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फिल्म रेड की पटकथा में लेखक की भूल

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फिल्म रेड की पटकथा में लेखक   ने   आयकर छापे के नियम को देखा नहीं ये तो नहीं मालूम पर अगर आप आयकर अधिनियम की पूरी जानकारी नहीं रखते तो मुश्किल अवश्य हो सकती है. अगर छापा पडा तो .. भगवान न करे की हम आप   आयकर छिपाएं और छापे की नौबत आए.,. पर मिडिल क्लास .. नंगा क्या नहाएगा क्या निचोये गा साब ... ?   1. आयकर अधिकारी बिक्री के लिए रखे गए माल को जब्त नही कर सकते हैं बल्कि वे केवल इसको अपने दस्तावेजों में नोट जरूर कर सकते हैं ,  साथ ही स्टॉक में रखे माल की भी सिर्फ एंट्री कर सकते हैं. यह राहत घोषित और अघोषित दोनों तरह के स्टॉक के लिए लागू होती है. 2.  आयकर अधिकारी किसी ऐसी नकदी को जब्त नही कर सकते हैं जिसका पूरा लेखा जोखा उस कंपनी या आदमी के पास मौजूद है. 3.  आभूषण जो कि स्टॉक के रूप में रखे गए हैं और संपत्ति कर रिटर्न में उनको जोड़ा गया है तो उन्हें भी जब्त नही किया जा सकता है. 4.  यदि कोई करदाता सम्पत्ति कर जमा नही कर रहा है तो   हर विवाहित स्त्री  500  ग्राम सोना रख सकती है ,  हर अविवाहित स्त्री 250  ग्राम सोना और हर आदमी 100  ग्राम तक सोना अपने पास रख सकते हैं.   यदि इस

रेड फिल्म की दादी पुष्पा जोशी की जिंदादिली से चमका उनका सितारा ....!!

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किसी ख़ास मुकाम पर पहुँचने के लिए कोई ख़ास उम्र, रंग-रूप, लिंग, जाति, धर्म, वर्ग का होना ज़रूरी नहीं जिसके सितारे को जब बुलंदी हासिल होनी होती है तब यकबयक हासिल हो ही जाती है. ये बात साबित होती है जबलपुर निवासी होसंगाबाद में सामान्य से परिवार जन्मी  85 वर्षीय बेटी श्रीमती पुष्पा जोशी के जीवन से . हुआ यूं कि उनके मुंबई निवासी पुत्र रवीन्द्र जोशी { जो कवि संगीतकार, एवं कहानीकार हैं, तथा हाल ही में बैंक से अधिकारी के पद से रिटायर्ड हुए हैं}  की कहानी ज़ायका से . श्री जोशी की कहानी “ज़ायका” उनकी पुत्र वधु हर्षिता श्रेयस जोशी, ने निर्देशित कर तैयार की जिसे  आभास-श्रेयस  यूँ ही यूट्यूब पर पोस्ट कर  दी. एक ही दिन में ३००० से अधिक दर्शकों तक  यूट्यूब के ज़रिये पंहुची फिल्म को बेहतर प्रतिसाद मिला. उसी दौरान फिल्म रेड की निर्माता कम्पनी के सदस्यों ने देखी . और जोशी परिवार को खोज कर रेड में अम्मा के किरदार के निर्वहन की पेशकश की . दादी यानी श्रीमती जोशी जो जबलपुर से मायानगरी  बैकबोन में दर्द का इलाज़ कराने पहुँची थी ने साफ़ साफ़ इनकार कर दिया. निर्माता राजकुमार गुप्ता एवं परिवार के समझाने पर बमुश्किल र

चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!

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चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!! और दिल  जब भी...  दिल से बोलता है ...  तब बुत मुस्कुरातें हैं ... तितलियाँ मंडरातीं हैं... हज़ारों हज़ार स्वर लहरियां ... वीणा   तारों से छिटककर बिखरतीं ......... पुरवैया – पछुआ हवाओं में .. घुल जातीं हैं ...!! हाँ तब जब चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!! दिल जब बोलता है बरसों के दबे कुचले छिपे छिपाए एहसासों का ज्वालामुखी फूटता है ... कहते हुए कि- अब और नहीं ... अब और नहीं ...!! ठहर जाते हैं  आघाती हाथ ...  क्रूर आँखें डर जाती हैं...! "तख़्त-ओ-ताज़" सम्हालते हाथ ..  चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!      

आलिम-ए-दीन मौलाना साहब दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए....... ज़हीर अंसारी

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मुफ़्ती-ए-आज़म मध्यप्रदेश मौलाना मो. महमूद अहमद क़ादरी साहब आज 22 फ़रवरी को इस दुनिया-ए- फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए। आप 90 साल के थे। आप उम्र के जिस पड़ाव पर पहुँच गए थे उसकी वजह से जिस्मानी तौर पर थोड़ा कमज़ोर हो गए थे लेकिन उनका दिमाग़ी तवाजन आख़री वक़्त तक मज़बूत रहा। यह उनकी दीनदारी का सिला था। अभी जनवरी माह में ही ईदमिलादुंनबी के मुबारक मौक़े पर आपने तक़रीर की और जुलूस-ए- मोहम्मदी में शामिल लोगों को मुल्क और अमन परस्ती का समझाईश दी। आप जितने बड़े आलिम-ए-दीन थे उतने बड़े ही इंसानियत के पैरोकार। बेशक आप अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और अल्लाह के नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (सअव) की हिदायतों पर ताउम्र क़ायम रहे। आपको क़ुरान-ए-मजीद और सभी हदीश शरीफ़ का गहरा इल्म था। मौलाना साहब ने अपने दादा हज़रत अब्दुल सलाम साहब और वालिद हज़रत मौलाना जनाब बुरहानुल हक़ जी से जो दीनी और मज़हबी तालीम मिली उसका आपने पूरा ख़्याल रखा। आप उम्र भर इंसानियत और अमन के झंडाबरदार बने रहे। जब भी शहर में दो कौमों के बीच गहमा-गहमी हुई या फ़साद की नौबत आई तो आप सबसे पहले आगे आए और अपनी क़ौम को समझाईश देकर शासन-प्रशासन की

