्रा  का सम्मोहक  विवरण प्रस्तुत किया तथा योग क्रियाओं का महत्व भी बताया  
 योग गुरू देवेन्द्र यादव का सत्कार अतिथियों द्वारा किया गया तथा योग गुरू द्वारा सूर्य नमस्कार एवं योग  क्रियाओं का प्रदर्शनप्राणायाम, ध्यान कराया गया 
                श्रीमती रेणु पाण्डे के निर्देशन मेंअंतर्राष्ट्रीय योग प्रोटोकाल पर केन्द्रित चित्र कु. सुनीता केवटजया मोर्यसृष्टि सुहानेविनायकसोनीआशी खण्डेलवालभानू नामदेवरितिकनामदेवआर्या दुबेपारूल बाधदीपाली ठाकुरसोनाली ठाकुरकरन जामुलकरशुभ सुहाने आदिकलाकार बच्चों द्वारा श्री सोमनाथ सोनी तबलासंगतकार के निर्देशन में प्रफुल श्रीवासविशेष शर्माश्रेयांश बिरहासंकल्प परांजपेदेवविश्वकर्मासूर्यभान सिंह ठाकुर ताल वाद्य वादन पर योग केन्द्रित चित्रों का निर्माण किया  डॉ क्षिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देश में नयन सोनीसजल सोनीकरन द्विवेदीआकर्ष जैनसानिध्य पचौरी,सात्विक पचौरीआयुष रजकयशी तिवारी हर्ष सोंधियाआशुतोष रजकराजबर्धन पटैल एवं संगत कु. मनु कौशलसमीर सराठे द्वारा
संत कबीर के भजन का गायन किया गया  कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना एवं अतिथियों  के  स्वागत सत्कार से  हुआ   
अतिथियों का स्वागत अतुल पाण्डे नेहरू युवाकेन्द्रनवीन शिवाइग्नू एवं युवा केन्द्र के कार्यकर्ता कु. माधवी रैकवार,  हिमांशु गुप्ताराजेश सिंह सहित बाल भवन के स्टाफ द्वारा किया गया  
कार्यक्रम का संचालन बाल कलाकार एवं वक्ता  मा. धवल शाह एवं मा. अभिषेक यादव द्वारा मनोरंजन ढंग से किया गया   दोनों एंकर्स ने स्पॉट क्विज में योग पर  केन्द्रित सवाल पूछकर  10 बच्चों एवं  प्रतिभागियों को पुरस्कृत कराया तदुपरांत अतुल पाण्डे नेहरू युवा केन्द्र ने आभार प्रदर्शन किया 


