16.5.17

पुत्रीवती कहने में भय किस बात का


जब हम दंपत्ति हुए हमने जिसको भी प्रणाम किया तब सब यही आशीर्वाद देते थे  - मुझे - आयुष्मान भव: और श्रीमती को पुत्रवती भव:  
सच कहूं सोचता था कोई ये क्यों नहीं कहता - " पुत्रीवती भव: "  ऐसा आशीर्वाद न देना उनकी सामाजिक मज़बूरी हो सकती है .... परन्तु हममें साहस होना चाहिए यह  कहने का..! एक बार शुरू तो करिए देखना बदलाव सहज ही नज़र आएँगे
हम बहुत छोटा सोच रहे हैं ... समाज जिस तेजी से बदल रहा है उसके मायने हैं कि हम सार्वभौमिक एम्पावरमेंट की बात करें .
बदलाव वेस्टर्न नहीं बल्कि वैदिक आज्ञाओं में स्वीकार्य हैं. बेटियाँ कमजोर कहाँ कमजोर हमारी समझ है . मध्यकाल में मुस्लिम आतंकी शासकों ने देश की बिखरी सत्ताओं की कमजोरी का लाभ उठाया और बेहद दरिन्दगी से न केवल धर्म परिवर्तन किये वरन महिलाओं बच्चों पर अत्याचार भी किये . समाज ने नारियों को देहरी के भीतर रखने की आज्ञा दी . पर आज़ादी के बाद दृश्य बदले विश्व में बदलाव आया इंग्लैण्ड में वूमेन लिबरेशन का आन्दोलन खड़ा हुआ . भारत के अधिकांश महानार इस की चपेट में आए. यहाँ लिबर्टी का अर्थ वेस्टर्न था अर्थात उन्मुक्त कार्य व्यवहार पर भारत नें जेंडर साम्यता के सिद्धांत को माना नारी को समग्र विकास का हिस्सा माना . अब विकास की गतिविधि में श्रम कौशल (लेबर एंड स्किल) के महत्व को देखते हुए शिक्षा में महिलाओं को बढ़ावा मिला . हैल्थ विवाह आदि पर कानूनी व्यवस्थाएं दीं गईं कार्यक्रम चलाए गए . सोच में बदलाव आया ऐसा नहीं कि सब कुछ बदल गया पर हमारा चिंतन पथ स्पष्ट है.
विकास के इस आक्रामक वातावरण में जहां एक ओर निर्भया जैसी बेटियों के साथ दर्दनाक घटनाएं हमें दहला रहीं हैं तो दूसरी ओर भारत महिलाओं के सशक्तिकरण का मुख्य केंद्र बन गया है. किसी भी विकासशील समाज में भारतीय समाज खासकर भारतीय मध्यवर्ग समाज की बेटियाँ आगे आ रहीं हैं. अर्थात मध्यवर्ग बेटियों को सशक्त बना रहा है. यही सशक्तिकरण के प्रयास बेटियों के सहयोग से समाज के सकारात्मक  सम्पूर्ण विकास एवं सामाजिक चैतन्य का संकेत है.
निर्भया काण्ड के बाद  मुझे इव टीजिंग से अधिक कष्ट होने लगा . किसी महिला को कमजोर समझ कर अपमानित करना बेशक दुखद और चैलेंजिंग लगा अक्षय कुमार के मिशन से प्रेरित हो मैंने एक सैल्फ डिफेन्स ट्रेनिंग प्रोग्राम “शौर्या-शक्ति” आरम्भ की है. आज दिनांक तक 1400 बेटियाँ सैल्फ डिफेन्स सीख चुकीं हैं.
हरदा की सौ. कुसुम किशोरे जी ने महिलाओं के  जो स्किल डेवलेपमेंट में जो कार्य किया वो सराहनीय है. श्रीमती अनिता राजवैद्य जी ने भी उद्यमिता विकास के लिए जो किया वो सब अच्छे कार्य महत्वाकांक्षाओं के बबंडर में विलुप्त हो गए. ये कुछ उदाहरण हैं बावजूद सरकारी कार्यक्रम अलग से जारी हैं . 
 हम अपनी बेटियों को सबसे पहले बताएं कि उसे सायकल चलाने से लेकर आत्मरक्षा तक सब कुछ सीखना है. रहा नारियों की क्षमता का सवाल to सुबह से शाम तक किसी महिला के काम काज पर गौर कीजिये 100  में से 90 काम उसके माथे हैं सिर्फ 10 काम पुरुष करते हैं ...... यकीन न हो तो गिन के देख लीजिये

