आतंकवाद क्या ब्लैकहोल है सरकार के लिये
उसे मालूम न था कि हर अगला पग उसे मृत्यु के क़रीब ले जा रहा है. अपने कल को सुंदर से अति सुंदर सिक्योर बनाने आया था वो. उस जानकारी न थी कि कोई भी सरकार किसी हादसे की ज़िम्मेदारी कभी नहीं लेती ज़िम्मेदारी लेते हैं आतंकी संगठन सरकार तो अपनी हादसे होने की वज़ह और चूक से भी मुंह फ़ेर लेगी. संसद में हल्ला गुल्ला होगा राज्य से केंद्र पर केंद्र से राज्य पर बस एक इसी आरोप-प्रत्यारोप के बीच उसकी देह मर्चुरी में ढेरों लाशों के बीच पड़ी रहेगी तब तक जब तक कि उसका कोई नातेदार आके पहचान न ले वरना सरकारी खर्चे पे क्रिया-कर्म तो तय है. काजल कुमार जी की आहत भावना आम भारतीय अब समझने लगा है कि आतंकवाद से जूझने शीर्षवालों के पास कोई फ़ुल-प्रूफ़ प्लान नहीं है. यदि है भी तो इस बिंदु पर कार्रवाई के लिये कोई तीव्रतर इच्छा शक्ति का आभाव है. क्यों नहीं खुलकर जनता के जानोमाल की हिफ़ाज़त का वादा पूरी ईमानदारी से किया जा रहा है या फ़िर कौन सी मज़बूरिया