8.1.12

खाली होता यमन


डैनियल
पाइप्स


मौलिक अंग्रेजी सामग्री: The Emptying of Yemen
हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी
  साभार स्रोत :-"डेनियल पाइप्स ओआर्जी"



अपने लम्बे इतिहास में शाय पहली बार यमन ने बाहरी विश्व के लिये खतरा उत्पन्न किया है। मुख्य रूप से यह खतरा ो प्रकार से है।
पहला, 15 जनवरी को आरम्भ हुए राजनीतिक उठा पटक से पहले ही यमन की हिंसा की लपट पश्चिमवासियों तक पहुँचने लगी थी। जैसा कि राष्ट्रपति अली अब्ुल्लाह सालेह की कमजोर सरकार का नियंत्रण ेश के एक छोटे भाग तक ही सीमित है तो हिंसा यमन के निकट ( जैसे कि अमेरिकी और फ्रांसीसी जहाजों पर आक्रमण ) और सुूर ( अनवर अल अवलाकी ्वारा टेक्सास, मिचीजन और न्यूयार्क में भडकाये गये आतंकवा) तक िखी । 4 जून को श्रीमान सालेह ्वारा लगभग पलायन करने की स्थिति कि जब वे चिकित्सा के लिये सउी अरब की यात्रा कर रहे हैं तो कें्रीय सरकार की शक्ति और भी क्षीण होगी। यमन अब हिंसा के निर्यात का अधिक बडा कें्र बनने की तैयारी में है।
लेकिन ूसरा खतरा मस्तिष्क को अधिक झकझोरने वाला है वह है अ्वितीय ढंग से यमन का खाली होना जिससे कि लाखों की संख्या में अप्रशिक्षित और अनागंतुक शरणार्थी जिसमें कि अधिकाँश इस्लामवाी हैं पहले तो मध्य पूर्व में और फिर पश्चिम में आर्थिक शरण की माँग कर रहे हैं।
इस समस्या का आरम्भ विनाशकारी जलाभाव से हुआ है। इस विषय के विशेषज्ञ गेरहार्ड लिचेनहेलर ने वर्ष2010 में लिखा कि किस प्रकार ेश के अनेक पहाडी क्षेत्रों में , " जलाशयों में उपलब्ध जल कम होकर प्रति व्यक्ति चौथाई गैलन रह गया। इन जलाशयों को इतने गहरे तक खोा गया कि जलस्तर प्रति वर्ष 10 से 20 फीट नीचे गिरता गया, इससे कृषि को खतरा उत्पन्न हो गया और प्रमुख शहरों में सुरक्षित पीने के जल की पर्याप्त मात्रा का अभाव हो गया है । साना विश्व का पहला राजधानी शहर होगा जो कि पूरी तरह सूख गया है" ।
और केवल साना ही नहीं जैसा कि लंन टाइम्स के मुख्य शीर्षक ने कहा है, " यमन ऐसा पहला ेश होगा जहाँ कि जल का अभाव उत्पन्न होगा" । इस स्तर की अतिशय स्थिति आधुनिक समय में उत्पन्न नहीं हुई थी जबकि इसी परिपाटी मे सूखे सीरिया और इराक में भी हुए हैं।
स्तम्भकार डेविड गोल्डमैन ने संकेत िया है कि खा्य संसाधनों के अभाव के चलते मध्य पूर्व में बडी संख्या में लोगों के भूखा रहने का संकट उत्पन्न हो गया है और इसमें भी यमन में आरम्भ हुई अशांति से पूर्व ही एक तिहाई यमन के लोग भूख से पीडित थे । यह संख्या तेजी से बढ रही है।
आर्थिक स्थिति के सिकुडने की सम्भावना िनों िन बढ्ती ही जा रही है। तेल की आपूर्ति तो इस स्तर तक घट गयी है कि, " ट्रक और बस पेट्रोल स्टेशन पर बढी संख्या में लोग घन्टों तक भीड में लगे रहते हैं , जबकि जल की कमी और बिजली की कटौती तो रोजमर्रा का अंग बन चुका है" । उत्पाक गतिविधि अपेक्षाकृत पतनोन्मुख है।