 


15.5.17

के के निलोसे जी की कविताएँ

इस बार अहा ज़िन्दगी के ताज़ा अंक में के के निलोसे जी की कविताएँ प्रकाशित हुईं .. के के दादा से मेरे दो नाते हैं... एक कवि होने का दूसरा बेटियों के मामा जी का .. दौनों ही रिश्ते बड़े विचित्र हैं .. दौनों रिश्तों के बीच संतुलन बनाने की ड्यूटी दादा भैया ही निभाते हैं.. बड़े हैं न


3.5.17

दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया

मैं तुम और वो यानी कोई भी दाता होने का दावा न करे । दाता एक राम है । ये बुजुर्ग माह में एक बार आते हैं । भाव भरे भगवान हैं हमारे लिए । बाबूजी से लेकर श्रृद्धा तक सभी इनकी सेवा में तत्पर रहते हैं । 
भिक्षुक देवता किसी घर में नहीं घुसते न ही एक माह में दोबारा ही आते हैं । 
कल जब ये आए थे तब मैंने कहा- आईए भोजन तैयार है
लेकिन भिक्षुक देवता ने इंकार करते हुए विनीत भाव से कहा - आज आपकी बारी नहीं 
इन से हमें कुछ नहीं केवल आत्मिक आनंद मिलता है ।
भगवान की सेवा से आशीर्वाद मिले बस यही प्रार्थना है

25.4.17

सुकुमा काण्ड पर तीन कविताएँ



आतंकवादी 
वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे
       बेतरतीब बेढंगे
नकारात्मक विचारो का सैलाब
   शुष्क पथरीली संवेदना
कटीले विचारो से लहू-लुहान
सूखी-बंज़र भावनाओ का निर्मम 
            "प्रहार "
कोरी भावुकता रिश्ते रेत सामान
हरियाली असमय वीरान
उजड़ता घरोंदा बिखरते अरमान
  टूटती-उखड़ती साँसे जीवन
             " बेज़ान  "
स्वयं से डरी सहमी अंतरात्मा
        औरो को डराती
शुष्क पथरीली पिशाची आत्मा का
          " अठ्ठाहास  "
वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे बेतरतीब
       बेढंगे आतंकवादी
    सब के सब एक सामान
         आतंकवादी.......
  भगवानदास गुहा, रायपुर छत्तीसगढ़   

मैं खामोश बस्तर हूँ,लेकिन आज बोल रहा हूँ।
अपना एक-एक जख्म खोल रहा हूँ।
मैं उड़ीसा,आंध्र,महाराष्ट्र की सीमा से टकराता हूँ।
लेकिन कभी नहीं घबराता हूँ
दरिन्दे सीमा पार करके मेरी छाती में आते हैं।
लेकिन महुआ नहीं लहू पीकर जाते हैं।
मैं अपनी खूबसूरत वादियों को टटोल रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा  हूँ।
गुंडाधूर को आजादी के लिए मैने ही जन्म दिया था।
इंद्रावती का पानी तो भगवान राम ने पीया था।
भोले आदिवासी तो भाला और धनुष बाण
चलाना जानते थे।
विदेशी हथियार तो उनकी समझ में भी नहीं आते थे।
ये विकास की कैसी रेखा खींची गयी,
मेरी छाती पे लैंड माईन्स बीछ गयी।
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब 
लेकिन बोल रहा हूँ
मेरी संताने एक कपड़े से तन ढकती थी।
हंसती थी,गाती थी,मुस्कुराती थी।
बस्तर दशहरा में रावण नहीं मरता है।
मुझे तो पता ही नहीं था
रावण मेरे चप्पे चप्पे में पलता है।
भाई साहब अब तो मेरी संताने भी
मुखौटे लगाने लगी हैं।
लेकिन ये नहीं जानती हैं कि
बहेलियों ने जाल फ़ेंका है।
मैने कल मां दंतेश्वरी को भी
रोते हुए देखा है।
मैं लाशों के टुकड़ों को जोड़ रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा हूँ..

