8.7.17

Addiction of MOBILE : Miss Pragati Pandey

Thanks :- Tipul acesta

The term MOBILE means Mode of Being Isolated Lonely but Entertained.
Its overuse was spreading like a disease all over the world. Mobile was invented to make life more easier,with the help of this we get conected with our family,friends and all our neighbourhood from different parts of the world.
 This was the easiest and faster mode of communication.  The number of people that have cell phones is rapidly growing. So is the number of people that are becoming addicted to their phones. These phones are made to make life easier. Today there are some people that have a life because they do not know when to turn them off.
Thanks :- Today.com
Unfortunately,cellphone addiction may become more wideslread as greater numbers of children's are using cell phones. There are questions as to whether cell phone addictions are actual addictions, such as an addiction to drugs would be. There are some similarities.    People who are addicted to cell phones they are using it to make them feel better. Childrens who are below 15years they have bundles of knowledge about mobile phones and they sometimes misusing it. Cell phones do make life easier, but you should not lose sight of the fact that there is a life without them. There is a some evidence that claim the excessive mobile phone use can cause or worsen health problems. Cancer, specifically brain cancer, and its correlation with phone use, is an ongoing investigation. BeacAuse of radio frequency of the mobiles will affect the health of people.
Thanks :- Tipul acesta
Mostly the studies of students get affected due to mobile phones because they are keeping their studies aside because of their entertainment. So, it is requested to all the cell phones addicted that it was invented to make your life easier and we should not play with it because it will affect you socially as well as mentally.

Use it when necessary and make atmosphere free from radio frequency so that you get a healthy environment and you will make your family feel happy by spending time with them not with mobiles.
#हिंदी_ब्लागिंग_जिंदाबाद 

4.7.17

ब्राह्मण बच्चे की मर्मस्पर्शी कहानी उसी की जुबानी


आज व्हाट्सएप पर एक वीडियों मिला यह वीडियो यूट्यूब पर हुरदंग-न्यूज़ द्वारा 2 जुलाई 2017 को  अपलोड किया गया है. इसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं https://www.youtube.com/watch?v=DwA_z1H34VY मुझे लगा कि शायद किसी ने शरारत की है पर जब बच्चे के बताए उसके भाई के रोल नंबर का रिज़ल्ट देखा तो दंग रह गया . रिजल्ट वही निकला जो बच्चे ने बताया.  
पितृ विहीन यह बच्चा अपने अन्य दो भाइयों के साथ रीवा जिले में रहता है. अध्ययन के लिए  अनारक्षित वर्ग का होने के कारण अपना भविष्य बनाने के लिए बच्चा नीलकंठ दुबे रीवा से सतना के बीच इंटर सिटी में अखबार बेचता है. बच्चे ने अपने इंटरव्यू में बताया की उसके दो भाई बहुत उम्दा पढ़ाई करते हैं. बड़े भाई को सरकारी और गैर सरकारी इमदाद मिलने का ज़िक्र करते हुए बताया कि वह अपने भविष्य के प्रति बेहद संवेदित है . इतना ही नहीं वो लाखों शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए बच्चों को सरकारी मदद की अपेक्षा करतें हैं .
नीलकंठ का आत्मविश्वाश बेहद सराहनीय है. आइये अपने प्रदेश को महान बनाने इन बच्चों के लिए कुछ करें .


प्रधानमंत्री जी की इजराइल यात्रा : - प्रशांत पोल

प्रसंगवश – प्रशांत पोल जी ने आज फेसबुक पर डाला है यह आलेख आप भी जानिये इज़राइल को इसके पहले कि टीवी पर कुछ बताया जावे ......... आभार श्री प्रशांत पोल जी 
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मैं तीन बार इजराइल गया हूँ. तीनों बार अलग अलग रास्तों से. पहली बार लंदन से गया था. दूसरी बार पेरिस से. लेकिन तीसरी बार मुझे जाने का अवसर मिला, पडौसी राष्ट्र जॉर्डन से. राजधानी अम्मान से, रॉयल जॉर्डन एयरलाइन्स के छोटेसे एयरक्राफ्ट से तेल अवीव की दूरी मात्र चालीस मिनट की हैं. मुझे खिड़की की सीट मिली और हवाई जहाज छोटा होने से, तुलना में काफी नीचे से उड़ रहा था. आसमान साफ़ था. मैं नीचे देख रहा था. मटमैले, कत्थे और भूरे रंग का अथाह फैला रेगिस्तान दिख रहा था. पायलट ने घोषणा की, कि थोड़ी ही देर में हम नीचे उतरने लगेंगे’. और अचानक नीचे का दृश्य बदलने लगा. मटमैले, कत्थे और भूरे रंग का स्थान हरे रंग ने लिया. अपनी अनेक छटाओं को समेटा हरा रंग..!

