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हर मोड़ औ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले

हर मोड़ औ ’ नुक्कड़ पे ग़ालिब चचा मिले ग़ालिब की शायरी का असर देखिये ज़नाब ************* कब से खड़ा हूं ज़ख्मी-ज़िगर हाथ में लिये सब आए तू न आया , मुलाक़ात के लिये ! तेरे दिये ज़ख्मों को तेरा इं तज़ार है – वो हैं हरे तुझसे सवालत के लिये ! ************* उजाले उनकी यादों के हमें सोने नहीं देते. सुर-उम्मीद के तकिये भिगोने भी नहीं देते. उनकी प्रीत में बदनाम गलियों में कूचों में- भीड़ में खोना नामुमकिन लोग खोने ही नहीं देते. ************* जेब से रेज़गारी जिस तरह गिरती है सड़कों पे तुमसे प्यार के चर्चे कुछ यूं ही खनकते हैं....!! कि बंधन तोड़कर अब आ भी जाओ हमसफ़र बनके   कितनी अंगुलियां उठतीं औ कितने हाथ उठते हैं.? **************** पूरे शहर को मेरी शिकायत सुना के आ मेरी हर ख़ता की अदावत निभा के आ ! हर शख़्स को मुंसिफ़ बना घरों को अदालतें – आ जब भी मेरे घर आ , रंजिश हटा के आ !!

मित्र जिसका विछोह मुझे बर्दाश्त नहीं

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                       ख़ास मित्र के लिए ख़ास पोस्ट प्रस्तुत है.. आप लोग चाहें इसे अपने ऐसे ही किसी ख़ास मित्र को सुनवा  सकते ....  Your browser does not support the audio element. ऐसे मित्रों का विछोह मुझे बर्दाश्त नहीं. आप को भी ऐसा ही लगता होगा.. चलिये तो देर किस बात की ये रहा मेरा मित्र जो नाराज़ है मुझसे यह एक मात्र तस्वीर है   इनके पास जिनका हार्दिक आभारी हूं.

ललित शर्मा और विवेक रस्तोगी जी से बात चीत

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                                                    कल का दिन भारी व्यस्तताओं से परिपूर्ण रहा. ललित शर्मा शाम से ही कैमरा लगाए बैठे थे. अभनपुर से रायपुर फ़िर रायपुर से अभनपुर का रोजिया जात्री ललित शर्मा को गूगल महाराज़ ने सुंदर सी टी-शर्ट भेजी. कह तो रहे थे कि  वे कह तो रहे थे कि संयोग है किंतु मुझे ऐसा लगता है ये कास्ट्यूम खास तौर पर इसी वज़ह से पहनी गई है बहरहाल जो भी बात चीत मज़ेदार थी. बीच में नेट महाराज़ हो गये नाराज़ तो मौके का लाभ उठाने हमने कैमरा मोड़  दिया बैंगलोर की तरफ़ जहां सैण्डो बनियान पर उपलब्ध थे भाई विवेक रस्तोगी सो उनको भी टी-शर्ट पहनवा के बतियाते रहे चलिये आप भी सुन लीजिये मज़ेदार चर्चा श्री ललित शर्मा जी से बात चीत  श्री ललित शर्मा जी से बात चीत       श्री विवेक रस्तोगी जी से बात चीत   

“दिखावा खत्म : मंहगाई खत्म ”

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श्री सतीश शर्मा की कृतिकार  “ दिखावा खत्म : मंहगाई खत्म ” से लाइव बात चीत 

बोलने का अधिकार बनाम मेरा गधा, और मैं.......!!

