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21.4.21

राम और रामायण कदापि काल्पनिक नहीं..!

यह आर्टिकल वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित गैर राजनीतिक आर्टिकल  है । जो यह सिद्ध करता है कि राम कोई काल्पनिक चरित्र नहीं है कृपया इसे अवश्य देखें और शेयर भी कीजिए जिससे अधिकतम राम भक्तों तक यह पहुंच सके।
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प्रभु श्री राम की जन्म दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। कल 20-21 अप्रैल 2020 की लगभग पूरी रात की अथक कोशिशों के बाद भगवान श्री राम के संबंध में जो जानकारी जुटा सका हूं उसके अनुसार कुछ बातें संक्षिप्त में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। इसे आप धैर्य और वैज्ञानिक आधार पर देखेंगे ताकि आप वर्तमान में पढ़ाए जा रहे पश्चिमी एवं वामपंथी विचार को द्वारा लिखे गए इतिहास को समझ पाएंगे। वर्तमान में पढ़ाई जा रहे इतिहास में ढेरों भ्रामक जानकारी हैं। यह आर्टिकल किसी भी प्रकार से किसी विचारधारा का समर्थन ना करते हुए केवल सत्य को समर्पित है।
      पृथ्वी की उत्पत्ति एक खगोलीय घटना है। इस घटना में पृथ्वी आज से 4 दशमलव 5 करोड़ वर्ष पूर्व अपने पथ पर स्थापित हुई। पर प्रकृति अर्थात उसके शीतल होते होते कुछ करोड़ों वर्ष और लगे तदुपरांत ही जीवन उपयोगी वातावरण निर्मित हुआ। यह मान लेते हैं कि  आज से लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व वर्तमान मानव के पूर्वज अस्तित्व में आए। और हम यह मानते हैं कि होमो सेपियंस के वंशज है हम मानव। यह कथानक नहीं सत्य है परंतु अंग्रेजी आयातित विचारधारा के आधार पर लिखे गए इतिहास में वैदिक काल को पता नहीं किस दबाव में ईसा के पंद्रह सौ वर्ष पूर्व स्थापित किया है। जबकि बाल्मीकि रामायण जो राम के समकालीन लिखी गई उसमें वेदों के संबंध में उल्लेख है। इसका अर्थ यह है कि राम के काल के पूर्व अर्थात सतयुग के प्रारंभ में अर्थात लगभग 11500 ईसा पूर्व से 9200 वर्ष पूर्व वेदों जिसमें संहिता आरण्यक ब्राह्मण एवं आदि का रचना काल रहा है। जो किसी  एक व्यक्ति द्वारा नहीं लिखे गए बल्कि यह है वेदव्यास द्वारा सुव्यवस्थित किए गए ऐसा मानना चाहिए। 
   अब स्पष्ट है कि रामायण काल के पूर्व त्रेता युग का शुभारंभ 6777 बी सी में हुआ। इस बात के प्रमाण प्रस्तुत किए हैं भारतीय राजस्व सेवा के एक अधिकारी श्री वेद वीर आर्य ने। उनके नजरिए से देखा जाए तो निम्नलिखित तथ्यों तक पहुंचा जा सकता है-
राम रावण के बीच धर्म युद्ध  हुआ या नहीं अथवा यह एक काल्पनिक घटना है इस प्रश्न के उत्तर में श्री आर्य बताते हैं कि
[  ]  हाल ही में नासा द्वारा अवगत कराया गया कि श्रीलंका से भारत के बीच समुद्र में एक प्राकृतिक रास्ता था। लेकिन सूर्य एवं चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण जल की अधिकता होने से उस सेतु के जरिए लंका वर्तमान श्रीलंका में जाना कठिन था। अतः राम ने पत्थर झाड़ी वनस्पति बालू इत्यादि का प्रयोग करवा कर एक सेतु का निर्माण किया जिसकी मोटाई  लगभग एक मीटर के आसपास रही है। नासा का यह प्रमाण प्रासंगिक है और राम एवं रावण के बीच हुए धर्म युद्ध की पुष्टि भी करता है। नासा यह बताता है कि राम रामसेतु में पत्थरों का जमाव डेटिंग के हिसाब से 7 हजार बीसी के आसपास रहा है तो यह माना जा सकता है कि राम ने युद्ध की व्यवस्था के लिए इस सेतु का निर्माण किया है।
[  ] श्रीलंका और भारत के बीच समुद्र में एक प्राकृतिक मार्ग था । किंतु जल स्तर बढ़ने से उस रास्ते पर चलना राम की सेना के लिए कठिन था। पता है नल नील के सहयोग से पत्थरों के जरिए जल-स्तर से ऊपर पत्थर इत्यादि डालकर रास्ता तैयार कराया गया।
[  ] इस क्रम में रावण की मृत्यु का कारण हेली धूमकेतु धरती पर नजर आया। इस कथन की पुष्टि के लिए सॉफ्टवेयर के माध्यम से लेखक आर्य ने अपने शोध ग्रंथ में अंकित किया है। तथा यह तथ्य लक्ष्मण के माध्यम से रामायण में उल्लेखित है ।
        वेदवीर आर्य श्री राम की जन्म दिनांक (ईसाई कैलेंडर के मुताबिक का) भी प्रमाण देने से नहीं चूकते। यह तिथि ईसा  पूर्व के ऋणात्मक कैलेंडर में स्थापित किया जा सकता है। 
एक अन्य शोध को देखें तो भी राम का कालखंड लगभग ईशा के 7000 वर्ष पूर्व सुनिश्चित किया गया है
आलोचकों के कारण राम पौराणिक थे या ऐतिहासिक इस पर शोध हुए हैं और हो रहे हैं। सर्वप्रथम फादर कामिल बुल्के ने राम की प्रामाणिकता पर शोध किया। उन्होंने पूरी दुनिया में रामायण से जुड़े करीब 300 रूपों की पहचान की। 