17.6.18

बाल नाट्य शिविर : व्यक्तित्व विकास का असाधारण टूल














बाल नाट्य शिविर : व्यक्तित्व विकास का असाधारण टूल
GIRISH BILLORE “MUKUL”
आप हजारों रुपये फीस देकर व्यक्तित्व विकास के कुछ एक बिंदु उपलब्धी स्वरुप हासिल कर सकते हैं पर रंगकर्म के ज़रिये जितना ज़ल्द और सटीक लाभ मिलताहै उतना अनुमान हमने कभी न लगाया था था . इसके कई उदाहरण हैं हमारे पास . यह निष्कर्ष तीन साल के प्रयोग के बाद लिख रहा हूँ
नाट्यलोक  जबलपुर Natya Lok Sanstha में लगभग 20 सालों से सक्रीय रंगकर्मियों का समूह है. जो बालभवन जबलपुर के साथ वर्ष 2014 से सतत सक्रीय है. पर ऐसा नहीं कि वे हमारे साथ मेरे पदभार ग्रहण करने पर ही सक्रीय हुए बल्कि उनका सहयोग 2007 से ही बालभवन के बच्चों के लिए रहा है. उस दौर के बच्चों में Akshay ThakurShalini Ahirwar Tarun ThakurAnshul Sahu सहित न जाने कितने बच्चे अब प्रोफेशनल आर्टिस्ट की सूची में शुमार हो गए हैं. नाट्यलोक  संस्था के अलावा VIVECHNA RANGMANDALArun Pandey जी, भाई संतोष राजपूत,  सहित शहर के नामचीन रंगकर्मियों ने बालभवन के साथ बहुत काम किया. लेकिन 2014 के बाद Sanjay Gargजी से मेरा समझौता हुआ . समझौता क्या मेरा एक प्रस्ताव था संजय गर्ग जी के सामने  कि आप बच्चों को थियेटर की शिक्षा दीजिये . एक समर्पित एवं संवेदित निर्देशक ने मेरी बात को बिना असमर्थता का रोना रोए सहमती तपाक से दे दी . फिर क्या था प्रशिक्षण का सिलसिला 2015 के आते आते शुरू हो गया. इस बीच अरुण पाण्डेय जी के दुर्गा नाटक में बालिकाओं का चयन प्रशिक्षण भी प्रारम्भ ही था. तब तक 2017 में मिला तेज़ से तेज़बॉबीलौट आओ गौरैया जैसे नाटकों का निर्माण पूर्ण हो चुका था. और सभी तैयार नाटकों के से अधिक शो भी आयोजित हो चुके थे इस बीच दुर्गा में बाल कलाकारों ने अपनी आमद भी दर्ज करा दी थी. इतना ही नहीं कुमारी Shreya Khandelwal को एक रियलिस्टिक फिल्म में काम मिला
इन सभी बाल कलाकारों के बालभवन में प्रवेश से अब तक के विकास क्रम पर निगाह फेरी तो पता चला कि इनका व्यक्तित्व आत्मविश्वासीएवं मज़जूत होता जा रहा है. नवम्बर 2017 से बालभवन की पूर्व छात्रा मनीषा तिवारी ने जो फेसबुक पर Mani Tiwari के नाम से मौजूद है ने बच्चों को नाट्य प्रशिक्षण देना आरम्भ किया. अप्रैल 2018 में बच्चों के परिक्षा से लौटते ही पूरे उत्साह से नाट्य कक्षा नियमित रूप से प्रारम्भ हो गई . सम-विसम सहयोग-विरोध मान-अपमान के बीच हमने काम जारी रखा . तथा बालभवन के बाद प्रशिक्षण श्री जानकी रमण महाविद्यालय में सुचारू रूप से जारी रहा. और तैयार हुए दो नाटक एक पोलीथीन के प्रयोग को रोकने का सन्देश देने वाला नाटक गणपति बप्पा मोरया {लेखक निर्देशक : संजय गर्ग एवं पोट्रेट (लेखक मैं यानि गिरीश निर्देशक श्री संजय गर्ग ) उक्त नाटकों का निर्माण मध्य-प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग के वित्त पोषण से हो सका. 
सुधीजनों .... इन नाटकों के बाल कलाकारों ने 45 से 46.5 डिग्री तापमान की परवाह किये बिना जिस जज़्बे के साथ नाटकों को समझा और खुद को पात्र में रचाया बसाया वो उनके मुखर प्रखर होने का प्रमाण है. 
इन सभी नाटकों में लाइव म्यूजिकल इफैक्ट लाने में DrShipra Sullere की टीम ने जो काम किया उसे देख कर मेरा मन अत्यधिक भावुक है. संभव होता तो दुनियाँ की सारी संपत्ति ऐसी प्रतिभाओं न्यौछावर  कर देता. पर जो बन सका मैंने किया. 
शेष सचाई ये है कि बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के लिए रंगकर्म से बड़ा टूल कोई नहीं . दरी फट्टे से लेकर मंचन तक Davinder Singh Grover भाईतैलंग जीIndra Kumar Pandey Ravindra Murhar #विनय_शर्मा सहित समूचे नाट्य लोक परिवार का योगदान अविस्मर्णीय रहा है. मेरे मित्र प्राचार्य श्री जानकीरमन महा विद्यालय श्री अभिजात कृष्ण को भूलना ना मुमकिन है 
दौनों नाटकों ने दौनो दिन आसानी से हजार के आसपास दर्शक जुटा ही लिए है. अतिथि के रूप में श्री कपिल देव मिश्र कुलपति जी rdvv तो मुझे देखते बालभवन को नाटकों को नाट्यलोक को यकबयक याद कर लेते हैं  
अस्तु मैं श्रद्धानत हूँ इन सबका . उनका भी आभारी हूँ जो इस संकल्प को रोकने दर दर भटक आए . और हमें इस बात का ज्ञान करा दिया कि- दुनियाँ ईश्वरीय सत्ता के अधीन थी है और रहेगी 
ॐ श्री रामकृष्ण हरि: 
आपका स्नेही 
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
Mukul Gkb