मानों जल और खा्य कोई बडी चिंता नहीं थी कि यमन विश्व में जन्मर के मामले में सबसे आगे है और इसने संसाधनों के संकट को और भी गम्भीर कर िया है। प्रत्येक स्त्री का संतान उत्पत्ति का औसत 6.5 है और प्रत्येक 6 में से 1 स्त्री हर समय गर्भवती ही रहती है। ऐसी भविष्यवाणी की जा रही है कि 2.4 करोडकी जनसंख्या अगले 30 वर्षों में ुगुना हो जायेगी।
राजनीति समस्या को अधिक गम्भीर बना ेती है। यि यह मान भी लें कि श्रीमान सालेह का शासन इतिहास का विषय हो गया है ( सउी उन्हें नहीं जाने ेंगे और साथ ही अनेक घरेलू विरोधी भी उनके विरु्ध उठ खडे हुये हैं) तो उनके उत्तराधिकारी को उस छोटे से भाग पर शासन करने में भी कठिनाई होगी जिस पर अभी उनका शासन है।
अनेक धडे विरोधाभासी उेश्य के साथ सत्ता के लिये संघर्ष कर रहे हैं , सालेह की सेना, उत्तर में हूती वि्रोही , क्षिण में अलगाववाी , अला काया तरीके की शक्तियाँ , एक युवा आंोलन , सेना, अग्रणी कबीलाई और अहमर परिवार। एक ऐसा ेश जो कि वास्तव में " कबीलाई व्यवस्था पर आधारित है और सैन्य अधिनायकवाी जैसा िखता है" वहाँ सोमालिया और अफगान की तर्ज पर अराजकता की सम्भावना अधिक िखती है न कि गृह यु्ध की।
यमन के इस्लामवाी इस्लाह राजनीतिक ल से लेकर जो कि संसीय चुनाव में भाग लेता है सउी सेना से टक्कर लेने वाले हूती वि्रोही और अरब प्राय्वीप में अ‍ल काया तक बिखरे हैं। उनकी बढ्ती शक्ति ईरान समर्थित राज्यों और संगठनों के " प्रतिरोध खंड" को बल प्रान करती है । यि यमन में शिया सुन्नी पर भारी पड्ते हैं तो इससे तेहरान को ही लाभ होगा।
कुल मिलाकर पर्यावरणिक , आर्थिक, राजनीतिक, विचारधारागत संकट यमन से एक असाधारण , सामूहिक और ुर्भाग्यपूर्ण पलायन को प्रेरित करेगा और इससे एक विशाल यमन विरोधी प्रतिक्रिया की स्थिति उत्पन्न होगी।
व्यक्तिगत रूप से एक छात्र के रूप में 1972 में यमन के यात्रा कर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ था। एक ऐसी भूमि जिस तक पहुँचना अत्यंत कठिन था और औपनिवेशक इसके कुछ ही भाग तक प्रवेश कर सके उसने अपनी परम्परा, अपनी विशिष्ट स्थापत्य, विशेष पहनावे को सँभाल कर रखा।
क्या बाहरी विश्व इस विनाश को रोक सकता है? नहीं, यमन की पहाडी स्थिति , संस्कृति और राजनीति सभी कुछ सैन्य हस्तक्षेप को लगभग असम्भव बनाती है और इस समय जबकि पश्चिम चुकी सी स्थिति में है और सउी डरे से हैं तो कोई भी इस डहती अर्थव्यवस्था का ायित्व अपने ऊपर नहीं लेना चाहेगा। न ही राज्य आगे बढकर लाखों लाख आवश्यकता के मारे शरणार्थियों को लेना चाहेगा। इस घोर अंधकार मे यमनवासी अपने साथी स्वयं ही हैं।