नक्सलवाद मेरी आत्मा का एक छाला था
फ़िर धीरे-धीर नासूर हुआ,
और इतना बढा-इतना बढा कि
बढकर इतना क्रूर हुआ

चित्रकूट कराह रहा है,कुटुमसर चुप है
बारसूर में अंधेरा घुप्प है,क्योंकि हर पेड़ के पीछे एक बंदुक है।
और बंदुक नहीं है तो उन्होने कोई रक्खी है।
अरे उन्होने तो अंगुलियों को भी
पिस्तौल की शक्ल में मोड़ रखी है।

सन 1703 में मैथिल पंडित भगवान मिश्र ने जिस दंतेश्वरी का यशगान लिखा,
उसका शब्द शब्द मौन है।
अरे कांगेरघाटी,दंतेवाड़ा,
बीजापूर,ओरछा,सूकमा कोंटा में
छुपे हुए लोग कौन हैं?

मेरी संताने क्यों उनके झांसे में आती हैं।
ये इतनी बात इनकी समझ में क्युं नहीं आती है।
सड़क और बिजली काट देने से तरक्की कभी गांव में नहीं आती है।
मैं अपने पुत्रों की आंखे खोल रहा हूँ,
*मैं खामोश बस्तर हूं भाई साहब लेकिन आज बोल रहा हूँ।*

6 अप्रेल को 76 जवान दंतेवाड़ा में शहीद होते हैं,
8 मई को 8 लोग शहादत से नाता जोड़ते हैं।
23 जून को 29 जवान शहीद होते हैं,

27 जून को 21 जवान शहीद होते हैं।
11 मार्च को 16 जवान शहीद होते है..  
अप्रैल 16 जवान शहीद होते है ....
कल फिर सुकमा में 26 जवान शहीद हो गये ......

*मैं शहीदों की माताओं के आगे  हाथ जोड़ रहा हूँ..*
*मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब लेकिन बोल रहा हूँ...*
इंजीनियर सुनील पारे , विजय नगर जबलपुर    

बस्तर  की आज़ादी के नारे लगाता
जे एन यू.. जाधवपुर का हुजूम......
व्यवस्था के खिलाफ
बरसों से पाली जा रही
आयातित विचारधाराओं की विष बेलें
सहिष्णुता के नाम पर
डेमोक्रेसी के धुर्रे उडाती
माओ की विवादी जमात
पूर्वोत्तर में पलती कुंठा
एक असभ्य अभ्यास
सुनी है न
रवीश की बेतरतीब रिपोर्ट   
शहादत पर  
शब्दों का व्यापार करते
बेरहम लोग...
सुना है एवार्ड वापस नहीं हो रहे
माओ के मवाद
को
साफ़ करना ही होगा
कैसे ..........?
यही सोच रहे हैं ....... सब ........
वो भी जड़ से .........
जड़ कहाँ है
तुमको मालूम है न ?
गिरीश बिल्लोरे मुकुल , जबलपुर    

