7.8.17

कृष्ण की अंगुली को बचाया था द्रोपदी ने : फ़िरदौस ख़ान


रक्षाबंधन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है. यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांधकर उनकी लंबी उम्र और कामयाबी की कामना करती हैं. भाई भी अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं.
रक्षाबंधन के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं. भविष्य पुराण में कहा गया है
कि एक बार जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हो रहा था तो दानवों ने देवताओं को पछाड़ना शुरू कर दिया. देवताओं को कमज़ोर पड़ता देख स्वर्ग के राजा इंद्र देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास गए और उनसे मदद मांगी. तभी वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने मंत्रों का जाप कर एक धागा अपने पति के हाथ पर बांध दिया. इस युद्ध में देवताओं को जीत हासिल हुई. उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी. तभी से श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा शुरू हो गई. अनेक धार्मिक ग्रंथों में रक्षा बंधन का ज़िक्र मिलता है. जब सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की अंगुली ज़ख़्मी हो गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी. बाद में श्रीकृष्ण ने कौरवों की सभा में चीरहरण के वक़्त द्रौपदी की रक्षा कर उस आंचल के टुकड़े का मान रखा था. मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुग़ल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना थी . राखी का मान रखते हुए हुमायूं ने मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह से युद्ध कर कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की थी.
विभिन्न संस्कृतियों के देश भारत के सभी राज्यों में पारंपरिक रूप से यह त्यौहार मनाया जाता है. उत्तरांचल में रक्षा बंधन को श्रावणी के नाम से जाना जाता है. महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा और श्रावणी कहते हैं, बाकि दक्षिण भारतीय राज्यों में इसे अवनि अवित्तम कहते हैं. रक्षाबंधन का धार्मिक ही नहीं, सामाजिक महत्व भी है. भारत में दूसरे धर्मों के लोग भी इस पावन पर्व में शामिल होते हैं.


रक्षाबंधन ने भारतीय सिनेमा जगत को भी ख़ूब लुभाया है. कई फ़िल्मों में रक्षाबंधन के त्यौहार और इसके महत्व को दर्शाया गया है. रक्षाबंधन को लेकर अनेक कर्णप्रिय गीत प्रसिद्ध हुए हैं. भारत सरकार के डाक-तार विभाग ने भी रक्षाबंधन पर विशेष सुविधाएं शुरू कर रखी हैं. अब तो वाटरप्रूफ़ लिफ़ाफ़े भी उपलब्ध हैं. कुछ बड़े शहरों के बड़े डाकघरों में राखी के लिए अलग से बॉक्स भी लगाए जाते हैं. राज्य सरकारें भी रक्षाबंधन के दिन अपनी रोडवेज़ बसों में महिलाओं के लिए मुफ़्त यातायात सुविधा मुहैया कराती है.

आधुनिकता की बयार में सबकुछ बदल गया है. रीति-रिवाजों और गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के प्रतीक पारंपरिक त्योहारों का स्वरूप भी अब पहले जैसा नहीं रहा है. आज के ग्लोबल माहौल में रक्षाबंधन भी हाईटेक हो गया है. वक़्त के साथ-साथ भाई-बहन के पवित्र बंधन के इस पावन पर्व को मनाने के तौर-तरीकों में विविधता आई है. दरअसल, व्यस्तता के इस दौर में त्योहार महज़ रस्म अदायगी तक ही सीमित होकर रह गए हैं.