7.1.12

दक्षिणी सूडान, इजरायल का नया मित्र


डैनियल
पाइप्स



द वाशिंगटन टाइम्स हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी
ऐसा प्रतिदिन नहीं होता कि जब एकदम नये देश का नेता अपनी पहली विदेश यात्रा विश्व के सबसे अधिक घिरे देश की राजधानी जेरूसलम के रूप में करे परंतु दक्षिणी सूडान के राष्ट्रपति सल्वा कीर ने अपने विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री के साथ दिसम्बर के अंत में यही किया। इजरायल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेज ने इस यात्रा को अत्यंत " आंदोनलकारी ऐतिहासिक क्षण" बताया। इस यात्रा से इस बात को बल मिला है कि दक्षिणी सूडान जेरूसलम में अपना दूतावास स्थापित करने वाला है और ऐसा करने वाली विश्व की वह पहली सरकार होगी।
यह अस्वाभाविक घटनाक्रम एक अस्वाभाविक कथा का परिणाम है.
आज के सूडान ने उन्नीसवीं शताब्दी में स्वरूप ग्रहण किया था जब ओटोमन साम्राज्य ने इसके उत्तरी क्षेत्र को नियन्त्रण में लिया और इसके दक्षिणी क्षेत्र को विजित करने का प्रयास किया। ब्रिटेन ने काहिरो से शासन करते हुए आधुनिक राज्य का खाका 1898 में तैयार किया और अगले पचास वर्षों तक उत्तरी मुस्लिम और ईसाई –प्रकृतिवादियों वाले दक्षिणी क्षेत्र पर अलग अलग शासन किया। 1948 में उत्तरी भाग के दबाव के आगे झुकते हुए ब्रिटिश शासन ने दोनों प्रशासन को उत्तरी नियंत्रण में खारतोम के अन्तर्गत कर दिया और इस प्रकार सूडान में मुस्लिम प्रभाव हो गया और अरबी इसकी आधिकारिक भाषा हो गयी।
इसी प्रकार 1956 में स्वतन्त्रता प्राप्त होते ही यहाँ गृह युद्ध आरम्भ हो गया जब दक्षिणी क्षेत्र के लोग मुस्लिम प्रभुत्व से मुक्त होने के लिये संघर्ष करने लगे। उनके लिये यह सौभाग्य की बात थी कि प्रधानमंत्री डेविड बेन गूरियन की " क्षेत्रीय नीति" ने मध्य पूर्व में गैर अरब लोगों के लिये इजरायल के समर्थन का मार्ग प्रशस्त किया जिसमें कि दक्षिणी सूडान भी शामिल था। इजरायल की सरकार ने 1972 तक चले सूडान के गृह युद्ध में सहायता दी जो कि उनके नैतिक , कूटनीतिक सहायता और सशस्त्र सहायता का मुख्य आधार रहा।
श्रीमान कीर ने जेरूसलम में इस योगदान को सराहा और कहा, " इजरायल ने सदैव ही दक्षिणी सूडान के लोगों की सहायता की है। आपके सहयोग के बिना हमारा उत्थान सम्भव नहीं था। दक्षिणी सूडान की स्थापना में आपने हमारे साथ संघर्ष किया है" । इसके उत्तर में श्रीमान पेरेज ने 1960 के आरम्भ में पेरिस में अपनी उपस्थिति को याद किया जब उन्होंने प्रधानमंत्री लेवी एस्कोल के साथ दक्षिणी सूडान के नेताओं के साथ इजरायल के प्रथम सम्पर्क का आरम्भ किया था।
सूडान का गृह युद्ध 1956 से 2005तक रुक रुक कर चलता रहा। समय के साथ उत्तरी मुस्लिम दक्षिण के अपने साथी देशवासियों के प्रति क्रूर होते चले गये और इसके परिणामस्वरूप 1980-90 के दशक में नरसंहार , गुलामी और ह्त्याकाण्ड जैसे दृश्य सामने आये। अफ्रीका के अनेक दुखद प्रसंगों की भाँति ऐसी समस्याओं ने भी दयाभावी पश्चिमी लोगों पर कोई प्रभाव नहीं छोडा सिवाय अमेरिका के दो आधुनिक स्वतंन्त्रतावादियों के जिन्होंने असाधारण प्रयास किये ।