22.4.17

बाल भवन के नन्हें कलाकारों का गौरैया के प्रति समर्पण


बाल भवन के नन्हें कलाकारों का गौरैया के प्रति समर्पण देकर सभी भावविभोर हो गए। अभिनय के दौरान बच्चों के हावभाव ने छात्र-छात्राओं का दिल जीत लिया। इसके बाद सभी ने एक सुर में गौरैया को वापस लाने का संकल्प लिया। अवसर था विस्डम पब्लिक स्कूल और शासकीय मानकुंवर बाई कॉलेज में नईदुनिया द्वारा आयोजित नुक्कड़ नाटक का।
नाटक के दौरान नन्हें कलाकारों ने गौरैया को वापस लाने की अपील की। इस दौरान उन्होंने गौरैया की उपयोगिता पर भी प्रकाश डाला। नाटक में पेड़ दादा और बैल चाचा का दर्द भी बताया गया। बच्चों ने बताया कि विलुप्त होती गौरैया अब केवल वाट्सअप और फेसबुक पर ही नजर आती है। उन्होंने सभी से अपील करते हुए कहा कि गौरैया को वापस लाने के लिए सभी से आंगन और छत पर दाना-पानी रखने कहा। नाटक में कहा गया कि घरों में लगी जालियों के कारण गौरैया अपने पास नहीं आती।
इनका रहा सहयोग
- निर्देशन- संजय गर्ग
- गीत रचना- गिरीश बिल्लौरे
- संगीत- शिप्रा सुल्लेरे
- बाल भवन के उप संचालक गिरीश बिल्लौरे के निर्देशन में बाल भवन के कलाकारों ने नाटक तैयार किया।
नन्हें कलाकार- वैशाली बरसैंया, आस्था अग्रहरि, वैष्णवी बरसैंया, मानसी सोनी, सागर सोनी, आशुतोष रजक, मिनी दयाल, श्रेया खंडेलवाल, पलक गुप्ता, मनीषा तिवारी।
मिलकर करेंगे प्रयास
कक्षा 12वीं की वैभवी परांजपे ने कहा कि गौरैया को वापस लाने के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे। लोग अपने घरों में दाना-पानी रखें। उन्हें घोसलों को उजाड़ें नहीं। गौरैया को काफी दिनों से नहीं देखा। नईदुनिया का अभियान सराहनीय है। इसके माध्यम से लोगों में जागरूकता आएगी।
सभी पक्षियों को बचाना होगा
कक्षा 9वीं की शिवानी स्वामी ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए गौरैया ही नहीं बल्कि सभी पक्षियों को बचाना होगा। नईदुनिया के अभियान के माध्यम से लोग जुड़ेंगे। इसमें सभी का कोई न कोई रोल होना चाहिए। इस अभियान को महाअभियान बनाना चाहिए।
कार्यक्रम से मिली प्रेरणा
कक्षा 11वीं के देवाशीष बोहांकर ने बताया कि बाल भवन के नन्हें कलाकारों द्वारा आयोजित इस नुक्कड़ नाटक से लोगों को प्रेरणा मिलेगी। लोग सकारा और दाना रखेंगे। जिससे भीषण गर्मी में पक्षियों को राहत मिलेगी। हमारी गौरैया एक बार फिर हमारे आंगन में चहकेगी।
सभी का योगदान होना चाहिए
कक्षा 11वीं के कार्तिक रजक ने कहा कि हम क्या खो रहे हैं। इस कार्यक्रम ने हमें जगा दिया। गौरैया को बचाने में सभी का योगदान होना चाहिए। गौरैया को बचाने के लिए सभी को आगे आना चाहिए। हम लोग मिलकर भी गौरैया को बचाने के लिए पूरी कोशिश करेंगे।
विस्डम पब्लिक स्कूल की प्राचार्य मोंदिरा  सनियाल ने कहा कि प्रकृति को बचाने के लिए यह अभियान जरूरी है। बच्चे इस अभियान से जुड़े। घरों में सकोरे रखें और गौरैया को संरक्षित करने प्रयास करें। नईदुनिया का प्रयास पर्यावरण संरक्षण के लिए काफी सराहनीय है।

विस्डम पब्लिक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में डायरेक्टर राधिका खोडियार, हर्षित खोडियार, मोहिनी मालवीय, मधु पात्रे, मृदुला श्रीवास्तव, पूजा पांडे, नीता जैन, विजय लक्ष्मी उपाध्याय, स्नेहा सबलोक, कीर्ति मालवीय, सिवनी असाटी, रितु यादव, मनोज खरे, रवि प्रांसिस, अर्चना असर, राधिका मालवीय, रश्मि दुबे, अंशु कोहली, अंजुली राजपूत, ब्रंदा सिंह, दीप्ति आदि मौजूद थी।
मानकुंवरबाई कॉलेज में आयोजित नुक्कड़ नाटक के दौरान डॉ. नूपुर देशकर, डॉ. राजेश शामकुंवर, डॉ. रजनी शर्मा, डॉ. नंदिता त्रिवेदी, डॉ. अरुणा, डॉ. मीनू मिश्रा, डॉ. वरुण, डॉ. शिखा गुप्ता, डॉ. अंजु यादव, प्रसन्ना आदि मौजूद रहे।


13.4.17

बालनाट्य एवं अभिनय कार्यशाला हेतु पंजीयन


                   संभागीय बालभवन जबलपुर द्वारा बाबा भीम राव अम्बेडकर जयंती दिनांक  14 अप्रैल 2016 से 30 जून 17 तक बालनाट्य एवं अभिनय कार्यशाला आरम्भ होगी. इस  हेतु  पंजीयन के लिए अभिभावक अपने बच्चों का नाम पंजीकृत करा सकते हैं . कार्यशाला का संचालन श्री संजय गर्ग द्वारा किया जावेगा.  पंजीयन के आधार पर बच्चों को राजा मानसिंह तोमर के एक वर्षीय अभिनय डिप्लोमा परीक्षा में शामिल होने की पात्रता भी होगी .     