रेगिस्तान तो वही था. मिटटी भी वही थी. लेकिन जॉर्डन की सीमा का इजराइल को स्पर्श होते ही मिटटी ने रंग बदलना प्रारंभ किया. यह कमाल इजरायल का हैं. उनके मेहनत का हैं. उनके जज्बे का हैं. रेगिस्तान में खेती करनेवाला इजराइल आज दुनिया को उन्नत कृषि तकनिकी निर्यात कर रहा हैं. रोज टनों से फूल और सब्जियां यूरोप को भेज रहा हैं. आज सारी दुनिया जिसे अपना रही हैं, वह ड्रिप इरीगेशन सिस्टम’, इजराइल की ही देन हैं.
इजराइल प्रतीक हैं स्वाभिमान का, आत्मसम्मान का और आत्मविश्वास का..!
मात्र अस्सी लाख जनसँख्या का यह देश. तीन से चार घंटे में देश के एक कोने से दुसरे कोने की यात्रा संपन्न होती हैं. मात्र दो प्रतिशत पानी के भण्डार वाला देश. प्राकृतिक संसाधन नहीं के बराबर. ईश्वर ने भी थोड़ा अन्याय ही किया हैं. आजु बाजू के अरब देशों में तेल निकला हैं, लेकिन इजराइल में वह भी नहीं..!
इजराइल यह राजनितीक जीवंतता और राजनीतिक समझ की पराकाष्ठा का देश हैं. इस छोटे से देश में कुल १२ दल हैं. आजतक कोई भी दल अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना पाया हैं. पर एक बात हैं देश की सुरक्षा, देश का सम्मान, देश का स्वाभिमान और देश हित... इन बातों पर पूर्ण एका हैं. इन मुद्दों पर कोई भी दल न समझौता करता हैं, और न ही सरकार गिराने की धमकी देता हैं. इजराइल का अपना नॅशनल अजेंडा’, जिसका सम्मान सभी दल करते हैं.
१४ मई, १९४८ को जब इजराइल बना, तब दुनिया के सभी देशों से यहूदी (ज्यू) वहां आये थे. अपने भारत से भी बेने इजराइलसमुदाय के हजारों लोग वहां स्थलांतरित हुए थे. अनेक देशों से आने वाले लोगों की बोली भाषाएं भी अलग अलग थी. अब प्रश्न उठा की देश की भाषा क्या होना चाहिए..? उनकी अपनी हिब्रू भाषा तो पिछले दो हजार वर्षों से मृतवत पडी थी. बहुत कम लोग हिब्रू जानते थे. इस भाषा में साहित्य बहुत कम था. नया तो था ही नहीं. अतः किसी ने सुझाव दिया की अंग्रेजी को देश की संपर्क भाषा बनाई जाए. पर स्वाभिमानी ज्यू इसे कैसे बर्दाश्त करते..? उन्होंने कहा, ‘हमारी अपनी हिब्रू भाषा ही इस देश के बोलचाल की राष्ट्रीय भाषा बनेगी.
निर्णय तो लिया. लेकिन व्यवहारिक कठिनाइयां सामने थी. बहुत कम लोग हिब्रू जानते थे. इसलिए इजराइल सरकार ने मात्र दो महीने में हिब्रू सिखाने का पाठ्यक्रम बनाया. और फिर शुरू हुआ, दुनिया का एक बड़ा भाषाई अभियान..! पाँच वर्ष का.
इस अभियान के अंतर्गत पूरे इजराइल में जो भी व्यक्ति हिब्रू जानती था, वह दिन में ११ बजे से १ बजे तक अपने निकट के शाला में जाकर हिब्रू पढ़ाता था. अब इससे बच्चे तो पाँच वर्षों में हिब्रू सीख जायेंगे. बड़ों का क्या..?
इस का उत्तर भी था. शाला में पढने वाले बच्चे प्रतिदिन शाम ७ से ८ बजे तक अपने माता-पिता और आस पड़ोस के बुजुर्गों को हिब्रू पढ़ाते थे. अब बच्चों ने पढ़ाने में गलती की तो..? जो सहज स्वाभाविक भी था. इसका उत्तर भी उनके पास था. अगस्त १९४८ से मई १९५३ तक प्रतिदिन हिब्रू का मानक (स्टैण्डर्ड) पाठ, इजराइल के रेडियो से प्रसारित होता था. अर्थात जहां बच्चे गलती करेंगे, वहां पर बुजुर्ग रेडियो के माध्यम से ठीक से समझ सकेंगे.
और मात्र पाँच वर्षों में, सन १९५३ में, इस अभियान के बंद होने के समय, सारा इजराइल हिब्रू के मामले में शत प्रतिशत साक्षर हो चुका था..!
आज हिब्रू में अनेक शोध प्रबंध लिखे जा चुके हैं. इतने छोटे से राष्ट्र में इंजीनियरिंग और मेडिकल से लेकर सारी उच्च शिक्षा हिब्रू में होती हैं. इजराइल को समझने के लिए बाहर के छात्र हिब्रू पढने लगे हैं..!
ये हैं इजराइल..! जीवटता, जिजीविषा और स्वाभिमान का जिवंत प्रतीक..! ऐसे राष्ट्र में पहली बार हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी राजनयीक दौरे पर जा रहे हैं.
हम सब के लिए यह निश्चित ही ऐतिहासिक घटना हैं..!
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प्रशांत पोल #Modi-in_Israel, #Israel
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इसराइल की क्यों ख़ास है इसे जानने क्लिक कीजिये "यहाँ"
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2.7.17

