21.8.08

कथा महोत्सव-2008


सौजन्य =>पूर्णिमा जी
कथा महोत्सव-2008 अभिव्यक्ति, भारतीय साहित्य संग्रह तथा वैभव प्रकाशन द्वारा आयोजित
अभिव्यक्ति, भारतीय साहित्य संग्रह तथा वैभव प्रकाशन की ओर से कथा महोत्सव २००८ के लिए हिन्दी कहानियाँ आमंत्रित की जाती हैं।
दस चुनी हुई कहानियों को एक संकलन के रूप में में वैभव प्रकाशन, रायपुर द्वारा प्रकाशित किया जाएगा और भारतीय साहित्य संग्रह http://www.pustak.org/ पर ख़रीदा जा सकेगा।
इन चुनी हुई कहानियों के लेखकों को ५ हज़ार रुपये नकद तथा प्रमाणपत्र सम्मान के रूप में प्रदान किए जाएँगे। प्रमाणपत्र विश्व में कहीं भी भेजे जा सकते हैं लेकिन नकद राशि केवल भारत में ही भेजी जा सकेगी।
महोत्सव में भाग लेने के लिए कहानी को ईमेल अथवा डाक से भेजा जा सकता है। ईमेल द्वारा कहानी भेजने का पता है- teamabhi@abhivyakti-hindi.org डाक द्वारा कहानियाँ भेजने का पता है- रश्मि आशीष, संयोजक- अभिव्यक्ति कथा महोत्सव-२००८, ए - ३६७ इंदिरा नगर, लखनऊ- 226016, भारत
महोत्सव के लिए भेजी जाने वाली कहानियाँ स्वरचित व अप्रकाशित होनी चाहिए तथा इन्हें महोत्सव का निर्णय आने से पहले कहीं भी प्रकाशित नहीं होना चाहिए।
कहानी के साथ लेखक का प्रमाण पत्र संलग्न होना चाहिए कि यह रचना स्वरचित व अप्रकाशित है।
प्रमाण पत्र में लेखक का नाम, डाक का पता, फ़ोन नम्बर ईमेल का पता व भेजने की तिथि होना चाहिए।
कहानी के साथ लेखक का रंगीन पासपोर्ट आकार का चित्र व संक्षिप्त परिचय होना चाहिए।
कहानियाँ लिखने के लिए A - ४ आकार के काग़ज़ का प्रयोग किया जाना चाहिए।
ई मेल से भेजी जाने वाली कहानियाँ एम एस वर्ड में भेजी जानी चाहिए। प्रमाण पत्र तथा परिचय इसी फ़ाइल के पहले दो पृष्ठों पर होना चाहिए। फ़ोटो जेपीजी फॉरमैट में अलग से भेजी जा सकती है। लेकिन इसी मेल में संलग्न होनी चाहिए। फोटो का आकार २०० x ३०० पिक्सेल से कम नहीं होना चाहिए। कहानी यूनिकोड में टाइप की गई हो तो अच्छा है लेकिन उसे कृति, चाणक्य या सुशा फॉन्ट में भी टाइप किया जा सकता है।
कहानी का आकार २५०० शब्दों से ३५०० शब्दों के बीच होना चाहिए।
कहानी का विषय लेखक की इच्छा के अनुसार कुछ भी हो सकता है लेकिन उसमें मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था होना ज़रूरी है।
इस महोत्सव में नए, पुराने, भारतीय, प्रवासी, सभी सभी देशों के निवासी तथा सभी आयु-वर्ग के लेखक भाग ले सकते हैं।
देश अथवा विदेश में हिन्दी की लोकप्रियता तथा प्रचार प्रसार के लिए चुनी गई कहानियों को आवश्यकतानुसार प्रकाशित प्रसारित करने का अधिकार अभिव्यक्ति के पास सुरक्षित रहेगा। लेकिन निर्णय आने के बाद अपना कहानी संग्रह बनाने या अपने व्यक्तिगत ब्लॉग पर इन कहानियों को प्रकाशित करने के लिए लेखक स्वतंत्र रहेंगे।
चुनी हुई कहानियों के विषय में अभिव्यक्ति के निर्णायक मंडल का निर्णय अंतिम व मान्य होगा।
कहानियाँ भेजने की अंतिम तिथि १५ नवंबर २००८ है।
यह विवरण http://www.abhivyakti-hindi.org/kahaniyan/2008/kathamahotsav2008.htm पर वेब पर भी देखा जा सकता है।

