सम-सामयिक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सम-सामयिक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

17.8.12

विद्रूप विचारधाराएं और दिशा हीन क्रांतियों का दौर

देश के अंदर भाषाई, क्षेत्रीयता, जाति,धर्माधारित वर्गीकरण करना भारत की अखण्डता एवम संप्रभुता पर सीधा और घातक हमला है . देश आज एक ऐसे ही संकट के करीब जाता नज़र आ रहा है जाने क्या हो गया है कि हम कहीं भी कुछ भी सहज महसूस नहीं कर पा हैं . अचानक नहीं सुलगा असम अक्सर पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में सोचता हूं रोंगटे खड़े हो जाते हैं वहां तीसेक साल से घुट्टी में पिलाई जा रही है कि इंडियन उनसे अलग हैं.साल भर पहले दिल्ली प्रवास के समय मित्रों की आपसी चर्चा के दौरान जब इस  तथ्य का खुलासा हुआ तो हम सब की रगों में विषाद भर गया मेरे मित्र ललित शर्मा और पाबला जी सहित हम सब घण्टों इस बात को लेकर तनाव में रहे थे. बस इतना ही हम कर सकते थे सो कर दिया पर जिनके पास ऐसी सूचना बरसों से है वे इस विषय में शांत क्यों हैं.. क्या हुआ हमारी स्वप्नजीवी सरकार को कि भारत को तोड़ने की कोशिशों का शमन करने कोई सख्त कदम नहीं उठा पा रही. उनकी क्या मज़बूरियां हैं इसका ज़वाब मांगना अब ज़रूरी हो गया है. 
                   विद्रूप-विचारधाराएं भाषाई आधार पर गठित राज्य की सड़ांध है. अब देखिये यू.पी. बिहार के लोगों को हिराकत से  भैया कहकर भाषाई आधार पर भेदभाव बरतने वाले कथित मुम्बईया लोग क्या देश की एकता पर प्रहार नहीं करते नज़र आ रहे. वहीं दक्षिण में हिंदी भाषियों को हिराक़त की नज़र से  देखा जाना अनदेखा करना उचित है.. कदापि नहीं. ऐसा नहीं है कि भारत में विद्रूप विचारोत्तेज़ना फ़ैलाकर भारत को तोड़ने की साज़िशों से गुप्तचर संस्थाओं ने आगाह न किया होगा. पर एक मज़बूत इच्छा शक्ति का अभाव देश को अंगारों पर रखकर जला देगा इस तथ्य से बेखबर हैं हम. हम अन्ना ब्राण्ड के आंदोलन जिसका अंत सियासत है में उलझ के रह गये हैं. हमारी मौलिक सोच जैसे तुषाराच्छादित हो गई. 

राजेश दुबे जी से साभार
फ़ेसबुक पर ये देख शायद आप भी न सो सकेंगे मित्र Rajesh Dubey जी ने अपनी पोस्ट में किसका खौफ़ शीर्षक से नक्सली करतूत उज़ागर की है....
किसका खौफ :: छत्‍तीसगढ में नक्‍सलियों का खौफ सिर चढ़कर बोल रहा है। पिछले दिनों नक्‍सलियों ने मुखबारी के संदेह में एक शिक्षक कर्मी ध्रुव की हत्‍या कर दी। उस शिक्षक की लाश को कोई हाथ लगाने को आगे नहीं बढ़ा तब उसके भाई ने स्‍वयं मोटर साइकिल पर लेकर लाश रवाना हुआ।इस खौफ का क्‍या अर्थ माने, क्‍या इंसान इस कदर इंसानियत भूलता जा रहा है कि दो हाथ भी अंतिम  यात्रा में नहीं मिल रहे हैं।
जिस सर्वहारा की के नाम पर नक्सलियों द्वारा कथित रूप से   समांतर सत्ता चलाई जा उसी का शोषण करने वालों में  नक्सलियों का स्थान ही सर्वोपरि है. 

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...