यह विडंबना ही है कि एक ओर जहां त्योहार व्यवसायीकरण के शिकार हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इससे संबंधित जनमानस की भावनाएं विलुप्त होती जा रही हैं. अब महिलाओं को राखी बांधने के लिए बाबुल या प्यारे भईया के घर जाने की ज़रूरत भी नहीं रही. रक्षाबंधन से पहले की तैयारियां और मायके जाकर अपने अज़ीज़ों से मिलने के इंतज़ार में बीते लम्हों का मीठा अहसास अब भला कितनी महिलाओं को होगा. देश-विदेश में भाई-बहन को राखी भेजना अब बेहद आसान हो गया है. इंटरनेट के ज़रिये कुछ ही पलों में वर्चुअल राखी दुनिया के किसी भी कोने में बैठे भाई तक पहुंचाई जा सकती है. डाक और कोरियर की सेवा तो देहात तक में उपलब्ध है. शुभकामनाओं के लिए शब्द तलाशने की भी ज़रूरत नहीं. गैलरियों में एक्सप्रेशंस, पेपर रोज़, आर्चीज, हॉल मार्क सहित कई देसी कंपनियों केग्रीटिंग कार्ड की श्रृंख्लाएं मौजूद हैं. इतना ही नहीं फ़ैशन के इस दौर में राखी भी कई बदलावों से गुज़र कर नई साज-सज्जा के साथ हाज़िर हैं. देश की राजधानी दिल्ली और कला की सरज़मीं कलकत्ता में ख़ास तौर पर तैयार होने वाली राखियां बेहिसाब वैरायटी और इंद्रधनुषी दिलकश रंगों में उपलब्ध हैं. हर साल की तरह इस साल भी सबसे ज़्यादा मांग है रेशम और ज़री की मीडियम साइज़ राखियों की. रेशम या ज़री की डोर के साथ कलाबत्तू को सजाया जाता है, चाहे वह जरी की बेल-बूटी हो, मोती हो या देवी-देवताओं की प्रतिमा. इसी अंदाज़ में वैरायटी के लिए जूट से बनी राखियां भी उपलब्ध हैं, जो बेहद आकर्षक लगती हैं. कुछ कंपनियों ने ज्वैलरी राखी की श्रृंख्ला भी पेश की हैं. सोने और चांदी की ज़ंजीरों में कलात्मक आकृतियों के रूप में सजी ये क़ीमती राखियां धनाढय वर्ग को अपनी ओर खींच रही हैं. यहीं नहीं मुंह मीठा कराने के लिए पारंपरिक दूध से बनी मिठाइयों की जगह अब चॉकलेट के इस्तेमाल का चलन शुरू हो गया है. बाज़ार में रंग-बिरंगे काग़ज़ों से सजे चॉकलेटों के आकर्षक डिब्बों को ख़ासा पसंद किया जा रहा है.

कवयित्री इंदुप्रभा कहती हैं कि आज पहले जैसा माहौल नहीं रहा. पहले संयुक्त परिवार होते थे. सभी भाई मिलजुल कर रहते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. नौकरी या अन्य कारोबार के सिलसिले में लोगों को दूर-दराज के इलाक़ों में बसना पड़ता है. इसके कारण संयुक्त परिवार बिखरकर एकल हो गए हैं. ऐसी स्थिति में बहनें रक्षाबंधन के दिन अलग-अलग शहरों में रह रहे भाइयों को राखी नहीं बांध सकतीं. महंगाई के इस दौर में जब यातायात के सभी साधनों का किराया काफ़ी ज़्यादा हो गया है, तो सीमित आय अर्जित करने वाले लोगों के लिए परिवार सहित दूसरे शहर जाना और भी मुश्किल काम है. ऐसे में भाई-बहन को किसी न किसी साधन के ज़रिये भाई को राखी भेजनी पड़ेगी. बाज़ार से जुड़े लोग मानते हैं कि भौतिकतावादी इस युग में जब आपसी रिश्तों को बांधे रखने वाली भावना की डोर बाज़ार होती जा रही है, तो ऐसे में दूरसंचार के आधुनिक साधन ही एक-दूसरे के बीच फ़ासलों को कम किए हुए हैं. आज के समय में जब कि सारे रिश्ते-नाते टूट रहे हैं, सांसारिक दबाव को झेल पाने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं. ऐसे में रक्षाबंधन का त्यौहार हमें भाई- बहन के प्यारे बंधन को हरा- भरा करने का मौक़ा देता है. साथ ही दुनिया के सबसे प्यारे बंधन को भूलने से भी रोकता है.

