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28.10.15

भस्म आरती

अंतस में खौलता लावा
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ....!!
तब जब तुम्हारी बातों की सुई
मेरे भाव मनकों के छेदती
तब रिसने लगती है अंतस पीर
भीतर की आग –
तब पीढ़ा का ईंधन पाकर
तब युवा हो जाता है यकायक “लावा”
तब अचानक ज़ेहन में या सच में सामने आते हो
तब
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपका
तुम से मिलता हूँ ....!!
मुस्कुराकर ....... अक्सर .........
मुझे ग़मगीन न देख
तुम धधकते हो अंतस से
पर तुम्हें नहीं आता –
चेहरे पर मुस्कान का ढक्कन
धैर्य की सरेस से चिपकाना ....!!
तुममें –मुझसे बस यही अलहदा है .
तुम आक्रामक होते हो
मैं मूर्खों की तरह टकटकी लगा
अपलक तुमको निहारता हूँ ...
और तुम तुम हो वही करते हो जो मैं चाहता हूँ ......
धधक- धधक कर खुद राख हो जाते हो
फूंक कर मैं ........
फिर उड़ा देता हूँ .........
तुम्हारी राख को
अपने दिलो-दिमाग से
हटा देता हूँ
तुम्हारी देह-भस्म
जो काबिल नहीं होती
गिरीश की भस्म आरती के ...
‪#‎गिरीश‬ बिल्लोरे “मुकुल”

28.2.11

एक साथी एक सपना ...!!


एक साथी एक सपना साथ ले
हौसले संग भीड़ से संवाद के ।
०००००
हम चलें हैं हम चलेगे रोक सकते हों तो रोको
हथेली से तीर थामा क्या मिलेगा मीत सोचो ।
शब्द के ये सहज अनुनाद .. से .....!!
००००००
मन को तापस बना देने, लेके इक तारा चलूँ ।
फर्क क्या होगा जो मैं जीता या हारा चलूँ ......?
चकित हों शायद मेरे संवाद ... से ......!!
००००००
चलो अपनी एक अंगुल वेदना हम भूल जाएं.
वो दु:खी है,संवेदना का, गीत उसको सुना आएं
कोई टूटे न कभी संताप से ......!!

17.9.10

हां सोचती तो है कभी कभार छै: बरस की थी तब वो भी तो बन गई थी दुलहनियां

एक किताब
सखी  के साथ
बांचती बिटिया
पीछे से दादी देखती है गौर से
बिटिया को लगभग पढ़ती है
टकटकी लगाये उनको देखती
कभी पराई हो जाने का भाव
तो कभी
कन्यादान के ज़रिये पुण्य कमाने के लिये
मन में उसके बड़े हो जाने का इंतज़ार भी तो कर रही है ?
इसके आगे और क्या सोच सकती है मां
हां सोचती तो है कभी कभार
छै: बरस की थी तब वो भी तो बन गई थी दुलहनियां
तेरह की थी तो गरभ में कल्लू आ गया था
बाद वाली चार मरी संतानें भी गिन रही है
कुल आठ औलादों की जननी
पौत्रियों
के बारे में खूब सोचती हैं
दादियां उसकी ज़ल्द शादी के सपने
पर ख़त्म हो जाती है ये सोच

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...