उपेक्षा का दंश : खून निकलता नहीं ……… खून सूखता है
चित्र जीवन महादर्शन ब्लॉग से साभार समय की तरह जीवन पुस्तिका के पन्ने भी धीरे धीरे कब बदल जाते हैं इसका ज्ञान किसे और कब हुआ है . टिक टिक करती घड़ी को टुकटुक निहारती बूढ़ी काया के पास केवल एक खिलौना होता है टाइम पास करने के लिए वो है पुराने बीते दिनों की यादें …… !! झुर्रीदार त्वचा शक्कर कम वाली देह को अक्सर उपेक्षा के दंश चुभते हैं ये अलहदा बात है कि खून निकलता नहीं ……… खून सूखता अवश्य है . समय के बदलाव के साथ दादाजी दादी जी नाना जी नानी जी , के रुतबे में भी नकारात्मक बदलाव आया है . यह सच है कि नया दौर नए बदलाव लाता है . पर आज का दौर बेहद तेज़ी से बदलाव लाता तो है किंतु बहुधा बदलाव नकारात्मक ही होते हैं . समय के साथ चिंतन का स्वरुप भी परिवर्तन शील होने लगा है . पीढ़ी के पास अब आत्मकेंद्रित चिन्तन है . " अपने- आज" को जी भर के जीने का "अपने-कल" को सुरक्षित ढांचा देने का चिंतन …… नई पीढ़ी घर के कमरे में कैद बुढ़ापा पर गाहे बगाहे इलज