16.7.11

वेड्नेस डे : "स्टुपिट कामन मैन की क्रांति "


wednesday  फ़िल्म को देखते ही अहसास हुआ  एक कविता का एक क्रांति का एक सच का  जो कभी भी साकार हो सकता है.अब इन वैतालों का अंत अगर व्यवस्था न कर सके तो ये होगा ही "अपनी पीठ पर लदे बैतालो को सब कुछ सच सच कौन बताएगा शायद हम सब .. तभी एक आमूल चूल परिवर्तन होगा... चीखने लगेगी संडा़ंध मारती व्यवस्था , हिल जाएंगी  चूलें जो कसी हुईं हैं... नासमझ हाथों से . अब आप और क्या चाहतें हैं ?
 अब भी हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठ जाना. ..?

सच तो ये है कि अब आ चुका है वक़्त सारे मसले तय करने का हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठना अब सबसे बड़ा पाप होगा 

      



14.7.11

मेरी पीठ पर लदे बैतालो

मेरी पीठ पर लदे बैतालो
तुम जो मेरी पीठ पर लदे हो
तुम जो,
मुझसे सवालों पे सवाल किया करते हो
तुम एक नहीं हो
आज़ के दौर में
तुम्हारा
एक रैकेट है
मुझे मालूम है 
तुम मुझे कहानी सुनाओगे हर बार
एक नई कहानी 
तब तुम मुझे दिखाई दोगे
पास आती मौत के से
मुझे बोलना होगा 
सच की खातिर जिसका सामना तुम 
नहीं कर पाते हो
कसाब को बिरयानी 
मुझे डंडॆ खिलाते हो
तुम जो सत्ता हो
तुम जो आकण्ठ...?
खैर छोड़ो
तुम्हारा क्या दोष तुम 
जन्मे ही उसी तरीके से हो
जिन को तुम मुझ पर आज़माते हो
जिस दिन हमने चाहा उस दिन शायद 
तुम तबाह हो ही जाओगे 
वैतालो बताओ :-"मैं क्यों हूं आज़ाद भारत में आज़ादी की तलाश में ?
बोलो बोलो ज़ल्दी बोलो वरना तुम्हारे टुकड़े टुकड़े !!

   

12.7.11

मेरा डाक टिकिट : गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

                   
इस स्टैम्प के रचयिता हैं
 ब्ला० गिरीश के अभिन्न मित्र
राजीव तनेजा
वो दिन आ ही गया जब मैं हवा में उड़ते हुए
अपना जीवन-वृत देख रहा था..
             मुद्दत   से मन में इस बात की ख्वाहिश रही कि अपने को जानने वालों की तादात कल्लू को जानने वालों से ज़्यादा और जब मैं उस दुनियां में जाऊं तब लोग मेरा पोर्ट्फ़ोलिओ देख देख के आहें भरें मेरी स्मृति में विशेष दिवस का आयोजन हो. यानी कुल मिला कर जो भी हो मेरे लिये हो सब लोग मेरे कर्मों कुकर्मों को सुकर्मों की ज़िल्द में सज़ा कर बढ़ा चढ़ा कर,मेरी तारीफ़ करें मेरी याद में लोग आंखें सुजा सुजा कर रोयें.. सरकार मेरे नाम से गली,कुलिया,चबूतरा, आदी जो भी चाहे बनवाए. 
जैसे....?
जैसे ! क्या जैसे..! अरे भैये ऐसे "सैकड़ों" उदाहरण हैं दुनियां में , सच्ची में .बस भाइये तुम इत्ता ध्यान रखना कि.. किसी नाले-नाली को मेरा नाम न दिया जाये. 
       और वो शुभ घड़ी आ ही गई.उधर जैसे ही गैस सिलेंडर के दाम बढ़े इधर अपना बी.पी. और अपन न चाह के भी चटक गए. घर में कुहराम, बाहर लोगों की भीड़,कोई मुझे बाडी तो कोई लाश, तो साहित्यकार मित्र पार्थिव-देह कह रहे थे. बाहर आफ़िस वाला एक बाबू बार बार फ़ोन पे नहीं हां, तीन-बजे के बाद मट्टी उठेगी की सूचनाएं दे रहा था. हम हवा में लटके सब कार्रवाई देख रए थे.जात्रा निकली  जला-ताप के लोग अपने धाम में पहुंचे. शोक-सभाओं में किसी ने प्रस्ताव दिया 
"गिरीश जी की अंतिम इच्छा के मुताबिक हम सरकार से उनकी स्मृति में गेट नम्बर चार की रास्ता को उनका नाम दे दे"
दूसरे ने कहा न डाक टिकट जारी करे,
तीसरे ने हां में हां मिलाई फ़िर सब ने हां में हां ऐसी मिलाई जैसे पीने वाले सोडे में वाइन मिलाते हैं..और एक प्रस्ताव कलेक्टर के ज़रिये सरकार को भेजना तय हुआ.
              कलैक्टर साब को जो समूह ग्यापन सौंपने गया उसने जब हमारे गुणों का बखान किया तो "आल-माइटी सा’ब" को भी मज़बूरन हां में हां मिलानी पड़ी. पेपर बाज़ी हुई सवा महीना बीतते बीतते सी एम साब ने गली पर लिखवा दिया "गिरीश बिल्लोरे मार्ग" केंद्र सरकार ने डाक टिकट जारी किया. हम बहुत खुश हुए.हमारी आत्मा मुक्ति की ओर भाग रही थी कि उसने मुड़ के देखा .. इस पत्थर पर हमने गोलू भैया के कुत्ते को "शंका निवारते" देखा तो सन्न रह गये. सोचा डाकघर और देख आवें सो पोस्ट आफ़िस में ससुरे डाक-कर्मी गांधी जी वाले ख़तों पे तो  तो सही साट ठप्पा लगाय रहे थे .  जिंदगी भर सादा जीवन उच्च विचार वाले हम एकाध दोस्त ही जानतें हैं हमारी चारित्रिक विशेषताएं पर मुए डाक कर्मी  लैटर पे बेतहाशा काली स्याही पोत रहे थे.. पूरा मुंह काला किये पड़े थे. अब बताओ हज़ूर तुम्हारे मन में ऐसी इच्छा तो नईं है.. होय तो कान पकड़ लो.. मूर्ती तो क़तई न लगवाना.. वरना


