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26.3.13

" चम्मचों की वर्तमान दशा और उनकी भविष्य की दशा "


                                                                  राष्ट्रीय स्तर पर यशस्वियों की लम्बी फ़ेहरिश्त को देख कल्लू यश अर्जन के गुंताड़े में लग गये.एक दिन अल्ल सुबह कल्लू  आए बोले दादा-"नाम, नाम में का रखा है है इसे तो हम भी कमा सकते हैं..!"
 हम- कमाओ नाम कमाओगे तो हम हमारा मुहल्ला, तुम्हारी चाय की दुकान, सब कछु फ़ेमस हो जाएगा कमाओ कमाओ नाम कमाओ..!
कलू - दादा, एक ब्राह्मण का आशीर्वाद सुबह से मिला तो हम आज सेई काम शुरु कर देते हैं.
         हम भी बुजुर्गियत भरे भाव से मुस्कुराये उधर कल्लू फ़ुर्र से गायब. 
                              पता नहीं क्या हुआ कल्लू को. यूं तो आज़ कल आधे से ज़्यादा लोग खुद को सुर्खियों में देखना चाहते हैं. पर एक कल्लू ऐसा इंसान था जो वास्तव में इंसान था अब इसे कौन सा भूत सवार हुआ कि वो यशस्वी हो जाना चाहता है. हमने सोचा अब जब आएगा तो समझा देंगे कि यश अर्जित करने की लालसा को होली में डाल दो.. हमने अच्छे-अच्छों को यशासन से तिरोहित ही नहीं औंधे मुंह गिरते देखा है. 
               पिछले हफ़्ते कल्लू अचानक आ टपके चेहरा पर सफ़लताओं से उत्तेजित थे  बोले महाराज आपके चरणों के आशीर्वाद से हम नेता जी के चिलमची हो गये हैं. जिधर जाते हैं उधर नेताजी के साथ हमारा भी स्वागत सत्कार होता है गुरू.. अब तो पक्का है देर सवेर हमारा भी सितारा चमकेगा. !
हम : खुलके बोलो कल्लू कौन सा कारूं का खजाना पा गये हो भई ?
कल्लू : दादा, वो झलकन भैया हैं न उनकी पार्टी के हम मेम्बर बन गये. आप तो जानते हो न झलकन भैया के सितारे कित्ते बुलंदी पे चल रहे हैं.  बस उनकी चमचा गिरी करने लगे हैं. फ़त्ते भैया उनसे मिलवाए थे हमको. मां कसम  महाराज़  हमाए तो भाग खुल गये. झलकन भैया एक दिन इस प्रदेश के सबसे बड़े नेता होंगे और हम हम जो उनकी चम्मची कर रए हैं.. चमक जाएंगे !
हम : आओ, खाना खाते हैं..! 
                         ज़रा सी नानुकुर के बाद कल्लू भाई मान गये. उनकी हमारे डायनिंग हाल  में डायरेक्ट एंट्री थी, बचपन के दोस्त जो थे. कुर्सी पर यूं बैठे गोया हालिया निर्वाचित हुए हों.  बातचीत चालू हुई. खाना भी आया. हर ढौंगे में चम्मच सिर के बल धंसे थे. कुछेक चम्मच "स्पून-स्टैंड" में उल्टे टंगे थे . हमारा ध्यान खाने पर कम चम्मचों के अस्तित्व पर अधिक  था. डायनिंग रूम में स्तब्धता.. सिवाय श्रीमति जी के ये खाओ, रोटी दूं और मुंह में निष्पादित हो रही चर्वण-क्रिया के अतिरिक्त कोई शोर शराबा न था. दो तीन रोटी पेट में समाते ही कल्लू का मुंह बोलने को बाध्य हो गया बोलने लगे -भैया , बड़े  चिंतित नज़र आ रए हौ ? का बात है.. ज़रा बताओ..?
हम :- भाई कल्लू, हम " चम्मचों की वर्तमान दशा और उनकी भविष्य की दशा "  पर चिंतनरत हूं..?  
कल्लू : हिंदी में बोलो महाराज इत्ती मंहगी भाषा हम नहीं जानते.. हा हा हा 
हम :- हा हा हा , भाषा पर मंहगाई डायन का असर.. हा हा 
कल्लू :- हां तो महाराज़ बताओ न अपनी अजीबोग़रीब बात का अर्थ बताओ न " चम्मचों की वर्तमान दशा और उनकी भविष्य की दशा " क्या है..?
हम ने भी बिना नानुकुर किये बताया- देखो भाई.. चम्मचों की वर्तमान दशा ये है कि वे दाल,सब्जी, अचार, आदि वाले बर्तनों में सिर के बल डले हैं. जो चमचे काम नहीं कर रहे होते वो देखो चम्मच स्टैंड में लटके हैं वो भी गले से .. हा हा 
पर काम तो आते हैं न.... कल्लू बोला यह कथन कह कर उसने अपने को उपयोगी सिद्ध करने की कोशिश की. पर हम ने भी नहले पर दहला मारा "भैये, ग़रीबों की रसोईयों में इनका महत्व नहीं.."
   कल्लू भाई ने पलटकर चम्मच भविष्य की दशा के बारे में जानने ज़हमत नहीं उठाई गोया कि वे घबरा रहे हों कि पता नहीं हम क्या कहें और कहा फ़ंसा लें अपने बातों के बुनाव में ..
                                मित्रो, मेरे इस आलेख से भयभीत होकर राष्ट्रीय महत्व के कार्य चम्मच गिरी से मुंह मोड़ने की गलती मत कर बैठिये हमारे टाइप के लेखक विचारक कवि तो बस यूं ही शब्दों से खेला   करतें हैं  . अरे जब इतने बड्डे बड्डे महान साहित्यकार  बाल भी बांका न कर पाए व्यवस्था का तो मेरी क्या कॊवत। आप तो दफ्तर में , नेता जी कने जब जाओ तो फुल स्टेनलेस के चमचमाते  
 चम्मच  बनके जाओ. पता नहीं कब  कृपा हो  और  मोदी जी की जगह आपका नाम उछल आए  आका के मुंह से ?   