6.8.17

प्रभावी रहा पेडों को राखी बांधने में छिपा संदेश

नवाचार के ज़रिये छोटे छोटे प्रयोग करना बेहद असरदार होता है. जबलपुर बालभवन में ऐसा ही एक  छोटा प्रयोग किया जो  बड़ा असरदार साबित हुआ . यह प्रयोग न केवल शिक्षाप्रद रहा वरन इससे जनजन जो सन्देश विस्तारित हुआ वह  भी समुदाय के लिए चिंतन का विषय बन गया बालभवन जबलपुर  के संचालक रूप में लगभग एक माह पूर्व विचार किया कि क्यों न हम बालभवन में राखी पर्व में एक नवाचार करें जिससे समाज को नया सन्देश मिले तभी उन पौधों का स्मरण हुआ जो हमने 5 जुलाई 2017 को लगाए थे बस फिर क्या था हमने बच्चों और उनके शिक्षकों से परामर्श कर तय किया कि इस बार हम पेड़ पौधों को राखी बांधेंगे. 
जी हाँ वे पौधे जिनको बच्चों ने नाम भी दिए हैं .. झमरू, हिन्दुस्तान , आदि आदि . पेड़ पौधों के लिए राखी बनाने का काम कराया रेशम ठाकुर ने जो इन दिनों बालभवन में बच्चों की कला शिक्षक हैं.  
          नन्हें पौधों एवं वृक्षों के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार बेहद उत्साह के साथ मनाया गया . महिला बाल विकास विभाग के महिला सशक्तिकरण संचालनालय द्वारा संचालित संभागीय बालभवन के बच्चों ने वृक्षों एवं पेड़-पौधों के साथ जीवन के अंतर्संबंधों को रेखांकित करने वाले कार्यक्रम की आवश्यकता पर को स्पष्ट करते हुए संचालक बालभवन गिरीष बिल्लोरे ने बताया – *“किसी भी संदेश को कैसे समाज के लिए असरदार हो सकते हैं पेड़ पौधों को राखी बांधने के इस प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है !*
अध्यक्षता करते हुए श्रीमती मनीषा लुम्बा उपसंचालक महिलासशक्तिकरण ने आयोजन के उद्देश्य की प्रसंशा करते हुए कहा कि – “समाज को यह सन्देश देना बेहद जरूरी है कि पेड़ पौधे हमारे रक्षक हैं तथा वे किसी न किसी रूप में हमें सहायता ही नहीं देते बल्कि उनसे हमारा जीता जगता सम्बन्ध है तथा वे हमारे रक्षक भी हैं
मुक्ति फाउनडेशन के डा विवेक जैन ने कार्यक्रम को सबसे प्रभावकारी एवं समाज को सन्देश देने वाला कार्यक्रम निरूपित किया. कार्यक्रम में श्रीमती हर्षिता , श्रीमति अजय जैन, श्री पुनीत मारवाह, श्री एस ए सिद्दीकी, श्री रमाकांत गौतम, श्री संजय गर्ग बतौर अतिथि उपस्थित रहे. 
पौधों एवं वृक्षों के साथ रक्षाबंधन कार्यक्रम में प्रयुक्त राखियों का निर्माण सुश्री रेशम ठाकुर के निर्देशन में बालभवन के बच्चों अनमोल विश्वकर्मा राखी विश्वकर्मा, रूद्र गुप्ता, अंजली, हिमान्शु रजक हर्षिता रजक ने किया . 
पौधों एवं वृक्षों के साथ रक्षाबंधन के साथ साथ डाक्टर शिप्रा सुल्लेरे के निर्देशन में बाल कलाकारों क्रमश: वैशाली बरसैंया, उन्नति तिवारी, आयुष राजक, इशिता तिवारी सोनम गुप्ता, सजल ताम्रकार, आकर्ष जैन, हर्ष सौंधिया, अमन बेन, राज गुप्ता ने कजरी-गीत गाकर माहौल को बेहद प्रभावी बनाया. 
कार्यक्रम का संचालन बाल-अभिनेत्री कुमारी श्रेया खंडेलवाल ने किया. आयोजन में नृत्यगुरु श्री इंद्र पांडे, श्री देवेन्द्र यादव, श्रीमती मीना सोनी श्री सोमनाथ सोनी , राजेन्द्र श्रीवास्तव, श्री टी आर डेहरिया, श्री धर्मेन्द्र श्रीमती सीता देवी ठाकुर मनीषा तिवारी मुस्कान सोनी का अविस्मरणीय सहयोग रहा.
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
                          संभागीय बालभवन में “पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ” का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. प्रत्येक पौधे की देखभाल 5-5  बच्चों के समूह द्वारा की जा रही है. वे प्रतिदिन अपने अपने पेड़ों की देखभाल स्वयमेव करतें हैं. इतना ही नहीं बच्चों ने पेड़ों के झमरू, छोटू , सरगम, हिन्दुस्तान, भारत, गजानन, घुँघरू, कीवी, चेरी, शिखा, नटवर, पप्पू  आदि नाम तक  रखें  है .
             बाल-भवन के खेल अनुदेशक एवं वृक्षारोपण प्रभारी   श्री देवेन्द्र यादव के अनुसार "पौधे लगाना ठीक है पर उनको सम्हालना कठिन काम है  बच्चे अपनी बाटल से पेड़ों में पानी देते हैं उनसे बात करते हैं  तथा उनके लिए बच्चों  थरे (सर्किल) भी बनाएं गएँ हैं   पेड़ों की देखभाल से 15 बाल समूह जुड़े हुए हैं .
For More Photo please Click Facebook 

1.8.17

पाक उच्चायुक्त बासित का कटाक्ष शर्मनाक........