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मेरा गधा, और मैं हम दौनों की स्थिति एक सी ही है अब करें तो क्या न करें तो क्या. सोचा जो भी सब मालिक के हवाले कर देतें हैं उसकी जो मरजी आवे कराए न हो मर्जी तो  न कराए. ज़्यादा दिमाग लगा के भी कौन सा  पुरस्कार मिलना है. मिलना उनको है जो उसके लायक होते हैं आज भतीजी आस्था को उसकी सहेली का एस एम एस मिला "अगर दुनियां में ईमानदार एवं मेहनतियों की इज्ज़त होती तो सबसे इज्ज़तदार प्राणी होता." सच यही है . आज के दौर में   इंसान और गधे की ज़िंदगी एक साथ प्रविष्ट हो रहे  साम्यवाद की आहट  से महसूस की जा सकती है. यकीन हो या न हो.यकीन न हो तो गधे से पूछ लीजिये. रात भर कलम घसीटी करने के बाद भी कोई फ़ायदा नहीं  एक गधे को भी क्या मिलता है कुम्हार की गालियाँ, या बैसाख नन्दन होने की तोहमत,.जिस दिन से  अपने राम के बुरे दिन शुरू हुए उसी दिन से मोहल्ले के हर आम और ख़ास के बीच हमको लेके सवाल उठते-उठाते रहे हैं . सुना था कि कुत्ता एक ऐसा जीव होता है कि स्वर्गारोहण में साथ रहा है किन्तु आजकल के मेरे पालित कुत्ते  पता नहीं किधर गम हो गए !  ! इन पे भरोसा कैसे और कित्ता करें ? बुरे दिन में हमारे पालतू ही सब

सर्किट हाउस भाग:-एक

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( सर्किट हाउस में   )              ब्रिटिश ग़ुलामी के प्रतीक की निशानी सर्किट हाउस को हमारे लाल-फ़ीतों ने  ठीक उसी उसी तरह ज़िंदा रखा जैसे हम भारतीय पुरुषों ने शरीरों  के लिये  कोट-टाई-पतलून,अदालतों ने अंग्रेजी, मैदानों ने किरकिट,वगैरा-वगैरा. एक आलीशान-भवन जहां अंग्रेज़ अफ़सरों को रुकने का इन्तज़ाम  हुआ करता था वही जगह “सर्किट हाउस” के नाम से मशहूर है. हर ज़रूरी जगहों पर  इसकी उपलब्धता है. कुल मिला कर शाहों और नौकर शाहों की आराम गाह .  मूल कहानी से भटकाव न हो सो चलिये सीधे चले चलतें हैं  उन किरदारों से मिलने जो बेचारे इस के इर्द-गिर्द बसे हुये हैं बाक़ायदा प्रज़ातांत्रिक देश में गुलाम के सरीखे…..! तो चलें                          आज़ सारे लोग दफ़्तर में हलाकान है , कल्लू चपरासी से लेकर मुख्तार बाबू तक सब को मालूम हुआ जनाब हिम्मत लाल जी का आगमन का फ़ेक्स पाकर सारे आफ़िस में हड़कम्प सा मच गया. कलेक्टर सा’ब के आफ़िस से आई डाक के ज़रिये पता लगा  अपर-संचालक जी पधार रहें किस काम से आ रहें हैं ये तो लिखा है पर एजेण्डे के साथ  कोई न कोई हिडन एजेण्डा  भी होता है  …?   जिसे  वे कल सुबह ही जाना जा सकेगा . दीप

ज्ञान दत्त जी का पोस्ट ... विषय चुकने का आभास दे गई

मीडिया का अनुपूरक है ब्लॉग : पियूष पांडे

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चैत्र-नवरात्रि साधना पर्व पर सभी का हार्दिक अभिनन्दन है . मित्रों कल मेरे एलबम बावरे-फकीरा को  रिलीज़ हुए पूरा एक वर्ष हो गया है. इस सूचना के साथ बिना आपका समय जाया किये सीधे आदरणीय पियूष पांडे जी से आपकी मुलाक़ात कराना चाहूंगा हिन्दी ब्लागिंग को लेकर कतिपय साहित्यकारों की टिप्पणियों को उनकी व्यक्तिगत राय मानने वाले पांडे जी से उनकी कविताएँ भी इस पाडकास्ट में उपलब्ध हैं.   हिन्दी लोक के प्रस्तोता की पसंद शायद आपकी  पसंद भी हो