बात उन दिनों की है जब ज्ञानरंजन जी नव-भास्कर का संपादकीय पेज देखने जाते थे। सन याद नहीं। तब वे अग्रवाल कालोनी (गढ़ा) में रहा करते थे. सभी मित्र और चाहने वाले अक्सर शाम के समय, जब उन के निकलने का समय होता, पहुँच जाते. चंद्रकांत जी दानी जी मलय जी, सबसे वहाँ मुलाकात हो जाती। आज इंद्रमणि जी याद आ रहे हैं। वे भी अपनी आवारा जिन्दगी में ज्ञान जी के और हमारे निकट रहे और अपनी आत्मीय उपसिथति से सराबोर किया। उस समय जब ज्ञान जी ने संजीवनीनगर वाला घर बदला और रामनगर वाले निजी नये घर में आये तब काकू (सुरेन्द्र राजन) ने ज्ञान जी का घर व्यवसिथत किया था. जिस यायावर का खुद अपना घर व्यवसिथत नहीं वह किसी मित्र के घर को कितनी अच्छी तरह सजा सकता है, यह तब हम ने जाना, समझा। ज्ञानरंजन की बदौलत हमें काकू (सुरेन्द्र राजन) मिले. मुन्ना भाइ एक और दो में उनका छोटा सा रोल है। बंदिनी सीरियल में वे नाना बने हैं। उन्हें तीन कलाओं में अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड मिले है। वे कहते हैं कि फिल्म में काम हम इसलिये करते हैं ताकि महानगर में रोटी, कपड़ा और मकान मिलता रहे। ज्ञानरंजन जी, प्रमुख