9.4.17

*बहू ने बनाई फिल्म सास और दादी सास से कराया अभिनय*


कलाकार के लिए उम्र मायने नहीं रखती जबलपुर के  मशहूर गायक आभास एवं संगीतकार में श्रेयस जोशी की 75 वर्षीय दादीजी श्रीमती पुष्पा जोशी इन दिनों मुम्बई में हैं । उनकी मौजूदगी का लाभ उठाया पौत्र वधू हर्षिता ने और बुजुर्गों की स्थिति पर एक भावात्मक शार्ट फिल्म बनाई ।  इस शार्ट फिल्म के निर्माण में हर्षिता ने घर के सदस्यों की मदद ली ।

यूट्यूब पर भावुक कर देने वाली इस फिल्म में घर के बुजुर्गों की पीडा को रेखांकित करने में सफलता पाने वाली बहू हर्षिता का कहना है - "शार्ट फिल्म जायका हमारी बुजुर्गों के प्रति सोच में बदलाव के लिए प्रेरित करेगी"
           यूट्यूब फिल्म को मात्र 8 घंटे में ही 1000 से अधिक दर्शकों का देखा जाना कथानक और स्क्रीन-प्ले की सुगढ़ता का परिचायक है ..
बधाई देते हुए एक दर्शक श्री अतुल कैशरे ने कहा कि -    हर्षिता जोशी द्वारा निर्देशित लघु फिल्म "जायका " यू ट्यूब पर देखी , बहुत पसंद आई । इसने मुंशी प्रेमचंद की कहानी " बूढी काकी " की याद ताजा कर् दी । यह फिल्म अत्यंत ही मार्मिक बनाई गई हैं । एक उम्रदराज महिला जो जीवन भर अपने बच्चो को लज़ीज़ व जायकेदार खाना खिलाती हैं वह बूढी होने पर किस तरह मसालेदार खाने के लिए तरसती हैं और अपने समय को याद कर् उसकी आंखें भर आती हैं । दोनों वक्त वही दलिया देख कर् उन्हें कोफ़्त होती हैं , उसका बेटा भी अपनी माँ पर ध्यान नही देता । अंततः बहू पसीज जाती हैं और अपनी सास को दिए जा रहे भोजन को स्वयं खाती हैं और अपने पति को प्रेरणा देती हैं ।
*
जायका* वस्तुतः घर घर की कहानी हैं , हर घर में बढ़े बूढ़े होते हैं , जो अपने बेटे - बहू द्वारा उन्हें परोसे जा रहे बेस्वाद भोजन खाने को खाने के लिए मजबूर रहते हैं । यह फिल्म प्रेरणा देती हैं क़ि जिस माँ ने हमे जीवन भर भोजन खिलाया हो क्या हम उनके लाचार होने पर उन्हें अच्छा व उनका मनपसन्द खाना नही दे सकते ? सभी तरह के परहेज़ का पालन करते हुए भी खाने के स्वाद को बनाया रखा जा सकता हैं । 
यह फिल्म प्रेरणादायक हैं और आज के परिवारों के लिए बहुत कुछ सन्देश देती हैं ।

Think about old aged mother father .... Emotional short film on old aged life. one old aged mother wants to eat some jaykedar food but she can't get it due to her old age  helth situation but   her daughter in law positively committed for her Emotions as wel as  feelings    changed  her husband's opinion about old aged mother-in-law... 
please must watch this short film on Indie Routes Films  
https://youtu.be/E4QkhaqbpY4

Short film by Harshita Shreyas Joshi
Please bless Harshita 
Artist : 
Son :- Ravindra Joshi
Sons wife :- Abha Joshi
Mother :- #Smt_Pusha_Joshi
Directed by :- Harshita Shreyah Joshi
Script :- #Ravindra_Joshi
Editor & Music : #Shreyas_Joshi



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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...