लेखक : ज़हीर अंसारी
हिंदुस्तान में पाकिस्तान के उच्चायुक्त हैं अब्दुल बासित। लम्बी चौड़ी बातें करते हैं। आतंकी सलाउद्दीन उनकी नज़र में दहशतगर्द नहीं है बल्कि फ़्रीडम फ़ाइटर है। बासित की ज़ुबान यहीं नहीं रुकी, इसके बाद भी चलती रही। उन्होंने हिंदुस्तानी कैमरे के सामने यह कह दिया कि पाकिस्तान का लोकतंत्र मज़बूत हो रहा है। वहाँ की न्यायपालिका और मीडिया निष्पक्ष है। यह सब देश के सबसे तेज़ चैनल पर क़ैद होता रहा और टीवी के लिए इंटरव्यू करने वाली भद्र महिला के साथ दर्शक भी देखते-सुनते रहे। बासित ने यह जवाब उस सवाल पर दिया कि क्या पाकिस्तान में प्रधानमंत्री को लेकर नया संकट खड़ा हो गया।

बासित की बातों को समझना बड़ा आसान है। नवाज़ शरीफ़ से जुड़े सवाल पर उन्होंने हिंदुस्तान के लोकतंत्र पर तो कटाक्ष किया ही साथ ही न्यायपालिका और मीडिया की निष्पक्षता को कठघरे में खड़ा कर दिया। एक तरह से बासित ने यह जता दिया कि पाकिस्तान की न्यायपालिका, मीडिया और लोकतंत्र हिंदुस्तान से कहीं ज़्यादा बेहतर है।

बासित के इस इंटरव्यू पर हिंदुस्तानी राजनेताओं का क्या रूख होता है यह तो वो ही जाने पर बासित का ठक्का-ठाई जवाब आश्चर्यचकित करने वाला था। कश्मीर मुद्दे पर भी उन्होंने दो टूक कहा कि पाक कश्मीर मुद्दे पर बात करना चाहता है पर यहाँ की सरकार ऐसा नहीं चाहती।

मुल्क के नेताओं को बासित का दंभ सुनाई नहीं पड़ा। उन्हें तो इसकी भी फ़िक्र नहीं डोकलाम के बाद चीनी सेना के कुछ जवान उत्तराखंड की सीमा में एक किलोमीटर तक घुस आए। नेता तो दिन भर सदन में सियासी तवे पर 'लिंचिंग' की रोटी सेंकते रहे। विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त पर माथा पच्ची करते रहे।

जाने कब इस मुल्क के नेता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर एक होंगे। कब तक ये सियासी पहलवान बनकर नूरा कुश्ती लड़ते रहेंगे। कब तक जात-पात और धार्मिक आधार पर मुल्क की अवाम को बाँटते रहेंगे। पता नहीं कब चीन और पाकिस्तान के मुद्दे पर ये नेतागण एक राय होंगे। नेताओं की इसी मत भिन्नता की लाभ बासित जैसे लोग उठाते हैं और हमारी ही धरती पर बैठकर हमारे लोकतंत्र और न्यायपालिका को आईना दिखाते हैं।