1990 के मध्य में क्रिश्चियन सोलिडैरिटी इंटरनेशनल के जान ईबनर ने हजारों गुलामों को मुक्त कराया तथा अमेरिकन एंटी स्लेवरी ग्रुप की ओर से चार्ल्स जेकब्स ने अमेरिका में " सूडान अभियान" चलाकर अनेक संगठनों का व्यापक गठबंधन बनाया। जैसा कि सभी अमेरिकी गुलामी को अभिशाप मानते हैं तो इन स्वतंत्रतवादियों ने दक्षिण और वामपंथ का एक अद्वितीय गठबंधन बनाया जिसमें बार्ने फ्रैंक और सैम ब्राउनबैक, अमेरिकी कांग्रेस के अश्वेत समूह और पैट राबर्टसन , अश्वेत पादरी और श्वेत धर्मांतरणवादी। इसके विपरीत लुइस फराखान पूरी तरह बेनकाब हो गये जब उन्होंने सूडान में गुलामी होने की बात को ही नकार दिया।
स्वतंत्रतावादियों के प्रयासों को सफलता 2005 में मिली जब जार्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने खारतोम पर दबाव डाला कि वह 2005 में व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करे ताकि युद्ध समाप्त हो और दक्षिणी क्षेत्र के लोगों को स्वतंत्र होने के लिये मत का अवसर प्राप्त हो। उन्होंने जनवरी 2011 में पूरे उत्साह के साथ ऐसा किया और 98 प्रतिशत लोगों ने सूडान से अलग होने के लिये मत दिया और इससे छह माह पश्चात दक्षिणी सूडान गणतंत्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया जिसे कि श्रीमान पेरेज ने " मध्य पूर्व के इतिहास में एक मील का पत्थर बताया"।
इजरायल के लम्बे समय के निवेश का लाभ मिला है। दक्षिणी सूडान उस नयी क्षेत्रीय रणनीति में पूरी तरह उपयुक्त बैठता है जिसमें कि साइप्रस, कुर्द, बरबर और शायद एक दिन उत्तर इस्लामवादी ईरान भी शमिल हो। दक्षिणी सूडान के चलते प्राकृतिक ससाधनों पर पहुँच हो सकेगी विशेष रूप से तेल। नील नदी के जल की वार्ता में इसकी भूमिका से मिस्र पर भी कुछ दबाव बन सकेगा । व्यावहारिक लाभ से परे नया गणतंत्र अपनी निष्ठा, समर्पण और उद्देश्यके प्रति लगन के द्वारा गैर मुस्लिम जनता द्वारा इस्लामी साम्राज्यवाद के प्रतिरोध का प्रेरणाप्रद उदाहरण प्रस्तुत करता है । इस प्रकार दक्षिणी सूडान का जन्म तो इजरायल को ही प्रतिध्वनित करता है।
यदि कीर की जेरूसलम की यात्रा वास्तव में मील का पत्थर है तो दक्षिणी सूडान को अपनी दरिद्रता, अंतरराष्ट्रीय संरक्षण और बीमार संस्थाओं की स्थिति से बाहर निकल कर आधुनिकता और वास्तविक स्वतंत्रता की ओर आना होगा। इस मार्ग पर चलने के लिये आवश्यक है कि नेतृत्व राज्य के नवीन संसाधनों का शोषण करने या खारतोम को विजित कर नया सूडान निर्मित करने का स्वप्न देखने के स्थान पर सफल राज्य की नींव रखे।
इजरायल और अन्य पश्चिमवासियों के लिये इसका अर्थ कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा में सहायता प्रदान करना है और उन्हें यह सलाह देना है कि सुरक्षा और विकास पर ध्यान केंद्रित करें परंतु अपनी इच्छा के युद्ध से बचें। एक सफल दक्षिणी सूडान वास्तव में एक क्षेत्रीय शक्ति बन सकता है और न केवल इजरायल का वरन समस्त पश्चिम का एक शक्तिशाली मित्र हो सकता है।