       आकाश का कौआ तो दीवाना है क्या जाने
         किस सर को छोड़ना है, किस सर पे छोड़ना है..?   

11.7.11

जब हिंदी ब्लाग बंद हो जाएंगे तो क्या होगा...?

ब्लागस्पाट के ज़ीरो पाईंट बनते ही सारे हिंदी ब्लाग जो ब्लाग स्पाट पे हैं कपूर हो जाएंगें...अगर आज़ देर रात तक ये हो गया तो...?तो क्या "असली वारिस" की सेवा में लग जाएंगे छाछ -माछ सब हासिल होगा उधर. अपने पाबला जी ने बचाव का तरीक़ा बता दिया.. इधर देखिये तो ज़रा !
हिंदी ब्लागिंग के बंद होते ही विश्व में हिंदी ब्लागिंग का जो होगा सो होगा अपने ललित भैया बोले:-डोमिन व्यापार फ़ल फ़ूल जाएगा..?
कनिष्क भाई बोले :- "दूसरी सबसे अहम बात यह है हर रोज का डर . कभी कोई बोलता है ,कि भैया .. ब्लॉग बंद होने जा रहा , कोई गूगल ग्रुप पर आश्रित है. कोई फेसबुक पर ही दिन, रात और आंदोलन छेड़ता है और देश बदल देता है. कहाँ है हम लोग ? किस कुएं में . चुकि  परिकल्पना की उपलब्धि यह रहीं कि वह हम सब को एक मंच पर लाने में कामयाब रही है. अतः इस मंच से मैं अपनी व्यथा जाहिर कर रहा हूँ . रविन्द्र जी और तमाम वरिष्ठ जन , जिन्हें दुनियादारी और व्यवस्था की समझ कबीले तारीफ है , उनसे आग्रह करता हूँ , कि हिंदी ब्लॉग के समक्ष कुछ उद्देश्य रखे जाए . कुछ रणनीति बने और कुछ ठोस पहल हो. यह नहीं चलेगा , जिसे भड़ास निकालने के लिए ब्लॉग जाना जाये. यह न्यू मीडिया के हिंदी प्रेमियों की जमात है, इसे जगाना होगा और मानक और उद्देश्य तय करने होंगे." बहरहाल कनिष्क जी तो खुद साधन सम्पन्न हैं वे ब्लागिंग को जिस दिशा लाना चाह रहे हैं वो तो करना ही होगा हम सबको यदि आज़ ब्लागर बंद न हुआ तो. 
                      अब पाबला जी जो दो बरस में पांच-सैकड़ा ब्लागर्स को बधाई दे चुके है जन्म-दिन  की वो बंद हो जाएगी कोई किसी से मिठाई न मागेगा. और ये "परिकल्पना-ब्लागोत्सव" शायद न हो पाए पूरा 
           अधूरे तो कई सपने रह जाएंगें पर एक बात पूरी होगी.. शाम को हम दौनों यानी मै और सुलभा जी मिल के गाएंगे :- "ये तेरा घर किसी को देखना हो गर "
          अविनाश वाचस्पति क्या करेंगे, ये वो बताएंगे पर समीर लाल जी के बारे में पक्क़ी खबर छन-छन के आ रही है कि उनने www.juniorufo.com और www.udantashtari.com से डोमिन बुक करा लिये हैं. उस पर पर वे जूनियर के मिल के पुरानी यानी ब्लाग स्पाट वाली पोस्टों की प्रदर्शनी लगाएंगे, 
      क्या पूछा आपने ? हम चर्चा किधर करेंगे..? वहीं बैमबज़र पे 

6.7.11

बाप कर्ज़दार न हो शराब के ठेके के..

