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सर्किट हाउस भाग:-दो

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( सर्किट हाउस भाग एक  )      सुबह सरकारी फ़रमान के मुताबिक विभाग के अपर-संचालक हिम्मत लाल जी की जी अगवानी के लिये दीपक सक्सेना , अब्राहम, सरकारी गाड़ी से स्टेशन पर पहुंच चुके थे  उन सबके पहले एक दम झक्कास वर्दी पर मौज़ूद था.  वो भी गाड़ी .के आगमन के नियत समय  के तीस मिनिट पहले. दीपक  सक्सेना ने लगभग गरियाते हुए सूचित किया :-”ससुरा, अपने दोस्त के बेटे के रिसेप्शन में आया है. ” अब्राहम ने पूछा :-तो मीटिंग लेगें.. और टूर भी नहीं ? दीपक:-लिखा तो है फ़ेक्स में पर पर तुम्ही बताओ इतना सब कर पायेंगे. चलो आने पे पता   चलेगा.  अब्राहम:-हां सर, वो प्रोटोकाल वाले बाबू से रात बात हो गई थी . कमरा नम्बर तीन और पीली-बत्ती वाली  गाड़ी अलाट हो गई है. एस०डी०एम०सा’ब से भी बात हो गई  थी.  दीपक:- सुनो भाई, तुम बाबू को कुछ दे दिया करो ?   अब्राहम:-देता हूं सर,  दीपक:- हां, तो पुन्नू वाली फ़ाईल का क्या हुआ…? अब्राहम:- सर, हो जाता तो अप्रूवल न ले लेता आपसे.   इस हो जाता में  गहरा अर्थ  छिपा था. जिसे एक खग ने उच्चारित किया दूजे  खग ने समझा.  दीपक:-  हां. ये तो है.  अब्राहम:- सर, कोई मीटिंग नहीं तो चलिये मैं चर्च हो