O
जय हिन्द
ज़हीर अंसारी

27.7.17

भारत के राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति


आलेखों से आगे ..... भारतीय राज्य व्यवस्था के स्वरुप की एक और झलक 
इस आलेख में देखिये   
भारत की धर्म निरपेक्षता एवं सहिष्णुता आज की नहीं है बल्कि अति-प्राचीन है . भारतीय  सनातनी व्यवस्था के चलते किसी की वैयक्तिक आस्था पर चोट नहीं करता यह सार्वभौमिक पुष्टिकृत तथ्य है इसे सभी जानते हैं . जबकि विश्व के कई राष्ट्र सत्ता के साथ आस्था के विषय पर भी कुठाराघात करने में नहीं चूकते. कुछ दिनों से विश्व को भारत के नेतृत्व में कुछ नवीनता नज़र आ रही है ... श्रीमती सुषमा स्वराज ने अपनी एक अभिव्यक्ति में कहा कि- संस्कृत में  "वसुधैव कुटम्बकम" की अवधारणा है. उनका  यह उद्धरण इस बात की पुष्टि है कि भारत की  सनातनी व्यवस्था में वृहद परिवार की परिकल्पना बहुत पहले की जा चुकी.  भारतीय सम्राट न तो  धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात करने के   उद्देश्य  के साथ राज्य के विस्तारक हुए न ही उनने सेवा    के बहाने धार्मिक विचारों  को  छल पूर्वक विस्तारित किया  . 
जबकि न केवल इस्लाम बल्कि अन्य कई धर्म तलवार या व्यापार के बूते विस्तारित हुए . आज भी जब पाक-आधित्यित-काश्मीर के शरणार्थी  भारत आए तो राष्ट्र ने उनके जीवन को पुनर्व्यवस्थित करने 5 लाख रूपयों की राशि प्रदान करने की व्यवस्था की है . इसे सहिष्णुता ही कहेंगे जबकि चीन जैसे कम्युनिष्ट राष्ट्र ने डोकलाम के मुद्दे पर विश्व और खुद  जनता को गुमराह करने राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद का नाम दिया . भारत के राष्ट्रवादी चिंतन को बीजिंग से परिभाषा दी जावे इसके मायने साफ़ हैं कि बीजिंग भी अन्य धार्मिक आस्थाओं को उकसाने की फिराक में हैं . 
अमेरिकन फांसीसी व्यक्वास्थाएं अब घोर राष्ट्रवादियों के हाथ में हैं उसे क्या परिभाषा दी जावेगी ये तो साम्यवादी राष्ट्र के विचारक ही बता सकतें हैं पर  यहाँ साफ़ तौर पर एक बात स्पष्ट होती है कि साम्यवादी राष्ट्र से जो भाषा हम, तक आ रहीं हैं वो  साम्यवादी तो कतई नहीं हैं . 
  भारत के   राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति है इस ओर विचारकों का ध्यान जाना अनिवार्य है  .
आज़कल लोगों के मन में एक सवाल निरंतर कौंध रहा है कि क्या चीन भारत के बीच युद्द होगा ..?
मेरे दृष्टिकोण से कोई भी स्थिति ऐसी नहीं है कि चीन और भारत के मध्य युद्ध हो.. युद्ध किसी भी स्थिति में चीन के लिए लाभदायक साबित नहीं होगा इस बात का इल्म  चीन की लीडरशिप को बखूबी है. पर चीन का जुमले उछालने का अपना शगल है. मेरी नज़र में चीन उस पामेरियन सफ़ेद कुत्ते की तरह बर्ताव कर रहा है जो घर में आए मेहमान पर जितना भौंकता है उतना ही पीछे पीछे खिसकता है. यह राष्ट्र अपनी विचारधारा के चलते भय का वातावरण निर्मित करने में लगा है.   


चित्र साभार : नवभारत टाइम्स 

20.7.17

Shikha Patel


Shikha Patel is a craft student of balbhavan Jabalpur, One day she showed me her craftwork wich was  made by  unusefull material 
      i   called to Art-Teacher and give   congratulations to her .  
 After long conversation about shikha and her art-work .   i instruct to shikha's Art-teacher  Renu Pandey  for more  improvement and efficiency in shikha's  work as well special attention for shikha . Shikha now selected for state label BalShri Camp . 
       Shikha's mother is house wife but part time sale's-girl her father working as motor Mechanic .The family of Shika is in the low-middle-income group. Those who live in two room houses with less comfort than four children.
Please watch & like MyChannel



   

18.7.17

"सनातन सामाजिक व्यवस्था" क्या है ...?

अखंड भारत कल्पित नहीं सनातन सामाजिक व्यवस्था
ने इसे 5000 से अधिक अवधि तक सम्हाला था 

पाकिस्तान के कितने टुकड़े  होंगे  ?  कल के इस आलेख में यह समझाने का प्रयत्न किया था कि  "सनातन सामाजिक व्यवस्था" क्या है ...? आइये उसी से आगे बात को लिए चलतें हैं.... 
क्या यह एक सम्प्रदाय है ... उत्तर स्वाभाविक रूप से न ही है .. क्योंकि धर्म के अनुयाई सहमति असहमति के आधार पर अपने सुझाए मार्ग पर चलने व्यवस्था बनाते हैं.. यह कार्य समूह का शिखर व्यक्तित्व करता है जिसे गुरू संबोधित किया जा सकता है किन्तु मेरा आध्यात्मिक चिन्तन  इनको प्रवर्तक मानता है .  हो सकता है आप असहमत हों . पर यही सत्य है. 
धर्म क्या है ... इस पर बेहद विशद मंथन किया जा चुका है होता भी रहेगा इससे कोई ख़ास अर्थ निकलने वाला नहीं . जैसे कि गाड अर्थात ईश्वर को कोई न तो प्रूफ कर पाया है न ही ही किसी ने उसके अस्तित्व को बहुसंख्यक वैश्विक आबादी ने स्वीकार्य ही किया है. विश्व का हर प्राणी ईश्वर को मात्र  अनुभूत करता है . धर्म उसी ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता है .