18.8.08

विश्व छायांकन दिवस पर विशेष : जबलपुर के महान छायाकार:-स्व.शशि यादव

शशिन यादव ,जी ने ये सारे चित्र समकालीन सेलीब्रिटीज़ के जबलपुर प्रवास के दौरान ही लिए थे ।समीर लाल जी उर्फ़ उड़ने वाली प्लेट ने शशिन जी के फोटोस की एक्जीबिशन जबलपुर में लगाई थी जब समीर जबलपुर में थे ..... हर साल मिलन फोटो ग्राफिक सोसायटी "मिफोसो" उनकी याद में प्रतियोगिता "ये जाने अनजाने छायाकार " शीर्षक से आयोजित करती है। हर साल कई केटेगरी में पुरस्कृत होते हैं छायाकार याद आते हैं शशिन जी

बच्चन जी
पलंग की निवार का आनंद लेती
"गौरैया"

मुक्तिबोध

उपेन्द्र नाथ "अश्क"
जबलपुर के प्रतिष्ठित छायाकार स्वर्गीय शशिन यादव , के फोटोग्राफ'स श्वेत-श्याम श्रेणी के है उस दौर में रंगीन छाया चित्रों का न तो दौर था और न ही उस समय रंगीन फोटो ग्राफिक केमेरा का विकास ही हो सका था । फ़िर गुजरात से रोज़गार की तलाश में आया कोई शशिनजी जैसा युवक कैसे संसाधन के तौर पर जुगाड़ पाता । किंतु वे स्थानीय महत्त्व पूर्ण अवसरों को न चूकने वाले शशिन जी ने उन अवसरों को नहीं छोडा जिनसे अचानक सामना हुआ उनका .............
[सभी फोटो शशिन जी के पुत्र श्री अरविंद यादव जी के सौजन्य से ]

15.8.08

माँ....तुझे प्रणाम...माँ तुझे सलाम


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अभिनव बिंद्रा, की कोशिश से स्वर्ण किरण ,मेरे आँगन में बिखरीं ,
और वो जो -वो पैरों से नहीं हौसलों से चलता है !"
जी हाँ वो जो तारे जमीं पर, ले आता है .....जी हाँ वो जीमज़दूर है किसान है
जी हाँ वही जो आभास -दिलाता है सुइश्मीत , सी यादें जो पलकों,की किनोरें भिगो देतीं हैं उन सबको मेरा सलाम
माँ तुझे प्रणाम माँ तुझे सलाम

13.8.08

"वो पैरों से नहीं हौसलों से चलता है !"



जीवन को लहरों से बचा लाया है ये शख्स पैरों से नहीं हौसलों से चला करता हैं। इसे आप कोई भी नाम दे सकतें है राम,रहीम,जान,कुलवंत,मैं तो उसका नाम "हौसला "रख देना चाहता हूँ ।
इस पर कोई भी निगाह पड़ती है केवल संवेदना की निगाह होती है .....मुझे उसका बाहरी मदद के लिए कहा वाक्य आज तक याद है :- भैया मुझे हर मदद एक बार और अपाहिज बना देती है.......... !
उसे जीवन को सामान्य रूप से जीने की अभिलाषा है वो पूरी शायद ही हो। मेरे कवि-मन नें पंक्तियाँ गढ़ लीं "नहीं वेदना उसको कोई पर संवेदन जीवन है "
छायाकार : संतराम चौधरी ,जबलपुर /भोपाल

12.8.08

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी

तुम्हें मालूम है अपने शहर के पास के गाँव में डाक्टर जोगी आएं हैं । देखो सबको आराम दिलाने का वादा कर चुकें है......देखो भोलू अपनी नाड़ी जांच करा रहा है .......... भोलू को दवा के रूप में मिलेगी भभूत जिसका असर होगा की नहीं मुझे नहीं मालूम पर इत्ता जानती हूँ की बाबा के डेरे में फोटो वाली भगवानों में से कोई-न-कोई फोटो वाले भगवान का आशीर्वाद ज़रूर असर करेगा

