12.12.11

अपनों के प्रति 'क्रूर ज्ञानरंजन - मनोहर बिल्लौरे

  ज्ञान जी पचहत्तर  साल के हो गये। एक ऐसा कथाकार जिसने कहानी के अध्याय में एक नया पाठ जोड़ा। अपना गुस्सा ज्ञान जी ने किस तरह अपनी कहानियों में उकेरा है। पढ़ने-लिखने वाले सब जानते हैं। उसके समीक्षक उसमें खूबियाँ-खमियाँ तलाशेंगे। उत्साह की बात यह है कि आज भी वे पूरे जवान हैं और स्फूर्त भी. उनके साथ सुबह की सैर करने में कभी-हल्की सी दौड़ लगाने जैसा अनुभव होता है। वे अब भी मतवाले हैं जैसे कालेज दिनों में जैसे बुद्धि-भान विधार्थी रहते हैं। साहित्य, समाज, संस्कृति - यदि साहित्य को छोड़ दिया जाये तो अन्य सभी कलाओं के लिये उन्होंने क्या किया, यह बखान करने की बहुत आवश्यकता  मु्झे अभी इस समय नहीं लगती. यह काम कोर्इ लेख या कोइ   एक किताब कर पाये यह संभव भी नहीं। बीते 75 सालों में बचपन और किशोरावस्था को छोड़ दिया जाये (किशोर को कैसे छोड़ दें वह तो उनकी एक कहानी में जीवित मौजूद है - समीक्षकों-आलोचकों ने उसे 'अतियथार्थ कहा है...) तो - उन्होंने 'सच्चे संस्कृति-कर्मी और - धर्मी भी - के जरिये जो कुछ किया उसका बहुत सारा अभी भी छुपा हुआ है, ओट से झांक कर भी जाना नहीं जा सका है - क्योंकि वह इस तरह पैक्ड और सील किया हुआ है और उनकी और उनके चाहने वालों की निज़ी मज़बूत तहखाने की तिजोरियों में तालाबंद है जो उनके और षायद सुनयना जी के? अलावा कोर्इ नहीं जानता, पाशा और बुलबुल भी नहीं। उनके चाहने वाले अनेक साथियों के पाास उनके साथ बिताये गये समयों की ढेरों यादें, संस्मरण और किस्से हैं - जो धीरे-भीरे बाहर आयेगा। बहुत सीमित ही उन तहखानों से निकलकर बाहर आया है और उन्होंने ही उनकी निज़ी और सार्वजनिक जिन्दगी के बारे में बहुत सी बातें प्रकाशित की हैं। अभी 'श्रेष्ठतम और सर्वोत्तम और  पर्फ़ेक्शन  से भरा-पूरा अभी, आज तक बाकी है. कब रहस्य खुलेंगे? कहा नहीं जा सकता। वे लगातार सचेत, जागृत और सक्रिय और चेतन रहे थे, हैं, और रहेंगे ऐसा हमारा विश्वास कहता है। चेतना की जो तरंगमय लहरे उनकी वाणी और देह-भाषा से प्रकाशित होती हैं, वे प्रेरणा को उदग्र करती हैं, गहरा बनाती हैं और प्रगति का वितान रचती हैं। उनके साथ इस षहर में मैंने लगभग 25 से 30 साल का यह अर्सा गुजारा है। लेखन में बचपन से जवान हुआ हूँ। जब उनसे दूर होता हूँ या रहता हूँ एक दमकदार इन्द्रधनुषी हासिये में वे मुझे जब तब दिखार्इ देते रहते हंै। चूँकि, उन्होंने ताजिन्दगी ऐसे ही लागों की वकालत की है - जो वंचित किये गये हैं और हैं, और जबरन किये जा रहे हैं। मैं और मुझ जैसे अनगिनत लोग उनकी रचना और संरचना का पाठ पहली कक्षा से पढ़ रहे हैं और उस ज्ञान (जानकारियाँ नहीं) से लगातार ऊर्जा पाकर समृद्ध हुए और होते रहेंगे। यह सिलसिला मुसलसल जारी है और रहेगा, रुकने वाला नहीं। इसी विष्वास के साथ जबलपुर में उनका पचहत्तरवां  जन्म-दिन पाशा  और बुलबुल की तरफ से हो रहा है। हम सब ने इस दिन (21नवंबर) को मनाने के लिये उनकी स्वीकृति पाने के लिये बड़ी मशक्क़त की है। आयोजन में डिनर के अलावा और क्या-क्या होगा कहा नहीं जा सकता। इस बात की ख़बर सबको लग चुकी है. जिनको नहीं लगी है उनका रिष्ता ज्ञानरंजन से गहरा नहीं है. हम उनका सानिध्य पाते रहे हैं और लम्बे समय तक पाते रहेंगे यह विष्वास हमारा बहुत प्रबल और