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बॉबी नाटक : छोटे परिवारों की बड़ी समस्या का सजीव चित्रण

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बॉबी टीम का तआरुफ़ कराते आर्टिस्ट दलविंदर भाई नाट्यलोक के अध्यक्ष                    मशहूर नाटक लेखक स्व. विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित कथानक पर आधारित बाल-नाटक "बॉबी" का निर्माण    संभागीय बालभवन जबलपुर द्वारा श्री संजय गर्ग के निर्देशन में तैयार कराया गया है. जिसकी दो प्रस्तुतियां भोपाल में दिसंबर माह में की जा चुकीं है.   जहाँपनाह की जहाँपनाह बॉबी सुभद्रा कुमारी चौहान जी के गीतों से भरा पूर्वरंग                    बॉबी  नौकरी पेशा माता पिता की इकलौती बेटी है जिसे स्कूल से लौटकर आम बच्चों की तरह माँ की घर से अनुपस्थिति बेहद कष्ट पहुंचाने वाली महसूस होती है. उसे टीवी खेल पढने लिखने से अरुचि हो जाती है. स्कूली किताबों के पात्र शिवाजी , अकबर बीरबल , आदि से    उसे  घृणा होती है.    इतिहास के के इन पात्रों की कालावधि याद करना उसे बेहद उबाऊ कार्य लगता है. साथ ही बाल सुलभ रुचिकर पात्र मिकी माउस , परियां गौरैया से उसे आम बच्चों की तरह स्नेह होता है. और वह एक फैंटेसी में विचरण करती है.    शिवाजी , अकबर बीरबल ,   से वह संवाद करती हुई वह उनको वर्त्तमान परिस्थियों की शि

BRAND NEW YEAR

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::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: Nights are Dark, but Days are Light, Wish your Life will always be Bright. So don’t get Fear Coz, God Gift us a “BRAND NEW YEAR” *HAPPY NEW YEAR 2017*   :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

समय चक्र हूँ आऊंगा, लौट तुम्हारे गाँव ।।

न मैं बीता हूँ कभी , नया बरस क्या मीत ? बँटवारा तुमने किया, यही तुम्हारी रीत ।। पंख नहीं मेरे कोई, कहाँ हैं  मेरे पाँव - समय चक्र हूँ आऊंगा, लौट तुम्हारे गाँव ।। एक सिंहासन के लिए, मत कर गहन प्रयास सहज राज मिल जाएगा, दिल में रहे मिठास जिनके मन कुंठा भरी, जले भरम की आग ऐसे सहचर त्यागिये - न रखिये अनुराग ।। नए वर्ष की मंगल कामनाएं

मुझे रियलस्टिक फ़िल्में ही पसंद हैं जैसे ... दंगल,

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यूँ तो मुझे फ़िल्में देखना सबसे कष्टदाई काम लगता है. क्योंकि बहुधा फ़िल्में रियलिटी से दूर फैंटेसी में ले जातीं हैं. परन्तु हालिया रिलीज़ फिल्म दंगल की आन लाइन टिकट बुक कराने मेरी बेटी ने एमस्टर्डम से पूछा तो सबसे पहले मैंने उसके कथानक की जानकारी ली . फिर कथानक सुनकर कर  यकायक मुझे कामनवेल्थ गेम्स की महिला कुश्ती में भारत की  असाधारण विजय का समाचार धुंधला सा याद आया. किसी अखबार में विजेता गीता के पिता के जूनून की कहानी याद आई पर बस इतनी की एक पिता ने अपनी बेटियों को लड़कों के साथ भी कुश्ती के मुकाबले में खड़ा किया .जो सामाजिक परम्पराओं को तोड़ने की पहल थी. हिन्दी पट्टी वाले राज्यों में  हरियाणा जैसे प्रांत की स्थिति बेटियों के मामले लगभग सामान ही है. और वहां से आयकानिक रास्ते निकल पड़ें तो तय है बदलाव करीब है. आज जब  @ aamir_khan की फिल्म दंगल देखी तो लगा लम्बी लड़ाई लड़नी होती है बदलाव के लिए .  यहाँ पाठकों से पूरी शिद्दत से कहना चाहता हूँ कि आप फिल्म  दंगल अवश्य देखिये. आपकी सोच अवश्य बदलेगी. और अगर   #Geeta_Phogat  ( गीता फोगट )    की बायोपिक   Dangal   को देखकर भी नज़रिया न बदला तो

हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा :डॉ. सौरभ मालवीय

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भारतरत्न  श्रीयुत अटलबिहारी बाजपेई जी   जन्म दिवस 25 दिसंबर  भारतीय जहां जाता है , वहां लक्ष्मी की साधना में लग जाता है. मगर इस देश में उगते ही ऐसा लगता है कि उसकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है. भारत जमीन का टुकड़ा नहीं , जीता-जागता राष्ट्रपुरुष है. हिमालय इसका मस्तक है , गौरीशंकर शिखा है , कश्मीर किरीट है , पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं. दिल्ली इसका दिल है. विन्ध्याचल कटि है , नर्मदा करधनी है. पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएं हैं. कन्याकुमारी इसके चरण हैं , सागर इसके पग पखारता है. पावस के काले-काले मेघ इसके कुंतल केश हैं. चांद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं , मलयानिल चंवर घुलता है. यह वन्दन की भूमि है , अभिनन्दन की भूमि है. यह तर्पण की भूमि है , यह अर्पण की भूमि है. इसका कंकर-कंकर शंकर है , इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है. हम जिएंगे तो इसके लिए , मरेंगे तो इसके लिए. यह कथन कवि हृदय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी का है. वह कहते हैं , अमावस के अभेद्य अंधकार का अंतःकरण पूर्णिमा की उज्ज्वलता का स्मरण कर थर्रा उठता है. निराशा की अमावस की गहन निशा के अंधकार में हम अपना मस्तक आत्म-गौरव के साथ

भ्रमर दंश सहे कितने, उसको कैसे कहो, कहूंगा ?

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आभार :- नितिन कुमार पामिस्ट     एक अकेला कँवल ताल में ,   संबंधों की रास खोजता !       रोज़ त्राण फैलाके अपने   , तिनके-तिनके पास रोकता !! बहता दरिया  चुहलबाज़ है ,   तिनका तिनका छीन कँवल से , दौड़ लगा देता है अक्सर ,    पागल सा फिर त्राण  मसल के !   है सबका सरोज प्रिय किन्तु   ,   उसे दर्द क्या. ? कौन सोचता !!      एक अकेला कँवल ताल में ,   संबंधों की रास खोजता ! रात कुमुदनी जागेगी तब,  मैं विश्रामागार रहूँगा भ्रमर दंश सहे कितने , उसको कैसे कहो , कहूंगा ? कैसे पीढा व्यक्त करूंगा – अभिव्यक्ति की राह खोजता !!               जाग भोर की प्रथम किरन से , अंतिम तक मैं संत्रास भोगता !

जबलपुर में एक लाख से अधिक स्कूली बच्चों ने रचा इतिहास : श्री अभिमनोज

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जबलपुर.   ‘‘ हम सब ने ये ठाना है शहर को नम्बर 1 बनाना है ’’ जैसे नारों के साथ शहर के एक लाख से अधिक स्कूली बच्चों ने आज इतिहास रच दिया. शहर के 448 शासकीय और अशासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी पूरे उत्साह के साथ सड़कों पर आये और बड़ों को स्वच्छता का संदेश दिया. स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत जबलपुर को साफ सुथरा रखने और देश में जबलपुर को प्रथम स्थान दिलाने इस महाअभियान का आयोजन किया गया. कहीं हाथों में बैनर पोस्टर लेकर विद्यार्थियों ने स्व्च्छता का संदेश दिया तो कहीं छात्र छात्राओं ने आम लोगों और व्यापारियों को डस्ट बिन का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया. स्वच्छता को लेकर पहली बार आयोजित इस व्यापक जागरूकता अभियान के दौरान महापौर डॉ श्रीमती स्वाती सदानंद गोडबोले , एमआईसी सदस्य और निगमायुक्त श्री वेदप्रकाश भी स्कूली विद्यार्थियों के बीच पहुंचे और उनका उत्साह बढ़ाया. महापौर ने कहा कि स्वच्छता को लेकर स्कूली विद्यार्थियों में आई जागरूकता समाज के लिए अच्छा संकेत है और उनके माध्यम से बड़े भी साफ सफाई के प्रति प्रेरित होंगे . स्वच्छता क्रांति का नजारा एक ही समय में शहर भर के स्कूली विद्य