24.5.18

नाट्यलोक एवम बालभवन के नाटकों पोट्रेट्स एवम गणपति बप्पा का मंचन


संभागीय बालभवन जबलपुर एवम नाट्यलोक द्वारा तैयार नाटक *गणपति बप्पा मोरया*  एवम *पोट्रेट्स* नाटकों का मंचन दिनाँक 3 जून से 4 जून 2018 तक  नाट्य समारोह में किया जावेगा ।
सम्भागीय बालभवन जबलपुर द्वारा 1 अप्रैल 2018 से 30 मई 2018 तक बालभवन एवम जानकीरमण महाविद्यालय में निरंतर हुई कार्यशाला में इन नाटकों का निर्माण किया गया है । नाटकों में डॉ शिप्रा सुल्लेरे के निर्देशन में म्यूज़िक पिट द्वारा लाइव संगीत का अनूठा प्रयोग माना जा रहा है । श्री संजय गर्ग द्वारा निर्देशित दौनों नाटकों का लेखन क्रमशः संजय गर्ग एवम गिरीश बिल्लोरे मुकुल ने किया । जबकि सह निर्देशिकाओं कुमारी मनीषा तिवारी ( पूर्व छात्रा बालभवन ) एवम कु शालिनी अहिरवार ( पूर्व छात्रा बालभवन ), कलात्मक सपोर्ट सुश्री शैलजा सुल्लेरे  कुमारी रेशम ठाकुर ( पूर्व छात्रा बालभवन ) श्री दविंदर सिंह ग्रोवर , इंद्र कुमार पांडेय, रविंद्र मुरहार सहित बालभवन एवम नाट्यलोक के कलाकारों का विशेष एवम उल्लेखनीय योगदान रहा है
*विस्तृत कार्यक्रम*
*आयोजन स्थल :- श्री जानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर*
*दिनाँक 3 जून 2018 :- गणपति बप्पा मोरया लेखक / निर्देशक श्री संजय गर्ग शाम 06:30 बजे से*

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*दिनाँक 4 जून 2018 :- पोट्रेट्स लेखक गिरीश बिल्लोरे मुकुल निर्देशक श्री संजय गर्ग , शाम 06:30 बजे से*
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20.5.18

