25.5.13

भूमंडलीकरण के भयावह दौर और गदहे-गदही के संकट



भूमंडलीकरण के भयावह दौर में गधों की स्थिति बेहद नाज़ुक एवम चिंतनीय हो चुकी है . इस बात को लेकर समाज शास्त्री बेहद चिंतित हैं. उनको चिंतित होना भी चाहिये समाजशास्त्री चिंतित न होंगे तो संसद को चिंतित होना चाहिये. लोग भी अज़ीब हैं हर बात की ज़वाबदेही का ठीकरा सरकार के मत्थे फ़ोड़ने पे आमादा होने लगते हैं. मित्रो  -"ये...अच्छी बात नहीं..है..!"
सरकार का काम है देखना देखना और देखते रहना.. और फ़िर कभी खुद कभी प्रवक्ता के ज़रिये जनता के समक्ष यह निवेदित करना-"हमें देखना था , हमने देखा, हमें देखना है तो हम देख रहे हैं ".. यानी सारे काम देखने दिखाने में निपटाने का हुनर सरकार नामक संस्था में होता है. जी आप गलत समझे मैं सरकार अंकल की बात नहीं कर रहा हूं.. मै सरकार यानी गवर्नमेंट की बात कर रहा हूं. हो सकता है सरकार अंकल ऐसा कथन कहते हों पर यहां उनको बेवज़ह न घसीटा जाये. भई अब कोई बीच में बोले मेरी अभिव्यक्ति में बाधा न डाले.. रेडी एक दो तीन ......... हां, तो अब पढिये अर्र तुम फ़िर..! बैठो.... चुपचाप..  तुमाए काम की बात लिख रहा हूं..तुम हो कि जबरन .. चलो बैठो.. 
               
अब इनको  बैसाखीय सुख कहां मिलता है आज़कल ?
   हां  तो मित्रो मित्राणियो .. मैं कह रहा था कि  
भूमंडलीकरण के भयावह दौर में गधों की स्थिति बेहद नाज़ुक एवम चिंतनीय हो चुकी है . इस बात को लेकर समाज शास्त्री बेहद चिंतित हैं. चिंता का विषय है कि  गधों को अब सावन के सूर की तरह हरियाली ही हरियाली  नज़र आती है.. चारों ओर का नज़ारा एक दम ग्रीन नज़र आता है.. और आप सब जानते ही हैं कि बेचारे ग्रीनरी में सदा भूखे रह जाते हैं उनके अंग खाया-पिया कुछ भी नहीं लगता . जबकि उनको कम से कम बैसाख में तो उनके साथ इतना अत्याचार नहीं होना चाहिये.अब ज़रूरी है कि  सरकार इस ओर गम्भीरता से विचार करे ऐसा मत है समाज शास्त्रियों का. 

                            मित्रो आप को मेरी बात अटपटी लग रही है न .? तो ऐसे दृश्य की कल्पना कीजिये जिसमें आप सपत्नीक अपनी आंखों की हरियाई दृष्टि से अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने खड़े  हों और स्कूल की फ़ीस इतनी ज़्यादा हो कि आपको गश आ जाये..  है न ..  आपकी आत्मकथा सी कहानी उस गधे की ..जिसे हरियाली दिखाई जाती है.. पर हासिल कुछ भी नहीं होता.. यहां तक की बैसाख में सूखी घास भी नहीं. 
                       अगर सरकार ने गधों के हितों के बारे में सोचना शुरु कर दिया तो  आपके बारे में कौन  सोचेगा..!
              सरकार करे  क्या करे,  सरकार के सामने कई सारी समस्याएं हैं जैसे सी ए जी , बी सी सी आई, थ्री जी चीनी  सैनिक पाकिस्तानी उधम बाज़ी, . और निपटने इच्छा शक्ति..सब को मालूम है
          और आप हो कि ये हल्की फ़ुल्की समस्या लेके सरकार के पास आ जाते हो.. स्कूल में दाखिला कराना आपका निर्णय है काहे सरकार को इत्ती बात में घसीटते हो भाई.   उसके पास न तो दाखिला फ़ीस कम कराने के कोई नियम हैं न ही क़िताबों के बोझ कम कराने के लिये कोई तदबीर. भारत को  विश्व के विकसित देशों के पासंग बैठना है तो सरकार को अपनी साइज़ तो कम करनी ही है.और आप हो कि सरकार को खींच खीच के बढ़ा रये हो.. 
              अब आप ही बताईये आपकी और आपके सहोदर की  पूरी पढाई जितनी रक़म में हो गई उससे दूनी तो आपके मुन्ने को एक क्लास में लग जाएगी. बेचारी सरकार सोचे क्यों ! डिसाइड आपने किया आप तय करो पैसा किधर से लाओगे 
             आप भी न अज़ीब बात करते हो सरकार को स्कूल कालेज़ की दाखिला फ़ी में सब्सिडी देना चाहिये.. हुर हुत्त.. कल आई पी एल की टिकट पर सब्सिडी की मांग करोगे. 
                      अरे हां रामदेव महाराज जी  एक बात याद आई आप स्विस से पैसा मंगाना चाह रहे थे न किसी से न कहियो एक तरीका बताय देता हूं.. आप की सुन ली जावे तो सरकार से आई.पी. एल. की कमाई को राज़कोष में जमा करने की मांग कर दैयो महाराज..
                          तब तक हम गधे और मनुष्य प्रजाति को समझाना जारी रखते हैं..
   हां तो मित्रो   सरकार को बड़ी समस्याओं के बारे में सोचने दो.. गधों और हमारे लोगों के  बारे में समाजशास्त्रीगण सोचेंगे. हालांकि दौनों के पास सिर्फ़ सोचने के अलावा कोई चारा नहीं है. पर बच्चन सुत महाराज बोलते थे टीवी पर  सोचने से आईडिये आते हैं और एकाध धांसू टाइप आईडिया आया कि आपकी और गधे की ज़िंदगी में भयंकर बदलाव आ जाएंगे.. ये बदलाव देश को क्या जींस तक को बदल देंगे आज़ आप लेविस की जींस पहन रहें हैं हो सकता है कल गधे जी..... हा हा 
छोड़ो भाई बताओ मज़ा आया कि नहीं.. नही आया तो पढ़ काय रये हो.. जाओ बाहर आई. पी एल चालू हो गया.. पट्टी लिखवा दो.. हा हा         

