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विकीपीडिया पर देखिये बरबरीक की कहानी

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यह कहानी वर्त्तमान परिस्थितियों के अनुकूल है जिसे समझना होगा. विकी पर प्रकाशित इस कथानक का यूट्यूब पर दृश्य अवश्य देखिये  (आभार :-  विकी  एवं  यूट्यूब  )   बर्बरीक   महाभारत   के एक महान योद्धा थे। वे   घटोत्कच   और   अहिलावती   के पुत्र थे। बर्बरीक को उनकी माँ ने यही सिखाया था कि हमेशा हारने वाले की तरफ से लड़ना और वे इसी सिद्धांत पर लड़ते भी रहे। बर्बरीक को कुछ ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं , जिनके बल से पलक झपते ही महाभारत के युद्ध में भाग लेनेवाले समस्त वीरों को मार सकते थे। जब वे युद्ध में सहायता देने आये , तब इनकी शक्ति का परिचय प्राप्त कर   श्रीकृष्ण   ने अपनी कूटनीति से इन्हें   रणचंडी   को बलि चढ़ा दिया। महाभारत युद्ध की समाप्ति तक युद्ध देखने की इनकी कामना श्रीकृष्ण के वरदान से पूर्ण हुई और इनका कटा सिर अंत तक युद्ध देखता और वीरगर्जन करता रहा। कुछ कहानियों के अनुसार बर्बरीक एक   यक्ष   थे , जिनका पुनर्जन्म एक इंसान के रूप में हुआ था। बर्बरीक गदाधारी भीमसेन का पोता और घटोत्कच के पुत्र थे।   [1] बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध-कला अपनी माँ से स

चंद शेर करीब दोस्तों के लिए

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शायर नहीं मुकुल कह देना है लोहार !! जिसको मेरी मैयत में चलने का शौक था   मेरी तीमारदारी में सब आए उसके बाद । ############ पट्टी चला दो या कि अखबारों में भर दो ज़िंदा ही रहेगा मुकुल हर कोशिशों के बाद । ########### मेरी लाश का मुतमईन मुआयना किया डर था उसे गोया कि ज़िंदा तो मैं नहीं । ########## सागर ज़मीन फलक चाँद और सितारे सब कुछ लुटाया मुझपे जब काम कोई था ! ########## कुछ तंज़ शेर दोस्तों ने मेरे क्या सुने कहने लगे मुकुल जी, चलो कहवा घर चलें ? ########## दिल पे लगी हो बात तो सह लेना मेरे यार शायर नहीं मुकुल कह देना है लोहार !! ########## *गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”*

सर्वदा होती हो तुम माँ

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सर्वदा  होती हो तुम  माँ हाँ भाव के प्रभाव में नहीं वरन सत्य है मेरा चिंतन तुम सदा माँ हो ... माँ हो माँ  हो तुम .... विराट दर्शन कराती हो कृष्ण को क्योंकि तुम खुद विराट हो... विराट दर्शाना माँ जब किसी माँ को स्तनपान कराते देखता हूँ तो रोमांचित हो अपलक देखता ही रह जाता हूँ.. सव्यसाची तुम बहुत याद आती हो ........ पूरे विश्व शिशु को क्षुधा मिटाती माँ तुम्हारी शत-शत वन्दना क्यों न करूँ ? सुहाती नहीं है कोई वर्जना तुम अहर्निश करती जो अमिय-सर्जना माँ सोचता हूँ विराट तुम ही है.. 

किसी ने न दिया था आशीर्वाद पुत्रीवती भव:

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मेरी बेटी Shivani Billore 6 महीने विदेश में रहेगी ... खुशी इस बात की नहीं है मुझे बल्कि खुश इस लिए हूँ कि वो मेरे एक गीत (  "मधुर सुर न सुनाई दे जिस घर में वो घर कैसा"  ) को अर्थ दे रही है.. " वो बेटी ही तो होती है कुलों को जोड़ लेती है अगर अवसर मिले तो वो मुहाने मोड़ देती है युगों से बेटियों को तुम परखते हो न जाने क्यूं.. ? जनम लेने तो दो उसको जनम-लेने से डर कैसा.. ? और # अमेया वो हमारे कुल की बेटी जो पहली US नागरिक है..... बड़ी बात क्या है........ बड़ी बात ये है कि - "दौनों बेटियाँ ही तो हैं "                                             :::::::::::::::::::::::::::::::: ये 1999 की एक यादगार तस्वीर है . मेरी बेटियों ने अपनी ममेरी बहनों के साथ तस्वीर खिंचवाई मुझे याद है दफ्तर से लौट कर इनसे निपटना बड़ा मुश्किल काम हुआ करता था. इस आलेख के लिखे जाने के ठीक 17 बरस पहले ... हम दौनों के पीछे फोटो खिंचवाने वाली ये बेटियाँ बेटों से कम कहाँ ..? बेटे न हमारे हैं न बच्चों के मामा जी के ..... लोगों से खूब आशीर्वाद मिले - पुत्रवती भव: कहा..

हम न चिल्लर न थोक रहे .!!

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प्रिय से मिलना जो पूजा है, लोग हमें क्यों रोक रहे . हिलमिल के पूजन कर लें, दर्द रहे न शोक रहे . ! जब जब मौसम हुआ चुनावी, पलपल द्वार बजाते थे- जैसे ही ये मौसम बदला,हम  चिल्लर न थोक रहे .!! बहन-बेटियाँ पेश करो ! शर्म न आई बेशर्मो – भीड़ के जाहिल देखो कैसे जोर से ताली ठोक रहे ..? लाखों प्राण निगलने वाले- झुलसाते हैं घाटी को – बाईस इनके मरे तो देखो कैसे छाती ठोक रहे ? मनमानस के बंटवारे को, कैंची जैसी चली जुबां - लाल माई के अब तो जागो- वो पथ में गढ्ढे खोद रहे . 

वक्त कम है, बहुत काम मुझे जाने दे !!

बहुत मसरूफ हूँ , मत रोक मुझे जाने दे ! वक्त कम है,  बहुत  काम ! मुझे जाने दे    !! मैं  तो उसमें समाना चाहता हूँ... वो लहर जा रही है मत रोक चले जाने दे !! बहुत हैं मुद्दे जो बातों से नहीं सुलझेंगे- साफ़ होंगें सभी मसले वक्त आने दे !! उस दरगाह से उठ फुर्र हुई गौरैया - चुग्गा मंदिर में दिखा जाके उसे खाने दे !! सांझ टीवी पे जुड़े लोग हल्ले वाले -   गीत कबिरा और  मीरा के मुझे गाने दे .

ब्रह्मपुत्र का सपूत : जाधव पीयेंग 👌

यह कहानी वाट्स एप के ज़रिये प्राप्त हुई मूल लेखन की जानकारी नहीं है अज्ञात लेखक को नमन आभार  अविश्वसनीय, बेजोड़, अदभुत कहानी, आसाम में रहने वाले एक आदिवासी की जिसके कामो की गूंज ब्रह्मपुत्र की लहरों में बहते, सोंधी जंगली हवाओं में महकते, घने पेड़ो की सरसराहट से होते, हज़ारो किलोमीटर दूर दिल्ली में "राष्ट्रपति भवन" तक पहुंची। इस सीधे साधे आदिवासी का नाम है “जाधव पीयेंग”। चलिए कहानी शुरू होने के पहले छोटी सी जानकारी दे दूँ। “ब्रह्मपुत्र” नदी को पूर्वोत्तर का अभिशाप भी कहा जाता है। इसका कारण है कि जब यह आसाम तक पहुँचती है तो अपने साथ लम्बी दूरी से बहा कर लायी हुई मिटटी, रेत और पहाड़ी पथरीले अवशेष विशाल “द्रव मलबे” के रूप में लाती है, जिससे  नदी की गहराई अपेक्षाकृत कम हो चौड़ाई में फैल किनारे के गांवो को प्रभावित करती है। मानसून में इसके चौड़े पाट हर साल पेड़ पौधो, हरियाली और गांवो को अपने संग बहा ले जाते हैं।  ब्रह्मपुत्र नदी का विशालता से फैला हरियाली रहित, बंजर रेतीला तट लगभग रेगिस्तान लगता था। चलिए अब आते है हमारे कहानी के नायक “जाधव पियेंग” पर। वर्ष 1979 में जाधव 10 वी परीक्षा