यादों का कोई सिलेबस नहीं होता


यादों का कोई सिलेबस नहीं होता
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सच है यादें जीवन के अध्ययन के लिए ज़रूरी हैं पर इनका कोई पाठ्यक्रम तय नहीं होता । जब भी आतीं हैं कुछ न कुछ सिखा जनतीं हैं । कोई तयशुदा पाठ्यक्रम कहाँ है इनका । परीक्षाएं अवश्य ही होतीं हैं । पेपर भी हल करता हूँ । पास भी होता हूँ फेल भी । चलीं आतीं हैं पिछले दरवाज़ों से और कभी स्तब्ध करतीं हैं तो कभी हतप्रभ कब तक ज़ेहन में रुकतीं हैं किसी को मालूम नहीं होता ।
1984 में डी एन जैन कॉलेज में स्व राजमती दिवाकर ऐसी प्राध्यापक थीं कि स्लीपर पहन के भी आ जातीं थीं कॉलेज में ..  साधारण से लिबास रहने वाली में  शारदा माँ मुझे वादविवाद प्रतियोगिताओं में बहस के मुद्दों को समझातीं और विपक्ष को कैसे नेस्तनाबूद करना चाहिए बतातीं भी थीं । उन दिनों कॉलेजों में जितनी भीड़ वाद विवाद प्रतियोगिताओं को सुनने जमा होती थीं आजकल उससे एक तिहाई बच्चे भी जमा नहीं हो पाते होंगे । अख़बार भी समाचार पूरे रिफरेंस के साथ छापा करते थे कुछ ऐसे -
"लगातार तीसरी बार पन्नालाल बलदुआ ट्रॉफी डीएनजैन ने जीती"
या
अमुक के तर्क न काट पाने से फलाँ कॉलेज ने कब्जाई ट्रॉफी
वक्ता तो स्टार हुआ करते थे । तालियों की गूंज से पता चल जाता था कि हम सही जा रहे हैं । उन दिनों कृषि कॉलेज के अभिषेक शुक्ला ( Now Scientist ) , अतुल जैन {( Now Bank officer) , डीएनजैन से मैं और उषा त्रिपाठी ( Now HOD polytechnic College) , या उद्धव सिंह ,
महाकौशल कला महाविद्यालय के वीरेंद्र व्यास (Now Reader Chitrakoot University) Home Science collage se अंजू सांगवान , आभा शुक्ला  IAS  ( Now Principal Secretary Maharashtra Government ), रेखा शुक्ला आईपीएस   तरुण गुहा नियोगी Tarun Guha Neogi ।
हम सब केवल अध्ययन के सहारे अपना अपना व्यक्त तैयार करते थे । टाउन हॉल लायब्रेरी , कॉलेज लायब्रेरी , और प्रोफेसर्स से विषय को समझना और खुद को वक्तव्यों के लिए तैयार करना हमारा शगल बन चुका था  । सबको अपने अपने भाग्यानुकूल बेहतरीन नौकरी भी मिली । हम में से कोई भी गजेटेड ऑफिसर से कम नहीं । ऐसा नहीं कि उस दौर में प्रतिस्पर्धा कम थी वास्तव में तब पद कम थे मुझे खुद 10 हजारी भीड़ में सफलता मिली सिविल जज बनने का स्वप्न बस स्वप्न ही रह गया आकाशवाणी का प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव भी न बन सका  ।
आज इस पोस्ट के साथ लगी तस्वीर देख कर याद आया कि तब तो न गूगल बाबा थे किताबें खरीद कर पढ़ने की आर्थिक योग्यता न थी । तो हमने कैसे पढ़ा फिर यादों ने बताया स्वर्गीय अरविंद जैन , डॉक्टर मगन भाई पटेल, स्व रामदयाल कोस्टा जी, स्व हनुमान प्रसाद वर्मा जी , स्व राजमती  दिवाकर डॉक्टर पंकज शुक्ल DrPankaj Shukla जैसे प्रोफेसर्स  हमारा निर्माण कर रहे थे । ये वो दौर था जब हम सिर्फ छात्र थे न कि फैकल्टीज या हिंदी इंग्लिश के कारण बटे लोग । मेरी वार्ता डॉ प्रभात मिश्र जी से ख़ूब होती थी जबकि वे सायन्स के प्रोफेसर थे । कुल मिला कर एक मिडियोकर शहर जबलपुर के वाशिंदे हम पता नहीं कितनी कीमती ज़िन्दगी जी रहे थे ।
सच कितने ज़रूरी हैं गुरुजन ये न हों तो युग आदिम युग ही रह जाता ।
डा स्व हरिकृष्ण त्रिपाठी ने एक बार मुझसे कहा था - अप्प दीपो भवः
जीवन की टैग लाइन सा चस्पा है आजतक । इस वाक्य को उनके कहने से पूर्व हज़ारों बार पढा सुना पर आत्मसात उनके कथन के बाद ही कर सका ।
सुधिजन जानिए गुरु के बिना सब नीरस है समझ से परे है ।
यादों ने ये भी बताया कि ज्ञान रटने से अर्जित नहीं होता बल्कि ज्ञान मंथन चिंतन और गुरुवाणी से ही स्थायी होता है ।