राम के बारे में एक दूसरा शोध चेन्नई की एक गैरसरकारी संस्था भारत ज्ञान द्वारा पिछले छह वर्षो में किया गया है। उनके अनुसार अगली 10 जनवरी को राम के जन्म के पूरे 7122 वर्ष हो जाएँगे। उनका मानना है कि राम एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में लिखी गई नक्षत्रों की स्थिति को 'प्ले‍नेटेरियम' नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उक्त तारीख का पता चला। यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है। 

मुंबई में अनेक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, व्यवसाय जगत की हस्तियों के समक्ष इस शोध को प्रस्तुत किया गया। और इस शोध संबंधित तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए इसके संस्थापक ट्रस्टी डीके हरी ने एक समारोह में बताया था कि इस शोध में वाल्मीकि रामायण को मूल आधार मानते हुए अनेक वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, ज्योतिषीय और पुरातात्विक तथ्यों की मदद ली गई है। इस समारोह का आयोजन भारत ज्ञान ने आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के साथ मिलकर किया था।

29.9.17

रामायण के राम जनजन के राम

एक था रावण बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ाविश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य वयं-रक्षाम का उदघोष करता आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ज़रिये जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा राम को हम भारतीय जो आध्यात्मिक धार्मिक भाव से देखते हैं राम को मैने कभी भी एक राजा के रूप में आम भारतीय की तरह मन में नहीं बसाया. मुझे उनका करुणानिधान स्वरूप ही पसंद है. किंतु जो अधिसंख्यक आबादी के लिये करुणानिधान हो वो किसी को मार कैसे सकता है और जब एक सम्राठ के रूप में राम को देखा तो सहज दृष्टिगोचर होती गईं सारी रामायण कालीन स्थितियां राजा रामचंद्र की रघुवीर तस्वीर साफ़ होने लगी 
रामायण-कालीन वैश्विक व्यवस्था का दृश्य 

रावण के संदर्भ में हिंदी विकीपीडिया में दर्ज़ विवरण को देखें जहां बाल्मीकि के हवाले से (श्लोक सहित ) विवरण दर्ज़ है- 