23.5.13

अलविदा साज़ जबलपुरी जी : संजीव वर्मा सलिल

              
                     जबलपुर, १८ मई २०१३. सनातन सलिल नर्मदा तट पर पवित्र अग्नि के हवाले की गयी क्षीण काया चमकती आँखों और मीठी वाणी को हमेशा-हमेशा के लिए हम सबसे दूर ले गयी किन्तु उसका कलाम उसकी किताबों और हमारे ज़हनों में चिरकाल तक उसे जिंदा रखेगा. साज़ जबलपुरी एक ऐसी शख्सियत है जो नर्मदा के पानी को तरह का तरह पारदर्शी रहा. उसे जब जो ठीक लगा बेबाकी से बिना किसी की फ़िक्र किये कहा. आर्थिक-पारिवारिक-सामाजिक बंदिशें उसके कदम नहीं रोक सकीं.

उसने वह सब किया जो उसे जरूरी लगा... पेट पालने के लिए सरकारी नौकरी जिससे उसका रिश्ता तन के खाने के लिए तनखा जुटाने तक सीमित था, मन की बात कहने के लिए शायरी, तकलीफज़दा इंसानों की मदद और अपनी बात को फ़ैलाने के लिए पत्रकारिता, तालीम फ़ैलाने और कुछ पैसा जुगाड़ने के लिए एन.जी.ओ. और साहित्यिक मठाधीशों को पटखनी देने के लिए संस्था का गठन-किताबों का प्रकाशन. बिना शक साज़ किताबी आदर्शवादी नहीं, व्यवहारवादी था.

उसका नजरिया बिलकुल साफ़ था कि वह मसीहा नहीं है, आम आदमी है. उसे आगे बढ़ना है तो समय के साथ उसी जुबान में बोलना होगा जिसे समय समझता है. हाथ की गन्दगी साफ़ करने के लिए वह मिट्टी को हाथ पर पल सकता है लेकिन गन्दगी को गन्दगी से साफ़ नहीं किया जा सकता. उसका शायर उसके पत्रकार से कहीं ऊँचा था लेकिन उसके कलाम पर वाह-वाह करनेवाला समाज शायरी मुफ्त में चाहता है तो अपनी और समाज की संतुष्टि के लिए शायरी करते रहने के लिए उसे नौकरी, पत्रकारिता और एन. जी. ओ. से धन जुटाना ही होगा. वह जो कमाता है उसकी अदायगी अपनी काम के अलावा शायरी से भी कर देता है.

साज़ की इस बात से सहमति या असहमति दोनों उसके लिए एक बार सोचने से ज्यादा अहमियत नहीं रखती थीं. सोचता भी वह उन्हीं के मशविरे पर था जो उसके लिए निजी तौर पर मानी रखते थे. सियासत और पैसे पर अदबी रसूख को साज ने हमेशा ऊपर रखा. कमजोर, गरीब और दलित आदमी के लिए तहे-दिल से साज़ हमेशा हाज़िर था.

साज़ की एक और खासियत जुबान के लिए उसकी फ़िक्र थी. वह हिंदी और उर्दू को माँ और मौसी की तरह एक साथ सीने से लगाये रखता था. उसे छंद और बहर के बीच पुल बनाने की अहमियत समझ आती थी... घंटों बात करता था इन मुद्दों पर. कविता के नाम पर फ़ैली अराजकता और अभिव्यक्ति का नाम पर मानसिक वामन को किताबी शक्ल देने से उसे नफरत थी. चाहता तो किताबों का हुजूम लगा देता पर उसने बहुतों द्वारा बहुत बार बहुत-बहुत इसरार किये जाने पर अब जाकर किताबें छापना मंजूर किया.