जी एस टी : मध्यवर्ग के लिए शुभ हो सकता है

( कल यानी 1 जुलाई 2017 मिसफिट पर पर प्रकाशित आलेख के बाद आज आलेख देखिये )    
भारतीय अर्थ व्यवस्था के बनते बिगड़ते स्वरुप में कराधान का महत्वपूर्ण योगदान था. कल से भारत जी एस टी की व्यवस्था में शामिल हुआ है . परिणाम कैसे  आने हैं इसका अंदाजा तुरंत लगाना अनुचित है. भारतीय अर्थव्यवस्था को अपलिफ्ट करने में मध्यवर्ग का अभूतपूर्व स्थान है . एक जून 2015 को मैंने इसी ब्लॉग पर फिर अन्य स्थानों पर मध्यवर्ग की समस्या को खुल के सामने रखा था और उन कारणों को स्पष्ट किया था जिसमें व्यक्तिगत क्षेत्र के पास पूंजी निर्माण की अपनी अलग तरह की बाधाएं हैं 
    इन बाधाओं में सर्वाधिक समस्या कराधान एवं अचानक मूल्यों में बढ़ोत्तरी की वज़ह से होना पाया गया. शिक्षा स्वास्थ्य मध्यवर्ग के लिए सबसे खर्चीले मद हैं जो व्यक्तिगत-सैक्टर के मध्य आय वर्गीय  बड़े साझीदार को पूंजी निर्माण में सदैव बाधा उत्पन्न करते रहे हैं .