6.1.12

घरों की दीवारों पे टंगे वैद्यनाथ, के केलेंडर्स याद हैं.न.!!



उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले का मुडावरा गाँव जो महरौनी तहसील में है, ७०-७१ बरस पहले वहाँ इक किशोर के जीवन का इक दृश्य
नाम :हेम राज जैन
उम्र :१०-११ वर्ष
काम: पढ़ना ,
शौक : पुराने कागजों पर पेन पेंसिल से चित्र बनाना
यही शौक उसे बनाएगा मशहूर चित्र कार इस बात का गुमान उस किशोर को न था । जीवन के लक्ष्य तय करने उन दिनों विकल्प और सुविधाएं भी कम ही हुआ करतीं थी। कम विकल्पों के साथ जीवन के अगले लक्ष्य नियत करना कितना कठिन रहा होगा "किशोर वय के हेमराज़ "के लिए।
हेमराज कौन है , कहाँ हैं , क्या खूबी थी उनमें इस बात का ज़वाब जानने आप यदि ४० बरस की उम्र के आस पास हो तो कृपया अपने घरों की दीवारों पे टंगे बिटको,अथवा अन्य कंपनियों के केलेंडर्स को याद कीजिए । उन्हीं केलेंडर्स पे सुंदर से अक्षरों में लिखा होता था ....."हेमराज"
यही वो किशोर था जो आगे चल के कैलेंडर बनाता था ।
भारत में पद्म,रत्न,भूषण,विभूषण,जाने कितने पुरूस्कार बंट्तें हैं । इस हीरे पर कम ही लोगों की नज़र पड़ी जिसने इंग्लिस्तान के काय-विज्ञानियों के लिए हेमराज जी ने जो मानव शरीर की अंत: आकृति को रचा एनोटोमी के लिए अद्भुत सृजन था ।
ए० एम० बी० एस० की डिग्री लेकर डाक्टर बने हेमराज जी जिला आयुर्वेद अधिकारी पद से रिटायर्ड हैं। आँखे ज्योति विहीन हैं । जैन धर्म के अनुयायी हेमराज जी आज लगभग ८५-८६  वर्ष के होंगे  ।
व्रती हैं , कोई भी संकल्प कभी भी नहीं त्यागते। जितेन्द्रिय है । जबलपुर में ही रह रहें है ।
* *हेमराज जी कैसे बने चित्रकार **
बुन्देल खंड आयुर्वेदिक कालेज,झांसी में ए० एम० बी० एस० के अन्तिम वर्ष में पढ़ रहे थे। उसी कालेज में कलकत्ता से वैद्यनाथ के मालिक आए एनाटामी पर छात्रों के काम देख प्रभावित हुए। सबसे ज़्यादा हेमराज जी के चित्र उनको भा गए। डिग्री ख़त्म होते ही कलकत्ता आने का निमंत्रण वो भी कम्पनी में प्रमुख कलाकार के बतौर । जहाँ से बचपन के सपनों को आकार मिला और रोज़गार एनाटॉमी के चित्र नाड़ियों के गुच्छों को बनाना सहज कहाँ बंद कमरे में एकाग्र हो चित्र बनाते हेमराज जी की आंखों की ज्योति कम होने लगी । संस्थान के डाक्टरों ने कहां डाक्टर साब आप तो अब चित्र कारी छोड़ दीजिए वर्ना आंखों से पूरी ज्योति चली जाएगी । लौट आए वापस
तब तक हेमराज जी सैकड़ों चित्र बना चुके थे- पाठ्यक्रमों के लिए ,और साथ ही साथ आम घरों में लगने वाले ईश्वररूपों की तस्वीरें भी।
मडावारा के जैन किराना व्यापारी दया चन्द्र जैन के दो पुत्रों में इनके बड़े भाई प्रताप चन्द्र जैन भी हेमराज जी के समकक्ष डिग्री धारी थे। दोनों ही म० प्र० सरकार के आयुर्वेदिक विभाग के चिकित्सक के रूप में चुने गए ।
मध्यप्रदेश का राजगढ़ जिला इनका कार्य क्षेत्र रहा। सेवानिवृति के समय सागर जिला" सागर जिला डा. हेमराज जी का कार्य स्थल रहा है।
इनके बड़े भाई श्री प्रताप चन्द्र जैन भी रिटायर्ड होकर भोपाल भोपाल में बस गए।
*क्या करते हैं हेमराज़ जी अब ये सवाल आपको परेशान तो कर ही रहे होंगे सो जानिए
"मेरे मित्र धर्मेन्द्र जैन के ससुर हैं श्री हेम राज जी इन पर कई दिनों से फीचर लिखना चाहता था नौकरी की व्यस्तता की चलते देर हुई किंतु पहले लिख भी देता तो अखबारों की कृपा से ही कहीं छप पाता फीचर ब्लॉग से देर तक दुनिया की साथ रहेगा "
हाँ तो हेमराज जी की ज़िंदगी व्यक्तिगत तौर पर संघर्ष का दस्तावेज़ है। शादी के कुछ साल बाद पत्नी की देहावसान की बाद २ बरस की बिटिया अंजना की परवरिश माँ बन के इन्हीं ने की। ब्रह्मचर्य-व्रती श्री जैन अपने बेटे दामाद के परिवार के साथ रहतें हैं ।
उनके साथी हैं धर्मेन्द्र के पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री के० सी० जैन,
"जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के मीमांसक हेमराज जी नरसिंहगड़ में जीव दया संस्थान से जुड़े थे . पर पीडा न देखने वाले युग में जब हम कुत्ते बिल्लियाँ ऊँची नस्ल के पशु केवल अपने स्टेटस को साबित कराने के लिए पालतें हैं तब हेमराज जी मूक पशुओं की सेवा को अपना व्रत मानतें हैं. नरसिंहगढ़ से लाए थे वे छोटी को कुत्ते के यह पिल्ली उनको नाली में घायल अवस्था में दिखाई दी, पिछले पैर घायल.थे छोटी के तब ! चिकित्सा और सेवा से इस निरीह पशु को जीवन मिला . अभी भी है उनके साथ . दामाद धर्मेन्द्र बतातें हैं: उनका संकल्प निरीह जीवनों की रक्षा करने का है. गली कूचों में तड़पते किसी भी पशु की रक्षा के लिए उनकी आत्मा द्रवित हो जाती है।