9.10.12

सही प्रबंधक वो है जो अपने चम्मचों को लटका के रखे ...........!!







चमचों के बिना जीना-मरना तक दूभर है. खास कर रसूखदारों-संभ्रांतों के लिये सबसे ज़रूरी  सामान बन गया है चम्मच. उसके बिना कुछ भी संभव नहीं चम्मच उसकी पर्सनालिटी में इस तरहा चस्पा होता है जैसे कि सुहागन के साथ बिंदिया, पायल,कंगन आदि आदि. बिना उसके रसूखदार या संभ्रांत टस से मस नहीं होता.  एक दौर था जब चिलम पीते थे लोग तब हाथों से आहार-ग्रहण किया जाता था तब आला-हज़ूर लोग चिलमची पाला करते थे. और ज्यों ही खान-पान का तरीक़ा बदला तो साहब चिलमचियों को बेरोज़गार कर उनकी जगह चम्मचों ने ले ली . लोग-बाग अपनी   क्षमतानुसार चम्मच का प्रयोग करने लगे. प्लैटिनम,सोने,चांदी,तांबा,पीतल,स्टेनलेस, वगैरा-वगैरा... इन धातुओं से इतर प्लास्टिक महाराज भी चम्मच के रूप में कूद पड़े मैदाने-डायनिंग टेबुल पे. अपने अपने हज़ूरों के सेवार्थ. अगर आप कुछ हैं मसलन नेता, अफ़सर, बिज़नेसमेन वगैरा तो आप अपने इर्द गिर्द ऐसे ही विभिन्न धातुओं के चम्मच देख पाएंगे. इनमें आपको बहुतेरे चम्मच बहुत पसंद आएंगे. कुछ का प्रयोग आप कभी-कभार ही करते होंगे. 

