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कुछ मठों से मठा सींचते वृक्षों में-, कुछ बजाते रहे हैं सदा तालियाँ।।

गीत गीले हुए अबके बरसात में, हाँ! ठिठुरते रहे जाड़ों की रात में।। गीत गीले हुए, ये जो कुंठा भरे। और ठिठुरे वही, जो रहे सिरफिरे। उसका दावा बिखर के, सेमल बना, कोई आगे फरेबी न दावा करे।। राई के भाव बदले हैं इक रात में।। कुछ सुदृढ़, कुछ प्रखर, कुछ मुखर बानियाँ। थी, सदा ही चलाती रहीं घानियाँ। कुछ मठों से मठा सींचते वृक्षों में-, कुछ बजाते रहे हैं सदा तालियाँ।। बिंब देखें सदी का मेरी बात में।। सूत कट न सके भोंथरी धार से, सो गले गस दिए फूलों के हार से। बोलिए किससे जाके शिकायत करें- घूस लेने लगे फूल कचनार के। आँख सावन-सी झरती इसी बात में।

भारत-रत्न :अक़्लवरों का आपसी मल्लयुद्ध का आसन्न है

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  न जाने क्यों डर लगता है..मुझको अब सम्मानो से डर के घर में छिप जाता हूं, अक्ल लगाने वालों से.     जी हां ये पंक्तियां तब से ज़ेहन में घूम रहीं थीं जब से मैने भारत रतन के नाम पर बवाल होते देखा सुना. मन बेहद दु:खी और इन अक़्लवरों की समझ को लेकर आश्चर्यचकित है. देश को आगे ले जाने की क़वायद में जो अक़्ल लगनी चाहिये वो अक़्ल "भारत-रतन" पर लगाई जा रही है. बहुत अज़ीब-ओ-ग़रीब स्थिति है. श्रेष्ठता को लेकर विवाद कराती अक़्लें.. उस स्थिति की तरफ़ ले जा रहीं हैं.. जिधर कि अक़्लवरों के आपसी मल्लयुद्ध का रसास्वादन करेंगें..!    मेरी मानें भाई जी तो साफ़ साफ़ बता दूं कि श्रेष्ठता का कोई स्केल नहीं हो सकता ..  श्रेष्ठता.. अनन्तिम है.. अनवरत है...  सर्वत्र प्रशंसा की अभिलाषी नहीं .... नाहक हम अक़्ल लगाए जा रहें हैं.. मित्रो एक शायर ने साफ़ साफ़ कह तो दिया था कि- अक़्ल हर चीज़ को ज़ुर्म बना देती है ..! सच है क्या यक़ीन नहीं आ रहा कि अक़्ल वाक़ई यही परिणाम देती है तो लगाके देखिये. मेरा बेअक़्ल प्रस्ताव है कि क्यों न हम सभी भारतीय बेघर बेसहारा बच्चों को गोद लें उनको नाम दें भारत-रत्न या भारत-रत्ना    ब

आत्मकथ्यात्मक कविता - मैं रक्त-बीज हूं.. जी उठता हूं...!!

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तुम क्या जानो   मैं रक्त-बीज हूं..   रोज़ तुम मारते हो... मरता भी हूं..   किरचा किरचा जुड़ जाता हूं..   देह में समा कर अल्ल सुबह   जी उठता हूं..   :::::::::::::::::::::::::::: मरता हूं इस लिये कि तुम्हारे   संधानित आयुध   अ पमानित न हों..! ज़हर बुझे तीर चुभते हैं..   शरीर में एक तड़पती सी दामिनी   संचरित हो जाती है..   मर जाता हूं तत्क्षण.. फ़िर   बेटी का फ़ोन आता है..   पापा , कैसे हो.. और   प्रतिक्रियावश पूछता हूं प्रतिप्रश्न... बेटी , आफ़िस से लौट आई.. आज दिन कैसा रहा...   बेटी के आसन्न सुखमय कल की लालसा   मुझे पूरी तरह मरने नहीं देती..   जी उठता हूं.. तत्क्षण..   मैं रक्त-बीज हूं..   ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: मां , तुम कहतीं थीं न ...   जीवन आसान नहीं पर   मरना उससे कठिन है..   जियो   संकल्पों से युक्त तुम्हारा     जीवन  किसी न किसी खास वज़ह से तुमको हासिल है.. जियो शान से , पीर ज़ाहिर न करना.. तभी तो चमकोगे..   अनुगुंजित ध्वनियां   अमृत-औषध सी ज़िंदा कर देतीं हैं..   जी उठता हूं..   मैं रक्त-बीज हूं..   ::::::::::::::::::::::::::

बदतमीज़ भाईयों की कलाई पर राखी मत बांधना बेटियो..