सच भी है मैंने कई पशुओं की सेवा करते उनको देखा है। 
  • "इक बार भोजन दो बार पानी "
वर्ष भर के ३६५ दिनों में केवल हेमराज जी ने ७३० बार पानी पीया तथा ३६५ बार सादा भोजन
आप हम ये सब कुछ कर सकतें हैं....!
ज़बाव होगा नहीं
पूरा दिन घर के पीछे लगे छोटे से पेढ़ पोधों की सेवा में लगे रहने वाले
      श्री हेमराज जैन की उम्र अब ८५-८६ वर्ष है पुरानी यादों को छेड़ने पर पर उनके मानस पर मशहूर गायक मुकेश छा गए परिजन बतातें हैं स्व. मुकेश के दीवाने थे उनकी बीसियों तस्वीर बनाईं थीं. उनकी बेटी अंजना बतातीं हैं कि -"रंगों का निर्माण खुद कर लेते थे."   
अरे हां बताया था शायद उन्हीं ने कि भोपाल रियासत के नवाब के पारिवारिक वैद्य भी रहे. 
श्री हेमराज जैन के बनाए चित्रों को देखने यहां क्लिक करें "चित्र (क्रमश: जारी )

थैंक्स लुई ब्रेल


माँ, मैरी   पिता  साइमन ,की चौथी  संतान लुई ब्रेल का जन्म दक्षिण पूर्व स्थित शहर  को्पव्रे( फ्रांस)  में दिनांक 04 जनवरी 1809 में जन्मे थे . वह और उनके तीन बड़े भाई बहन - कैथरीन ब्रेल, लुई साइमन ब्रेल  अक्सर पिता चमडे के कारखाने में खेलने जाया करते थे .  ऐसे ही खेल खेल में. तीन साल की उम्र के लुई ने  कौतुहल वश  घोड़े की जीन बनाने के लिये रखे गये चमड़े को एक सूजे से छेदने की कोशिश की और सूजा लुई की आंख में घुस गया. गांव के स्थानीय चिकित्सक के इलाज़  से अपेक्षित लाभ तो न हुआ उल्टे दूसरी आंख भी संक्रमण से  प्रभावित होने लगी.   एक सप्ताह तक चले स्थानीय इलाज़ में कोई लाभ होता न देख पिता ने पेरिस के एक चिकित्सक से संपर्क किया इलाज़ के चलते लुई को बचा तो लिया गया किंतु आयु के पांच वर्ष पूर्व होते होते लुई की दूसरी नेत्र-ज्योति क्रमश: चली गई. और लुई दिव्य-चक्षु हो गये. पिता के पादरी मित्र ने लुई को स्पर्श से एहसास का संज्ञान कराया और यही एहसास लुई को एक महान खोज कर्ताओं की सूची में ला खड़ा करता है. जी हां इन्ही दिव्य-चक्षु लुई ब्रेल ने नेत्रहीनता से जूझने के लिये ब्रेल-लिपि का महान अविष्कार किया.  
                                                                     ऐसी होती है ब्रेल लिपि
 उभरी हुई आकृतियां जिसे स्पर्श करते ही दिव्य-चक्षु पढ़ सकते हैं भोपाल के मूल निवासी श्री मधुकर जो  दिव्यचक्षु हैं तथा पेशे से फ़ीजियो थेरेपिस्ट है  चित्र में ब्रेल लिपि में लिखी गई पुस्तक को पढ़ रहें हैं. 
      नई दिल्ली के श्री रवि कुमार गुप्ता भी एक ऐसे ही आई ए एस हैं  जो ब्रेल से ही पढ़ कर आई ए एस अधिकारी हुए. इसी तरह मध्य प्रदेश काडर में श्री कृष्ण गोपाल तिवारी भी एक अदभुत व्यक्तित्व के मालिक दिव्य-चक्षु आई ए एस हैं.
श्री कृष्ण गोपाल तिवारी
आई ए एस 