बेदी पर चढ़ता मध्यवर्ग

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मध्यम वर्ग का आकार भारत की जनसंख्या में सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी सबसे नकारात्मक नज़रिए का शिकार है इन दिनों । मध्यवर्ग के लगभग 36 करोड़ सरों पर विकास, की ज़िम्मेदारी है जिसका निर्वहन कर भी रहा है मध्यवर्ग पर जब उसके हित की बारी आती है तो ताक में रखने से उसे कोई नहीं चूकता । भारत में इस मध्यवर्ग को केवल इस्तेमाल किया जाता है उसके खिलाफ प्रगतिशील चिंतन तो था ही अब सारे विचारक भी हैं जो आर्थिक सामाजिक सियासी मुद्दों से वास्ता रखते हैं । ऐसा क्यों है इसकी पड़ताल करने पर पता लगता है कि शासक वर्ग यानी रोज़गार प्रदाता स्वयंभू सर्वशक्तिशाली होता जा रहा है । उसे राजाश्रय प्राप्त है । पिछले दिनों रेलयात्रा में जब मैंने देखा कि दो बेटियां भोपाल रेलवे स्टेशन पर अपनी जबलपुर तक की सुरक्षित यात्रा के लिए मुझसे सहायता मांगने आईं तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए मुझे लगा कि मध्यवर्ग की ये बेटियाँ जिस परिस्थिति में सहायता मांग रहीं हैं वो केवल एक्स्ट्रा प्रीमियम तत्काल कोटे से टिकट न खरीद पाने से हट कर और कुछ भी नहीं हो सकती । भोपाल कांड के बाद मेरे मन पर गहरा भय है सो उन बेटियों को अपनी बेटी की बर्थ देना मु

संवेदनशील किन्तु सख्त सख्शियत : आई पी एस आशा गोपालन

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आशा जी के दौर में मैं हितकारणी ला कालेज से जॉइंट सेक्रेटरी का चुनाव लड़ रहा था . मुझे उनके मुझसे मेरी बैसाखियाँ देख पूछा था- "आप क्यों इलेक्शन लड़ रहे हो..?" मेरा ज़वाब सुन बेहद खुश हुईं मातहत अधिकारियों को मेरी सुरक्षा के लिए कहा.. ये अलग बात है..... एक प्रत्याशी के समर्थक ने कट्टा अड़ाया मित्र #प्रशांत_श्रीवास्तव को .. और मित्र अपनी छोटी हाईट का फ़ायदा उठा भाग निकले थे ...... इस न्यूज़ ने वो मंजर ताज़ा कर दिया.. वे मुझे जान चुकीं थी । एक्जामिनेशन के दौरान एक रात  हम कुछ मित्र पढ़ते हुए चाय पीना तय करतें हैं किन्तु स्टोव में कैरोसिन न होने से ये तय किया कि चाय मालवीय चौक पर पीते हैं । दुर्भाग्य से सारी दुकानें बंद थीं । बात ही बात में पैदल हम सब मोटर स्टैंड ( यही कहते थे हम सब बस अड्डे को जबलपुर वाले ) जा लगे । चाय पी पान तम्बाकू वाला दबाए एक एक जेब में ठूंस के वापस आ रहे थे तब मैडम आशा गोपालन जी की गाड़ी  जो नाइट गस्त पर थीं इतना ही नहीं  आईपीएस अधिकारी एम्बेसडर की जगह टी आई की जीप पर सवार थीं । टी आई लार्डगंज भी मुझे पहचानते थे सुजीत ( वर्तमान #बीजेपी_नेता ) अजीत ( वर्तमान टी

अदेह से संदेह प्रश्न

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अदेह से सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहो गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ? *********** बाग में बहार में, , सावनी फुहार में ! पिरो गया किमाच कौन मोगरे के हार में !! पग तले दबा मुझे कौन बढ़ गया कहो...? ******** एक गीत आस का एक नव प्रयास सा गीत था अगीत था ! या कोई कयास था...? गीत पे अगीत का वो दोष मढ़ गया कहो.. ***************** तिमिर में खूब  रो लिये जला सके न तुम  दिये ! दीन हीन ज़िंदगी ने हौसले  डुबो दिये !! बेवज़ह के शोक गीत कौन गढ़ रहा कहो. *************** अलख दिखा रहे हो तुम अलख जगा रहे हो तुम ! सरे आम जो भी है - उसे छिपा रहे हो तुम ? मुक्तिगान पे ये कील कौन जड़ रहा कहो ? 😊😊😊😊😊😊😊 *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*