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14.5.14

मेरे करुणाकर बुद्ध तुमको कोटिश: नमन

तस्वीर क्रमांक दो
तस्वीर क्रमांक एक

 आध्यात्मिक-दर्शन ने समकालीन सामाजिक आर्थिक  जीवन शैली को परिवर्तित कर विश्व को जो दिशा दी है उसे वर्तमान संदर्भ में देखने की कोशिश कर रहा हूं संभवतया मुझसे आप असहमत भी हों..  किन्तु बुद्ध को जितना जाना समझा एवम बांचा है उसके आधार पर बुद्ध मेरी दृष्टि  करुणाकर हैं. उनका आध्यात्मिक चिंतन जीव मात्र के लिये करुणा से भरा है. बुद्ध ने आक्रमण को जीवन में अर्थ हीन माना . शाक्य और कोली विवाद के कारण परिव्राज़क बने बुद्ध का तप और फ़िर दिव्यानुभूतीयां इस बात का प्रारंभिक प्रमाण है कि युद्ध विहीन विश्व  की अवधारणा का सूत्रपात करुणाकर बुद्ध ने राजसुख त्याग के किया . इसा के 483 और 563 ईस्वी पूर्व जन्मे करुणाकर बुद्ध का अनुशरण सामरिक तृष्णा वाले राष्ट्रों के लिये अनिवार्यत: विचारणीय है. युद्ध से व्युत्पन्न परिस्थितियां विश्व को अधोपतान की ओर ले जाएंगी यह सत्य है. युद्ध अगले निर्माण का आधार कभी हो ही नहीं सकता. मेरी दृष्टि में युद्ध  चाहे वो धर्म की प्रतिष्ठार्थ हो अथवा राज्य के विस्तार के लिये अस्वीकार्य होना ही चाहिये. 
तस्वीर क्रमांक तीन 
       आप ऊपर की तस्वीरें देखिये तस्वीर क्रमांक दो में देखिये सांची में हम सब लोग बैठकर महिलाओं के लिये सटीक और कारगर कार्यक्रमों की रणनीति तैयार कर रहे थे एक गिलहरी हम सबके इर्दगिर्द घूमती कभी डायरी के पन्ने चखने की कोशिश करती कभी किसी को छूकर जाती कुल मिलाकर निर्भीक होकर हमारे बीच थी . दो-तीन घंटे तक हम सबके साथ खेलती मानो कह रही थी कि यह शांति निलय परिसर है यहां मैं तुम हम सब शांत चित्त हो रचनात्मक हो जाते है.. बस आज़ और कल को इसी की ज़रूरत है..  
       शांति के लिये राज्य को प्रजातंत्र के ढांचे में ढाला गया किंतु हमारी लिप्सा ने प्रजातंत्र को भी रणभूमि में बदल दिया . बुद्ध के वैराग्य का आधार भी आपसी संवाद था ... इस कथा से सब कुछ स्पष्ट होगा
  • एक ऐसी घटना घटी जो शुद्धोदन के परिवार के लिये दुखद बन गयी और सिद्धार्थ के जीवन में संकटपूर्ण स्थिति पैदा हो गयी । शाक्यों के राज्य की सीमा से सटा हुआ कोलियों का राज्य था । रोहणी नदी दोनों राज्यों की विभाजक रेखा थी । शाक्य और कोलिय दोनों ही रोहिणी नदी के पानी से अपने-अपने खेत सींचते थे । हर फसल पर उनका आपस में विवाद होता था कि कौन रोहिणी के जल का पहले और कितना उपयोग करेगा । ये विवाद कभी-कभी झगड़े और लड़ाइयों में बदल जाते थे । जब सिद्धार्थ 28 वर्ष के थे, रोहणी के पानी को लेकर शाक्य और कोलियों के नौकरों में झगड़ा हुआ जिसमें दोनों ओर के लोग घायल हुये । झगड़े का पता चलने पर शाक्यों और कोलियों ने सोचा कि क्यों न इस विवाद को युद्ध द्वारा हमेशा के लिये हल कर लिया जाये । शाक्यों के सेनापति ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा के प्रश्न पर विचार करने के लिये शाक्यसंघ का एक अधिवेशन बुलाया और संघ के समक्ष युद्ध का प्रस्ताव रखा । सिद्धार्थ गौतम ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और कहा युद्ध किसी प्रश्न का समाधान नहीं होता, युद्ध से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी, इससे एक दूसरे युद्ध का बीजारोपण होगा । सिद्धार्थ ने कहा मेरा प्रस्ताव है कि हम अपने में से दो आदमी चुनें और कोलियों से भी दो आदमी चुनने को कहें । फिर ये चारों मिलकर एक पांचवा आदमी चुनें । ये पांचों आदमी मिलकर झगड़े का समाधान करें । सिद्धार्थ का प्रस्ताव बहुमत से अमान्य हो गया साथ ही शाक्य सेनापति का युद्ध का प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित हो गया । शाक्यसंघ और शाक्य सेनापति से विवाद न सुलझने पर अन्ततः सिद्धार्थ के पास तीन विकल्प आये । तीन विकल्पों में से उन्हें एक विकल्प चुनना था (1) सेना में भर्ती होकर युद्ध में भाग लेना, (2) अपने परिवार के लोगों का सामाजिक बहिष्कार और उनके खेतों की जब्ती के लिए राजी होना, (3) फाँसी पर लटकना या देश निकाला स्वीकार करना । उन्होंने तीसरा विकल्प चुना और परिव्राजक बनकर देश छोड़ने के लिए राज़ी हो गए । (साभार विकी पीडिया)
    ॐ शांति शांति शांति

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