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                                 " दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो !"   शायद आपको याद होगा ये आलेख . दिनांक 13 सितंबर 2013 को अपने मिसफ़िट ब्लाग पर इस आलेख को प्रकाशित किया था . वास्तव में क़ानून में बदलाव की ज़रूरत थी. हज़ारों मामलों में न्याय मिलेगा.  बाल-अपराधी को दंड मिलेगा हमें उम्मीद है. पर अब इससे आगे सामाजिक बदलाव के लिये  अब बालिकाओं के लिये संरक्षक क़ानून की ज़रूरत को नक़ारा नहीं जा सकता.                         सामाजिक संरचना इतनी अधोगत हो चुकी है कि हम सामाजिक मूल्यों को स्तर नहीं दे पा रहे हैं. आज़ शाम रक्षा-बंधन की खरीदी के लिये मैंनें बहुत सी बेटियों को समूह में खरीददारी करते देखा . मन न केवल खुश था बल्कि अच्छा भी लगा  हम चर्चा ही कर रहे थे कि बेटियां अब खुद निर्णय ले रहीं हैं . देखो कितने साहस से भरी आज पावन त्यौहार की तैयारी में व्यस्त हैं. बात खत्म हुई ही थी कि कुछ शोहदे तो नहीं थे पर हाई-स्कूल + के किशोर लग रहे थे.. बेटियों पर छींटाकशी करते नज़र आए . ड्रायवर को वाहन धीमा चलाने का निर्देश देने पर उसने गाड़ी धीमी क्या लगभग  रोक

राजेश पाठक जी की फेसबुक पोस्ट

साथियों हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक रक्षाबन्धन का त्यौहार आने वाला है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारतीय न्यूज ट्रेडर्स के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा है। अगले 8-10 दिनों में हर न्यूज चैनल भारतीय बाजार में मिलने वाली हर मिठाई को दूध और मावा की मिलावट का प्रदर्शन करेंगे और साथ साथ ही कैडबरी चोकलेट और कोका कोला पेप्सी कंपनियां रिश्तों के भावनात्मक विझापन दिन रात हर चैनल पर प्रसारित करेंगी । मेरा हर भारतीय से निवेदन है कि रक्षाबन्धन के लेन देन में ऐसी वस्तुओं का प्रयोग करें जिनसे सीधा फायदा भारतीय उत्पादकों को हो जैसे फल, बिस्कुट,बेकरी प्रोडक्ट तथा अन्य स्थानीय उत्पाद साथियों चलो इस बार हम सभी भारतीय मिलकर कैडबरी और कोका कोला-पेप्सी को जबरदस्त व्यापार घाटा और अपने भारतीय किसान और स्थानीय व्यापरियों को व्यापारिक फायदा पहुंचाए। Ab apna bhartiye hone ka farz nibhao or is msg ko jyada se jyada share karo...

आमिर खान साब -यूं तो हमाम में सब नंगे होते हैं पर भारत तुम्हारा हमाम नहीं बर्खुरदार

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डिस्क्लैमर सुधि पाठको.. प्रस्तुत कथा सत्यघटना पर आधारित है.. इसका किसी भी मृत व्यक्ति से अथवा उसकी भटकती आत्मा से कोई सरोकार नहीं. जिन जीवित व्यक्तियों से इसका संबंध है..भी तो कोई संयोग नहीं.. जानबूझकर मैं लिख रहा हूं ताकि सनद रहे वक़्त पर आम आए.. लेखक               समय समय पर  हथकण्डे बाज़ लोगों की  हरक़तें मंज़र-ए-आम हो जाया करतीं हैं. यक़ीनन लोग अपने किये को अमृत दूसरे के किये को विष्ठा ही मानते हैं. मुझे बेहद पसंद हैं आमिर खान उनकी अदद एक पिक्चर की बरस भर प्रतीक्षा करता हूं . ट्रांजिस्टर से अपनी लाज़ बचाते नज़र आए तो अपनी आस्था के किरचे किरचे मानस में घनीभूत हो गए . हमको लगा गोया हम नंगे फ़िर रहे हैं. अब भाई सल्लू मियां की छोड़ो वो तो सिल्वर स्क्रीन पर न जाने कितने बार बेहूदा दृश्य दिखा चुके हैं. वर्जनाओं के ख़िलाफ़ लामबंद होते ये कलाकार गोया इनके पास मौलिक रचनात्मकता समाप्त प्राय: हो चुकी है. जैसा प्रगतिशील आलोचक कहा करते हैं- "बाबा नागार्जुन के बाद विषय चुक गए हैं."           मित्रो, सर्जक को जान लेना चाहिये कि सृजन के विषय समाप्त कदापि नहीं होते. इन नंग

स्कूल से घर तक पीटे जा रहे कान्हा – जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव की पहल :संजय स्वदेश

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महाभारत काल में कान्हा रस्सी से बांधे गए हैं। बच्चों को घरों में बांध कर रखने , उन्हें मारने-पीटने की घटनाएं आज भी जारी है। एकल परिवारों में बच्चों की स्वछंदता समाप्त हो चुकी है। उनसे हर क्षेत्र में अव्वल होने अपेक्षा बढ़ गई है। थोड़ी-थोड़ी बात पर मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना घर-घर की बात हो चुकी है।                शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के बाद यहे बेहद जरूरी है कि बच्चों को हिंसा से संरक्षण का भी मौलिक अधिकार मिले। इसके अभाव में भोले मन वाला बचपन घर और स्कूल में मानसिक व शारीरिक रूप से पीड़ित है। देश दुनिया का कौन सा ऐसा देश है जहां बच्चों पर नियंत्रण के लिए हिंसा का उपयोग नहीं किया गया है। भारत के पौराणिक कथाओं में तो इसके उदाहरण है। भगवान श्रीकृष्ण अपनी नटखट कारनामों से माता यशोदा को इतना तंग करते हैं कि मां कभी कान्हा को रस्सियों से बांध देती हैं , तो कभी ओखली में बांध कर अनुशासित करने का प्रयास करती है। बच्चों को घरों में बांध कर रखने , उन्हें मारने-पीटने की घटनाएं आज भी जारी है। पर चंचल बाल मन की शरारत भला कहां छुटती है। बच्चों की सहज पृवृत्तियां जब माता-पिता या शिक्षक के लि