     सुधि पाठको, यही मध्यम जिसे वाम विचारक सबसे अधिक कलंकित करते हैं के युवा सर्वाधिक उत्पादता तथा विदेशी मुद्रा भण्डार के लिए कारगर एवं परिणाममूलक कार्य कर रहे हैं . लेकिन इसके लिए परिवारों को जो तकलीफें उठानी पड़तीं हैं उसे समझना बेहद ज़रूरी है. वर्तमान एवं तत्कालीन  सरकारों ने जिस तरीके से अपनी इच्छा शक्ति से एक देश एक कर की व्यवस्था लागू कराई है वो  अन्य बातों के अनुकूल होने पर मध्यमवर्ग को  पूंजी निर्माण में सहायता प्रदान करेगी . ऐसा मेरा मत है. ये अलग बात है कि 14 वर्ष लगे . तो जानिये सम्पूर्ण व्यवस्था के बदलाव में राम को भी 14 वर्ष ही लगे थे. अत्यधिक नहीं परन्तु आशावादी होना बुरा और गलत भी तो नहीं अत: मैं आशान्वित हूँ कि बदलाव अवश्य आएगा. इस बीच ये कठिनाइयां अवश्य आ सकतीं हैं कि पडौसी देश भारत की इस व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं. अगर सीमा पर अस्थिरता रही और सरकार को सीमा की रक्षा के लिए कुछ अतिरिक्त व्यवस्था करनी पडी तो कठनाई अवश्य आ सकती है परन्तु भारतीय जन इस संकट में सरकार के साथ ही होंगें ऐसा सभी मानतें हैं. मध्यवर्ग जिसे वाम-सोशियो-इकानामिक्स के ज्ञाता अछूत मानते हैं उसका सबसे महान योगदान होगा. 
          अगर समूची स्थितियां अनुकूल रहीं तो जी एस टी के सुचारू क्रियान्वयन के बाद मध्यमवर्ग सबसे शक्तिशाली बनके उभरेगा. अर्थात उसके द्वारा संचित की गई  पूंजी राष्ट्रीय पूंजी के रूप में चिन्हित होगी . और विकास के सन्दर्भ में इसका उपयोग राष्ट्र के लिए सर्वाधिक लाभप्रद भी होगा.     
          
#हिंदी_ब्लागिंग के पुनरागमन पर सभी को शुभकामनाओं सहित
 http://sanskaardhani.blogspot.in/2017/06/blog-post_30.html
              


1.7.17

यह (जीएसटी) किसी एक सरकार की उपलब्धि नहीं है, बल्कि हम सबके प्रयासों का परिणाम है: प्रधान सेवक


#हिन्दी_ब्लॉगिंग
29 और 30 जुलाई 2015 की मध्यरात्रि याकूब मेनन को बचाने न्याय पालिका की सर्वोच्च इकाई को बैठना पड़ा था. श्री प्रशांत भूषण साहब की अगुआई में वकीलों के समूह ने राष्ट्रद्रोह के आरोपी याकूब मेनन  को बचाने की भरसक कोशिश भी की थी.  
कार्यपालिका व्यवस्थापिका और प्रेस सभी देर रात तक देश के लिए ही कार्य करते हैं . यही खूबसूरती है इस देश की इसी क्रम में आज भारत ने आज एकीकृत टेक्स व्यवस्था को सहज स्वीकारा है.
मध्यरात्री तक कामकाज प्रजातंत्र के सभी स्तम्भ करतें हैं कुछ कामकाज अदालतें खुलवा कर कराने की कोशिश की जातीं हैं तो GST पर कोहराम क्यों..?
 इस सवाल ने मेरे दिमाग में हलचल पैदा अवश्य कर दी थी किन्तु सियासी मसला न मानकर मैंने अर्थशास्त्र के विद्यार्थी के रूप में इस बदलाव को समझने की कोशिशें की हैं उस बदलाव के दृश्य का साक्षात्कार करना मेरी भारतीय नागरिक के तौर पर आत्मिक-ज़वाबदारी भी थी. अत: मैं  टीवी चैनलों पर जी एस टी के संसद के केन्द्रीय कक्ष से  सीधे प्रसारण को देखता रहा .
सुधि पाठको 14 वर्ष से जिस जी एस टी की प्रतीक्षा सम्पूर्ण भारत को थी उसके लिए बनी कौंसिल ने 18 बैठकें कर इसे अंतिम रूप दिया . राज्य सरकारें इस पर पूर्व से ही सहमति दे चुकीं हैं यह सर्व विदित तथ्य है .    
 “वस्तु-सेवा-कर” में बकौल प्रधान सेवक – 500 प्रकार के करों को समाप्त करते हुए वस्तुओं / सेवाओं   के मूल्यों  में एकरूपता का अभाव देशी विदेशी सभी को कन्फ्यूज़ करता रहा  है जो GST के आने के बाद एकरूपता, सहज एवं पारदर्शिता का वातावरण निर्मित होगा. प्रधान सेवक ने इसे मुक्ति का मार्ग निरूपित किया तथा बताया कि इससे भ्रष्टाचार एवं ब्लैक-मनी क्रिएशन पर रोक लगेगी . अगर वे ऐसा सोचते हैं तो ठीक है पर उन वस्तुओं का क्या जो इस परिधि में नहीं ।
प्रधान सेवक की अभिव्यक्ति से साफ़ होता है भारत को जिस मोर्चे पर सर्वाधिक कमजोर माना जाता था विश्व के इन्वेस्टर्स भारत को पूंजी निवेश अब अनुकूलता  महसूस कर रहें होंगे.
टैक्स का आधिक्य अथवा अनिश्चितता से व्यक्तिगत-क्षेत्र को पूंजी निर्माण करने से रोकता है. जी एस टी के लागू होने के बाद स्थिति में अचानक बदलाव आने की पूरी-पूरी संभावना से इंकार नहीं हो किया जा सकता है. आपको याद होगा कि प्रधान सेवक ने अर्थव्यवस्था के  जिस नये सेक्टर  “पर्सनल सैक्टर” की चर्चा की थी उस पर्सनलसेक्टर को पूंजी निर्माण में सहायता मिले. (http://sanskaardhani.blogspot.in/2015/10/blog-post_25.html)
किंतु ऐसा न हो सका । कुछ बिंदुओं पर GST व्यवस्था  मिलाकर असफल हो सकती है ।

महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी साहब  ( जो जी एस टी से वित्तमंत्री के रूप में जुड़े रहे हैं ) ने अपनी अभिव्यक्ति परिवर्तन के विरोध को सामान्य-घटना निरूपित करते हुए कहा कि – भविष्य में सर्वाधिक कारगर क़ानून होगा.
आज जी एस टी को दिनांक 30 जून 2017 की  मध्य-रात्रि 12 बजकर 01  मिनिट अर्थात 01 जुलाई 2017  इस अवसर पर मौजूद सभी राजनैतिक दलों, उनके सांसदों एवं  आफिशियल्स एवं मीडिया घरानों के प्रतिनिधि-गण प्रसन्न थे. समारोह से गायब रहने  मुंह मोड़ने वालों के अपने तर्क हो सकतें हैं .
रहा 14 साल से लम्बित इस व्यवस्था के लागू हो जाने के बाद अब मशीनरी का दायित्व बढ़ जाता है. मशीनरी को पूरी दक्षता और ईमानदारी से इसे लागू करने से आर्थिक रिफार्म के लक्ष्य को शीघ्र मिल सकता है.
जी एस टी  लागू हो जाने के बाद करो और कठिनाइयां पहचान कर उसे निराकृत करने की स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता . सरकार ने ऐसी व्यवस्था अवश्य सुनिश्चित कर ही ली होगी.

चलते चलते “एक राष्ट्र : एक टैक्स”  का आम नागरिक के रूप में  पुन: स्वागत करते हुए  “एक राष्ट्र : एक क़ानून” की व्यवस्था के प्रति एक बार फिर आशान्वित हूँ
 शायद आप भी ..! परिणाम जो भी हो ।