साथ ही दृढ़ भी है, सपने-में-भी। अभी पांच, छह, और सात नवंबर 11 को इन्दौर में एक विशेष जैविक-कला-प्रदर्शनी के दौरान भी यह तत्थ सबके सामने खुलकर उजागर हुआ. उस दौरान प्रदर्शनी में उन्होंने स्वयं बार-बार कुर्सियों सहित कर्इ चीजों को व्यवसिथत किया और करने के लिये हमें निर्देषित दिया; हम में से कुछ ने इस मौके पर भी उनकी प्यार से भरीपूरी डाँट और फटकार सुनी और उनकी पीठ पीछे मजा लिया. उनके बारे में देर तक गहरी और आत्मीय बातचीत की। उन्हें थोड़ा भी अवैज्ञानिक होने पर गुस्सा आ जाता है, अपनों के प्रति गुस्से में भी उनकी बाडी-लेंग्वेज आत्मीय होती है। आयोजनों की तैयारी या समापन के दौरान वे अचानक और एकाएक एक लय में अपने थैले को कंधे पर लटकाते हैं, उसे थोड़ा सा ऊपर की ओर झटका सा देकर और किन्हीं अपनों को अगल-बगल लगाकर चाय, काफी या नाष्ता कराने ले जाते हैं - जो भूखा है उसे तुरंत खाने-पीने भेज देते हैं या साथ लेकर जाते हैं, जो उन्हें थका सा दिखा उसे वापस ठिये पर लौटकर आराम के लिये मज़बूर कर देते हैं - चेताते हुए - 'कि अब यहाँ दिखना नहीं... यह कहते हुए उनके दाहिना हाथ की मुटठी बंधती है और तर्जनी सीधी होकर दो-तीन बार तेज़ी से आगे-पीछे होती है, फिर वे वहाँ रुकते नहीं हैं तेजी से अपनी मस्त चाल से में किसी कंधे पर हाथ टिका अपनी खास लय से चल देते हैं।उनके साथ सुबह की सैर करते समय मैंने इस लय को पकड़ा। क्या यह एक निरंतर विचार की लय नहीं जिस पर जिस पर शरीर ताल देता हैै?पहल-सम्मानों और दूसरे आयोजनों मैं उनके बायें हाथ में सिगरेट का पैकेट होता था, जब कार्यक्रम अपनी गर्मजोषी में रहता था तब वे बाहर कष लगाते हुए सामने और आजू-बाजू वाले को डिब्बी बढ़ा देते थे, पर कर्इ सालों से उन्हें सिगरेट पीते हुए नहीं देखा। यह है उनके 'विल-पावर का एक कमाल. कमालों की कमी नहीं उनके खज़ाने में।अपने आसपास पर उनकी दृष्टि  हमेशा गहरी बनी रहती है। उनके पढ़ने की स्पीड बहुत तेज है। यदि उनके कायदे से कोर्इ बाहर जाता है तो वह टीम से भी बाहर हो जाता है।इंदौर में प्रदर्शनी के दौरान चारेक लोगों के बीच बैठे अचानक तर्जनी साधी कर बोले - ''मैं अपनों के प्रति बहुत क्रूर हूँ।
यह बात तो हम सब बहुत पहले से ही जानते और अनुभव करते रहे हैं - प्रेम में भरी क्रूरता या इसके उलट, क्रूरता में भरा प्रेम - ज्ञान जी एक पूर्ण मनुष्य की परिभाषा रचते हैं. अपने किसी साथी की तकलीफ वे गहरार्इ से महसूस कर, संभवता से बढ़कर उसकी मदद करते हैं. यह बात उनसे जुड़े सभी लोगों को पता है। पिता, माँ, भार्इ, दोस्त, प्रेमिका, और स्वजन, तथा पड़ोस के प्रति कू्ररता से सराबोर उनकी कहानियाँ भी पढ़ने वाले सभी पाठक भी उनके इस गुस्से से परिचित हैं। यह सिलसिला केवल कहानियों भर में नहीं है उनके पूरे प्रकट जीवन में है, जो बहुत साफ, स्पष्ट और पारदर्शी है। कोर्इ उनकी डांट से बच नहीं सकता. इस डांट और तथाकथित कू्ररता में अपनत्व और स्नेह-प्रेम से सराबोर दिल और दिमाग है, जो अपने साथी की हर एक गतिविधि को माइक्रोस्कोपिक दृषिट से देखता-परखता है और तदनुसार व्यवहार करता है। यहाँ बस इतना ही, आगे फिर कभी और।
अंत में इतना और जोड़ना चाहूँगा कि -हम उनका सानिध्य पाते रहें हैं और आजीवन पाते रहेंगे यह विष्वास हमारा बहुत प्रबल, गहरा और साथ ही दृढ़ भी है, सपने-में-भी।