जो अन्य प्राणियों के प्रति सात्विकता पूर्ण व्यवहार के साथ स्वयमेव प्रशस्त होता है. वाम मार्ग को यही सब खलता है उसे लगता है कि एक आकार हीन आब्जेक्ट को लोग पूजते हैं जबकि उसका केवल एहसास मात्र कथित रूप से होता है ... जबकि जीवितों को जिनका आकार है उसे उपेक्षित किया जाता है . वाममार्ग इसी उधेड़बुन में लगे लोगों में  अनास्तिकता की विचारधारा को बीज रोपित करना   है ! --- 
 वास्तव में वाममार्ग वैदेशिक आयातित-विचारधारा है ऐसी विचारधारा कदाचित  भारत में प्रवर्तित होती तो तय था का उसका स्वरुप इतना कठोर और विघटनकारी  न होता कि पैररल सत्ता चलाने की  भारत में आवश्यकता हो नक्सल आन्दोलन इसी का एक उदाहरण है . भारत की सनातन सामाजिक व्यवस्था में अकिंचनों अर्थात गरीबों को आर्थिक समृद्धि की व्यवस्था के प्रावधान मौजूद हैं. "सर्वे जना सुखिना भवन्तु" का घोष बारबार सामाजिक साम्य की ओर इशारा है. अधिकाँश राजाओं ने इसे स्वीकारा भी था राज्य के विस्तार से अधिक लोककल्याण के कार्यों के लिए अधिक सजग रहे किन्तु वैदेशिक आक्रान्ताओं के हमलों से भारत की अखंडता बनी न रह सकी .
2500 वर्षों में तो भारत का तेजी से विभक्त होना एक दुखद पहलू रहा है. विदेशी आक्रमण लूटपाट, वैचारिक बदलाव, सनातनी सामाजिक व्यवस्था को खंडित करने उद्देश्य से भारत आए . कालान्तर में आक्रमणकारियों की पीठ पर लद कर पंथों  का प्रवेश हुआ.  सनातनी व्यवस्थाओं में को क्षतिग्रस्त कर आयातित आचरण को बलपूर्वक भारत में लागू करने से साम्प्रदायिक वर्गीकरण तेजी से हुआ यही वर्गीकरण जातिगत विद्वेष का आधार भी इस वज़ह से बना क्योंकि बिना दरार के उनको घुसने का अवसर कदापि न मिलता . वाममार्ग की विशेषता है कि वह प्रोग्रेसिव होने के नाम पर वर्गीकरण करता वर्ग निर्मित करता है फिर लफ्फाजी के सहारे आतंरिक संघर्ष कराता है. इसकी जद में अक्सर कम ज्ञान रखने वाले सहज आ जाते हैं. अर्थात वाममार्ग का उद्देश्य किसी भी प्रकार से विकासोन्मुखी नहीं है . सनातन सामाजिक व्यवस्था की शल्यक्रियाओं में जितना आस्तिक पंथ प्रचारकों का योगदान था उससे अधिक इन नास्तिकों है. जबकि सनातन सामाजिक व्यवस्था जिसने चार्वाक को भी वैचारिक स्वातंत्रय का अधिकार दिया था को छिन्नभिन्न कर दिया . और प्रयास इस आलेख के लिखे जाने तक जारी है. 
परन्तु  सदी बीतते बीतते भारत में राष्टवाद का पुनर्जागरण का युग शुरू हुआ. जो नई सदी में पुख्ता होता नजर आ रहा है.  2050  तक भारत में  इसी राष्ट्रवाद के सहारे  सनातन सामाजिक व्यवस्था क्रमश: इतना  सशक्त होगी जितनी इजराइल में हुआ है. सत्ताएं आएंगी जाएँगी  पर राष्ट्रवाद के संकल्प के बिना कोई भी शक्ति सत्ता के शीर्ष पर नहीं टिक सकेगी.
तब तक अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो ( यद्यपि जो न होगा ) विश्व के नक़्शे में कई देशों के नक़्शे नए होंगें और न हुआ तो भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक परिदृश्य में सभी पंथ सौहार्द पूर्ण रूप से जीवित होंगें . 
लेखक के रूप में मैं आशावादी हूँ क्योंकि जिस तेज़ी से मात्र 3 वर्षों में हमारी विश्वनीति सफल हुई है उससे इस बात की तस्दीक होती है कि हम तेज़ी से वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की आवाम के दिलों पर राज करेंगें . सनातन सामाजिक व्यवस्था सीमाओं को छीनने पर विश्वास नहीं रखतीं बल्कि चीन और पाक  जैसे देशों को सीमाओं में रहने की नसीहत पर विश्वास रखतीं हैं. 
( आलेख जारी है प्रतीक्षा कीजिये )
       

17.7.17

पाकिस्तान के कितने टुकड़े होंगे...?