साज़ की याद में मुक्तक :
*
लग्न परिश्रम स्नेह समर्पण, सतत मित्रता के पर्याय
दुबले तन में दृढ़ अंतर्मन, मौलिक लेखन के अध्याय
बहार-छंद, उर्दू-हिंदी के, सृजन सेतु सुदृढ़ थे तुम-
साज़ रही आवाज़ तुम्हारी, पर पीड़ा का अध्यवसाय
*
गीत दुखी है, गजल गमजदा, साज मौन कुछ बोले ना
रो रूबाई, दर्द दिलों का छिपा रही है, खोले ना
पत्रकारिता डबडबाई आँखों से फलक निहार रही
मिलनसारिता गँवा चेतना, जद है किंचित बोले ना
*
सम्पादक निष्णात खो गया, सुधी समीक्षक बिदा हुआ
'सलिल' काव्य-अमराई में, तन्हा- खोया निज मीत सुआ
आते-जाते अनगिन हर दिन, कुछ जाते जग सूनाकर
नैन न बोले, छिपा रहा, पर-पीड़ा कहता अश्रु चुआ
*
सूनी सी महफिल बहिश्त की, रब चाहे आबाद रहे
जीवट की जयगाथा, समय-सफों पर लिख नाबाद रहे
नखॊनेन से चट्टानों पर, कुआँ खोद पानी की प्यास-
आम आदमी के आँसू की कथा हमेश याद रहे
*
साज़ नहीं था आम आदमी, वह आमों में आम रहा
आडम्बर को खुली चुनौती, पाखंडों प्रति वाम रहा
कंठी-तिलक छोड़, अपनापन-सृजनधर्मिता के पथ पर
बन यारों का यार चला वह, करके अपना अनाम रहा
*
आपके और साज़ के बीच से हटते हुए पेश करता हूँ साज़ की शायरी के चंद नमूने:
अश'आर:
लोग नाखून से चट्टानों पे बनाते हैं कुआँ
और उम्मीद ये करते हैं कि पानी निकले
*
कत'आत
जिंदगी दर्द नहीं, सोज़ नहीं, साज़ नहीं
एक अंजामे-तमन्ना है ये आगाज़ नहीं
जिंदगी अहम् अगर है तो उसूलें से है-
सांस लेना ही कोई जीने का अंदाज़ नहीं
*
कोई बतलाये कि मेरे जिस्मो-जां में कौन है?
बनके उनवां ज़िन्दगी की दास्तां में कौन है?
एक तो मैं खुद हूँ, इक तू और इक मर्जी तिरी-
सच नहीं ये तो बता, फिर दोजहां में कौन है?
*
गजल
या माना रास्ता गीला बहुत है
हमारा अश्म पथरीला बहुत है

ये शायद उनसे मिलके आ रहा है
फलक का चाँद चमकीला बहुत है

ये रग-रग में बिखरता जा रहा है
तुम्हारा दर्द फुर्तीला बहुत है

लबों तक लफ्ज़ आकर रुक गए हैं
हमारा प्यार शर्मीला बहुत है

न कोई पेड़, न साया, न सब्ज़ा
सफर जीवन का रेतीला बहुत है

कहो साँपों से बचकर भाग जाएं
यहाँ इन्सान ज़हरीला बहुत है
*
गजल

तन्हा न अपने आप को अब पाइये जनाब,
मेरी ग़ज़ल को साथ लिए जाइये जनाब।

ऐसा न हो थामे हुए आंसू छलक पड़े,
रुखसत के वक्त मुझको न समझाइये जनाब।

मैं ''साज़'' हूँ ये याद रहे इसलिए कभी,
मेरे ही शे'र मुझको सुना जाइये जनाब।।

21.5.13

मुझे ज़हर और ज़ख्म की भी ज़रूरत है ला देना .


मिसफ़िट की पाठक संख्या अब "एक लाख"                     

मादक सुकन्या के दीवाने बहुतेरे थे उनमें से एक था मेरा अनाम दोस्त नाम तो था उसका पर किसी को अकारण तनाव नहीं देना चाहता . सुकन्या पर डोरे डालने वाला किसी कम्पनी का ओहदेदार मुलाज़िम है . आज़ अचानक उससे मुलाक़ात हुई.. काफ़ी घर में बैठा उदास कुछ सोच रहा था. दोस्त है सोचा उदासी दूर कर दूं इसकी. बातों का दौर चला भाई मेरी बातों में आ गये और जो कुछ कहा पेश-ए-नज़र है......................  
                                         मित्र ने बताया कि उसे एक लड़की से इश्क़ हो गया था. इश्क़ इक तरफ़ा था पर इश्क तो था. एक रविवार सुबह सवेरे उसकी मुलाक़ात उस सुकन्या से हुई .. मित्र की बात ज़रा धीमी गति से चल रही थी सो मैने कहा- भई, ज़रा ज़ल्दी पर तफ़सील से बयां करो दास्ताने-बेवफ़ाई.. उसने जो बताया  कुछ यू था........
अनाम मैंने पूछा - मुझे ,कुछ देर का साथ मिलेगा सुकन्या..
सुकन्या -  क्यों नहीं ! ज़रूर मिलेगा , सुकन्या के  उत्तर में मादक खनक ...ने दीवाना बना दिया था. .. अनाम को बातें बहुत हुईं देर तक चलीं
बातों ही बातों में अनाम : तुम मुझे कुछ देने का वादा कर सकोगी ?
वादा क्या दे दूंगीं जो कहोगे
दिल,
हां ज़रूर
मोहब्बत
ऑफ़ कोर्स