मनोहर बिल्लौरे,
1225, जेपीनगर, अधारताल,
जबलपुर 482004 (म.प्र.)
मोबा. - 89821 75385

9.12.11

कापी पेस्ट फ़्रोम नुक्कड़ : आल द बेस्ट


राष्ट्रीय सेमिनार लाइव... डेटलाइन- कल्याण (मुम्बई) भाग-II

भोजनावकाश के बाद प्रथम चर्चा सत्र प्रारम्भ हो चुका है। मंच पर विशिष्ट जन आसन जमा चुके हैं। इस सत्र में चर्चा का विषय है- हिंदी ब्लॉगिंग : सामान्य परिचय पूरी जानकारी के लिए और टिप्‍पणी देने के लिए यहां पर क्लिक की...

मुबई में हिन्‍दी चिट्ठाकारों ने नहीं मचाया धमाल : खूब गंभीरता से विमर्श हुआ

आज हम मुम्बई पहुँच गये हैं। यह ब्लॉगरी जो न जगह दिखाए। जी हाँ, हम ब्लॉगरी की डोर पकड़कर अपने घर से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कल्याण इलाके में एक महाविद्यालय में अपने ब्लॉगर मित्रों के साथ कुछ खास चर्चा के लिए इकठ्ठा हो गये हैं। किस-किसका जुटान हो चुका है यह बाद में। उद्‌घाटन सत्र शुरू होने जा रहा है। उसके पहले पहली  पूरा पढ़ने और टिप्‍पणी...

THURSDAY, DECEMBER 08, 2011 27 COMMENTSदेश-विदेश के हिन्‍दी चिट्ठाकारों का मुंबई में जमावड़ा :क्‍या आप भी इसमें दिखाई दे रहे हैं