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। 
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूपसौन्दर्यधैर्यकान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।" 
रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति कामभाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्यारजस्वलाअकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
चूंकि इतनी अधिक विशेषताएं थीं तो बेशक कोई और वज़ह रही होगी जो राम ने रावण को मारा मेरी व्यक्तिगत सोच है कि रावण विश्व में एक छत्र राज्य की स्थापना एवम "रक्ष-संस्कृति" के विस्तार के लिये बज़िद था. जबकि त्रेता-युग का रामायण-काल के अधिकतर साम्राज्य सात्विकता एवम सरलतम आध्यात्मिक सामाजिक समरसता युक्त राज्यों की स्थापना चाहते थे. सामाजिक व्यवस्था को बनाने का अधिकार उनका पालन करने कराने का अधिकार जनता को ही था. सम्राठ तब भी जनता के अधीन ही थे केवल "देश की भौगोलिक सीमाओं की रक्षाशिक्षा केंद्रों को सहयोगअंतर्राष्ट्रीय-संबंधों का निर्वाह, " जैसे दायित्व राज्य के थे. जबकि रावण की रक्षकुल संस्कृति में अपेक्षा कृत अधिक उन्नमुक्तता एवम सत्ता के पास सामाजिक नियंत्रण नियम बनाने एवम उसको पालन कराने के अधिकार थे. जो वैदिक व्यवस्था के विपरीत बात थी. वेदों के व्याख्याकार के रूप में महर्षिगण राज्य और समाज सभी के नियमों को रेग्यूलेट करते थे. इतना ही नहीं वे शिक्षा स्वास्थ्य के अनुसंधानों के अधिष्ठाता भी थे यानी विशेषज्ञ को उनका अधिकार था .
इसके विपरीत रावण को रामायण कालीन अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक व्यवस्था का सबसे ताक़तवर एवम तानाशाह कहा जाए तो ग़लत नहीं है. रावण का सामरिक तनाव उस काल की वैश्विक-सामाजिक,एवम आर्थिक व्यवस्था को बेहद हानि पहुंचा रही थी.कल्याणकारी-गणतंत्रीय राज्यों को रावण के सामरिक सैन्य-बल के कारण रावण राज्य की अधीन होने के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग शेष नहीं होता. लगभग सारे विश्व में उसकी सत्ता थी.यानि रावण के किसी अन्य किसी प्रशासन को कोई स्थान न था.वर्तमान भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जहां कि रावण को स्वीकारा नहीं गया. जिसका सत्ता केंद्र उत्तर-भारत में था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट कर देना चाहता था ताक़ि भारतगणराज्य जो अयोध्या के अधीन है वह अधीनता स्वीकर ले . इससे उसके सामरिक-सामर्थ्य में अचानक वृद्धि अवश्यम्भावी थी. कुबेर उसके नियंत्रण में थी यानी विश्व की अर्थव्यवस्था पर उसका पूरा पूरा नियंत्रण था. यद्यपिरामायण कालीन भौगोलिक स्थिति का किसी को ज्ञान नहीं है जिससे एक मानचित्र तैयार करा के आलेख में लगाया जा सकता ताक़ि स्थिति अधिक-सुस्पष्ट हो जाती फ़िर भी आप यह जान लें कि यदि लंका श्री लंका ही है तो भी भारतीय-उपमहादीपीय क्षेत्र में भारत एक ऐसी सामरिक महत्व की भूमि थी है जहां से सम्पूर्ण विश्व पर रावण अपनी "विमानन-क्षमता" से दवाब बना सकता था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट क्यों करना चाहता था..? 