वफ़ा
क्यों नहीं ?
अनाम  ने पूछा- और कभी जब मुझे वक्त की ज़रूरत हो तो..?
ज़नाब ये सब कुछ अभी के अभी या फ़िर कभी ?
सोच के बताता हूँ कुछ दिन बाद कह दूंगा ।
            अनाम को यक़ीं हो गया था कि ईश्क़ दो-तरफ़ा है सो उसने घर में माँ के ज़रिये पापा तक ख़बर की मुझे "सुकन्या'' से प्यार हो गया है । अब चाहता हूँ कि मैं शादी भी उसी से करुँ !
                  घर से इजाज़त मिलते ही अनाम फोन डायल किया....98........... सुकन्या के सेल पर रूमानी गीत न होकर "एक मीरा का भजन हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा....''  सुन कर लगा आग उधर भी तेज़ है इश्क की जैसी इधर धधक बातों ही बातों में  अनाम सुकन्या से  वो सब दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त की मांग चुका था  । उसने कहा शाम को तुम्हारे घर आ ही रहीं हूँ । 
                                शाम को पापा,माँ,दीदी अपनी होने वाली बहू का इंतज़ार कर रहे थे । अनाम के मन में भी चाकलेट के रूमानी विज्ञापन वाले प्यार का जायका ज़ोर मार रहा था। एक खूबसूरत नाज़नीन का घर में आना उसके लिये मादक एहसास था . अनाम ने सोचा - दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त साथ लाएगी यही  सोच सोच के अनाम का दिल उछाल पर था.
             सुकन्या आई   सभी सुकन्या से बारी बारी बात कर रहे थे अन्त में मुझे अनाम को मौका मिला . अनाम पूछा "वो सब जो मैने कहा था "
"हां लाई हूं न"
सुनहरी पर्स खोल कर उसने मेरे हाथों रख दीं - दिल,मोहब्बत,वफ़ा और वक्त की सीडीयां और पूछने लगी : पुरानी फ़िल्मों के शौकीन लगतें हैं आप . ?
"हां"
अब मुझे ज़हर और ज़ख्म की भी ज़रूरत है  ला देना .
          ज़रूर ला दूंगी.... पर एक हफ़्ते बाद कल मेरी एन्गेज़्मेंट है. एन्गेज़्मेंट के बाद हम दौनो हफ़्ते भर साथ रहेंगे एक दूसरे को समझ तो लें .


17.5.13

"झंपिंग ज़पांग..झंपिंग ज़पांग.के बाद . गीली गीली......!!"

        
              हमारे देश के  चिंरंजीव श्री संत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण की  पाकिस्तान की डी कम्पनी के गुर्गे  मास्टर सलमान, कुमार, विक्की, जंबू, बबलू, गुलाब मुहम्मद, उमर भाई, कासिफ भाई, रेहमद भाई, शरीफ भाई और डॉक्टर जावेद. भारत में इसके सूत्रधार रमेश व्यास,  मनोज मेट्रो, बंटी, जीजू जनार्दन , जूपिटर के साथ जैसे ही झंपिंग झपांग शुरु हुई कि दिल्ली के पोलिस वाले साहब ने उनकी सुत्तन गीली गीली कर दी.. 
कहानी की शुरुआत शुरु से होती है.. जब फ़रहा मैडम से आईपीएल वाले ज़िंगल के लिये बात करने गये थे..फ़रहा को शायद कहा होगा कि "भाई सिर्फ़ मैच नहीं देखने का क्या....... बेट भी.." आखिरी के शब्द बोलो न बोलो फ़रहा मैडम जनता जान जाएगी.. 
  इस पूरे खेल में भी  जीजू तत्व प्रधान है..आज़कल जो भी मामले उभरते हैं उनमें  जीजू तत्व की उपस्थिति सदा मिलती है. अब बताइये सारी खुदाई एक तरफ़ कोई झुट्टा थोड़े न कहा होगा.. सटीक मुहावरा है.. है न वाड्रा सा’ब. आप भी तो जीजू हो कि नईं अर्र बुरा न मानो दद्दा हम तो मज़ाक या कर रये हैं.. राहुल की तरफ़ से.. 
                उधर अभी रेलवई वाले जीजू... साले की कथा चल ही रही थी कि आई.पी.एल. के कैनवास पर श्रीसंत के जीजू का रेखा चित्र उभरा सच क्या है.  ये जांच के बाद पता चलेगा पर धुंये से आग का संदेशा तो मिल ही गया है. पड़ोसी पाकिस्तान के पालित पुत्र दाउद बाबा की दूकान पर बिके चिंरंजीव श्री संत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण को  भारतीय क्रिकेट प्रेमी बदहवास होकर कोस रहे हैं. अब भैया कोसने का होगा.. किरकिट का खेल है ही ऐसी बला कि अच्छे अच्छे विश्वामित्र रीझ जाते हैं.. इसमें खनक और चमक दौनों ही मिलती है.
                           