गिलगित - बालित्स्तान की सांस्कृतिक समारोह की तस्वीर 
पाकिस्तान के कितने टुकड़े  होंगे ये तो आने वाला समय बताएगा किन्तु ये तयशुदा है जम्हूरियत पसंदगी आज के दौर की सबसे बड़ी ज़रूरत है और आम नागरिक को प्रजातंत्र के लिए अधिक आकर्षण समूचे विश्व के चप्पे चप्पे में पसंद आ रहा है. और यही भावना आने वाले दौर को और अधिक सशक्त बनाएगी. इसी जम्हूरियत पसंदगी के चलते वे सारे राष्ट्र जहां जम्हूरियत का नामोंनिशान नहीं है उन देशों के राष्ट्र प्रमुखों को खासतौर पर सोचना ज़रूरी है जो धर्माधारित राष्ट्र के प्रमुख हैं अथवा किसी धार्मिक राष्ट्र की संस्थापना के चिन्तन में हैं.वे सभी भी जो सभी धर्मों को उपेक्षा भाव से देखते हुए केवल ख़ास विचारधारा को जनता पर लादते हैं. अर्थात प्रजातंत्र जहां धर्म संस्कृतियों को सहज स्वीकारने और अपने तरीके से जीने का अधिकार जो राज्य देता है जनता उस राज्य की नागरिकता अधिक पसंद करेंगे . और विश्व में भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के अधिकाँश अध्याय जुड़ेंगे . लोग उसे सहर्ष स्वीकारेंगे .
भारत में हिंदुत्व नामक कोई अवधारणा या विचारधारा नहीं है बल्कि सनातन सामाजिक व्यवस्था है. जो इतनी व्यवस्थित एवं स्वचालित है कि उसमें किसी प्रकार की ऐसी कठोरता हो जो जनता को अस्वीकार्य हो. इसकी पुष्टि कुम्भों के आयोजन से होती है. जहां भारत के सभी ऋषि, मुनि, संत, विद्वत समाज, आस्तिक एकत्र होकर विगत 12 वर्षों में अपेक्षित व्यवस्थाओं की समीक्षा कर सनातन  सामाजिक व्यवस्था को समयानुकूलित करने के लिए नवीन बिन्दुओं का समावेश करते रहें हैं. यह परम्परा संसदीय थी सम्राट, रियासतों के राजाओं एवं अन्य प्रशासनिकों को लागू करवाना होता था.
सनातन सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन न होता तो सनातन कठोर होता जड़ता युक्त होता .. और यही जड़ता उसे क्षतिग्रस्त करती . और सनातन आज हम नहीं स्वीकारते. क्योंकि नागरिक सदैव सहज जीवन जीना पसंद करते हैं. राजशाही / सामंत शाही में धर्माचरण के निर्देश थे. बदलावों को सदैव ग्राह्य किया गया . पश्चिमी और सनातन व्यवस्था में लचीलापन उसको स्थाईत्व देता है. मत भिन्नता को ग्राह्य करते हुए सभी धर्मों का सम्प्रदायों में बंटना स्वाभाविक प्रक्रिया है जो धर्म की स्थापना के बाद कालान्तर में होती है . एक ब्रह्म एकेश्वरवाद , द्वैत, अद्वैत, निरंकार , साकार, शैव, शाक्त, वैष्णव, ट्रिनिटी , और अन्य सभी विचारधाराएं जो मनुष्य की दिमागी उपज है उसी का अनुशरण राष्ट्र की जनता करती है जो उसे अधिक सहज लगता है.
स्वामी शुद्धानंदनाथ ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था कि- “देश-काल-परिस्थिति” के अनुकूल व्यवस्था ही धर्म है . उदाहरण के लिए यदि आप सफर में और आप त्रिसंध्या के नियम का पालन नहीं कर सकते हैं तो आप मानस-पूजा के ज़रिये अपने आराध्य की वंदना कीजिये. सनातन का यही लचीलापन उसे सर्वग्राह्य बनाता है. सनातन व्यवस्था  में बाह्य-आचरण की व्यवस्थाएं दीं हैं . किन्तु आतंरिक आध्यात्मिक विकास के लिए अध्ययन, तप, योग, ध्यान, चिंतन के बिन्दुओं का समावेश धर्म गुरु करते हैं. सनातनी धर्मगुरु मेकअप कराकर मनमोहक वातावरण बनाकर भाषण नहीं देते थे . बल्कि समाज के छोटे छोटे समूह को आध्यात्मिक एवं सनातनी सामाजिक व्यवस्था का शिक्षा देते रहे हैं . आज भी भारत में धर्म और उसका आतंरिक तत्व अर्थात अध्यात्म बहुसंख्यक रूप से स्वीकार्य है. सनातन सामाजिक व्यवस्था सत्ताभिमुख होने की बजाय राष्ट्रधर्म के पालन को बढ़ावा देती है . 