5.1.12

कान देखने लगे हैं अब :व्यंग्य गिरीश मुकुल

कानों से देखने की एक अधुनातन तकनीक का विकास एवम उपयोग इन्सानी सभ्यता के बस में ही है यक़ीन कीजिये  इसका उपयोग  इन दिन दिनों बेहद बढ़ गया है.अब कान भी बढ़चढ़ के देखने के अभ्यस्त हो चले हैं. अब गुल्लू को ही लो जित्ते निर्णय लेता है कानन देखी के सहारे लेता है गुल्लू करे भी तो क्या अब आधी से ज़्यादा आबादी के पास  नज़रिया  ही कहां जिससे साफ़ साफ़ देखा जाए.तो भाई लोगों में जैनेटिक बदलाव आने तय थे . एक ज़िराफ़ की गर्दन की लम्बाई भी तो जैनेटिक बदलाव का नतीज़ा है.कहतें है कि लम्बी झाड़ियों से हरी हरी पत्तियां चट करने के लिये बड़ी मशक्क़त करनी होती थी जिराफ़ों को तो बस उनमें बायोलाजिकल बदलाव आने शुरु हो गये . पहले मैं भी इस बात को कोरी गप्प मानता था लेकिन जब से आज के लोगों पर ध्यान दिया तो लगता है है कि सही थ्योरी है जिराफ़ वाली. 
मेरे एक मित्र  अखबार निकालते हैं. मुझे मालूम है कि वे बस हज़ार अखबार छापते हैं हमने पूछा : भई, कैसा चल रहा है अखबार 
बहुत उम्दा दस हज़ार तक जाता है..?
यानि, अब एक नहीं दस हज़ार कापी छाप रए हो दादा वाह बधाई.. !
न भाई छाप तो ऎकै हज़ार रहे हैं पहुंच दस तक रहा है...!
"भईया, झूठ नै बोलो अपने लंगोटिया सै"
   बस भाई ने हिंदुस्तान में सबसे ज़्यादा खाए जाने वाले "आभासी खादय पदार्थ यानी कसम खा के बोले - भाई तुम क्या जानो  रीडर शिप सर्वे के मुताबिक अपना अखबार दस हज़ार बांच रये हैं .जे देक्खो (जेब से एक फोटो कापी निकाल के हमको दिखाते हुए बोले ) जे रहे अलग से  पांच हज़ार, हां देखो नीचे वाली लैन पढ़ो जिनको हमाए समाचार पत्र की कोई न कोई खबर किसी के ज़रिये सुनवा दी जाती है .  रोज़िन्ना पंद्र हज़ार तक जाने वाला अखबार चलाता हूं मुझे महापुरुष वक़ील पत्रकार "छत्ता-पांडे जी" की याद आ गई बड़े जीवट अखबार नवीस थे उनका अखबार की कुछ खबरें वे अक्सर सुना जाया करते थे. यानी कुल मिला के  कानों से देखने दिखाने का सामाजिक बदलाव आज़ से बीस-बाइस बरस पहले ही शुरु हो चुका था अब तो इस कला में चार चांद लग गये. अब बताओ भैया "गुल्लू का गलत कर रिया है..?"
न गुल्लू वही कर रिया है जो अदालत करतीं हैं-"हां वही,सुनवाई, यानी कानन-दिखाई"
कल गुल्लू बीवी को ज़ोर जोर से डांट रहा था पता चला कि गुल्लू की बुढ़िया अम्मा ने बहू की कोई गलती गुल्लू को कान के ज़रिये दिखा दी बस क्या था गुल्लू ने अपना पति धर्म निबाह दिया.. बेचारी गुल्ली का करती सोच रही होगी :"बुढ़िया कित्ते दिन की "
  खैर गुल्लू तो एक आम आदमी है.. आफ़िसों में नाबीना अधिकारी बेचारे कान से न देखें तो का करें. सूचना क्रांति के युग में उनका कान से देखना अवश्यंभावी है. दोस्तो बायोलाजिकल चैंज सन्निकट जान पड़ता है. इस बारे में चश्मा कम्पनियां बहुत गम्भीरता से चश्में की बनावट में चैंज लाएंगी सुना है ओबामा ने "इस अनुसंधान के लिये काफ़ी सारे डालर के बज़ट का मन बना लिया है." यानी अब चश्मे कानौं में लगेंगे आखौं पे नहीं. आंख से इंसान-प्रज़ाति क्या काम लेगी इस काया-शास्त्री गण गहन विमर्श में हैं. 