  हमारे मोहल्ले के पांच-पंद्रह  साल तक के बच्चे  आराध्य, आर्मेंद्र,दीपक,बबलू, छोटू, मयूर, मृदुल,सनी, गुरु, गौरव, हों या गांव खेड़े के बच्चे सबके सब किरकिटियाये हैं. घरेलू महिलाएं, युवतियां-युवक, यहां तक कि क्रिकेट के फ़ेन्स उम्र दराज़ बुज़ुर्गवार भी हैं.. जो चश्मा पौंछ-पौंछ क्रिकेट का आनंद उठाते हैं. 
                                किरकिट के लिये ऐसे दीवाने  भारतीयों की दीवानगी पर मलाली गुलाल  लगाते क्रिकेटर्स का चरित्र स्पष्ट हो चुका  है. उधर बीसीसीआई के कर्ताधर्ता कानों में रुई लगाए येन केन प्रकारेण सर्वाधिक धन कमाने वाले  बोर्ड का तगमा लगाए मुतमईन बैठे हैं. 
               केजरी कक्का जी केवल सियासी भ्रष्टाचार की मुखालफ़त कर रहे हैं.. अच्छा है पर उससे अच्छा ये होता कि - "भारतीय-चारित्रिक-पतन" का भी विश्लेषण किया होता. आप सोच रहे होंगे कि आम भारतीय युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ हैं परंतु यह अर्ध सत्य है.. अपनी औलादों को महत्वपूर्ण बनाने की गरज़ से भारतीय भ्रष्टाचार में लिप्त है. मंहगी बाईक, मंहगी शिक्षा व्यवस्था , के लिये लोग जो शार्ट कट अपना रहे हैं उस पर किसी की निगाह नहीं. भारतीय युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना के साथ अन्ना बन जाता है पर एक क्लर्क का बेटा स्कूल मास्टर का बेटा जब घर लौटता है तब अपने मां बाप से पूछता है-"हमारे लिये आप ने किया क्या है..?" ऐसे ही सवालों से बचना चाहते हैं लोग.. और नैतिक-मूल्यों को गिराने में कोई कमीं नहीं छोड़ते .     
                            भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट के आई.पी.एल. नामक महाकुम्भ के ये युवक न केवल धन के लोभी हैं वरन इनका चरित्र भी ठीक नहीं.. इस बात का लाभ बुकीज़ ने बखूबी उठाया और एस्कार्ट सेवाओं के तोहफ़े से भी नवाज़ा.. यानी कुल मिला के  खिलाड़ियों के गंदे आचरण का एक नमूना सामने है. 
                कुल मिला कर देश की युवा शक्ति भ्रमित और दिशा हीन है..तभी तो धन की लिप्सा में झंपिंग ज़पांग..झंपिंग ज़पांग करता है.. पर याद रहे उसके बाद सुत्तन  गीली गीली हो जाती है...!!

15.5.13

आम आदमी का ब्लाग ट्रायल


          
 सुदूर समंदर में एक द्वीप है जहां से मैं एक वाकया आपके सामने पेश करने की गुस्ताखी कर रहा हूं.. उस द्वीप का वातावरण ठीक हमारे आसपास के वातावरण की मानिंद ही है. वहां एक अदालत में  एक आदमजात  किसी अपराध में कठघरे में खड़ा किया गया था.. लोग बतिया रहे थे  उस पर आरोप है  कि उसने सरकार से कुछ बेजा मांग की थी. वो सरकार से  सरकार और उसकी बनाई व्यवस्था पर लगाम लगाने की गुस्ताखी कर बैठा .
       द्वीप की सरकार बड़ी  बेलगाम थी विरोधी दल के  लोग  सरकार को लगाम लगाने की सलाह दे रहे थे . सो सरकार ने  लगाम के उत्पादन अवैधानिक घोषित कर दिया भाई हैं कि अपना लगाम बनाने का कारखाना बंद न करने पे आमादा थे.. हज़ूर के कान में बात जब दिखाई दी तो उनने अपने से बड़े हाक़िम को दिखाई बड़े ने और बड़े को और बड़े ने उससे बड़े को फ़िर क्या बात निकली दूर तलक जानी ही थी.. सबने बात देखी वो भी कान से.. आप सोच रहे हो न कि बात कान से कैसे देखी होगी..?
           सवाल आपका जायज़ है ज़नाब पर आप जानते ही हो कि  आजकल अहलकार से ओहदेदार .. हाक़िम से हुक़्मरान तक सभी के कान आंख बन गये हैं वे सब कान से देखने लगे हैं..!
                   मुआं वह  आम आदमी अर्र वो केजरी-कक्का वाला नहीं "सच्ची वाला आम आदमी" अदालत में मुंसिफ़ के सवालों का ज़वाब दे रहा था. तब  उड़नतश्तरी में बैठे हम, विश्वदर्शन को निकले थे. उस द्वीप की हरितिमा से मोहित हो हमने यान वहीं लैंड कर दिया नज़दीक से एक अदालत में आवाज़ाही देख हमने सोचा चलो देख आवें कि यहां के जज़ साब भी हमारी फ़िल्मों की तरह हथौड़ा पीटते हैं कि नहीं अदालत में घुसते ही हमें संतरी ने पूछा - किस के यहां पेशी है.. तुम्हारी
हम बोले- बाबा पेशी देखने आये हैं हम 
खर्चा-पानी दो तो बताये किधर मज़ा आएगा ? संतरी ने कहा
हमने गांधी छाप पांच सौ वाला नोट पकड़ाया तुरंत वो बोला - पाकिस्तान के प्रिय देश से हा हा आओ उसमें घुस जाओ मोबाइल बंद कर लेना.. 
हम बोले ये बी एस एन एल का  है.. ये तो हमाए इंडिया में इच्च नईं चलता तो यहा का चलेगा. वो हंसा हम हंसे और हम अदालत में घुसे कि जज साब हमको देख तुरतई चीन्ह लिये बोले - " ए मिस्फ़िट, तनिक आगे आओ.."
                       हम डर गये चौंके भी कि जज्ज साब हमको ब्लाग के नाम से पुकार रये हैं.. पास गये हम समझ गये थे कि अब वीज़ा पूछेंगे फ़िर सरबजीत घाईं हमाए को भी .. पर ये न हुआ जज़ साब ने हमको बोला- आपके मिसफ़िट ब्लाग पर आता जाता हूं आपका लेख मज़ेदार लगता है कभी कभार 
        मैं आपको ज़ूरी के तौर बिठाता हूं.. लो भई कुर्सी लाओ.. दो अर्दली एक कुर्सी लेने भागे कुछ देर में कुर्सी आई. हम धंस गये कुर्सी में जब हमारे लिये कुर्सी आई तो हम ही बैठेंगे कोई और काहे बैठे.. गा जज्ज साब हमसे बोले -क़ानून बांचे हो..!