अच्छी काली नागिनें : सटायर


तुम थे तो कुछ बात थी नहीं हो तो
अब बात कुछ और है ।
कोई हो न हो बात तो रहेगी ।
बात ही तो रहती है यादों के गलियारों में
तस्वीरों की तरह चस्पा रहे भी क्यों न ?
मरने के बाद में क़ीमत बताने का क्या कोई तरीका भी तो नहीं ।
इन दिनों जिस तरह का एनवायरमेंट इर्दगिर्द है उसमें कमीनगी का परसेंटेज अपेक्षाकृत ज़्यादा है । जबलपुर की ठेठ भाषा में बोलूं तो हरामी टाइप के जीवों की भरमार  चप्पे चप्पे पर रेंगते नज़र आएंगे ।
मित्रो मेरी अंतिम सलाह है कि बुद्ध की तरह माफ करना अब गैरज़रूरी है । अब चाणक्य की तरह गला काट के मंगवा लो तो आप सहजता से जी पाओगे ।
पर मुआ साहित्यकार जो बरसों से कुंडली मार कर बैठा है न मुझे ऐसा नहीं करने देगा । एक नागिन की कहानी याद आई सुनोगे तो सुनो
एक नागिन थी अच्छी काली नागिन घर के एक हिस्से में फंस गई घर मालकिन ने उसे जतन से निकाला और हूत हूत करके डंडा बजा के भगा दिया । कुछ दिन बाद फिर चूहे खाने की गरज से उसी घर में घुसी नागिन ने एक बार भी मुरव्वत न की मालकिन के अनजाने में पैर पड़ते ही ज़हर उगलने लगी
मित्रो आध्यात्मिक चिंतन के अभाव में यह सब हो रहा है अधिकतर आत्माऐं  नागिन है । ऐसी नागिन जिनको सिर्फ आहार दिखता है अर्थात आत्मकेंद्रित तृष्णा की तृप्ति उनका एकमात्र लक्ष्य है ।
ये नागिन अच्छी काली नागिनें आपकी आत्मा से सम्बद्ध होने का अभिनय अवश्य करतीं हैं ।
लोग बिंदास सहयोगी कवि स्व श्री नरेश पांडे को कितना याद करतें हैं या श्री गणेश नामदेव का कितनों को स्मरण है मुझे नहीं पता नागिनें केवल शिकार की तस्वीर अपने रेटिना पर अमिट रखतीं हैं गणेश जी नरेश जी आदि किसी काम के कहाँ ? न गणेश जी नेता थे न बड़े अफसर और नरेश जी भी कोई महल अटारी न छोड़ गए जहां टैंट लगा के टैण्ट हाउस वाले नागिन डांस की ऑपर्चुनिटी पाएं ।
पर एक बात तो है जीवन भर झुल्ला टांग के सायकल से घूमने वाले ये दौनों वाकई थे बड़े कमाल के खूब लिखते महफ़िल मुशायरे गोष्ठियों की आन बान शान थे ।
बात निकली तो चली और चलती रहेगी । में रहूँ न रहूँ । बात रहेगी तभी बात लिख दी आप क्या सोचते हो आप जानो गाली भी दो तो दे देना मैनें कइयों के ऑडियो क्लिप जमा कर रखे हैं ज़ेहन में ।
सुनो सब मेरा रिश्ता परसाई जी से बहुत नजीकी है तुम सबसे ज़्यादा टिमरनी हरदा खंडवा जमानी फिर जबलपुर
हम वहीं से बाबस्ता हैं । लिखने में तंज़ है तो जान लो तासीर नर्मदांचल के पानी में घुलेमिले #मिनरल_ऑफ_सटायर की वजह से कल आप गुंडे भेज सकते हो । हम तो लिखेंगे बेबाक़ी से । डरें क्यों खोने को मेरे पास कुछ नहीं ।

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...