अरी लाली तू ये सब मुझे कान में ऐसे बता रही है जैसे की किसी सी डी के बारे में बता रही हो........!
लाली :-अरे ,मैं कहना चाहतीं हूँ की हमको संतान चाहिए चलें डाक्टर जोगी के पास ?
अरे तू भी बे वजह बखेडा खडा करती है चल ग्वारी घाट जहाँ साक्षात शंकर भगवान की मान नर्मदा की कृपा से कितनों का भला हो रहा है ...........!

इन माँ-बेटी को देखो
ये कितनी सुखी दम्पति है



और ये खुशहाल कुटुंब .................!
जी हाँ ये बात तुमको कानाफूसी केज़रिए इस लिए बता रही हूँ प्रियतम क्योंकि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी, बेहतर है की हम तुम .............से काम चलाएं
{सभी फोटो:संतराम चौधरी जबलपुर,भोपाल ,}

9.8.08

"पुत्री वती भव: कहने में डर कैसा"




"पुत्री वती भव: कहने में डर कैसा" ताज़ातरीन समाचार एक ब्लॉग "रांचीहल्ला"से तथा समीर लाल की मज़ाहिया किंतु गहरे अर्थ वाली पोस्ट प्रेरित हो सोचता हूँ
“औरतों की दशा जितनी चिकित्सा विज्ञान ने बिगाड़ के रखी है उससे अधिक ज़िम्मेदार है मध्य वर्ग की सामाजिक विवशता यहाँ मध्यवर्ग को सरे आम अपमानित करना मेरा लक्ष्य बिलकुल नहीं है किंतु वास्तविकता यही है "पति बदलू कथानकों पे आधारित एकता कपूर छाप सीरियल देखतीं महिलाओं के ज़ेहन में घरेलू जिम्मेदारी के अलावा यह भी जिम्मेदारी है की अखबारों/संचार-माध्यमों में शाया आंकड़ों पे नज़र डाल लें किंतु जैसे ही कन्या सौभाग्यवती होती है उसे करवाचौथ,संतान सप्तमीं,वट-सावित्री जैसे व्रत वर्तूले याद रह जाते क्या महिलाओं के लिए ये सब शेष है सच यदि महिलाएं स्वयं लिंग परीक्षण के विरुद्ध एक जुट हो जाएँ तो यकीनन सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा आप सोच रहें होंगे कि किन कारणों से ये ज़बाव देही मैं महिलाओं पे डाल रहा हूँ
जन संख्या आयुक्त और महापंजीयक जेके भाटिया का कहना है कि 1981 में लड़कियों की सं`या 1000 लड़कों के मुकाबले में 960 थी जो अब गिरकर 927 पर आ गई है। पंजाब में स्थिति तो और भी बदतर है। पंजाब के जाट सिक्खों में प्रति हज़ार पुरुषों में मात्र 527 लड़कियां ही रह गयी है। इसलिए अधिकतर पंजाबी लड़कों को अपनी बिरादरी में लड़की नही मिलती और शादी के लिए उन्हें दक्षिण भारत की ओर रुख करना पड़ता है। ऐसा इसलिए भी इन राज्यों में एक संतान की संस्कृति तेजी से फैल रही है और अधिकतर लोग इसमें पुत्र को ही प्राथमिकता देते है। भाटिया के शब्दों में `पंजाब के हाथ खून से रंगे मध्य प्रदेश के मुरैना में लड़कियों की संख्या 815, राजस्थान के धौलपुर में 859, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में 789 और हरियाणा के रोहताक में 780 तक पहुंच गयी है। आंकड़े यह भी बताते है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में भ्रूण हत्या से संबंधित घटनाये ज्यादा देखने को मिलती है। जहां मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में अवांछित गर्भपात का प्रतिशत 11.7 और वांछित गर्भपात 4 प्रतिशत है, वही शहरी क्षेत्रों में यह क्रमशः 24 और 14.9 प्रतिशत है। राजस्थान का धौलपुर भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। शहरी क्षेत्रों में यह 15.9 और 8.6 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बालिकाओं और महिलाओं को नज़रअंदाज़ करके कोई विकास नहीं हो सकता। विज्ञान और टेक्नोलोजी में प्रगति का प्रयोग इंसानियत की भलाई के लिए होना चाहिए न कि उसे अजन्मी कन्याओं की हत्या के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
{आभार:-मोनिकागुप्ता-रांची हल्ला )
कल जब महिला सशक्तिकरण पर एक कार्य शाला में मुझे महाविद्द्यालय के प्राचार्य का सवाल गहराई तक छू गया कि भारतीय बुज़ुर्ग केवल "पुत्रवती भव:" का आशीर्वाद क्यों देते हैं....? यानी पुत्र मोह हमारी संस्कृति का हिस्सा है तभी तो हम "पुत्री वती भव:"कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते ।
चिंतन  पर मान्धाता  की पोस्ट :- बच्चा पैदा करने की मशीन समझ रखा है ...- भी इसी विषय के इर्द गिर्द है कदाचित
आजाद भारत की नारी शक्ति सच कुछ कारगर क़दम उठाए .............और आशीर्वाद देँ "पुत्री वती भव:" फ़िर देखी पुरूष प्रधान समाज के दृश्य सहजता से बदलने लगेंगें