हम- हां, गर्ग सर वाले हितकारणी  नाईट कालेज़ से ला किया हूं..
जज्ज साब - तो आज़ आप ही ट्रायल करें..  
हमने भी बिना आनाकानी किये सवाल दागने शुरु किये 
कौन सी दुनियां के आदमी हो
इसी दुनियां के ..
क्या करते हो।
कुछ नहीं 
क्यों ।।
ज़रूरी है क्या...कुछ करना..?
तो रोटी कैसे खाते  हो
मुंह से..?
अरे बाबा, पैसे किधर से पाते हो जिससे खाना-दाना खरीदते हो..?
हम लगाम बनाते थे.. सरकार ने लगाम बनाने पर लगाम लगा दी सो तीन महीने से बेक़ार हूं.. सो सोचा भूख हड़ताल कर लूं तुम्हारे केजरी जी अन्ना जी जैसे तो पुलिस ने पकड़ लिया जेल में आज़ हमको सजा दिलवा दो साहब जेल में मुफ़्त रोटी मिलती है.. हमको लगाम बनानी आती है बस और हमारी सरकार लगाम नहीं बनाने देती.. 
क्यों..?
सरकार ने घोड़े के विदेशों में पलायन के कारण गधों से काम लेना शुरु कर दिया और पूरे देश में गधों को काम पर रखने क़ानून बना दिया है. हमने कहा कि हमारे धंधे पर मंदी का काला साया छा रहा है तो सरकार ने कहा लगाम बनाना बंद कर दो..
फ़िर...
फ़िर क्या हम बेरोज़गार हो गये.. हमने गधों के लिये लग़ाम बनानी चाही तो सरकार ने उसे भी प्रतिबंधित-व्यवसाय की श्रेणी में ला दिया.. 
दिन में कितनी लगाम बनाने की क्षमता है आपमें.. ?
सर, हम दिन में दस बारह बना लेते हैं..
    मुल्ज़िम की बात सुनकर हमने कहा-  जज साहब हमें आपसे अकेले में कुछ निवेदन करना है !
जज साहब ने हमारे वास्ते कमरा खुलवाया .. हमारी खानाफ़ूसी हुई बस बाहर आते ही जज साहब ने फ़ैसला सुनाया
  सारे बयानों दलीलों सुनने समझने के बाद  ज़ूरी की खास सलाह पर अदालत इस नतीजे पर पहुंचती है कि  मुलज़िम कपूरे लाल लोहार को भारत नामक देश में जहां हर जगह लगाम की ज़रूरत है भेज दिया जाये. 
 कपूरे लाल को भारत भेजने का प्रबंध देश की सरकार को करना होगा. 
     इसके बाद हम तो आ गये पर कपूरे लाल लोहार जी का इंतज़ार लगातार जारी है. भारत की बेलगाम होती व्यवस्था के लिये  कपूरे लाल लोहार जैसे महान लगाम निर्माताओं की ज़रूरत तो आप भी मसहूस करते हैं.. है न.. 


14.5.13

मेरी बेटी मेरा गौरव : डा. मनोहर अगनानी

यह आलेख डा. मनोहर अगनानी के ब्लाग बिटिया से साभार प्राप्त किया गया है
मैंने ,d izeq[k lekpkj&aसमाचार पत्र में sa “Pink or Blue: A new test makes it possible to tell the sex of the foetus at seven weeks – but should we use it?” 'kh"kZd ls ,d vkys[k पढ़ा था जिसमें ml VsLV dk ft+Ø fd;k x;k gS] ftlesa xHkZorh eka ds jDr ijh{k.k ls lkr lIrkg dh xHkkZoLFkk ds nkSjku gh Hkzw.k dk fyax Kkr fd;k tk ldrk gS A vkys[k esa ysf[kdk us ;g iz’u fd;k gS fd ^^D;k ge Hkkjrh;ksa  dk bl VsLV ds ek/;e ls Hkzw.k dk fyax Kkr djus dh vuqefr] bl gdhdr dk tkuus ds cktown nh tkuh pkfg, fd dqN yksx xHkZ esa csVh gksus ij rRdkyxHkZikr djkuk pkgsasxs \ ysf[kdk us vius gh bl iz’u ds mRrj esa viuh lgefrnsrs gq, ;g vk’kadk Hkh O;Dr dh gS fd laHkor% muds fopkjksa ls ;g ekuktk,xk fd os g`n;ghu gSa ,oa mUgsa dbZ yksxksa dh vkykspuk dk f’kdkj Hkh gksukiMs+xk ysf[kdk us vius bl er ds leFkZu esa ;g iz’u fd;k gS fd ;fn blijh{k.k ds ek/;e ls fyax Kkr djus dh vuqefr ugha nh tk, rks ,sls nEifRr]tks csVs dh pkgr j[krs gSa ,oa muds ;gka u pkgdj Hkh csVh dk tUe gks tk,rks ,slh csVh dk thou dSlk gksxk \ ysf[kdk ds er esa ,slh csVh dksekrk&firk I;kj ugha djsaxs] mls le;≤ ij mlds cks> gksus dk vglkldjk;saxs ,oa ml ij gksus okyk O;; ifjokj ds lalk/ku ij ,d vfrfjDr Hkkjekuk tk,xk A ,slh csVh dks gj {k.k ;g vglkl djk;k tk;sxk fd mldktUe mlds ekrk&firk dh bPNk ds foijhr gqvk gS A   ysf[kdk us var esaHkkoukRed :[k vf[r;kj dj ;g fy[kk gS fd ,slh ifjfLFkfr;ksa esa thou thusdh dkeuk vki fdlh ds fy, dSls dj ldrs gSa] de ls de eSa rks ugha djldrhA eSa pkgrh gwa fd lekt esa ,slk lkaLd`frd ifjorZu vk;sa fd ge lHkhcPpksa dk lEeku djsa vkSj eSa ;g pkgrh gwa fd ,slk ifjorZu tYnh vk, Afyax ijh{k.k vk/kkfjr dU;k Hkzw.k gR;k ds fo:) dke djus okyh laLFkk^^fcfV;k** dk lnL; gksus ds ukrs eSa bl fo"k; ij vius fopkj O;Dr djukpkgrk gwa A eSa bl ckr dks f’kn~nr ds lkFk Lohdkj djrk gwa fd izdkf’krvkys[k esa ysf[kdk us ;g cgqr Li"V dj fn;k gS fd ;s muds Lo;a ds fopkj gSa]rFkkfi lekt dks O;kid :i ls izHkkfor djus okys eqn~nksa ij O;fDr fo’ks"k dhjk; ls lekt dh lksp esa udkjkRed izHkko iM+us dh laHkkouk ek= ls euO;fFkr gks jgk gS A
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6.5.13