 सैलानियों ने देखी नर्मदा की ताक़त 
खूबसूरत संग-ए-मरमरी रास्ता
नर्मदा का...
खूबसूरत पहाड़ियां 
अठखेलियां करती नर्मदा की लहरें
उसी नर्मदा में
जो जीवन दात्री है
मेरी तुम्हारी हम सबकी
सच 
यहीं नर्मदा की भक्ति से सराबोर
आस्थाएं 
बह बह कर आतीं हैं..
नारियलों के रूप में 
उस सफ़ेद पालीथिन में
समेट लाते हैं ये नंगे-अधनंगे बच्चे
स्कूल से गुल्ली मार के
देर शाम तक बटोरे नारियल
बनिये को बेच 
धर देते हैं हाथ में
बाप के पैसे जो नारियल बेच के लातें हैं
ताकि
बाप कर्ज़दार न हो 
शराब के ठेके के.. 


4.7.11

कहिए ----एक और,एक और....

                                कविता पद ओहदे डिग्री  किसी भी चीज़ से प्रतिबंधित नहीं कविता कविता है... उसमें बनने और फिर  बने रहने की क्षमता होती है. कविता क्या है शब्दों का संयोजन ही है न..? न भाव बिना कविता संभव कहाँ ..? भाव  शब्दों के साथ इतने बहुत करीब होते हैं की दिखाई नहीं देते कभी शब्द कभी भाव ... तभी तो कविता का एहसास करते हैं हम आइये जस्टिस कुमार शिव की शब्द संयोजना ''तुमने छोड़ा शहर '' को सुने अर्चना चावजी के स्वरों में  जिसे हमने लिया है उनके ब्लॉग ''अमलतास'' से ......गिरीश बिल्लोरे मुकुल   

कुमार शिव का गीत सुनिए 

 

संक्षिप्त परिचय

कुमार शिवजन्म 11 अक्टूबर 1946 को कोटा में। वहीं शिक्षा और वकालत का आरंभ, राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर बैंच और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत, अप्रेल 1996 से अक्टूबर 2008 तक राजस्थान उच्चन्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए 50,000 से अधिक निर्णय किए, जिन में 10 हजार से अधिक निर्णय हिन्दी में। वर्तमान में भारत के विधि आयोग के सदस्य। साहित्य सृजन किशोरवय से ही जीवन का एक हिस्सा रहा। यह ब्लाग 'अमलतास' उन की रचनाओं के माध्यम से पाठकों से रूबरू होने का माध्यम है।

- दिनेशराय द्विवेदी   




3.7.11

परिकल्पना ब्लागोत्सव की एक झलक जीवन के रंगमंच से ...चाँद के पार ....


वेब दुनिया इंदौर की वरिष्ठ सदस्या स्मृति जोशी को हिंदी जगत में एक प्रखर लेखिका के रूप में जाना जाता है . अपने आलेखों में नए और लालित्यपूर्ण विंबों के माध्यम से सामाजिक जनचेतना को आयामित करने में इन्हें महारत हासिल है . विगत दिनों उनके बेस्ट वेब फीचर कठोर परंपरा का भीना समापनके लिए उन्हें लाडली मीडिया अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें दूसरी बार प्राप्त हुआ है . चाँद के पार स्तंभ के अंतर्गत प्रस्तुत है उनका एक चर्चित ललित निबंधबदली से निकला है चाँद ….!
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नहीं जानती अं‍तरिक्ष के इस चमकीले चमत्कार से मेरा क्या संबंध है लेकिन जब भी कुछ बहुत अच्छा लिखने का मन होता है चाँद मेरी लेखनी की नोंक पर बड़े अधिकार के साथ आ धमकता है। यूँ तो मेरी लेखनी की कुछ बातें खुद मुझे हैरत में डाल देती है।

ब्लागोत्सव 2011 में प्रकाशित प्रसारित हो रही पोस्ट की इन दिनों उसी तरह प्रतीक्षा की जा रही है जैसे कोई पहुना की बाट जोहता हो. यही तो एक अदभुत परिकल्पना है जो अनेकों को एक सूत्र में पिरोती है. 
देखिये ये पोस्ट  



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प्रस्तुति :  श्रीमति अर्चना चावजी
               एवम गिरीश मुकुल

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...