3.1.12

ब्लाग-भूषण मिला, दाता का आभार : गिरीश बिल्लोरे

मुझे मुम्बई की जात्रा रद्द करनी पड़ी मुआ निमोनिया एन उस वक्त सामने आया जब कि अपने राम सपत्नीक जा रहे थे मुम्बई व्हाया नागपुर दिनांक 7 दिसम्बर 2011 की अल्ल सुबह किंतु देर रात तक खांसते-खांसते हालत हैदराबाद हुई जा रही थी. इधर मित्र गण काफ़ी खुश थे मुम्बई जात्रा से आऊंगा और सदर काफ़ी हाउस में एक लम्बी सिटिंग होगी.. बात-चीत के साथ साथ जलपान उदरस्थ करेंगे मिलजुल के ऐसा अमूमन होता ही है. पर गोया खड़ी फ़सल पे तुषारापात.. खैर माफ़ी नामा तो भाई मनीष मिश्रा जी से  अनिता कुमार जी से मांग ही चुका था पर ये क्या मन में बार बार एक ही विचार सुनामी की शक्ल ले रहा था -"वादे पे खरा न उतरा मैं उनसे क्या कहूंगा जिनने मेरे लिये समारोह में जगह बनाई" समयचक्र चलता रहा इस बात का दर्द कुछ कम हुआ पर नुकसान तो हुआ उतना नहीं जितना कि बीमार शरीर लेकर मुम्बई पहुंचता . शुक्रवार दि. 09 दिसंबर 2011 को सुबह 10 बजे से कल्याण पश्चिम स्थित के. एम. अग्रवाल कला, वाणिज्य एवम् विज्ञान महाविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग संपोषित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सुनिश्चित थी।  ``हिन्दी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनायें।'' यह संगोष्ठी शनिवार 10 दिसंबर 2011 को सायं. 5.00 बजे तक चलनी थी इसके साथ मुझे 8 दिसम्बर 2011 को अनिता कुमार जी के स्नेहामंत्रण पर उनके चैम्बूर स्थित कालेज में वेब-कास्टिंग पर अपना प्रज़ेंटेशन देना था..
    मैने अपनी मराठी मित्र से अपना प्रज़ेंटेशन हिंदी से मराठी में ट्रांस्लेट करवा भी लिया था ताकि अनिता जी को किये वादे पर खरा उतरूं..  
  ईश्वर उतना ही देता है जितना जिसे मिलना चाहिये या कहूं जितना जिसके वास्ते तय होता है....!
 ऐसा इस वज़ह से कह रहा हूं क्यों कि मुझे मुम्बई में मिलना था कुछ निर्माताओं से, अपने आभास, श्रेयस से, मित्र देवेंद्र झवेरी जी से... रंजू दीदी से, काका से यानी कुल चार दिन भारी व्यस्त रहने वाले थे मिनिट-टू-मिनिट कार्यक्रम श्रीमति जी के साथ मिलके तय था खैर जो होता है अच्छा ही होता है .. वो अच्छा क्या था मुझे तब एहसास हुआ जब 07 दिसम्बर को इंदौर से एक फ़ोन संदेश मिला कि मेरे बड़े जीजाश्री गम्भीर रूप से बीमार हैं वैंटिलेटर पर रखा गया है उनको यद्यपि मैं तो जा न सका पर सारा परिवार वहां समय पर पहुंच चुका था..एक लम्बे संघर्ष के बाद वे सबकी दुआंओं और दवाओं के असर से  अब स्वस्थ्य हैं.  सच मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी घर पर सबके साथ   
 31 दिसम्बर  2011  को  मनीष जी का भी कोरियर पाकर अभिभूत हूं इस कोरियर में "ब्लाग-भूषण" की उपाधि थी 

2.1.12

"भारत हमसे क्या चाहता है ?"


साभार : NEWS FLASH

भारत से आपकी अपेक्षाएं आम तौर पर आप जब अपने बच्चे के कैरियर को लेकर आपस में चर्चा करतें हैं तब खुला करतीं हैं. किंतु भारत आपसे क्या चाहता है इस बारे में आप की हमारी सोच लगभग अपाहिज है. अपाहिज शब्द का स्तेमाल इस कारण किया क्यों कि हम-आप केवल व्यवस्था के खिलाफ़ खड़े दिखाई देते  हैं.. अपने देश की तुलना अमेरिका यू के , के साथ कर खुद को दीनहीन मानते हैं. उन देशों के आप्रवासियों के ज़रिये आयातित सूचनाओं की बैसाखियां लगाए हुए हम कितने अकिंचन नज़र आते हैं इसका एहसास कीजिये तो ज़रा आप अपने आप को इस सवाल से घिरे पाएंगे कि - "भारत हमसे क्या चाहता है ?"
आपके पास कोई ज़वाब न होगा कारण साफ़ है कि इस एंगल से हम सोच ही कहां रहें हैं.. अचानक आए सवाल के प्रहार से अचकचाना स्वाभाविक है . जी तो भारत आपसे क्या चाहता है.. आप जो भी है नेता अफ़सर व्यापारी अथवा आम आदमी जो भी हैं देखें भारत आपसे कुछ खास नहीं मांग रहा सच तो सोचिये क्या मांग रहा है..?
कुछ सोचा आपने ? कुछ याद आया आपको ?  न तो सुन लीजिये भारत आपसे न तो विश्व के सापेक्ष किसी तरह के कीर्तीमान मांग रहा है. न ही उसे सदनों किसी भी प्रकार के वाद-विवाद आरोप-प्रत्यारोप चाह रहा है अब तो बेचारा चुप हो गया उसे गोया कुछ नहीं चाहिये देखो न ध्यान से देखो वो तो हमसे केवल "ईमानदार-संतान" होने का कौल मांग रहा है.. शायद हम   दें पाएं.. !! 

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