त्रिपुरी के कलचुरि : ललित शर्मा

त्रिपुर सुंदरी तेवर

सहोदर प्रदेश छत्तीसगढ़ के मशहूर घुमक्कड़ ब्लागर श्री ललित शर्मा ( जो पुरातात्विक विषयों पर ब्लाग लिखतें है) का संक्षिप्त ट्रेवलाग  बिना कांट छांट के प्रस्तुत है -जो उनके ब्लाग ललित शर्मा . काम  से लिया गया है-  गिरीश बिल्लोरे मुकुल   )
          आज का दिन भी पूरा ही था हमारे पास। रात 9 बजे रायपुर के लिए मेरी ट्रेन थी। मोहर्रम के दौरान हुए हुड़दंग के कारण कुछ थाना क्षेत्रों में कर्फ़्यू लगा दिया गया था। आज कहीं जाने का मन नहीं था। गिरीश दादा को फ़ोन लगाए तो पता चला कि वे मोर  डूबलिया कार्यक्रम में डूबे हुए हैं। ना नुकर करते 11 बज गए। आखिर त्रिपुर सुंदरी दर्शन के लिए हम निकल पड़े। शर्मा जी नेविगेटर और हम ड्रायवर। दोनो ही एक जैसे थे, रास्ता पूछते पाछते भेड़ाघाट रोड़ पकड़ लिए। त्रिपुर सुंदरी मंदिर से पहले तेवर गाँव आता है। यही गाँव जबलपुर के ब्लाग-लेखक श्री विजय तिवारी जी का जन्म स्थान एवं पुरखौती है। हमने त्रिपुर सुंदरी देवी के दर्शन किए और कुछ चित्र भी लिए। मंदिर के पुजारी दुबे जी ने बढिया स्वागत किया। 

तेवर का तालाब
ससम्मान देवी दर्शन के पश्चात हम तेवर गाँव पहुंचे। राजा हमे सड़क पर खड़ा तैयार मिला। तेवर गाँव में प्रवेश करते ही विशाल तालाब दिखाई देता है। कहते हैं कि यह तालाब 85 एकड़ में है। अभी इसमें सिंघाड़े की खेती हो रही हैं। तेवर पुरा सामग्री से भरपूर गांव है। जहाँ देखो वहीं मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। कोई माई बाप नहीं है। खंडित प्रतिमाए तो सैकड़ों की संख्या में होगी। इससे मुझे लगा कि यह गाँव कोई प्राचीन नगर रहा होगा। तालाब के किनारे पर शिवालय दिखाई दे रहा था और एक चबुतरे पर शिवलिंग के साथ कुछ भग्न मूर्तियाँ भी रखी हुई थी। ग्राम के मध्य में एक स्थान पर खुले में उमा महेश्वर की प्रतिमा रखी हुई है, यहाँ कुछ लोग पूजा कर रहे थे। ढोल बाजे गाजे के साथ कुछ उत्सव जैसा ही दिखाई दिया।

तेवर की बावड़ी
इससे आगे चलने पर एक विशाल बावड़ी दिखाई देती हैं। इसके किनारे पर एक मंदिर बना हुआ है, इस मंदिर में एक शानदार पट्ट रखा हुआ है जिसमें बहुत सारी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस मंदिर के ईर्द गिर्द सैकड़ों मूर्तियाँ लावारिस पड़ी हुई हैं जिनका कोई माई बाप नहीं है। इसके बाद राजा हमें एक घर में मूर्तियाँ दिखाने ले जाता है, वहां पर सिंह व्याल की लगभग 5 फ़िट ऊंची प्रतिमा है, जिसे रंग रोगन लगा दिया गया है और उसके साथ ही दर्पण में प्रतिबिंब देखते हुए श्रृंगाररत अप्सरा की सुंदर प्रतिमा भी दिखाई थी। पास ही चौराहे पर उमामहेश्वर की एक बड़ी भग्न प्रतिमा रखी हुई है। राजा यहाँ से हमें झरना दिखाने ले चलता है। 

