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10.2.11

शारदे मां शारदे मन को धवल विस्तार दे



दिव्य चिंतन नीर अविरल  गति  विनोदित  देह  की !
छब तुम्हारी शारदे मां  सहज सरिता   नेह की !!
घुप अंधेरों में फ़ंसा मन  ज्ञान  दीपक बार   दे …!!
 शारदे मां शारदे मन को धवल  विस्तार दे
मां तुम्हारा चरण-चिंतन, हम तो साधक हैं अकिंचन-
डोर थामो मन हैं चंचलमोहता क्यों हमको  कंचन ?
ओर चारों अश्रु-क्रंदन,    सोच को विस्तार  दे…!!
शारदे मां शारदे मन को धवल  विस्तार दे
 अर्चना चावजी के सुरों में सुनिये यह वंदना दे




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