30.6.17

पाकिस्तान आतंक का घोषित घोंसला है तो चीन वैचारिक उन्माद का होलसेल डीलर


कश्मीर समस्या दो दुश्चरित्र राष्ट्रों पाकिस्तान  और चीन के बीच भारत का ऐसा सरदर्द है जिसकी पीड़ा का आधार भारत की समकालीन लापरवाही  है. भारत में लाल और हरी विचारधाराएं भारत के अस्तित्व को 1947 के बाद से ही समाप्त करने की कोशिशों में सक्रीय हैं. अक्सर ब्रिटिशर्स पर ये आरोप लगता है कि उसने मज़हबी आधार पर भारत को विखंडित किया यह अर्धसत्य हो सकता है पूर्ण सत्य तो ये है कि चीन की सरकार झूठ के विस्तार  और कुंठित मनोदशा को सफलता का आधार मानती है तो पाकिस्तान के फर्जी प्रजातंत्र के नेतृत्व का  चरित्र मूर्खताओं का विशाल भण्डार ही रहा है. 
ऐसी कोशिश हो भी क्यों न भारत के मामले  चीन सदा से ही भयभीत रहा है. यहाँ चीन  का साथ हमारे विकास के लिए उतना कारगर कतई भारत के लिए सकारात्मक  नहीं माना जा सकता जितना हम सोच रहे थे. नारे तब भी थे जैसे हिन्दी-चीनी भाई भाई ... पंचशील-क्षरण के बाद हमारे हितों की रक्षा के लिए कोई ठोस पैरोकारी विश्व की ओर से नज़र न आ सकी . मैकमोहन लाइन  को मान्यता देने की 1956 में शपथ लेने वाले चीन ने 1962 में "हिन्दी-चीनी भाई भाई" के नारे को हमारी कमजोरी मानते हुए युद्ध छेड़ा उसे भारतीय सीमाओं को खंडित करने उन पर  सड़क निर्माण का शौक उसकी विस्तारवादी नीति का एक परिचायक है यह कार्य चीन ने 1956 में भी किया था . इतना ही नहीं चीन के सरकारी पत्रिका चायना  पिक्टोरियल में 1958 में नेफा एवं लद्दाख के बड़े  हिस्से  को चीन का हिस्सा बताया . तत्कालीन प्रधान-मंत्री श्री नेहरू की  आपत्ति से तिलामिलाए चीन ने भारत के विरुद्ध बल प्रदर्शन कर भारत को भयभीत करने की चेष्टा  करते हुए  मैकमोहन रेखा को मान्य करने वाली 1956 की शपथ से इंकार करते हुए  अंग्रेजों के संधिपत्र को आधार बना अपना दावा भारत के बड़े हिस्से पर थोपा.  आज भी वही राग चीन ने सैनिकों के साथ थक्का-मुक्की के मामले के बाद अलापा है. फिर भी चीन युद्ध नहीं करेगा क्योंकि चीन को मालूम है कि भारत इस वक्त ऐसी ताकत है जिसे विश्व  साहसी राष्ट्र के रूप में देख रहा है साथ ही  भारत में राज्य एवं जनता की  आइडियोलॉजी  अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली एवं आपस में सिन्क्रोनाइज़्ड  है. जबकि चीन    लिबरल डेमोक्रेसी के अभाव की वज़ह से राज्य एवं जनता के बीच एक भय का अंतर्संबंध है.    
इस वक्त भी  भारत  का पाकिस्तान से बड़ा शत्रु चीन ही है. इसे स्वीकारना ही होगा फिर भी  चीन भारत  युद्ध करेगा नहीं परन्तु इतना तय है कि वो क्षेत्र में अस्थिरता को बढ़ावा अवश्य देगा.
चीन युद्ध क्यों न करेगा – ?
 इसका एक  कारण यह भी  हैं कि उसे अपने उत्पादों को खपाने का बाज़ार कम से कम वह  पाकिस्तान तो नहीं हो सकता जिस पाकिस्तान के लोगों के हाथ में क्रय शक्ति का अभाव है. जबकि भारत की अर्थ-व्यवस्था में सुदृढ़ता है.
  परन्तु मुझे भारतीय विश्वनीती के बदलते तेवर देख कर ये अवश्य लगा रहा है कि भारत निश्चित अपना भू-भाग चीन से वापस हासिल कर सकने की तैयारी अवश्य कर सकता है अगर उसे आतंरिक एवं सीमाई सुरक्षा पर कोई संकट नज़र आया तो. उधर कहीं ये न हो कि पाकिस्तान को कश्मीर के साथ साथ ब्याज में बलोचास्तान सिंध से हाथ न धोना पड़े ..!
उधर पाकिस्तान ने ज़ुबानी युद्ध के ज़रिये भारत को गोया घेरने का संकल्प ले लिया है. यह पाकिस्तान की मज़बूरी है. पाकिस्तान न केवल घरेलू गरीबी आतंक जैसी समस्याओं से दो चार हो रहा है बल्कि सेना और सरकार दौनों को ही पाक जनता पानी पी पी के आए दिन कोसती रहती है. साथ ही बलोच सिंध आदि के विद्रोही स्वर प्रखर से मुखर होते  जा  रहे हैं .  इस सबसे जनता का ध्यान बंटाने के लिए भारत और कश्मीर के सम्बन्ध में माहौल बनाया जा रहा है. 
यहाँ इस बिंदु का जिक्र ज़रूरी है कि पाकिस्तान आतंक का घोषित घोंसला है तो चीन वैचारिक उन्माद का होलसेल डीलर .
इन सब बातों के मद्दे नज़र भारत अपनी विश्वनीति के साथ मस्त गज राज की तरह चलता भी है मौके पर चिंघाड़ता भी है. 

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...