मुंबई चिट्ठाकारों से समृद्ध होती जा रही है एक संगोष्‍ठी आज हुई अ‍नीता कुमार जी के महाविद्यालय में दूसरी हो रही है या हो रही है पुस्‍तक विमोचित कार्य सभी उचित वैसे तो जुट गए हैं चिट्ठाकार खाने में और पीने में भी पियक्‍कड़ चिट्ठाकारों को पहचानिए। बाकी को भी जानिए अभी तो चित्रों की लीजिए बानगी कल जीवंत प्रसारण होगा आते हैं हम अभी आप संभल जाइये यहां...
चिट्ठा क्‍या है विचारों की आग की तपन को मानस तक पहुंचाने का तंदूर जिससे न तो देश दूर है और न विदेश। प्रत्‍येक नेक तन मन के आसपास है जिसका बसेरा। ऐसा नूतन है सवेरा जो प्रात:काल की सूर्य की ऊर्जा प्रदायी किरणों के तौर पर मन में उतरता है और बस जाता है। चिट्ठा कौन बना सकता है प्रत्‍येक जीवधारी या निर्जीव भी चिट्ठे पर सक्रिय रह सकता है। निर्जीव की सक्रियता के लिए क्रिया...

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8.12.11

वादा न निभा पाने का दर्द

वादा न निभा पाने का दर्द मुझे खूब साल रहा है.
अनिता कुमार जी एवम मनीष मिश्र जी से विनत भाव से क्षमा चाहता हूं

Sir 
My college is organizing a seminar on  'Role of Computer Mediated Communication in Higher Education and Career Building with special Reference to Blogging'
I would like to invite you as a resource person to speak on 'Webcasting & Podcasting'
Pl. accept and confirm.
Thank you
Anita
Dept. of Psychology
N.G.Acharya & D.K. Marathe College
of Arts,Science & Co9mmerce
N.G.Acharya Marg,
Chembur
Bombay-400071.

7.12.11

मुंबई न पहूंच पाने पर खेद



ल्याण पश्चिम स्थित के एम अग्रवाल कॉलेज एवं अनिता कुमार जी के कॉलेज के कार्यक्रम में मुंबई जाना निश्चित हुआ था। पर स्वास्थ्यगत कारणों से उपस्थित होने में असमर्थ हूँ। ठंड लगने से अचानक स्वास्थ्य खराब हो गया। इसलिए के एम अग्रवाल कॉलेज के कार्यक्रम संयोजक, अनिता कुमार जी एवं अन्य मित्रों से क्षमा चाहूंगा। न पहुंच पाने के लिए खेद व्यक्त करता हूँ।

ऐसा गिरीश दादा ने फ़ोन पर बताया और मुझे संदेश आप तक पहुंचाने कहा।

2.12.11

वाई दिस कोलावेरी डी...?



          वाई दिस कोलावेरी डी...? युवाओं के अब तक की पसंदीदा गीतों में सबसे मशहूर बन गया है..? इस वायरल फ़ीवर को सबसे ज़्यादा युवाओं ने क्यों पसंद किया इस  सवाल का ज़वाब आप किसी भी बच्चे से ले सकतें हैं यकी़नन वो कहेगा इस का संगीत बेहतरीन है....जी हां तभी तो एक माह में ही  यू-ट्यूब पर सर्वाधिक देखा सुना गया ये गीत . जी यक़ीन नहीं ..आया .. यक़ीन कीजिये  मेरे इस आलेख के लिखे जाने तक 678,032  दर्शक जुटा चुका यह गीत इसके आगे यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि 25 Nov.2011 ko अपलोड हुए  Why This Kolaveri Di के फ़ीमेल वर्जन को दस लाख दर्शक मिले..   Nov 24, 2011 को  अपलोड यह गीत  बेशक सबसे सरताज़ नम्बर बन गया है. जबकि 31 अक्टूबर 2010 को अपलोड  मुन्नी की बदनामी एक बरस में 6,126,265   जी हां शीला देवी को केवल 2,804,735 दर्शक मिले .
  इस गीत के बारे में युवाओं का कहना है कि गीत का संगीत संयोजन मधुर है.. संगीत में माधुर्य है.. सो वी लाइक दिस .....!!
इतना ही नही हुज़ूर इस गीत का गुजराती संस्करण भी बन चुका है रीमिक्स वगैरा भी  हैं.. यानी कुल मिला कर ज़बरदस्त हिट गीत .......... आप भी सुनिये एक बार अपनी उम्र को पीछे ले जाएं
   

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...