इससे पाकिस्तान में सत्ता का आधार ही कठोर है लोकप्रशासन भी बेहद लचर है  . वहां कोई भी बदलाव राज्य को ही अस्वीकार्य है तो जनता के मन में सदैव आशंका होती है . राज्य का प्रबंधन की समझ रखने वाले प्रोग्रेसिव विद्वानों को वहाँ स्थान नहीं मिला इसी वज़ह से प्रजातंत्र की रक्षा के तरीके न खोज सका पाकिस्तान और इसी के चलते 1971 यानी मेरे जन्म के आठ वर्ष बाद उस देश को दो खंड में विभक्त होना पड़ा . 48 साल बाद  उसे छल से छीनी भूमि  बलोचस्तान, के साथ साथ गिलगित-बल्तिस्तान, सिंध, आदि को खोना पड़ सकता है. पाकिस्तान का जन्म कायदे आज़म  कुंठा और भ्रम से हुआ. कुंठा और भ्रम में निर्मित कोई रचना दीर्घायु भला कैसे हो सकती है. पाकिस्तान का पंजाब सूबा देश का सबसे कम आय-अर्जक है पर वहाँ (पंजाब में) शोषण करने वालों की संख्या अधिक है, पाकिस्तान की  जो भी विकास की  नीतियाँ हैं उनका सीधा और सबसे अधिक लाभ केवल पंजाब को हासिल है. शेष जैसे बलोचिस्तान, सिंध, गिलगित-बल्तिस्तान आदि की उपेक्षा हुई है. 48 सालों में इन्हीं गलत एवं गैर-समानता वाली व्यवस्था के चलते पाकिस्तान की फैडरल-व्यवस्था फिर से  चरमराने लगी है . जिससे आम शहरी बेहद घायल महसूस करता है . यहीं से रास्ते बनतें हैं जनक्रांति के जो भौगोलिक सीमाओं में तक परिवर्तन ला सकती हैं. एक सत्य भी पाकिस्तानी सदर यानी वहाँ के वजीर-ए-आज़म विश्व फॉर्म पर उजागर करते हैं हैं कि पाकिस्तान को आतंकवाद सबसे अधिक क्षतिग्रस्त करता है . सत्य भी है पर इसके तीन कारण हैं ..
एक कि वो ऐसा कहकर वो विश्व समुदाय से सिम्पैथी हासिल करना चाहता है जिससे उसकी करतूतों पर पर्दा डाला रहे
दूसरे उसको देश चलाने के लिए अमेरिकी डालर मिलते रहें . जिससे उसके पंजाब सूबे की जनता का जीवन सामान्य हो सके.  
तीसरा और सबसे अहम कारण है उसके पास अब इतना भी धन नहीं है जिससे वो अपने पाले आतंकवादी संगठनों का खर्च भी उठा सके.
अक्सर भारत के कुछ विचारक भारत को कम आंककर अनाप-शनाप आरोप लगाकर हमारी विदेशनीति पर सवाल खड़े करते हैं . लेकिन दिनांक 16 जुलाई 17 को आतंक के खिलाफ दृढ़ता से आवाज़ उठाने वाले मनिंदर सिंह बिट्टा के संकल्प को समझाने की ज़रूरत है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग को धार्मिक साँचें में ढालकर पेश न किया जाए.
अधिकाँश आयातित विचारधारा के पोषक सदा वर्गीकरण करतें हैं ताकि व्यवस्था में उन्माद का प्रवेश हो तथा अंतर्कलह की स्थिति उत्पन्न हो . किन्तु भारत ने विश्व को अपने मज़बूत कूटनीति से जिस तरह पाकिस्तान और उसके आका चीन को पोट्रेट किया है उससे विश्व का भारत के प्रति झुकाव भी बढ़ा है . और हमारी वैश्विक साख में इजाफा हुआ है.
जहां तक भारत के अल्पसंख्यकों का प्रश्न है वे चाहे यहूदी हों बौद्ध, सिख, पारसी, ज्यूस्थ, जैन, अथवा मुसलिम हों उनको बहुसंख्यकों से भयातुर होने की ज़रूरत कदापि नहीं . भारत सर्वधर्म समभाव का स्वप्रमाणित राष्ट्र है. बावजूद इसके कि पश्चिम बंगाल सहित कई प्रान्तों में सनातनियों की स्थिति सामान्य न हो .

परन्तु एक बाद सबको समझनी आवश्यक है कि पाकिस्तान को सर्वाधिक क्षति चीन और उसके अपने बलोचस्तान, गिलगित-बल्तिस्तान, सिंध, के नागरिक ही दे सकतें हैं.         

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...