झरने में गड्ढे
4-5 किलो मीटर कच्चे रास्ते पर जाने के बाद एक स्थान पर झरना दिखाई देता है। इस स्थान के आस-पास बड़े टीले हैं और टीलों के बीच के मैदान में गाँव के बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। उम्मीद है कि इन टीलों में भी कोई न कोई मंदिर या भवन के अवशेष अवश्य ही दबे पड़े होगें। झरने का जल निर्मल है, हमने यहीं पर बैठ कर भोजन किया और झरने के निर्मल जल पीया। झरने की तलहटी में लगभग 1 फ़ीट त्रिज्या के कई गड्ढे बने हुए हैं और यहीं पर शिवलिंग भी विराजमान है। साथ ही एक दाढी वाले बाबा की मूर्ति भी रखी हुई है जिसे विश्वकर्मा जी बताया जा रहा है। अवश्य ही यह किसी राजपुरुष की प्रतिमा होगी। विजय तिवारी जी ने बताया था कि त्रिपुर सुंदरी मंदिर के रास्ते में खाई में महल के अवशेष भी दिखाई देते हैं। 
विशाल मंदिर का मंडप
हम महल के अवशेष देखने के लिए खाई पर पहुंचे, वहाँ सब्जी बोने वालों ने अतिक्रमण कर रखा है। कहते हैं कि सड़क निर्माण के दौरान यहाँ से बहुत सारी पुरासामग्री निकली है और मिट्टी के कटाव में बहुत सारे मृदा भांड के अवशेष हमें भी दिखाई दिए। झाड़ झंखाड़ के बीच हम खाई में उतरे और मंडप तक पहुंचे। यह किसी विशाल मंदिर का मंडप है। गर्भगृह के स्थान पर एक गड्ढा बना हुआ है, खजाने के खोजियों ने यहाँ पर भी अपना कमाल दिखा रखा है। इस गड्ढे को लोग सुरंग कहते हैं। बताया जाता है यहाँ से रास्ता महल तक जाता था। खाई में सैकड़ों की संख्या में बिल दिखाई दे रहे थे ऐसी अवस्था में अधिक देर हमने ठहरना मुनासिब न समझा। क्योंकि यह स्थान सांपों के लिए मुफ़ीद स्थान है। 
अप्सरा
अब तेवर के ऐतिहासिक महत्व की चर्चा करते हैं, पश्चिम दिशा में भेड़ाघाट रोड पर स्थित वर्तमान तेवर ही कल्चुरियों की राजधानी त्रिपुरी है जो कि शिशुपाल चेदि राज्य का वैभवशाली नगर था। इसी त्रिपुरी के त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के कारण ही भगवान शिव का नाम ‘त्रिपुरारि‘ पड़ा। यहाँ स्थित देवालयों एवं भग्नावशेषों से ही ज्ञात होता है कि कभी यह नगर वैभवशाली रहा होगा। तेवर की प्राचीनता हमें ईसा की पहली शताब्दी तक ले जाती है। तेवर जिसे हम त्रिपुरी कहते हैं यह चेदी एवं त्रिपुरी कलचुरियों की राजधानी रहा है।  गांगेय पुत्र कल्चुरी नरेश कर्णदेव एक प्रतापी शासक हुए,जिन्हें ‘इण्डियन नेपोलियन‘ कहा गया है। उनका साम्राज्य भारत के वृहद क्षेत्र में फैला हुआ था। सम्राट के रूप में दूसरी बार उनका राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ। कहा जाता है कि शताधिक राजा उनके शासनांतर्गत थे।
भग्नावशेषों का निरीक्षण करते हुए
जबलपुर के पास ही गढ़ा ग्राम पुरातन "गढ़ा मण्डलराज्य' के अवशेषों से पूर्ण है। गढ़ा-मण्डला गौड़ों का राज्य था गौड़ राजा कलचुरियों के बाद हुए हैं। जबलपुर के पास की कलचुरि वास्तुकला का विस्तृत वर्णन अलेक्ज़ेन्डर कनिंहाम ने अपनी रिपोर्ट (जिल्द ७) में किया है। प्रसिद्ध अन्वेषक राखालदास बैनर्जी ने भी  इस विषय पर एक अत्यन्तअंवेष्णापूर्ण ग्रंथ लिखा है। भेड़घाट और नंदचंद आदि गाँवो में भी अनेक कलापूर्ण स्मारक हैं। भेड़ाघाट में प्रसिद्द "चौंसठ योगिनी' का मंदिर। इसका आकार गोल है। इसमे ८१ मूर्तियों के रखने के लिए खंड बने हैं। यह १०वीं शताब्दी में बना है। मन्दिर के भीतर बीच में अल्हण मन्दिर है।
हमारा त्रिपुरी दर्शन पूर्णता की ओर था। राजा को गाँव में छोड़ कर हम जबलपुर वापस आ गए, मुख्यमार्ग में कर्फ़्यू लगे होने के कारण कई घुमावदार रास्तों से गुजरते हुए हम सिविल लाईन पहुंचे। यहाँ से स्टेशन थोड़ी ही दूर है, 9 बजे हमारी ट्रेन का टाईम था और अमरकंटक एक्सप्रेस हमारी रायपुर वापसी थी। नियत समय पर ट्रेन पहुंच गई और जबलपुर की यादें समेटे हुए चल पड़ा अपने गंतव्य की ओर नर्मदे हर नर्मदे हर का जयघोष करते हुए।

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