  चम्मच का एक सबसे महत्वपूर्ण और काबिले तारीफ़ गुण भी होता है कि वो सट्ट से गहराई तक चला जाता है. यानी आपके कटोरे के बारे में और आपके मुंह  के बारे में, आपके हाथों के बारे में 
    अब आप डायनिंग टेबल पर सजे चम्मच देखिये और याद कीजिये उस दौर को जब हमारे खाने-खिलाने के तरीके़ में "छुरी-कांटे" का कोई वज़ूद न था.केवल चम्मच से ही काम चलाया जाता था... हज़ूर आप बे-खौफ़ थे अभी भी हैं बे-खौफ़ पर आज़ आपको खबरदार किये देता हूं... अब हर जगह एक से बढ़कर एक "चम्मच" मौज़ूद मिलेंगे... पर छुरी-कांटों के साथ अब तय आपको करना है कि "चम्मच-बिरादरी" का उपयोग आप कितना और कैसे करना है. जैसे भी करें पर "खाते-वक़्त" इस बात का ध्यान भी रखें कि आप सिर्फ़ चम्मच से नहीं खाएंगे. उसके साथ छुरी-कांटों का प्रयोग भी करेंगे. और आप तो जानते हैं कि छुरी-कांटा तो छुरी-कांटा है .......आज अल्ल-सुबह मेरी नज़र डायनिंग टेबल पर रखे स्पून-स्टैंड पर पड़ी. उधर श्रीमति जी बोलीं- सुनते हो ?
आप की तो सुनता हूं.! बोलिये..
अबकी बार जब छुट्टी में आओगे तो कटलरी और स्पून स्टैंड खरीदना है..
क्यों...?
अरे, पुराना हो गया है. 
हां, ठीक है.सोच रहा था कि मैं अपने सजीव चम्मचों को तो मैं हमेशा खड़ा ही रखता हूं. और श्रीमती जी काहे स्पून स्टैंड मंगा रहीं हैं..सो हम फ़िर बोले..
"ये डब्बा बुरा है क्या..?"
न बुरा तो नहीं है मैं चाहती हूं कि ऐसा स्टैंड खरीदूं कि सारी कटलरी को लटका सकूं..
                                   मुझे उनकी इस बात से आत्म-बोध हुआ कि सही प्रबंधक वो है जो अपने चम्मचों को लटका के रखे ........... आप क्या सोचते हैं.. ?

21.6.11

सावधान....चमचों के साथ छुरी-कांटे भी होते हैं...!!


चमचों के बिना जीना-मरना तक दूभर है. खास कर रसूखदारों-संभ्रांतों के लिये सबसे ज़रूरी  सामान बन गया है चम्मच. उसके बिना कुछ भी संभव नहीं चम्मच उसकी पर्सनालिटी में इस तरहा चस्पा होता है जैसे कि सुहागन के साथ बिंदिया, पायल,कंगन आदि आदि. बिना उसके रसूखदार या संभ्रांत टस से मस नहीं होता. 
       एक दौर था जब चिलम पीते थे लोग तब हाथों से आहार-ग्रहण किया जाता था तब आला-हज़ूर लोग चिलमची पाला करते थे. और ज्यों ही खान-पान का तरीक़ा बदला तो साहब चिलमचियों को बेरोज़गार कर उनकी जगह चम्मचों ने ले ली . लोग-बाग अपनी  आर्थिक क्षमतानुसार चम्मच का प्रयोग करने लगे. प्लैटिनम,सोने,चांदी,तांबा,पीतल,स्टेनलेस, वगैरा-वगैरा... इन धातुओं से इतर प्लास्टिक महाराज भी चम्मच के रूप में कूद पड़े मैदाने-डायनिंग टेबुल पे. अपने अपने हज़ूरों के सेवार्थ. अगर आप कुछ हैं मसलन नेता, अफ़सर, बिज़नेसमेन वगैरा तो आप अपने इर्द गिर्द ऐसे ही विभिन्न धातुओं के चम्मच देख पाएंगे. इनमें आपको बहुतेरे चम्मच बहुत पसंद आएंगे. कुछ का प्रयोग आप कभी-कभार ही करते होंगे. 
      चम्मच का एक सबसे महत्वपूर्ण और काबिले तारीफ़ गुण भी होता है कि वो सट्ट से गहराई तक चला जाता है. यानी आपके कटोरे के बारे में और आपके मुंह  के बारे में, आपके हाथों के बारे में 
                                              अब आप डायनिंग टेबल पर सजे चम्मच देखिये और याद कीजिये उस दौर को जब हमारे खाने-खिलाने के तरीके़ में "छुरी-कांटे" का कोई वज़ूद न था.केवल चम्मच से ही काम चलाया जाता था... हज़ूर आप बे-खौफ़ थे अभी भी हैं बे-खौफ़ तो आज़ आपको खबरदार किये देता हूं... अब हर जगह एक से बढ़कर एक "चम्मच" मौज़ूद मिलेंगे... पर छुरी-कांटों के साथ अब तय आपको करना है कि "चम्मच-बिरादरी" का उपयोग आप कितना और कैसे करना है. जैसे भी करें पर "खाते-वक़्त" इस बात का ध्यान भी रखें कि आप सिर्फ़ चम्मच से नहीं खाएंगे. उसके साथ छुरी-कांटों का प्रयोग भी करेंगे. और आप तो जानते हैं कि छुरी-कांटा तो छुरी-कांटा है .......
इसे भी कभी देख लीजिये जी जब फ़्री हों 

हमें हर मामले में उंगली करनें में महारत हासिल है .



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