रावण के अधीन सब कुछ था केवल "विद्वानों" को छोड़कर जो उसके साम्राज्य की श्री-वृद्धि के लिये उसके (रावण के) नियंत्रण रहकर काम करें. जबकि भारत में ऐसा न था वे स्वतंत्र थे उनके अपने अपने आश्रम थे जहां "यज्ञ" अर्थात "अनुसंधान" (प्रयोग) करने की स्वतन्त्रता थी. तभी ऋषियों .के आश्रमों पर रावण की आतंकी गतिविधियां सदैव होती रहतीं थीं. यहां एक और तथ्य की ओर द्यान दिलाना चाहता हूं कि रावण के सैनिक द्वारा कभी भी किसी नगर अथवा गांवों में घुसपैठ नहीं कि किसी भी रामायण में इसका ज़िक्र नहीं है. तो फ़िर ऋषियों .के आश्रमों पर हमले..क्यों होते थे
उसके मूल में रावण की बौद्धिक-संपदाओं पर नियंत्रण की आकांक्षा मात्र थी. वो यह जानता था कि  यदि ऋषियों पर नियंत्रण पा लिया तो भारत की सत्ता पर नियंत्रण सहज ही संभव है. साथ ही उसकी सामरिक शक्ति के समतुल्य बनने के प्रयासों से रघुवंश को रोकना .
अर्थात कहीं न कहीं उसे "रक्षकुल" की आसन्न समाप्ति दिखाई दे रही थी. 
राम के गणराज्य में प्रज़ातांत्रिक व्यवस्था को सर्वोच्च स्थान था. सामाजिक व्यवस्था स्वायत्त-अनुशाषित थी. अतएव बिना किसी राजकीय दबाव के देश का आम नागरिक सुखी था. 
रावण ने राम से युद्ध के लिये कभी पहल न की तो राम को खुद वन जाना पड़ा. रावण भी सीता पर आसक्त न था वो तो इस मुगालते में थी कि राम सीता के बहाने लंका आएं और वो उनको बंदी बना ले पर उसे राम की संगठनात्मक-कुशाग्रता का कदाचित ज्ञान न था 
वानर-सेना :-
राम ने वनवासियों के युवा नरों की सेना बनाई लक्ष्मण की सहायता से उनको योग्यतानुसार युद्ध कौशल सिखाया . 
सीता हरण के उपरांत रावण को लगा कि राम की सीता हरण के बाद बनाई गई वानर-सेना लंका के लिये (मेरी दृष्टि में यु +वा+ नर+ योद्धा ऐसे युवाओं की सेना जो वन में निवासरत थे राम ने उनको लक्ष्मण की सहायता से युद्ध कौशल सिखाया ) कोई खतरा नहीं है बस यही एक भ्रम रावण के अंत का कारण था . 
राम ने रावण का अंत किया क्योंकि रावण एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा था जो विश्व को अपने तरीक़े से संचालित करना चाहती थी. राम को पूरी परियोजना पर काम काम करते हुए चौदह साल लगे. यानी लगभग तीन संसदीय चुनावों के बराबर .
क्या रावण विस्तार वादी था ...?
          जी हाँ , आप सच की तरफ जा रहे हैं अगर इस प्रश्न का उत्तर हाँ में देंगें . रावण के पराक्रम और ज्ञान के चलते उसमें विस्तारवादी होने की उत्कंठा कूट कूट के भरी थी. विस्तार का अर्थ ही विश्व को नियंत्रित कर रक्ष-संस्कृति का विस्तार करना. रक्ष-संस्कृति का अर्थ है- खाओ-पीओ-मौज-करोयानी उपभोगता वादी संस्कृति जहां सब कुछ सीमा हीन होता है. आत्मनियंत्रण शब्द रक्षसंस्कृति की शब्दावली का हिस्सा नहीं है. यह शब्द ईश्वरवादियों के लिए आक्सीजन है .. ईश्वर वादी कभी भी पंथ-निर्मित नियमों को त्यागना नहीं कहता तो कोई भी रक्ष उसे स्वीकारना नहीं चाहता. बस विवाद का विषय यही है.
तो क्या रावण वाम मार्गी था ? ..
न रावण एकेश्वर वादी था. उसे बहुल देववाद से अरुचि थी . उसके राज्य की प्रजा भी केवल शिवास्क्त थी. जिसे रक्षाकुल के संरक्षक के रूप में रावण सा राजा मिला और विलासिता के लिए सम्पूर्ण संसाधन तो कौन ऐसे राजा के विरुद्ध हो सकता है.
सवाल तो यह भी उठ सकता है कि राम ने रावण को इस कारण मारा होगा कि वे विस्तार के साथ साथ धनार्जन चाहते थे .
मित्रो , रामराज्य का विस्तार सदाचार के विस्तार के साथ अतिवादी शक्ति स्रोत के अंत से आशयित था. क्योंकि राम के पास मध्य-एशिया, चीन, रूस, इंडोनेशिया थाईलैंड आदि क्षेत्रों का राजपाठ विरासत मिला था पर छोटी सी लंका पर राम ने आक्रमण क्यों किया ? सिर्फ इस लिए किया क्योंकि वे विधर्मी नेतृत्व का अंत चाहते थे.