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दिल्ली की बारिश और बीजिंग को लेकर लाइव इंडिया की स्टोरी देख के लगा कि ओलम्पिक खेल से ज़्यादा भारत की इन्सल्ट तुलना करके करना ही ख़बर है .... भैया प्रोड्यूसर साहब सरकार राज़ से ऐसी क्या गलती हुई कि आप दिल्ली की लगातार बरसात के बाद सडकों गलियों में भरे पानी को दो साल बाद भारत में होने वाले खेल महा कुम्भ से जोड़ कर दिखाया जिसका न तो कोई अर्थ था और न ही ज़रूरत कि इस देश की किसी अन्य देश से तुलना कर भारत को नीचा दिखाएं ।
मेरठ में उड़नतश्तरीके बारे जानकार खुशी हुई हुई ही थी की पुण्य प्रसून बाजपेयी के आगमन की ख़बर मेल इनबाक्स से निकलने को फड़फड़ा रही थी ।मैनें आनन् फानन बाजपेयी जी का स्वागत कर दिया और कह दिया है कि उडन तश्तरी .... की तरह औरों ब्लॉग को टिप्पणी तिलक ज़रूर कीजिए । अब ये कोई बात है जो ब्लॉग पर लिखूं .....तो फ़िर ब्लॉग पे लिखने के लिए क्या विषय चुक गए हैं कटाई नहीं विषय के चुक जाने का संकट अपुन को कतई नहीं अपन यानी "अपुन जेक ऑफ़ आल मास्टर ऑफ़ नन" जो ठहरे....ठेल देंगें कछु भी । यदि कुछ न सूझा तो कट पेस्ट थेरेपी जिंदाबाद ..... !
चीन में ओलोम्पिक की शुरुआत ,तिब्बतियों का विरोध,सिंग इज़ किंग , तो आपने बांच सुन लिया होगा तीन अट्ठे के बारे में ख़बर रटैया चेनल के ज्योतिषीयों ने खूब बता दिया है इस बीच मैं आपको बता दूँ आज अगले जनम मोहे बेटवा न कीजो... नेट पे आ चुकी उन्हीं की है जो समीर लाल है ५०-६० टिप्पणी तिलक ख़ुद तश्तरी में परसवातें है तब कहीं उनका.....सारी उनकी पोस्ट का पेट भरता है । बिग बी,वगैरा के ब्लॉग'स पर अपुन आप कम ही आजा रहें हैं .... अब भैया दोस्ती बराबरी वालों से ही होगी न......?

[इधर एक फोटो था जो निकाल दिया ]

टी आर पी के चक्कर में न जाने कितने जतन करने होते हैं अपुन भी एक बार अजमाइच्च....लेतें हैं ।

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...