           

25.10.12

रामायण कालीन भारत और अब का भारत



साभार : ताहिर खान 
       राम को एक ऐसा व्यक्ति मान लिया जाये जो एक राजा थे तो वास्तव में  समग्र भारत के कल्याण के लिये कृतसंकल्पित थे तो अनुचित कथन नहीं होगा.  राम ऐसे राज़ा थे जो सर्वदा कमज़ोर के साथ थे. सीता के पुनर्वन गमन को लेकर आप मेरी इस बात से सहमत न हों पर सही और सत्य यही है. राम की दृढ़्ता और समुदाय के लिये परिवार का त्याग करना राम का नहीं वरन तत्समकालीन  प्रजातांत्रिक कमज़ोरी को उज़ागर करता है. जो वर्तमान प्रजातंत्र की तरह ही एक दोषपूर्ण व्यवस्था का उदाहरण है. आज भी देखिये जननेताओं को भीड़ के सामने कितने ऐसे समझौते करने होते हैं जो  सामाजिक-नैतिक-मूल्यों के विरुद्ध भी होते हैं. अपराधियों के बचाव लिये फ़ोन करना करवाना आम उदाहरण है. आप सभी जानतें हैं कि तत्समकालीन भारतीय सामाजिक राजनैतिक आर्थिक  परिस्थितियां 
आज से भिन्न थीं. किंतु रावण के पास वैज्ञानिक, सामरिक, संचरण के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे. यानी कुल मिला कर एक शक्ति का केंद्र. जो दुनिया को आपरेट करने की क्षमताओं से लैस था. किंतु प्रजातांत्रिक एवम मूल्यवान सामाजिक व्यवस्था के संपोषक श्री राम का लक्षमण के साथ  "आपरेशन-वनगमन" चला कर  १४ बरस तक धैर्य से अंतत: सफ़ल  परिणाम हासिल करना वर्तमान की राजनैतिक इच्छा शक्ति के एकदम विपरीत है. 
         इसे नज़दीकी सीमावर्ती राष्ट्रों के हमारे प्रति नकारात्मक व्यवहार के विरुद्ध हमारा डगमगाते क़दमों से चलना  चिंतित करता है. व्यवस्था की मज़बूरी है शायद डेमोक्रेट्रिक सिस्टम पर गम्भीर चिंतन के साथ बेहतर बदलाव के लिये संकेत सुस्पष्ट रूप से मिल रहे हैं फ़िर भी हमारा शीर्ष शांत है इस बिंदु पर ? राम ऐसे न थे.
    जब भ्रष्टाचार की बात होती है तब बस हल्ला गुल्ला मचाते नज़र आते है हम सब . सिर्फ़ हंगामा सिर्फ़ व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप के अलावा कुछ भी नहीं किसी को बदलाव की ज़रूरत नहीं नज़र आ रही ऐसा प्रतीत होता है. 

                            भारत में सामाजिक भ्रष्टाचार को रोकने के कठोर क़दम उठाने के लिये सबसे पहले सरकार को भारत वासियों को आर्थिक सुनिश्चितता देनी होगी. यहां सवाल यह है कि सम्पूर्ण ज़िंदगी के अर्थतंत्र का लेखा जोखा रखने वाला भारतीय नागरिक सबसे पहले अपने बच्चों के लिये बेहतर शिक्षा, और बेहतर चिकित्सा, सहज आवास की व्यवस्था के लिये चिंतित होता है. इस हेतु उसे अपनी आय में वृद्धि के लिये प्रयास करने होते हैं और वह अव्यवस्थित यानी अस्थिर बाज़ार कीमतों के साथ जूझता भ्रष्टाचार के रास्ते धन अर्जित करता है..
न केवल सरकारी कर्मचारी आम आदमी जो जिस प्रोफ़ेशन में है.. उसमें इस तरह की कोशिश करता है. बिल्डर डाक्टर शिक्षक यहां तक की फ़ुटपाथ पर चाय बेचने वाला भी सामान्य से अधिक लाभ हासिल करने किसी न किसी तरह का शार्ट-कट अपनाता है.  सिर्फ़ सरकारी अधिकारी कर्मचारी भ्रष्ट है या 
नेता भ्रष्ट हैं 
  ऐसा कहना सर्वथा ग़लत है.
भारतीय समाज के गिरते नैतिक मूल्यों" को रोकने की एक भावनात्मक कोशिश  


करके की ज़रूरत है .आज़ वाक़ई राम की ज़रूरत है 
 जो वास्तव में समाज को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना चाहता हो. पर दूर तक नज़र नही आता ऐसा राम ये अलग बात है.. जै श्रीराम का उदघोष सर्वत्र गूंज रहा है. 
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 ( संदर्भ :एक  था रावण बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ा, विश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य वयं-रक्षाम का उदघोष करता आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ज़रिये  जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद  पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा................. राम ने रावण का अंत किया क्योंकि रावण  एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा था  जो विश्व को अपने तरीक़े से संचालित करना चाहती थी. राम को पूरी परियोजना पर काम काम करते हुए चौदह साल लगे. यानी लगभग तीन संसदीय चुनावों के बराबर . 
यह आलेख पूरी तरह  आप मेरी इस पोस्ट पर देखिये "क्यों मारा राम ने रावण को ?)

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